अगीत शिक्षाशाला ----कार्यशाला २२---अगीत का कलापक्ष ..काव्य शक्तियां और अगीत.....डा श्याम गुप्त ....
काव्य शक्तियां अर्थात .....अभिधा, लक्षणा, व्यंजना -----
कथ्य की तीन शक्तियाँ, कथ्यानुसार अर्थ-प्रतीति व भाव उत्पन्न करती हैं | कवि अपनी कल्पना शक्ति से कथ्य में विशिष्ट लक्षणा, शब्द व अर्थगत लाक्षणिकता उत्पन्न कर सकता है जो अर्थ-प्रतीति को रूपकों आदि द्वारा लाक्षणिकता देकर कथ्य-सौंदर्य प्रकट करता है (
लक्षणा ) अथवा दूरस्थ भाव या अन्य विशिष्ट व्यंजनात्मक भाव देकर कथ्य में दूरस्थ सन्देश, छद्म-सन्देश या कूट-सन्देश या अन्योक्तियों द्वारा विशिष्ट अर्थ-प्रतीति से शब्द या भाव व्यंजना उत्पन्न करके कथ्य सौंदर्य बढाता है (व्यंजना
);
अथवा वह सीधे सीधे शब्दों में अर्थवत्तात्मक भाव-कथ्य का वर्णन कर सकता है ताकि विषय की क्लिष्टता, अर्थ-प्रतीति में बाधक न बने और सामान्य से सामान्य जन में भी भाव-सम्प्रेषण किया जा सके (अभिधा
)
|
यद्यपि अगीत मुख्यतया अभिधेयता को ग्रहण करता है
तथापि विविध विषय-बोध के कारण व अगीत कवियों के भी प्रथमतः गीति व छंद विधा निपुण होने के कारण लक्षणाये व व्यंजनाएं भी पर्याप्त मात्रा में सहज ढंग से पाई जाती हैं | यह प्रस्तुत उदाहरणों से और भी स्पष्ट होजाता है --
लक्षणात्मक
अगीत ----
" शरद
पूर्णिमा सुछवि
बिखेरे ,
पुष्पधन्वा शर
संधाने,
युवा मन
पर किये
निशाना;
सब ओर छागई
प्रणय गंध
कामिनी के
पुलके अंग्
अंग् ,
नयन वाण
आकर हैं
घेरे |
"
---- सोहन लाल सुबुद्ध ( अर्थ लक्षणा )
" स्वप्नों
के पंखों
पर,
चढ
कर आती
है ;
नींद-
सच्ची साम्यवादी
है | "
--- डा श्याम गुप्त ( शब्द लक्षणा )
" निजी
स्वार्थ के
कारण मानव
,
अति दोहन
कर रहा
प्रकृति का
|
प्रतिदिन एक
ही स्वर्ण
अंड से
,
उसका लालच
नहीं सिमटता
|
चीर कलेजा
एक साथ
ही ,
पाना चाहे स्वर्ण
खजाना |
"
---- सृष्टि महाकाव्य से (भाव लक्षणा )
कथ्य की तीन शक्तियाँ, कथ्यानुसार अर्थ-प्रतीति व भाव उत्पन्न करती हैं | कवि अपनी कल्पना शक्ति से कथ्य में विशिष्ट लक्षणा, शब्द व अर्थगत लाक्षणिकता उत्पन्न कर सकता है जो अर्थ-प्रतीति को रूपकों आदि द्वारा लाक्षणिकता देकर कथ्य-सौंदर्य प्रकट करता है ( लक्षणा ) अथवा दूरस्थ भाव या अन्य विशिष्ट व्यंजनात्मक भाव देकर कथ्य में दूरस्थ सन्देश, छद्म-सन्देश या कूट-सन्देश या अन्योक्तियों द्वारा विशिष्ट अर्थ-प्रतीति से शब्द या भाव व्यंजना उत्पन्न करके कथ्य सौंदर्य बढाता है (व्यंजना ); अथवा वह सीधे सीधे शब्दों में अर्थवत्तात्मक भाव-कथ्य का वर्णन कर सकता है ताकि विषय की क्लिष्टता, अर्थ-प्रतीति में बाधक न बने और सामान्य से सामान्य जन में भी भाव-सम्प्रेषण किया जा सके (अभिधा ) |
यद्यपि अगीत मुख्यतया अभिधेयता को ग्रहण करता है तथापि विविध विषय-बोध के कारण व अगीत कवियों के भी प्रथमतः गीति व छंद विधा निपुण होने के कारण लक्षणाये व व्यंजनाएं भी पर्याप्त मात्रा में सहज ढंग से पाई जाती हैं | यह प्रस्तुत उदाहरणों से और भी स्पष्ट होजाता है --
लक्षणात्मक अगीत ----
" शरद पूर्णिमा सुछवि बिखेरे ,
पुष्पधन्वा शर संधाने,
युवा मन पर किये निशाना;
सब ओर छागई प्रणय गंध
कामिनी के पुलके अंग् अंग् ,
नयन वाण आकर हैं घेरे | " ---- सोहन लाल सुबुद्ध ( अर्थ लक्षणा )
चढ कर आती है ;
नींद-
सच्ची साम्यवादी है | " --- डा श्याम गुप्त ( शब्द लक्षणा )
" निजी स्वार्थ के कारण मानव ,
अति दोहन कर रहा प्रकृति का |
प्रतिदिन एक ही स्वर्ण अंड से ,
उसका लालच नहीं सिमटता |
चीर कलेजा एक साथ ही ,
पाना चाहे स्वर्ण खजाना | " ---- सृष्टि महाकाव्य से (भाव लक्षणा )
व्यंजनात्मक
अगीतों के
उदाहरण प्रस्तुत हैं.-----
" तुमने
तो मोम
का ,
पिघलना ही
देखा है
|
पिघलने के
भीतर का,
ताप नहीं
देखा |"
-----डा सरोजिनी अग्रवाल
" गीदड़ों
के शोर
में,
मन्त्रों की
वाणी ,
दब गयी
है ;
भीड़ की
चीखों में,
मधुरिम् स्वर,
नहीं मिलते
| "
----डा मिथिलेश दीक्षित
अभिधात्मक
अगीतों के उदाहरण -----
" कुछ
नेताओं का,
वजूद कैसा;
स्वयं के
लिए ही
जीते ;
सत्य तुम
बिलकुल रीते
| "
---- क्षमा पूर्णा पाठक
" मेरी
मां ने
मुझे पढ़ाया
,
मां न
चाहती क्या
पढ़ पाता
;
आजीवन पछताता रहता
|
मेरे हिस्से
का श्रम
करके,
उसने ही
स्कूल पठाया
,
मुझको रचनाकार
बनाया | "
--- सोहन लाल सुबुद्ध
" नीम ,
जिसमें गुण है असीम ;
मानव हितकारी ,
हारता अनेक बीमारी ;
द्वार की शोभा है नीम ,
पारिवारिक हकीम है नीम | "
----- सुरेन्द्र कुमार वर्मा ( मेरे अगीत छंद से )
" तुमने तो मोम का ,
पिघलना ही देखा है |
पिघलने के भीतर का,
ताप नहीं देखा |" -----डा सरोजिनी अग्रवाल
मन्त्रों की वाणी ,
दब गयी है ;
भीड़ की चीखों में,
मधुरिम् स्वर,
नहीं मिलते | " ----डा मिथिलेश दीक्षित
" कुछ नेताओं का,
वजूद कैसा;
स्वयं के लिए ही जीते ;
सत्य तुम बिलकुल रीते | " ---- क्षमा पूर्णा पाठक
मां न चाहती क्या पढ़ पाता ;
आजीवन पछताता रहता |
मेरे हिस्से का श्रम करके,
उसने ही स्कूल पठाया ,
मुझको रचनाकार बनाया | " --- सोहन लाल सुबुद्ध