Followers

Friday, 28 April 2017

अगीत की शिक्षाशाला-३०-----नव अगीत--- डा श्याम गुप्त----

                              ---- अगीत की शिक्षाशाला-३०-----नव अगीत---




..नव-अगीत छंद--- ३ से अधिक ५ से कम पन्क्तियों वाला, अतुकान्त अगीत छन्द है -- -  यथा--         
           बेडियां तोडो, 
          ग्यान दीप जलाओ,
          नारी! अब -
          तुम्ही राह दिखाओ;
          समाज को जोडो.        -सुषमा गुप्ता         
  
     देश की प्रगति ही,
     सबका कल्याण,
     यही हमारा उद्देश्य,
     रखती हूं मैं
     इसका ध्यान ।  ---विजय कुमारी मौर्य ’विजय’




नवअगीत छंद ( अगीतिका से )-जगत नारायण पांडे ---
\\
अँधेरे में छिपा लेते हैं पाप
दिन में पर रखते हैं
चेहरा ,
हर दम साफ़ |
.\
सब के सब टूट गए
निष्ठा के प्रतिमान
जीवित संबंधों के
तटबंध डूब गए
स्रोत संकल्पों के रीत गए |
\
सिद्धांत का अभाव
डराता है सत्य को
यही है
सत्ता का स्वभाव |



  नव-अगीत ---डा श्याम गुप्त ----

\
प्रश्न 
कितने शहीद ,
कब्र से उठकर पूछते हैं-
हम मरे किस देश के लिए ,
अल्लाह के, या-
ईश्वर के |
\
बंधन 
वह बंधन में थी ,
संस्कृति संस्कार सुरुचि के
परिधान कन्धों पर धारकर  ;
अब वह मुक्त है ,
सहर्ष , कपडे उतारकर |

\
 
दिशाहीन  
मस्त हैं सब -
अपने काम काज, या -
मनोरंजन में; और -
खड़े हैं हर मोड़ पर
दिशाहीन || 
\
 मेरा देश कहाँ                           
यह जा का ,
यह जा का ,
यह अन्य पिछड़ों का ,
यह सवर्णों का ;
कहाँ है मेरा देश ?
\
तुम्हारी छवि
" मन के अंधियारे पटल पर ,
तुम्हारी छवि,
ज्योति-किरण सी लहराई;
एक नई कविता,
पुष्पित हो आई ||




Tuesday, 1 November 2016

अगीत विधा का अमूल्य दस्तावेज़ : 'अगीत साहित्य दर्पण '---प्रोफ. उषा सिन्हा ......

                   अगीत विधा का अमूल्य दस्तावेज़ : 'अगीत साहित्य दर्पण '
                                                                         --समीक्षक -प्रोफ. उषा सिन्हा
                 मुझे डा श्याम गुप्त द्वारा प्रणीत 'अगीत साहित्य दर्पण' के अवगाहन का सुयोग प्राप्त हुआ | शल्य चिकित्सक डा गुप्त साहित्य के प्रति समर्पित अगीत विधा के सशक्त रचनाकार हैं| उन्होंने अत्यंत परिश्रमपूर्वक प्रचुर सामग्री का संकलन करके वर्णानात्मक एवं विश्लेषणात्मक पद्दतियों के आधारपर अगीत विधा का सांगोपांग अध्ययन प्रस्तुत करके नि:संदेह श्लाघनीय कार्य किया है | हिन्दी साहित्य की स्थापित एवं समृद्ध अगीत विधा का समग्र अध्ययन छः सुगठित अद्यायों में विभाजित है |
                     अगीत विधा के प्रणेता, दिशावाहक, ध्वजावाहक डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' द्वारा लिखित प्रस्तावना में अगीत विधा का सम्यग् परिचय स्तुत्य है | मंगलाचरण से कृति का शुभारम्भ हुआ है जिसमें रचनाकार ने वाग्देवी माँ सरस्वती से अगीत को नवीन भावों के साथ सुर लय ताल से परिपूर्ण करने और उसके प्रचार-प्रसार हेतु आशीर्वाद प्रदान करने की याचना की है |
                        प्रथम अध्याय 'एतिहासिक पृष्ठभूमि व परिदृश्य ' में डा. गुप्त विवेचन ने अगीत के आविर्भाव एवं विकास यात्रा का सम्यक विवेचन किया है | डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' द्वारा लखनऊ में स्थापित 'अखिल भारतीय अगीत परिषद् . के बढ़ते चरणों, अभिनव कलेवर, अगीत त्रैमासिक मुखपत्र 'अगीतायन', संतुलित कहानी विधा, संघात्मक समीक्षा पद्धति तथा विश्व-विद्यालयों के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में अगीत विधा को महत्त्व प्राप्त होने की सार्थक चर्चा की गयी है | अगीत विधा के प्रचार प्रसार में योगदान देने वाले वरिष्ठ साहित्यकारों के साथ ही नवांकुरों के कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर इसकी अनुगूंज को भी रेखांकित किया गया है |
                       द्वितीय अध्याय के अंतर्गत अगीत की उत्पत्ति की पृष्ठभूमि, अवधारणा व अभिप्राय की सारगर्भित व्याख्या करते हुए डा गुप्त ने उसके स्वरुप, वैशिष्ट्य एवं उपयोगिता को रेखांकित किया है | लेखक का मानना है.. 'यह एक वैज्ञानिक पद्धति है, सामाजिक सरोकारों व उनके समाधान के लिए एक विद्रोह है, एक नवीन खोज है | भाषा की नयी संवेदना, कथ्य का अनूठा प्रयोग, संक्षिप्तता व परिमाण की पोषकता, बिम्बधर्मी प्रयोग के साथ सरलता से भाव सम्प्रेषण अगीत का एक और गुण है ' .... अगीत रचनाकार सिर्फ कल्पनाजीवी नहीं वह स्वजीवी, यथार्थजीवी व समाजजीवी है | वह निराशावादिता के विपरीत सौन्दर्यबोध व आशावादिता को स्वीकारता है | अगीत में पश्चिम के अन्धानुकरण की अपेक्षा कविता को अपनी जमीन, अपने चारों और के वातावरण पर रचने का प्रयास खूब है |
                         अगीत के वर्त्तमान परिदृश्य एवं संभावना की विस्तृत विवेचना तृतीय अध्याय की विषय वस्तु है | अगीत के विस्तृत फलक की चर्चा करते हुए डा गुप्त ने लखनऊ व बाहर के अनेक रचनाकारों, समीक्षकों, कवियों, उनकी रचनाओं, पत्र-पत्रिकाओं, महाकाव्य, खंडकाव्यों शोधग्रंथों का सम्यक निरूपण किया | विदेशों में बसे अगीत रचनाकारों का भी उल्लेख किया है | इसके अतिरिक्त अगीत के प्रचार-प्रसार में सक्रिय साहित्यकारों द्वारा आयोजित गोष्ठियों, बृहद आयोजनों, सम्मानों आदि विविध गतिविधियों को भी उद्घाटित किया है | इसी सन्दर्भ में अगीत के उत्कर्ष में सहायक विभिन्न भारतीय एवं अभारतीय विद्वानों, कवियों, साहित्यकारों के विचारों, सम्मतियों तथा टिप्पणियों को भी प्रस्तुत किया गया है|
                        चतुर्थ अध्याय -'अगीत छंद एवं उनके रचना विधान' अत्यंत महत्वपूर्ण है | वर्त्तमान में अगीत विधा में प्रचलित एवं विविध नवीन प्रयोगों यथा अगीत छंद, लयबद्ध अगीत, शताप्दी अगीत, नव-अगीत, गतिमय सप्तपदी अगीत, त्रिपदा अगीत एवं त्रिपदा अगीत ग़ज़ल के रचना विधान को डा गुप्त ने समुचित उद्धरणों के माध्यम से स्पष्ट करने का सार्थक प्रयास किया है|
                            अगीत विधा एक भावपक्ष प्रधान सशक्त काव्य-विधा है, इसका गहन चिंतन एवं विवेचन पंचम अध्याय 'अगीत की भाव संपदा' के अंतर्गत प्रस्तुत किया गया है | अगीत की बहुआयामी भाव-भूमि ...सामाजिक सरोकार, सामाजिक बदलाव,युग परिवर्तन, विचारक्रान्ति, स्त्री विमर्श, प्रकृति चित्रण, हास्य-व्यंग्य, सन्दर्भ, मनोविज्ञान, धर्म एवं दर्शन के साथ ही स्वदेश, स्वभाषा, स्वसंस्कृति के प्रति निष्ठा,प्रेम की अभिव्यक्ति का निरूपण विभिन्न रचनाओं के उद्धरणों के माध्यम से डा गुप्त ने अपने विषय ज्ञान का परिचय दिया है |
                            'अगीत का कलापक्ष ' षष्ट अध्याय है जिसमें कलापक्ष पर समुचित प्रकाश डाला गया है | इस सन्दर्भ में इस तथ्य का भी उल्लेख किया गया है कि " यद्यपि अगीत रचनाकार शव्द-विन्यास, अलंकार, रस लक्षणाओं आदि कलापक्ष पर अधिक आधारित नहीं रहता तथापि छंद विधा व गीत का समानधर्मा होने के कारण अगीत में भी पर्याप्त मात्रा में आवश्यक रस, छंद अलंकर व अन्य काव्य के गुण सहज व स्वतः रूप से ही आजाते हैं| डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य', सोहनलाल सुबुद्ध,पार्थोसेन व डा श्याम गुप्त ने अपने आलेखों एवं कृतियों के माध्यम से अगीत काव्य में प्रयुक्त शिल्प सौन्दर्य की चर्चा की है| डा श्याम गुप्त ने इस अध्याय में अनेक सटीक उद्धरणों द्वारा अगीत में रस, छंद , अलंकारों, माधर्य, ओज,प्रसाद के साथ अभिधा, लक्षणा, व्यंजना के प्रयोग की सारगर्भित एवं विषद विवेचना की है |
                            इस प्रकार अगीत रचनाकार डा श्याम गुप्त ने अगीत काव्य की सुदीर्घ सृजन यात्रा विभिन्न आयामों एवं अभिनव कलेवर का सार्थक विवेचन करके इस तथ्य को भी उदघाटित किया है कि हिन्दी साहित्य को समृद्ध बनाने में इसका सराहनीय योगदान आज सर्वस्वीकृत है | कृति की भाषा सहज, बोधगम्य व प्रवाहपूर्ण एवं शैली विषयानुरूप है | तथ्यानुसंधान एवं प्रस्तुतीकरण के दृष्टि से यह कृति अगीत काव्य को समझने एवं इस दिशा में रचनाक्रम में प्रवृत्त होने के लिए डा श्याम गुप्त को हार्दिक बधाई एवं अगीत काव्य एवं समस्त रचनाकारों के उज्जवल भविष्य हेतु मंगल कामनाएं |

--प्रोफ. उषा सिन्हा
पूर्व अध्यक्ष
भाषा विज्ञान विभाग
लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ

Tuesday, 9 August 2016

साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य का एक नवगीत----- डा श्याम गुप्त....

साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य का एक नवगीत----- 


बरस रहे मचल मचल यादों के घन |

कंपती है भादों की रात,
बतियाँ उर में शूल गयीं |
टेर उठी कान्हा की वंशी
सखियाँ सुध बुध भूल गयीं |


बहक रहा निश्वांसों का पागलपन ||

मोती ढरते आँखों से
चमकीली किरणों जैसे |
टूट गया मन का कंगन
आऊँ पास भला कैसे |

कंचनी फुहारों में परस गया तन ||

गुलाबांसों के फूल खिले,
फटा पड़ रहा नील कपास |
राग रागिनी तरुओं की
मंडराती कलियों के पास |

साँसों के घेरे में डूब गया मन |
बरस रहे मचल मचल यादों के घन ||

Wednesday, 2 March 2016

हिन्दी काव्य में मुक्तवृत्त एवं जागृत और उन्नतिशील साहित्य हेतु स्व-बलि देने वाले युग दृष्टा कवि डा रंगनाथ मिश्र सत्य ...डा श्याम गुप्त ...

साहित्यकार दिवस पर डा श्याम गुप्त द्वारा प्रस्तुत किया गया आलेख-----

हिन्दी काव्य में मुक्तवृत्त एवं जागृत और उन्नतिशील साहित्य हेतु स्व-बलि देने वाले युग दृष्टा कवि डा रंगनाथ मिश्र सत्य ...

                   हिन्दी काव्य क्षेत्र में मुक्तवृत्त का पदार्पण 'निराला' के साथ हुआ। 'निराला' की उद्दाम भाव धारा को छंद के बन्धन बाँध नहीं सके। गिनी-गिनाई मात्राओं और अन्त्यानुप्रासों के बँधे घाटों-किनारों के बीच उनका भावोल्लास नहीं समा सकता था। ऐसी स्थिति में काव्याभिव्यक्ति के लिए मुक्तवृत्त की अनिवार्यता होती है। उन्होंने कहा है- "भावों की मुक्ति छन्दों की मुक्ति चाहती है।“ 'परिमल' की भूमिका में निराला कहते हैं---
"मनुष्यों की मुक्ति की तरह कविता की भी मुक्ति होती है। मनुष्य की मुक्ति कर्म के बन्धन में छुटकारा पाना है और कविता की मुक्ति छन्दों के शासन से अलग हो जाना है।

                             कृत्रिम छन्दोबद्ध रचना के विरुद्ध यह नवीन उन्मेषशील काव्य की पहली विद्रोह वाणी थी | भाव-व्यंजना की दृष्टि से मुक्तछन्द कोमल और परुष दोनों प्रकार की भावाभिव्यक्ति के लिए समान रूप से समर्थ हैं | आज मुक्तछन्द काव्य-रचना का मुख्य छन्द है |

                  इस प्रकार 'निराला' भारतीय संस्कृति-साहित्य के द्रष्टा कवि हैं| उन्हें काव्य तथा जीवन में निरन्तर रुढ़ियों का मूलोच्छेद करते हुए अनेक संघर्षों का अपने स्वाभिमान बलि के स्तर तक सामना करना पड़ा। हिन्दी के लिए 'निराला' को यह बलि देनी पड़ी।

                 पश्च निराला युग में हिन्दी-साहित्य ने एक और नवीन उन्मेषशील दृष्टा कवि व साहित्यकार डा रंगनाथ मिश्र सत्य को जन्म दिया| साहित्य की सभी धाराओं-विधाओं में सक्षम कवि डा रंगनाथ मिश्र सत्य की भाव धारा को भी छंद के बन्धन बाँध नहीं सके। उन्हें भी रुढ़ियों का विरोध करते हुए करते हुए अनेक संघर्षों का सामना करना पड़ा, वही सब कुछ झेलना पडा, जब छटवें दशक में उनके द्वारा स्थापित, आज के वैज्ञानिक युग की आवश्यकता हेतु लम्बे अतुकांत छंदों, गीतों के साथ-साथ संक्षिप्त, केवल ५ से १० पंक्तियों में निबद्ध अतुकांत–कविता—“अगीत” का पदार्पण हुआ| छन्दोबद्ध रचना के विरुद्ध यह नवीन उन्मेषशील काव्य की द्वितीय विद्रोह वाणी थी| यह वह युग था जब हिन्दी साहित्य ही नहीं विश्व-साहित्य भी अनिश्चितता व दिशाहीनता की स्थिति से गुजर रहा था | संक्षिप्तता व वैज्ञानिकता के युग में छंदोबद्ध तुकांत कविता एवं लम्बे लम्बे गीतों, कविताओं का स्वप्निल संसार टूटता जारहा था |

                            अगीत की अवधारणा मानव द्वारा आनंदातिरेक में लयबद्ध स्वर में बोलना प्रारम्भ करने के साथ ही स्थापित होगई थी| विश्व भर के काव्य-ग्रंथों व समृद्धतम संस्कृत भाषा साहित्य में अतुकांत गीत, मुक्त छंद या अगीत, मन्त्रों, ऋचाओं व श्लोकों के रूप में सदैव ही विद्यमान रहे हैं| लोकवाणी एवं लोक-साहित्य में भी अगीत कविता भाव सदैव उपस्थित रहा है |

                              वस्तुतः कविता वैदिक, पूर्व-वैदिक, पश्च-वैदिक व पौराणिक युग में भी सदैव मुक्त-छंद रूप ही थी| कालान्तर में मानव सुविधा स्वभाव वश, चित्रप्रियता वश- राजमहलों, संस्थानों, राजभवनों, बंद कमरों में सुखानुभूति प्राप्ति हित कविता छंद शास्त्र के बंधनों व पांडित्य प्रदर्शन के बंधन में बंधती गयी | नियंत्रण और अनुशासन प्रबल होता गया तथा वन-उपवन में मुक्त, स्वच्छंद विहरण करती कविता-कोकिला, गमलों व वाटिकाओं में सजे पुष्पों की भांति बंधनयुक्त होती गयी तथा स्वाभाविक, हृदयस्पर्शी, निरपेक्ष काव्य, विद्वता प्रदर्शन व सापेक्ष कविता में परिवर्तित होता गया और साथ-साथ ही राष्ट्र, देश, समाज, जाति भी बंधनों में बंधते गए |

                            लंबी-लंबी कविताओं में आगे के आधुनिक युग की आवश्यकता--संक्षिप्तता, सरलता, सहजता सुरुचिकरता आदि आधुनिक परिस्थिति के काव्य की क्षमता के साथ तीब्र भाव-सम्प्रेषण व सामाजिक सरोकारों का उचित समाधान वर्णन व प्रस्तुति का अभाव था| इन्हीं विशिष्ट अभावों की पूर्ती हित के साथ-साथ मुक्त-छंद, अतुकांत

                         कविता, हिन्दी भाषा, साहित्य व समाज के उत्तरोत्तर और अग्रगामी विकास व प्रगति हेतु हिन्दी साहित्य की नवीन धारा " अगीत-विधा" का प्रादुर्भाव हुआ एवं उसे गति मिली | अगीत --एक जन-आंदोलन होकर उभरा | इसी क्रम में डा रंगनाथ मिश्र सत्य द्वारा १९७५ में 'संतुलित कहानी' व १९९८ में 'संघात्मक समीक्षा पद्धति' की स्थापना की | १९६६ से ही अगीत-विधा एक आंदोलन के रूप में विविध झंझावातों को सहते हुए अबाध गति से आगे बढती जा रही है | देश-विदेश में फैले हुए कवियों द्वारा यह विधा देश की सीमाओं को पार करके अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर अपना परचम लहराने लगी है |

                     इस दृष्टा की विधा अगीत को एक सुखद मोड़ तब मिला जब डा सत्य के परामर्श पर सन २००३ई. में अगीत परिषद के वरिष्ठ सदस्य एडवोकेट पं. जगतनारायण पांडेय ने रामकथा पर आधारित खंडकाव्य " मोह और पश्चाताप" तथा २००४ में "सौमित्र गुणाकर" महाकाव्य अगीत विधा में लिखा जो पांडे जी द्वारा स्वरचित गतिबद्ध सप्तपदी अगीत छंद" में निबद्ध था| ये दोनों कृतियाँ अगीतविधा में लिखे गए सर्वप्रथम खंडकाव्य व महाकाव्य थे |

                          डा सत्य के एक अन्य सहयोगी डा श्यामगुप्त ने सन २००६ ई. में शाश्वत आध्यात्मिक रहस्यमय विषय - 'सृष्टि, ईश्वर व जीवन-जगत के प्रादुर्भाव ' पर, विज्ञान व अध्यात्म पर समन्वित महाकाव्य " सृष्टि ( ईषत इच्छा या बिगबैंग-एक अनुत्तरित उत्तर )" अगीत विधा में लिखा, जिसके प्रणयन के लिए अतुकांत, सममात्रिक, लयबद्ध गेय 'अगीत षटपदियों' का निर्माण किया जो अगीत में एक और नवीन छंद की सृष्टि थी | इस कृति की सफलता व पत्रकारों, विद्वानों, समीक्षकों द्वारा आलेखों से यह सिद्ध हुआ कि अगीत में आध्यात्मिक, वैज्ञानिक व गूढ़ विषयों पर भी रचनाएँ की जा सकती हैं | सन-..२००८ में अगीत-विधा पर डा श्यामगुप्त की द्वितीय कृति "शूर्पणखा" खंड काव्य प्रकाशित हुई जिसे "काव्य-उपन्यास" का नाम दिया है | डा श्यामगुप्त ने अगीत विधा के अन्य विविध छंदों का भी निर्माण एवं प्रयोग किया जो आज नव-अगीत, त्रिपदा अगीत, लयबद्ध षटपदी अगीत, त्रिपदा अगीत ग़ज़ल के नाम से जाने जाते हैं |

                     डा सत्य के जागृत और उन्नतिशील साहित्य हेतु संघर्ष का एक अन्य उदाहरण है कि आपके सतत उत्साहवर्धन व प्रेरणा के फलस्वरूप डा श्यामगुप्त द्वारा ‘अगीत साहित्य दर्पण’ के रूप में अगीत-विधा के समस्त शास्त्रीय-विधान की रचना की गयी जो किसी नवीन काव्य-विधा का प्रथम शास्त्रीय रचना विधान है एवं जिसने अगीत को स्थायित्व व शास्त्रीय-मर्यादा प्रदान की |

                       इसप्रकार एक जागृत और उन्नतिशील साहित्य हेतु संघर्षशील व्यक्तित्व की भाँति डा रंगनाथ मिश्र सत्य अनेकों आलोचनाओं, कटु बचनों, दुष्प्रचारों, विरोधों आदि को झेलते हुए आगे बढ़ते गए, अपने व्यक्तिगत मानापमान, स्वाभिमान व स्वत्व की चिंता किये बिना साहित्य व संकृति हेतु अपनी बलि देने को सदा जागृत| उनकी साहित्यिक सेवाओं हेतु उन्हें साहित्यभूषण की उपाधि प्रदान की गयी एवं विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ द्वारा विद्यासागर की उपाधि | जागृत और उन्नतिशील साहित्य हेतु संघर्षशील व्यक्तित्व को स्व-बलि देना ही होता है जो प्रतिगामी और उद्देश्यहीन साहित्य में नहीं होता । डा रंगनाथ सत्य जैसे संघर्षशील व्यक्तित्व ही युग-प्रवर्तक की भूमिका निभाते हैं एवं युग दृष्टा होते हैं|

१ मार्च,२०१६ई -----डा श्यामगुप्त, सुश्यानिदी, के-३४८, आशियाना,
साहित्यकार दिवस लखनऊ-२२६०१२, मो-९४१५१५६४६४..

Monday, 22 February 2016

साहित्यकार डा रंगनाथ मिश्र को विद्यासागर की उपाधि....डा श्याम गुप्त

साहित्यकार डा रंगनाथ मिश्र को उपाधि ---

                 विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर द्वारा दिनान्क २०-२-२०१६ को साहित्यमूर्ति साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य को विद्यासागर उपाधि ( डी.लिट्.) से अलंकृत करके गौरव प्रदान किया गया |
           हिन्दी साहित्य में अगीत-काव्य के संस्थापक दृष्टा साहित्यकार व युग प्रवर्तक डा रंगनाथ मिश्र सत्य को डा श्याम गुप्त एवं गुरुवासरीय साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्था, आशियाना, लखनऊ की ओर से बधाई व शुभकामनाएं प्रेषित हैं |
 
 

Monday, 25 January 2016

कृति कुछ शायरी कीबात होजाए --की समीक्षा ...डा श्याम गुप्त

           कृति कुछ शायरी कीबात होजाए --की समीक्षा......

                                          





Saturday, 9 January 2016

अखिल भारतीय अगीत परिषद् की नव वर्ष २०१६ की प्रथम गोष्ठी ---डा श्याम गुप्त ...

अखिल भारतीय अगीत परिषद् की नव वर्ष २०१६ की प्रथम गोष्ठी ---डा श्याम गुप्त ...

                       
                 ३ जनवरी २०१६ रविवार ---१९६६ से अटूट क्रम से निरंतर चली आ रही, माह के प्रत्येक प्रथम रविवार को होने वाली अखिल भारतीय अगीत परिषद् की नववर्ष २०१६ की प्रथम गोष्ठी अगीत विधा के संस्थापक साहित्यभूषण डा रंगनाथ सत्य मिश्र के आवास अगीतायन , राजाजी पुरम लखनऊ पर सदा की भांति आयोजित हुई |
             गोष्ठी के अध्यक्षता डा रंगनाथ मिश्र सत्य ने की | मुख्य अतिथि डा श्याम गुप्त व विशिष्ट अतिथि कविवर श्री ओमनीरव जी थे |
             डा सुरेश प्रकाश शुक्ल, पार्थो सेन, डा योगेश गुप्त, शिव मंगल सिंह मंगल, सुभाष हुड़दंगी, रामप्रकाश शुक्ल, बेअदब लखनवी , मुरली मनोहर कपूर, आदि लगभग ३० कवियों ने विविध रंगों में कवितायें प्रस्तुत कीं |

          केन्द्रीय कवि के रूप में श्री ओम नीरव जी द्वारा विभिन्न कवितायें प्रस्तुत की गयीं , जिन पर प्रत्येक कवि द्वारा संक्षिप्त सारगर्भित टिप्पणी भी  प्रस्तुत की गयी |



चित्र१. अध्यक्ष डा रंगनाथ मिश्र सत्य, मुख्य अतिथि डा श्याम गुप्त एवं विशिष्ट अतिथि कविवर ओम नीरव.....
चित्र-२- व ३.... डा योगेश , डा सुरश प्रकाश शुक्ल व अन्य कविगण