इस चिट्ठे पर हिन्दी की अतुकान्त कविता धारा की एक विशेष विधा " अगीत- कविता " व उसके साहित्य के विविध रूप-भाव प्रस्तुत किये जायेंगे.....
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Friday, 15 August 2014
Monday, 7 April 2014
सुभाष हुड़दंगी के अगीतों के संग्रह की कृति ....“व्यंग्य अगीत ‘ का प्रकाशन ... डा श्याम गुप्त.....
अगीत कविता विधा सदैव की भांति नए नए आयाम छूती जारही है .....हाल ही में लखनऊ के सुप्रसिद्ध हास्य-व्यंगकार श्री
सुभाष हुड़दंगी के अगीतों के संग्रह की कृति ....“व्यंग्य अगीत‘ का अखिल भारतीय
अगीत परिषद् द्वारा प्रकाशन किया गया जिसे कृतिकार ने अगीत के प्रवर्तक डा रंगनाथ मिश्र सत्य को समर्पित किया है|...
प्रकाशन वर्ष -- २०१४ , मूल्य ७०/-रु प्रकाशक--अ भा अगीत परिषद् , राजाजी पुरम, लखनऊ |
अगीत की शिक्षाशाला ....कार्यशाला २३.....कुछ नए अगीत ....डा श्याम गुप्त....
अगीत की शिक्षाशाला ....कार्यशाला २३.....कुछ नए अगीत ....
शिकायत
कुछ नहीं कहने को है आज,
इन जंगलों के पास,
केवल शिकायत के
निशब्द काव्य, कथाएं वार्तालाप
ढूंढते थे शान्ति जिनमें
ऋषि मुनि सन्यासी...
और कवि | ....सुषमा गुप्ता
श्रृद्धा
श्रृद्धा का जन्म होता है
आस्था और विश्वास से ,
श्रृद्धा के अभाव में
नहीं होता है जन्म
सदविचारों का |
श्रृद्धा से ही उत्पन्न होती है -आस्था,
करती है जन जन को
बल प्रदान;
आस्था श्रृद्धा से
तुलसी मीरा हुए महान | ..........एम् एम कपूर
आरोप
आरोप नही कि
कुछ नारियां बंदिशों को तोड़
बंधन मुक्त रहना चाहती हैं,
किन्तु वह नारी क्या करे ?
आज का मानव 'राम' नहीं ,
और वह सीता नहीं |
क्योंकि आज मानव ने
पाश्चात्य सभ्यता की चादर ओढ़ रखी है ,
नारी को साडी की जगह
पेंट पहना रखी है | ------- .एम् एम कपूर
क्यों मौन
हे जीवन के कटु सत्य
क्यों तुम मौन,
कुछ बोलते क्यों नहीं
आखिर तुम कौन हो ?
मैं अभी परिपक्व नहीं
जो तुम्हारी भाषा को जानूं
तुम्हें पहचानूं | -----विजय कुमारी मौर्या 'विजय'
साथ
वह हर घटना तुन्हारी
जो मुझसे सम्बन्ध रखती है ,
मुझे बताओ, समझाओ सिखाओ, दिखाओ,
क्योंकि-
मैं तुम्हारे कदम से कदम मिलाकर
चल सकूं,
अंत तक तुम्हारा साथ दे सकूं | -----विजय कुमारी मौर्या 'विजय'
नव वर्ष
नव वर्ष
नव सौगातें लाये,
नित पुष्प खिलाए
प्रीति जगाये
नव सूर्य उगाये
तामस बिनसाये | ------डा मिर्ज़ा हसन नासिर
श्रम अगीत
खून पसीना एक करे
जो निद्रा लेवे कम,
आलस त्याग कर हिम्मत बांधे
वह है सच्चा श्रम | ----- सुभाष हुड़दंगी
शिकायत
कुछ नहीं कहने को है आज,
इन जंगलों के पास,
केवल शिकायत के
निशब्द काव्य, कथाएं वार्तालाप
ढूंढते थे शान्ति जिनमें
ऋषि मुनि सन्यासी...
और कवि | ....सुषमा गुप्ता
श्रृद्धा
श्रृद्धा का जन्म होता है
आस्था और विश्वास से ,
श्रृद्धा के अभाव में
नहीं होता है जन्म
सदविचारों का |
श्रृद्धा से ही उत्पन्न होती है -आस्था,
करती है जन जन को
बल प्रदान;
आस्था श्रृद्धा से
तुलसी मीरा हुए महान | ..........एम् एम कपूर
आरोप
आरोप नही कि
कुछ नारियां बंदिशों को तोड़
बंधन मुक्त रहना चाहती हैं,
किन्तु वह नारी क्या करे ?
आज का मानव 'राम' नहीं ,
और वह सीता नहीं |
क्योंकि आज मानव ने
पाश्चात्य सभ्यता की चादर ओढ़ रखी है ,
नारी को साडी की जगह
पेंट पहना रखी है | ------- .एम् एम कपूर
क्यों मौन
हे जीवन के कटु सत्य
क्यों तुम मौन,
कुछ बोलते क्यों नहीं
आखिर तुम कौन हो ?
मैं अभी परिपक्व नहीं
जो तुम्हारी भाषा को जानूं
तुम्हें पहचानूं | -----विजय कुमारी मौर्या 'विजय'
साथ
वह हर घटना तुन्हारी
जो मुझसे सम्बन्ध रखती है ,
मुझे बताओ, समझाओ सिखाओ, दिखाओ,
क्योंकि-
मैं तुम्हारे कदम से कदम मिलाकर
चल सकूं,
अंत तक तुम्हारा साथ दे सकूं | -----विजय कुमारी मौर्या 'विजय'
नव वर्ष
नव वर्ष
नव सौगातें लाये,
नित पुष्प खिलाए
प्रीति जगाये
नव सूर्य उगाये
तामस बिनसाये | ------डा मिर्ज़ा हसन नासिर
श्रम अगीत
खून पसीना एक करे
जो निद्रा लेवे कम,
आलस त्याग कर हिम्मत बांधे
वह है सच्चा श्रम | ----- सुभाष हुड़दंगी
Sunday, 6 April 2014
अगीत शिक्षाशाला ----कार्यशाला २२---अगीत का कलापक्ष ..काव्य शक्तियां और अगीत.....डा श्याम गुप्त ....
अगीत शिक्षाशाला ----कार्यशाला २२---अगीत का कलापक्ष ..काव्य शक्तियां और अगीत.....डा श्याम गुप्त ....
काव्य शक्तियां अर्थात .....अभिधा, लक्षणा, व्यंजना -----
कथ्य की तीन शक्तियाँ, कथ्यानुसार अर्थ-प्रतीति व भाव उत्पन्न करती हैं | कवि अपनी कल्पना शक्ति से कथ्य में विशिष्ट लक्षणा, शब्द व अर्थगत लाक्षणिकता उत्पन्न कर सकता है जो अर्थ-प्रतीति को रूपकों आदि द्वारा लाक्षणिकता देकर कथ्य-सौंदर्य प्रकट करता है (
लक्षणा ) अथवा दूरस्थ भाव या अन्य विशिष्ट व्यंजनात्मक भाव देकर कथ्य में दूरस्थ सन्देश, छद्म-सन्देश या कूट-सन्देश या अन्योक्तियों द्वारा विशिष्ट अर्थ-प्रतीति से शब्द या भाव व्यंजना उत्पन्न करके कथ्य सौंदर्य बढाता है (व्यंजना
);
अथवा वह सीधे सीधे शब्दों में अर्थवत्तात्मक भाव-कथ्य का वर्णन कर सकता है ताकि विषय की क्लिष्टता, अर्थ-प्रतीति में बाधक न बने और सामान्य से सामान्य जन में भी भाव-सम्प्रेषण किया जा सके (अभिधा
)
|
यद्यपि अगीत मुख्यतया अभिधेयता को ग्रहण करता है
तथापि विविध विषय-बोध के कारण व अगीत कवियों के भी प्रथमतः गीति व छंद विधा निपुण होने के कारण लक्षणाये व व्यंजनाएं भी पर्याप्त मात्रा में सहज ढंग से पाई जाती हैं | यह प्रस्तुत उदाहरणों से और भी स्पष्ट होजाता है --
लक्षणात्मक
अगीत ----
" शरद
पूर्णिमा सुछवि
बिखेरे ,
पुष्पधन्वा शर
संधाने,
युवा मन
पर किये
निशाना;
सब ओर छागई
प्रणय गंध
कामिनी के
पुलके अंग्
अंग् ,
नयन वाण
आकर हैं
घेरे |
"
---- सोहन लाल सुबुद्ध ( अर्थ लक्षणा )
" स्वप्नों
के पंखों
पर,
चढ
कर आती
है ;
नींद-
सच्ची साम्यवादी
है | "
--- डा श्याम गुप्त ( शब्द लक्षणा )
" निजी
स्वार्थ के
कारण मानव
,
अति दोहन
कर रहा
प्रकृति का
|
प्रतिदिन एक
ही स्वर्ण
अंड से
,
उसका लालच
नहीं सिमटता
|
चीर कलेजा
एक साथ
ही ,
पाना चाहे स्वर्ण
खजाना |
"
---- सृष्टि महाकाव्य से (भाव लक्षणा )
कथ्य की तीन शक्तियाँ, कथ्यानुसार अर्थ-प्रतीति व भाव उत्पन्न करती हैं | कवि अपनी कल्पना शक्ति से कथ्य में विशिष्ट लक्षणा, शब्द व अर्थगत लाक्षणिकता उत्पन्न कर सकता है जो अर्थ-प्रतीति को रूपकों आदि द्वारा लाक्षणिकता देकर कथ्य-सौंदर्य प्रकट करता है ( लक्षणा ) अथवा दूरस्थ भाव या अन्य विशिष्ट व्यंजनात्मक भाव देकर कथ्य में दूरस्थ सन्देश, छद्म-सन्देश या कूट-सन्देश या अन्योक्तियों द्वारा विशिष्ट अर्थ-प्रतीति से शब्द या भाव व्यंजना उत्पन्न करके कथ्य सौंदर्य बढाता है (व्यंजना ); अथवा वह सीधे सीधे शब्दों में अर्थवत्तात्मक भाव-कथ्य का वर्णन कर सकता है ताकि विषय की क्लिष्टता, अर्थ-प्रतीति में बाधक न बने और सामान्य से सामान्य जन में भी भाव-सम्प्रेषण किया जा सके (अभिधा ) |
यद्यपि अगीत मुख्यतया अभिधेयता को ग्रहण करता है तथापि विविध विषय-बोध के कारण व अगीत कवियों के भी प्रथमतः गीति व छंद विधा निपुण होने के कारण लक्षणाये व व्यंजनाएं भी पर्याप्त मात्रा में सहज ढंग से पाई जाती हैं | यह प्रस्तुत उदाहरणों से और भी स्पष्ट होजाता है --
लक्षणात्मक अगीत ----
" शरद पूर्णिमा सुछवि बिखेरे ,
पुष्पधन्वा शर संधाने,
युवा मन पर किये निशाना;
सब ओर छागई प्रणय गंध
कामिनी के पुलके अंग् अंग् ,
नयन वाण आकर हैं घेरे | " ---- सोहन लाल सुबुद्ध ( अर्थ लक्षणा )
चढ कर आती है ;
नींद-
सच्ची साम्यवादी है | " --- डा श्याम गुप्त ( शब्द लक्षणा )
" निजी स्वार्थ के कारण मानव ,
अति दोहन कर रहा प्रकृति का |
प्रतिदिन एक ही स्वर्ण अंड से ,
उसका लालच नहीं सिमटता |
चीर कलेजा एक साथ ही ,
पाना चाहे स्वर्ण खजाना | " ---- सृष्टि महाकाव्य से (भाव लक्षणा )
व्यंजनात्मक
अगीतों के
उदाहरण प्रस्तुत हैं.-----
" तुमने
तो मोम
का ,
पिघलना ही
देखा है
|
पिघलने के
भीतर का,
ताप नहीं
देखा |"
-----डा सरोजिनी अग्रवाल
" गीदड़ों
के शोर
में,
मन्त्रों की
वाणी ,
दब गयी
है ;
भीड़ की
चीखों में,
मधुरिम् स्वर,
नहीं मिलते
| "
----डा मिथिलेश दीक्षित
अभिधात्मक
अगीतों के उदाहरण -----
" कुछ
नेताओं का,
वजूद कैसा;
स्वयं के
लिए ही
जीते ;
सत्य तुम
बिलकुल रीते
| "
---- क्षमा पूर्णा पाठक
" मेरी
मां ने
मुझे पढ़ाया
,
मां न
चाहती क्या
पढ़ पाता
;
आजीवन पछताता रहता
|
मेरे हिस्से
का श्रम
करके,
उसने ही
स्कूल पठाया
,
मुझको रचनाकार
बनाया | "
--- सोहन लाल सुबुद्ध
" नीम ,
जिसमें गुण है असीम ;
मानव हितकारी ,
हारता अनेक बीमारी ;
द्वार की शोभा है नीम ,
पारिवारिक हकीम है नीम | "
----- सुरेन्द्र कुमार वर्मा ( मेरे अगीत छंद से )
" तुमने तो मोम का ,
पिघलना ही देखा है |
पिघलने के भीतर का,
ताप नहीं देखा |" -----डा सरोजिनी अग्रवाल
मन्त्रों की वाणी ,
दब गयी है ;
भीड़ की चीखों में,
मधुरिम् स्वर,
नहीं मिलते | " ----डा मिथिलेश दीक्षित
" कुछ नेताओं का,
वजूद कैसा;
स्वयं के लिए ही जीते ;
सत्य तुम बिलकुल रीते | " ---- क्षमा पूर्णा पाठक
मां न चाहती क्या पढ़ पाता ;
आजीवन पछताता रहता |
मेरे हिस्से का श्रम करके,
उसने ही स्कूल पठाया ,
मुझको रचनाकार बनाया | " --- सोहन लाल सुबुद्ध
" गीत मेरे तुमने जो गाये,
मेरे मन की पीर अजानी ,
छलक उठी आंसू भर आये |
सोच रहा बस जीता जाऊं ,
गम् के आंसू पीता जाऊं |
गाता रहूँ गीत बस तेरे ,
बिसरादूं सारे जग के गम् | "
--- प्रेम काव्य से ( डा श्याम गुप्त )
----- क्रमश....कार्यशाला २३....
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