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Saturday, 4 January 2014

अगीत की शिक्षाशाला........कार्यशाला १५ ...अगीत छंद व उनका रचना विधान ...

       अगीत की शिक्षाशाला....... अगीत में रस छंद अलंकार योजना---क्रमश .....

         कार्यशाला १५ .अगीत छंद व उनका रचना विधान.....( अगीत व लयबद्ध अगीत छंद..)


                                              
                    लय गति  काव्य-विधा के अपरिहार्य तत्व विशेषताएं हैं जो इसे गद्य-विधा से पृथक करती  
 है  | यति --काव्य को संगीतमयता के आरोह-अवरोह के साथ कथ्य भाव को अगले स्तर पर परिवर्तन की  

स्पष्टता से विषय सम्प्रेषण को आगे बढाती है | तुकांत बद्धता ..काव्य के शिल्प सौंदर्य को बढाती है परन्तु  

संक्षिप्तता, शीघ्र भाव-सम्प्रेषणता अर्थ-प्रतीति का ह्रास करती है | अतः वैदिक छंदों ऋचाओं की अनुरूपता  
तादाम्य लेते हुए अगीत मूलतः अतुकांत छंद है | हाँ लय गति इसके अनिवार्य तत्व हैं तथा तुकांत, यति,  
मात्रा गेयता का बंधन नहीं है | अगीत वस्तुतः अतुकांत गीत है |







                                     अगीत कविता का मुख्य अभिप्राय: है राष्ट्र, समाज जमीन से जुडी वह छोटी अतुकांत कविता जो पांच से दस पंक्तियों से कम या अधिक की हो | जिसमें लय गति हो , गेयता का बंधन हो एवं मात्रा- बंधन भी आवश्यक नहींवर्तमान में अगीत काव्य-विधा में प्रचलित प्रयोग होरहे विविध छंदों का नीचे वर्णन किया जा रहा है | वे छंद ये हैं-----
- अगीत छंद ......

 २-लयबद्ध अगीत

-गतिमय सप्तपदी अगीत

-लयबद्ध षटपदी अगीत

-नव-अगीत

-त्रिपदा अगीत

-त्रिपदा अगीत गज़ल |



()- अगीत छंद --- अगीत छंद के मुख्य रचना-विधान नियम ये हैं----

-अतुकांत कविता

.सामान्यतया पांच से आठ ( अधिकतम दस ) पंक्तियों से कम अधिक नहीं |

.मात्रा बंधन नहीं

.गति, यति लय होनी चाहिए

.गेयता, अगेयता का बंधन नहीं |

             .यथा---



"इधर उधर जाने से

 क्या होगा ;

मोड़ मोड़ पर जमी हुईं  हैं ,

परेशानियां |

शब्द -शब्द अर्थ सहित

कह  रहीं कहानियां

मन को बहलाने से

क्या होगा |"                                      ----- डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य'



"आज उन्हें चलना होगा

शान्ति के पथ पर ,

जिन्होंने कल

हमारे खून की,

होली खेली है |"                               ------डा सुरेशचंद्र शुक्ल, नार्वे



" झरबेरी के कांटे

तुमने क्यों बांटे ?

सुबह शाम दोनों -

बोल उठे राम-राम ;

सच्चाई के गाल पर

पड़ते हैं चांटे |"                                 --- वीरेंद्र निझावन



" प्रेम विह्वलता,विरह, भावातिरेक की धारा ,

 बहती है जब मन में ,

अजस्र, अपरिमित, प्रवाहमान; तब-

गीत निस्रत  होते हैं.

सरिता की अविरल धारा की तरह  |

वही  धारा, प्रश्नों को उत्तरित करती हुई

व्याख्या, विश्लेषण, सत्य को

जन -जन के लिए उद्घाटित करती हुई,

निस्रत  निर्झरिणी बन कर -

अगीत बन जाती है |"                                     ---डा श्याम गुप्त



()- लयबद्ध अगीत छंद ... -----इनका रचना-विधान निम्न होना चाहिए ---

-अतुकांत गीत

.सात से दश तक पंक्तियाँ

.गति, लय गेयता आवश्यक

. प्रत्येक पंक्ति में सोलह निश्चित मात्राएँ |



उदाहरण-----

"तुम जो सदा कहा करती थीं 

मीत सदा मेरे बन रहना |

तुमने ही मुख फेर लिया क्यों 

मैंने  तो कुछ नहीं कहा था |

शायद तुमको नहीं पता था ,

मीत भला कहते हैं किसको |

मीत शब्द को नहीं पढ़ा था ,

तुमने मन के शब्दकोश में ||"                 


 तुम जो सदा कहा करती थीं 
मीत सदा मेरे बन रहना |
तुमने ही मुख फेर लिया क्यों 
मैंने  तो कुछ नहीं कहा था |
शायद तुमको नहीं पता था ,
मीत भला कहते हैं किसको |
मीत शब्द को नहीं पढ़ा था ,
तुमने मन के शब्दकोश में ||"  

श्रेष्ठ कला का जो मंदिर था 
तेरे गीत सजा मेरा मन  |
प्रियतम तेरी विरह पीर में ,
पतझड़ सा वीरान  हो गया |
जैसे धुन्धलाये शब्दों की,
धुंधले  अर्ध-मिटे चित्रों की ,
कला-वीथिका एक पुरानी |

तेर मन की, नर्म छुअन को,
बैरी मन पहचान न पाया,
तेरे तन की तप्त चुभन को,
मैं था रहा समझता माया |
तुमने क्यों न मुझे समझाया |
 अब बैठा यह सोच रहा हूँ
ज्ञान ध्यान ताप योग धारणा ,
में, मैंने इस मन को रमाया |
यह भी तो मया संभ्रम है,
यूं  ही  हुआ  पराया तुमसे |                         ----------प्रेम काव्य से ( डा श्याम गुप्त )












         ----------- क्रमश..  --अगीत छंद व उनका रचना विधान......-गतिमय सप्तपदी अगीत एवं ४-लयबद्ध षटपदी अगीत




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