अगीत की शिक्षाशाला....... अगीत में रस छंद अलंकार योजना---क्रमश .....
कार्यशाला १५ .अगीत छंद व उनका रचना विधान.....( अगीत व लयबद्ध अगीत छंद..)
लय व गति काव्य-विधा के अपरिहार्य तत्व व विशेषताएं हैं जो इसे गद्य-विधा से पृथक करती
है | यति --काव्य को संगीतमयता के आरोह-अवरोह के साथ कथ्य व भाव को अगले स्तर पर परिवर्तन की
स्पष्टता से विषय सम्प्रेषण को आगे बढाती है | तुकांत बद्धता ..काव्य के शिल्प सौंदर्य को बढाती है परन्तु
संक्षिप्तता, शीघ्र भाव-सम्प्रेषणता व अर्थ-प्रतीति का ह्रास करती है | अतः वैदिक छंदों व ऋचाओं की अनुरूपता
व तादाम्य लेते हुए अगीत मूलतः अतुकांत छंद है | हाँ लय व गति इसके अनिवार्य तत्व हैं तथा तुकांत, यति,
मात्रा व गेयता का बंधन नहीं है | अगीत वस्तुतः अतुकांत गीत है |
अगीत कविता का मुख्य अभिप्राय: है राष्ट्र, समाज व जमीन से जुडी वह छोटी अतुकांत कविता जो पांच से दस पंक्तियों से कम या अधिक की न हो | जिसमें लय व गति हो , गेयता का बंधन न हो एवं मात्रा- बंधन भी आवश्यक नहीं | वर्तमान में अगीत काव्य-विधा में प्रचलित व प्रयोग होरहे विविध छंदों का नीचे वर्णन किया जा रहा है | वे छंद ये हैं-----
१- अगीत छंद ......
२-लयबद्ध
अगीत
३-गतिमय
सप्तपदी अगीत
४-लयबद्ध
षटपदी अगीत
५-नव-अगीत
६-त्रिपदा
अगीत
७-त्रिपदा
अगीत गज़ल
|
(१)- अगीत छंद
--- अगीत छंद
के मुख्य
रचना-विधान नियम
ये हैं----
१-अतुकांत
कविता
२.सामान्यतया
पांच से
आठ ( अधिकतम दस
) पंक्तियों से
कम व
अधिक नहीं
|
३.मात्रा
बंधन नहीं
४.गति,
यति व
लय होनी
चाहिए
५.गेयता,
अगेयता का
बंधन नहीं
|
.यथा---
"इधर उधर
जाने से
क्या होगा
;
मोड़ मोड़
पर जमी
हुईं हैं ,
परेशानियां |
शब्द -शब्द
अर्थ सहित
कह रहीं
कहानियां
मन को
बहलाने से
क्या होगा
|"
----- डा रंगनाथ
मिश्र 'सत्य'
"आज उन्हें
चलना होगा
शान्ति के
पथ पर
,
जिन्होंने कल
हमारे खून
की,
होली खेली
है
|"
------डा सुरेशचंद्र
शुक्ल, नार्वे
"
झरबेरी के
कांटे
तुमने क्यों
बांटे ?
सुबह शाम
दोनों -
बोल उठे
राम-राम ;
सच्चाई के
गाल पर
पड़ते हैं
चांटे
|"
--- वीरेंद्र निझावन
"
प्रेम विह्वलता,विरह, भावातिरेक की
धारा ,
बहती है
जब मन
में ,
अजस्र, अपरिमित,
प्रवाहमान; तब-
गीत निस्रत
होते हैं.
सरिता की
अविरल धारा
की तरह
|
वही धारा,
प्रश्नों को
उत्तरित करती
हुई
व्याख्या, विश्लेषण,
सत्य को
जन -जन
के लिए
उद्घाटित करती
हुई,
निस्रत निर्झरिणी
बन कर
-
अगीत बन
जाती है
|"
---डा श्याम
गुप्त
(२)- लयबद्ध अगीत
छंद ... -----इनका रचना-विधान निम्न
होना चाहिए
---
१-अतुकांत
गीत
२.सात
से दश
तक पंक्तियाँ
३.गति,
लय व
गेयता आवश्यक
४. प्रत्येक
पंक्ति में
सोलह निश्चित
मात्राएँ |
उदाहरण-----
"तुम जो सदा कहा करती थीं
मीत सदा मेरे बन रहना
|
तुमने ही मुख फेर लिया क्यों
मैंने
तो
कुछ
नहीं
कहा
था |
शायद तुमको नहीं पता था
,
मीत भला कहते हैं किसको
|
मीत शब्द को नहीं पढ़ा था
,
तुमने मन के शब्दकोश में
||"
तुम जो सदा कहा करती थीं
मीत सदा मेरे बन रहना |
तुमने ही मुख फेर लिया क्यों
मैंने तो कुछ नहीं कहा था |
शायद तुमको नहीं पता था ,
मीत भला कहते हैं किसको |
मीत शब्द को नहीं पढ़ा था ,
तुमने मन के शब्दकोश में ||"
श्रेष्ठ कला का जो मंदिर था
तेरे गीत सजा मेरा मन |
प्रियतम तेरी विरह पीर में ,
पतझड़ सा वीरान हो गया |
जैसे धुन्धलाये शब्दों की,
धुंधले अर्ध-मिटे चित्रों की ,
कला-वीथिका एक पुरानी |
तेर मन की, नर्म छुअन को,
बैरी मन पहचान न पाया,
तेरे तन की तप्त चुभन को,
मैं था रहा समझता माया |
तुमने क्यों न मुझे समझाया |
अब बैठा यह सोच रहा हूँ
ज्ञान ध्यान ताप योग धारणा ,
में, मैंने इस मन को रमाया |
यह भी तो मया संभ्रम है,
यूं ही हुआ पराया तुमसे | ----------प्रेम काव्य से ( डा श्याम गुप्त )
----------- क्रमश.. --अगीत छंद व उनका रचना विधान......३-गतिमय सप्तपदी अगीत एवं ४-लयबद्ध षटपदी अगीत
तुम जो सदा कहा करती थीं
मीत सदा मेरे बन रहना |
तुमने ही मुख फेर लिया क्यों
मैंने तो कुछ नहीं कहा था |
शायद तुमको नहीं पता था ,
मीत भला कहते हैं किसको |
मीत शब्द को नहीं पढ़ा था ,
तुमने मन के शब्दकोश में ||"
श्रेष्ठ कला का जो मंदिर था
तेरे गीत सजा मेरा मन |
प्रियतम तेरी विरह पीर में ,
पतझड़ सा वीरान हो गया |
जैसे धुन्धलाये शब्दों की,
धुंधले अर्ध-मिटे चित्रों की ,
कला-वीथिका एक पुरानी |
तेर मन की, नर्म छुअन को,
बैरी मन पहचान न पाया,
तेरे तन की तप्त चुभन को,
मैं था रहा समझता माया |
तुमने क्यों न मुझे समझाया |
अब बैठा यह सोच रहा हूँ
ज्ञान ध्यान ताप योग धारणा ,
में, मैंने इस मन को रमाया |
यह भी तो मया संभ्रम है,
यूं ही हुआ पराया तुमसे | ----------प्रेम काव्य से ( डा श्याम गुप्त )
----------- क्रमश.. --अगीत छंद व उनका रचना विधान......३-गतिमय सप्तपदी अगीत एवं ४-लयबद्ध षटपदी अगीत