Followers

Sunday, 6 April 2014

अगीत शिक्षाशाला ----कार्यशाला २२---अगीत का कलापक्ष ..काव्य शक्तियां और अगीत.....डा श्याम गुप्त ....


अगीत शिक्षाशाला ----कार्यशाला २२---अगीत का कलापक्ष ..काव्य शक्तियां और अगीत.....डा श्याम गुप्त ....

काव्य शक्तियां  अर्थात .....अभिधा, लक्षणा, व्यंजना ----- 

                    कथ्य की  तीन शक्तियाँ, कथ्यानुसार अर्थ-प्रतीति भाव उत्पन्न करती हैं | कवि अपनी कल्पना शक्ति से कथ्य में विशिष्ट लक्षणा, शब्द अर्थगत लाक्षणिकता उत्पन्न कर सकता है जो अर्थ-प्रतीति को रूपकों आदि द्वारा लाक्षणिकता देकर कथ्य-सौंदर्य प्रकट करता है ( लक्षणा ) अथवा दूरस्थ  भाव या अन्य विशिष्ट व्यंजनात्मक भाव देकर कथ्य में दूरस्थ सन्देश, छद्म-सन्देश या कूट-सन्देश या अन्योक्तियों द्वारा विशिष्ट अर्थ-प्रतीति से शब्द या भाव व्यंजना उत्पन्न करके कथ्य सौंदर्य बढाता है (व्यंजना ); अथवा वह सीधे सीधे शब्दों में अर्थवत्तात्मक भाव-कथ्य का वर्णन कर सकता है ताकि विषय की क्लिष्टता, अर्थ-प्रतीति में बाधक बने और सामान्य से सामान्य जन में भी भाव-सम्प्रेषण किया जा सके (अभिधा ) |
                         
यद्यपि अगीत मुख्यतया अभिधेयता को ग्रहण करता है  तथापि विविध विषय-बोध के कारण अगीत कवियों के भी प्रथमतः गीति छंद विधा निपुण होने के कारण लक्षणाये  व्यंजनाएं भी पर्याप्त मात्रा में सहज ढंग से पाई जाती हैं | यह प्रस्तुत उदाहरणों से और भी स्पष्ट होजाता है
--

                      
लक्षणात्मक अगीत ---- 

"
शरद पूर्णिमा सुछवि बिखेरे ,
पुष्पधन्वा शर संधाने,
युवा मन पर किये निशाना;
सब  ओर छागई प्रणय गंध 
कामिनी के पुलके अंग् अंग् ,
नयन वाण आकर हैं घेरे | "                       ---- सोहन लाल सुबुद्ध ( अर्थ लक्षणा )

 
" स्वप्नों के पंखों पर,
 
चढ कर आती है ;
नींद-
सच्ची साम्यवादी है | "                             --- डा श्याम गुप्त ( शब्द लक्षणा )

"
निजी स्वार्थ के कारण मानव ,
अति दोहन कर रहा प्रकृति का
प्रतिदिन एक ही स्वर्ण अंड से ,
उसका लालच नहीं सिमटता |
चीर कलेजा एक साथ ही ,
पाना  चाहे स्वर्ण खजाना | "                     ---- सृष्टि महाकाव्य से   (भाव लक्षणा )  


                      व्यंजनात्मक  अगीतों के उदाहरण प्रस्तुत हैं.-----

"
तुमने तो मोम का ,
पिघलना ही देखा है |
पिघलने के भीतर का,
ताप नहीं देखा |"                             -----डा सरोजिनी अग्रवाल

 
" गीदड़ों के शोर में,
मन्त्रों की वाणी ,
दब गयी है ;
भीड़ की चीखों में,
मधुरिम्  स्वर,
नहीं मिलते | "                               ----डा मिथिलेश दीक्षित


 
                    अभिधात्मक अगीतों के  उदाहरण -----

"
कुछ नेताओं का,
वजूद कैसा;
स्वयं के लिए ही जीते ;
सत्य तुम बिलकुल रीते | "                       ---- क्षमा पूर्णा पाठक 

 
" मेरी मां ने मुझे पढ़ाया ,
मां चाहती क्या पढ़ पाता ;
आजीवन  पछताता रहता |
मेरे हिस्से का श्रम करके,
उसने ही स्कूल पठाया ,
मुझको रचनाकार बनाया | "                    --- सोहन लाल सुबुद्ध 


" नीम ,
 
जिसमें गुण है असीम ;
मानव हितकारी ,
हारता अनेक बीमारी ;
द्वार की शोभा है नीम ,
पारिवारिक हकीम है नीम | "                       ----- सुरेन्द्र कुमार वर्मा ( मेरे अगीत छंद से )

 

" गीत मेरे तुमने जो गाये,
मेरे मन  की पीर अजानी ,   
छलक उठी आंसू भर आये |
सोच रहा बस जीता जाऊं ,
गम् के आंसू पीता जाऊं
गाता रहूँ गीत बस तेरे ,
बिसरादूं सारे जग के गम्  | "                     --- प्रेम काव्य से ( डा श्याम गुप्त )           

 

                                ----- क्रमश....कार्यशाला २३....           




                   

 

                     

                    

                    

No comments:

Post a Comment