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Friday, 9 August 2013

लयबद्ध अगीत छंद - तेर मन की, नर्म छुअन को,....अगीत की शिक्षा शाला -..कार्यशाला-४ ..डा श्याम गुप्त .... कार्यशाला-३

अगीत की शिक्षा शाला -....डा श्याम गुप्त ....

                                         कार्यशाला-४  -लयबद्ध अगीत  छंद  .......                                   

                    इस ब्लॉग पर अगीत की कार्यशाला कार्यक्रम प्रसारित किया जायगा , अगीत कविता क्या है व कैसे  लिखा जाता है इसका विविध छंद व उनका छंद विधान क्या है  सोदाहरण प्रस्तुत किया जाएगा.....
            कविता  की अगीत विधा का प्रचलन भले ही कुछ दशक पुराना हो परन्तु अगीत की अवधारणा मानव द्वारा आनंदातिरेक में लयबद्ध स्वर में बोलना प्रारम्भ करने के साथ ही स्थापित  होगई थी|  विश्व भर के काव्य ग्रंथों समृद्धतम संस्कृत भाषा साहित्य में अतुकांत गीत, मुक्त छंद  या अगीत-- मन्त्रों , ऋचाओं श्लोकों के रूप में सदैव ही विद्यमान रहे हैं|  लोकवाणी एवं लोक साहित्य में भी अगीत कविता -भाव सदैव उपस्थित रहा है | यथा --
     मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम शास्वती समां 
     यद् क्रोंच मिथुनादेकं बधी काम मोहितं ||               तथा.....



भूर्वुवः स्वः तत्सवितुर्वरेणयम

भर्गो देवस्य  धीमहि 

धियो यो न प्रचोदयात ||
         संक्षिप्तता, समस्या समाधान, अतुकांत मुक्त-छंद प्रस्तुति के साथ-साथ गेयता को समेटती हुई गीत सुरसरि  की सह-सरिता, नयी अतुकांत कविता "अगीत" एक अल्हड निर्झरिणी की भांति, उत्साही राष्ट्र-प्रेम से ओत -प्रोत , गीत, गज़ल, छंद, नव-गीत आदि सभी काव्य-विधाओं में सिद्धहस्त देश व विदेश स्थित कवियों की लेखनी से अविरल रूप से प्रवाहित हो रही है | ]

                                            कार्यशाला-४ --लयबद्ध अगीत छंद ....
{ अगीत विधा कविता में  अगीत , लयबद्ध अगीत ,गतिमय सप्तपदी अगीत , लयबद्ध षट्पदी अगीत , नव-अगीत,  त्रिपदा अगीत  आदि छः प्रकार के अतुकांत छंद प्रयोग होरहे हैं एवं  सातवीं विधा 'त्रिपदा अगीत ग़ज़ल' है|)

                लयबद्ध अगीत छंद अगीत काव्य का  लयबद्ध अतुकांत गीत है जो सात से १० पंक्तियों में होता है, गति, लय व गेयता आवश्यक हैं  एवं प्रत्येक पंक्ति में १६ निश्चित मात्राएँ होती हैं|  डा श्याम गुप्त द्वारा २००७ में प्रणीत यह छंद सर्वप्रथम उनकी पुस्तक गीति विधा में महाकाव्य "प्रेमकाव्य " में प्रेम भाव खंड के अध्याय आठ -प्रेम-अगीत में प्रयोग किया  गया  था  |
उदहारण-----

तुम जो सदा कहा करती थीं 
मीत सदा मेरे बन रहना |
तुमने ही मुख फेर लिया क्यों 
मैंने  तो कुछ नहीं कहा था |
शायद तुमको नहीं पता था ,
मीत भला कहते हैं किसको |
मीत शब्द को नहीं पढ़ा था ,
तुमने मन के शब्दकोश में ||"  

श्रेष्ठ कला का जो मंदिर था 
तेरे गीत सजा मेरा मन  |
प्रियतम तेरी विरह पीर में ,
पतझड़ सा वीरान  हो गया |
जैसे धुन्धलाये शब्दों की,
धुंधले  अर्ध-मिटे चित्रों की ,
कला-वीथिका एक पुरानी |

तेर मन की, नर्म छुअन को,
बैरी मन पहचान न पाया,
तेरे तन की तप्त चुभन को,
मैं था रहा समझता माया |
तुमने क्यों न मुझे समझाया |
 अब बैठा यह सोच रहा हूँ
ज्ञान ध्यान ताप योग धारणा ,
में, मैंने इस मन को रमाया |
यह भी तो मया संभ्रम है,
यूं  ही  हुआ  पराया तुमसे |

                                            क्रमश -कार्यशाला -५ ...गतिमय सप्त-पदी अगीत.....






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