अगीत की शिक्षा शाला -....डा श्याम गुप्त ....
कार्यशाला-३
इस ब्लॉग पर अगीत की कार्यशाला कार्यक्रम प्रसारित किया जायगा , अगीत कविता क्या है व कैसे लिखा जाता है इसका विविध छंद व उनका छंद विधान क्या है सोदाहरण प्रस्तुत किया जाएगा.....[ कविता की अगीत विधा का प्रचलन भले ही कुछ दशक पुराना हो परन्तु अगीत की अवधारणा मानव द्वारा आनंदातिरेक में लयबद्ध स्वर में बोलना प्रारम्भ करने के साथ ही स्थापित होगई थी| विश्व भर के काव्य ग्रंथों व समृद्धतम संस्कृत भाषा साहित्य में अतुकांत गीत, मुक्त छंद या अगीत-- मन्त्रों , ऋचाओं व श्लोकों के रूप में सदैव ही विद्यमान रहे हैं| लोकवाणी एवं लोक साहित्य में भी अगीत कविता -भाव सदैव उपस्थित रहा है | यथा --
यद् क्रोंच मिथुनादेकं बधी काम मोहितं || तथा.....
भूर्वुवः स्वः तत्सवितुर्वरेणयम
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो न प्रचोदयात ||
कार्यशाला- ३ ....अगीत क्या है व क्यों ...
" गीत में अ प्रत्यय लगाकर अगीत को संज्ञा के रूप में स्वीकार किया गया है | अगीत गीत नहीं के रूप में न लिया जाय | यह एक वैज्ञानिक पद्धाहाई जिसमें संक्षिप्तता को ग्रहण किया है , सतसैया के दोहरे की भांति ..." ---- डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य'
हे अगीत ! तुम निहित गीत में
गीत तुम्हारे अंतर स्थित
नए छंद नव भाव नवल स्वर
ले अवतरित हुए हे चेतन !
वंदन हित वाणी -विनायकौ
नमन श्याम का हो स्वीकार | ---- अगीत साहित्य दर्पण से
गीत तुम परिमिति से निकलकर
हे अगीत ! तुम निहित गीत में
गीत तुम्हारे अंतर स्थित
नए छंद नव भाव नवल स्वर
ले अवतरित हुए हे चेतन !
वंदन हित वाणी -विनायकौ
नमन श्याम का हो स्वीकार | ---- अगीत साहित्य दर्पण से
अपरिमित होजाते हो,
आकार से हटकर
निराकार होजाते हो,
गुणों को त्यागकर
निर्गुण गीत बन जाते हो,
अगीत कहलाते हो | ---- डा श्याम गुप्त
एक लघु वाक्य
करता है हमारे भाव का
स्पष्ट सम्प्रेषण |
अगीत की लघुकाया में
लेता है आकार
हमारे विचार का
स्पष्ट विस्तृत वाच्य | ----प. जगत नारायण पांडे
अन्तर्निहित गीत है गति है
लय यति गति व्यति वह अगीत है,
अ असीम है परिधि अपरिमित
अ का अर्थ वह नहीं नहीं है;
त्रिपदा अप्त्पदी या षट्पद
है अगीत वह नव-अगीत भी | ------ लयबद्ध षट्पदी अगीत
प्रेम विह्वलता विरह भावातिरेक की धारा,
जब बहती है मन में,
अजस्र अपरिमित प्रवहमान- तब-
गीत निसृत होते हैं
सरिता की अविरल धारा की तरह ;
वही धारा ,प्रश्नों को उत्तरित करती हुई
व्याख्या विश्लेषण सत्य को उद्घाटित करती हुई ,
निस्रत निर्झरिणी बनकर
अगीत बन जाती है | ----डा श्याम गुप्त
नयी भोर की उषा सरीखी,
स्वर्णिम रंगों को बिखराती
नवल विधा की भांति लजाती
नवीन विधा 'अगीत'
काव्य के नव सत्य की भांति
निशान्धकार को भेदती हुई
वक्त के सांचे को बदलने
उतरी , नीलाम्बर से-
धीरे धीरे धीरे | ---- सुषमा गुप्ता
सामाजिक सरोकारों को
अपने में समाये,
नव प्रभात लाने
नव-अगीत आये | ----- डा श्याम गुप्त
" अगीत को 'गीत सा नहीं ' के अर्थों में न लिया जाय , अगीत के रचनाकार अगीत को गाकर पढ़ सकते हैं |"
----समीक्षक प. राम मूर्ति द्विवेदी
गीतों का पहला मीत
शुरू हुई जहां से
रचनाओं की रीत ;
आओ रचें
आज फिर एक अगीत ----- पार्थो सेन
कुछ पंक्तियाँ कभी जुडी थीं
किसी के मन में ,
जगी थीं कुछ भावनाएं,
लिखा होगा फिर उसने
अपनी भाषा में उस संवेदना को,
पिरोया होगा उसने फिर
उसे एक अगीत में|
यहीं पर जन्म हुआ ,
कविता का,
और शुरू हुआ यहीं से
कविता का एक सफ़र ,
बंट गया जो अनगिनत विधाओं में ,
बेचारा वह पहला अगीत | ----- पार्थो सेन
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