अगीत की शिक्षा शाला
{ अगीत विधा कविता में अगीत , लयबद्ध अगीत
,गतिमय सप्तपदी अगीत , लयबद्ध षट्पदी अगीत , नव-अगीत, त्रिपदा अगीत आदि
छः प्रकार के अतुकांत छंद प्रयोग होरहे हैं एवं सातवीं विधा 'त्रिपदा अगीत
ग़ज़ल' है|)
कार्यशाला- ७ --...लयबद्ध षट्पदी अगीत छंद ....
यह छः पंक्तियों का , प्रत्येक पंक्ति में १६ मात्राओं युक्त सममात्रिक एवं लयबद्धता एवं गेयता युक्त अतुकांत छंद है | इसका सृजन डा श्याम गुप्त ने किया एवं उनका प्रथम अगीत महाकाव्य " सृष्टि - ईषत-इच्छा या बिगबेंग ( एक अनुत्तरित उत्तर ...)" इसी छंद में रचा गया था ....तदुपरांत उनकी रामकथा पर आधारित खंड-काव्य शूर्पणखा में भी इसी छंद का प्रयोग किया गया है .....उदाहरण देखें ....
" जग की इस अशांति-क्रंदन का,
लालच लोभ मोह-बंधन का |
भ्रष्ट पतित सत्ता गठबंधन,
यह सब क्यों, इस यक्ष -प्रश्न का |
एक यही उत्तर सीधा सा ;
भूल गया नर आप स्वयं को || " ------सृष्टि महाकाव्य से ( ड़ा श्याम गुप्त )
" निजी स्वार्थ के कारण मानव ,
अति दोहन कर रहा प्रकृति का |
प्रतिदिन एक ही स्वर्ण अंड से ,
उसका लालच नहीं सिमटता |
चीर कलेजा एक साथ ही ,
पाना चाहे स्वर्ण खजाना |
"
---- सृष्टि महाकाव्य से
एवं ....
लोलुप भ्रमरों की बातें क्या
,
ललचाते
अतुलित शूर
वीर |
इस
तन
की
कृपा, प्रणय
भिक्षा ,
हित,
कितने
ही
पद-दलित
हुए |
पर आज मुझे क्यों लगता है,
संगीत फूटता कण कण से
||"
---- ( शूर्पणखा काव्य-उपन्यास से...डा श्याम
गुप्त )
' नव षोडशि सी इठला करके ,
मुस्काती तिरछी चितवन से |
बोली रघुबर से शूर्पणखा ,
सुन्दर पुरुष नहीं तुम जैसा ;
मेरे जैसी सुन्दर नारी,
नहीं जगत में है कोई भी
||"
---- डा श्याम गुप्त ( शूर्पणखा खंड-काव्य से )
" हम क्षत्री है वन में मृगया,
करना तो खेल हमारा है |
तुम जैसे दुष्ट मृग-दलों को,
हम सदा खोजते रहते हैं |
चाहे काल स्वयं सम्मुख हो,
नहीं मृत्यु से डरते हैं हम || " ---शूर्पणखा काव्य उपन्यास से ( डा श्याम गुप्त )
करना तो खेल हमारा है |
तुम जैसे दुष्ट मृग-दलों को,
हम सदा खोजते रहते हैं |
चाहे काल स्वयं सम्मुख हो,
नहीं मृत्यु से डरते हैं हम || " ---शूर्पणखा काव्य उपन्यास से ( डा श्याम गुप्त )
" विविध रंगकी सुमन वल्लरी ,
विविध रंग की सुमनावालियाँ ;
एवं नव पल्लव लड़ियों से,
सीता ने विधि भांति सजाया |
हर्षित होकर लक्ष्मण बोले,
'करें पदार्पण स्वागत है प्रभु ! " ---- शूर्पणखा खंड काव्य से
विविध रंग की सुमनावालियाँ ;
एवं नव पल्लव लड़ियों से,
सीता ने विधि भांति सजाया |
हर्षित होकर लक्ष्मण बोले,
'करें पदार्पण स्वागत है प्रभु ! " ---- शूर्पणखा खंड काव्य से
---- क्रमश ...कार्यशाला ८ ...
धन्यवाद चाहर जी.....
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