इस चिट्ठे पर हिन्दी की अतुकान्त कविता धारा की एक विशेष विधा " अगीत- कविता " व उसके साहित्य के विविध रूप-भाव प्रस्तुत किये जायेंगे.....
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Friday, 6 September 2013
अगीत की शिक्षा शाला ----कार्यशाला -८ ...हिन्दी हिन्दवासियों की चेतना का मूल मन्त्र .. ....डा श्याम गुप्त ...
का हवाला | " ------ड़ा श्याम गुप्त
Thursday, 11 October 2012
अगीत साहित्य दर्पण (क्रमश:) अध्याय-५-भाग एक ..अगीत की भाव संपदा ...ड़ा श्याम गुप्त ..
अगीत की भाव-संपदा (भाग एक )
तत्कालीन कविता में संक्षिप्तता के साथ सहज भाव-सम्प्रेषण , सम-सामयिक समस्याओं से झूझने के साथ ही समस्या-समाधान का अभाव, कथ्य प्रदर्शन की दिशा ज्ञान का न होना, विधा की अस्वस्थता व सर्व-साधारण के लिए दुर्बोधता के कारण सर्वग्राही कविता के हित 'अगीत' का प्रादुर्भाव हुआ | भाव-संपदा अगीत का प्राण है |अगीत रचनाकार नए नए भाव, विषय, समाजोपेक्षी संस्कार, नवीनता, युगबोध, विचार क्रान्ति व आस्थामूलक भावों पर रचना करता है | भाषा की नई सम्वेदना व संवेग, कथ्य की विविधता व अनूठा प्रयोग, परिमाप की पोषकता, विश्वधर्मी प्रयोगों के साथ सहज एवं सर्वग्राही भाव सम्प्रेषणीयता अगीत का गुण धर्म है | कम से कम शब्दों व पंक्तियों में पूरी बात कहने का श्रेय अगीत रचनाओं को ही है | युग की हर संभावना का समावेश, विषय व कथ्य वैविध्यता अगीत की अपनी अभिज्ञानता का प्रतीक है | अतः अगीत प्रमुखतः अर्थ व भाव प्रधान काव्य संपदा विधा है | अगीत " शब्दमिति " अर्थात तुलसी की भाषा में... " अमित अरथ आखर अति थोरे" की भाव-भूमि पर आविर्भूत हुआ है |
कथ्य व भाषा की संवेदना, अनूठा प्रयोग व बिम्बधर्मी- संक्षिप्तता में एक प्रयोग प्रस्तुत है----
" बूँद बूँद बीज ये कपास के,
खिल-खिल कर पड रही दरार;
सडी-गली मछली के संग,
ढूँढ रहा विस्मय विस्तार,
डूब गए कपटी विश्वास के | " ---- ड़ा रंग नाथ मिश्र 'सत्य'
अगीत के एक प्रमुख कवि व अगीत पर विभिन्न साहित्यिक लेखों के लेखक श्री सोहन लाल सुबुद्ध के अनुसार ..." अगीत जमीन से जुडी वह कविता है जिसमें लय व गति हो, समाजोपयोगी स्वस्थ विचार व सम्यक दृष्टिबोध समाहित हो |" ( प्रतियोगिता दर्पण --उद्बोधन से ) | अगीतकार पाश्चात्य प्रभाव के अन्धानुकरण में वर्ग संघर्ष की बजाय कर्तव्य के प्रति आष्टा, यथार्थ कर्तव्य-बोध , अपने भारतीय समाज , भारतीय भाव-भूमि पर आधारित शास्त्रीयता, राष्ट्रीयता,भाषाई एकता, दृष्टिबोध को अधिक महत्त्व देता है | शास्त्रीयता के साथ साथ नवोन्मेष, पुरा-नव समन्वयता, वर्ग भेद समाप्ति के लिए विचार मंथन अगीत की एक महत्वपूर्ण भाव-भूमि व विषय है |
एक साक्षात्कार में ड़ा सत्य ने कहा था --" अगीत विधा में भाव को प्रधानता दी जाती है | यदि गीत नियमों की बंदिश से मुक्त कोई तुकांत या अतुकांत रचना , चार से दश पंक्तियों में अपने भाव, लय,गति व्यक्त करने में सक्षम है तो वह अगीत है | " अगीत कविता के विभिन्न भावों, विषयों पर संक्षिप्त व सोदाहरण वर्णन से अगीत विधा की भाव-संपदा व उसके भाव-पक्ष को स्पष्ट किया जा सकता है |
सामाजिक सरोकार अगीत कविता का मुख्य भाव है .......
" सामजिक सरोकारों को ,
अपने में समाये ;
नव-प्रभात लाने,
नव-अगीत आये | " ------ड़ा श्याम गुप्त
" मां बीमार है,
रकम उसके नाम से
खाते से निकाल कर
स्वघोषित सुपुत्र,
खा रहे बाँट कर | " ----- पं. जगत नारायण पांडे
सामाजिक बदलाव की पहल के लिए एक उद्बोधन देखें --
" मेरी एक सलाह है,
अबकी बार चुनाव में,
उनको वोट देकर जीतने का मौक़ा दीजिए ,
जो चरित्रवान हैं ;
ताकि एक बार वे भी,
सत्ता की कुर्सी पर बैठ सकें ,
शासन करने | " -----जबाहर लाल 'मधुकर' चेन्नई ( राजनीति के रंग से )
वर्ग संघर्ष की अपेक्षा ...वर्ग-न्याय, मानवता आधारित सामाजिक सरोकार प्रमुख भाव होना चाहिए.....
" दलितों के प्रति मत करो अन्याय ,
उन्हें भी दो समानता से-
जीने का अधिकार , अन्यथा-
भावी पीढ़ी धिक्कारेगी, और-
लेगी प्रतिकार ;अतः --
ओ समाज के ठेकेदारो !
उंच-नीच की खाई पाटो ,
दो शोषितों को ही न्याय | " ----- ड़ा सत्य
ठहरी हुई भीड़ में दौडना ,
दौडती हुई भीड़ में रोकना ,
क्या अर्थ रखता है ?
स्वतन्त्रता के लाभ में,
सबका समान हिस्सा है | " -----तेज नारायण राही
समाजवाद के विकृत रूप व तथाकथित विकासमानता पर व्यंग्य भाव भी हैं-----
" सुनते सुनते बूढ़ी होगई ,
झिनकू की औलाद ;
परन्तु,
अभी तक नहीं आया,
समाजवाद | " ------वीरेंद्र निझावन
" विकसित व विकासशील देशों में ,
सबसे बड़ा अंतर ,
एक में मानवता अवशेष ,
दूसरे में छूमंतर | " ----- धन सिंह मेहता 'अनजान'( प्रवासी भारतीय, अमेरिका )
युग परिवर्तन अगीत का प्रिय भाव व अगीतकार का मुख्य ध्येय है ----
" खोल दो घूंघट के पट,
हटा दो ह्रदय-पट से,
आवरण;
मिटे तमिस्रा,
हो नव-विहान | " -----सुषमा गुप्ता
" घर घर में खुशहाली लाएं ,
जीवन साकार करें ;
नवयुग निर्माण करें ,
सबको,
निज गले लगाएं | " ----डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य'
पश्चिम की भांति रक्ताभ-क्रान्ति नहीं , अमानवीयता नहीं वरन मानवता के साथ युग क्रान्ति , वर्ग न्याय के साथ सहज क्रान्ति हो -----
" आओ चलें ,
मानवता को साथ लें,
किसी का भला करें ;
लोग जलें, जला करें ,
इस कृतघ्न समाज में ,
अपनी जगह बनायें-
क्रान्ति लाएं चारों ओर | " ------विजय कुमारी मौर्य ( सिसकता विजय पथ )
" मिटा सके भूखे की हसरत,
दो रोटी भी उपलब्ध नहीं ;
क्या करोगे ढूँढ कर अमृत | " ------ त्रिपदा अगीत ( ड़ा श्याम गुप्त )
संस्कार क्रान्ति के परिपेक्ष्य में विचार-क्रान्ति का अनुपम व दूरगामी भाव अगेत में खूब उपलब्ध है ----
" जग की इस अशांति-क्रंदन का,
लालच लोभ मोह-बंधन का |
भ्रष्ट पतित सत्ता गठबंधन,
यह सब क्यों, इस यक्ष -प्रश्न का |
एक यही उत्तर सीधा सा ;
भूल गया नर आप स्वयं को || " ------सृष्टि महाकाव्य से ( ड़ा श्याम गुप्त )
" अपनी ही विकृतियों की
अंधी सुरंग में ,
भटक रहे हम;
भविष्य को क्या देंगे | " -----अगीतिका से ( पं. जगत नारायण पांडे )
विश्व शान्ति, राष्ट्रवाद, देश-प्रेम, हिन्दी भाषा, स्वभाषा-प्रेम ---अगीताकार के अन्य महत्वपूर्ण भाव हैं | हिन्दी पूर्ण राष्ट्र -भाषा बने भारतीय जन मानस की यह इच्छा अगीतकार की जन-अभिलाषा है | वैज्ञानिक प्रगति भी अगीत कवि को खूब भाती है | इसके साथ ही राजनीति, न्याय व्यवस्था, प्रजातंत्र, सामाजिक विकृतियों पर भी अगीताकार कवि ने खूब कलम चलाई है ----यथा....
" अंग्रेज़ी आया ने,
हिन्दी मां को घर से निकाला;
देकर, फास्ट-फ़ूड ,पिज्जा, बर्गर -
क्रिकेट, केम्पा-कोला, कम्प्यूटरीकरण ,
उदारीकरण, वैश्वीकरण
का हवाला | " ------ड़ा श्याम गुप्त
" सबने देखा ,
पिटते चिल्लाते,
कोई न बोला, सब खामोश:
प्रत्यक्ष दर्शी के अभाव में,
छूटा मुकदमा ,
वाहरी न्याय व्यवस्था | " -----रवीन्द्र कुमार 'राजेश'
" आया न्योता,
कर आये परमाणु समझौता:
लिए हाथ में,
कठौता | " ----- नन्द कुमार मनोचा
" आओ हम अंधकार दूर करें ,
रात और दिन खुशी-खुशी बीते;
सारा संसार शान्ति पाए ,
अपना यह राष्ट्र प्रगतिगामी हो ;
वैज्ञानिक उन्नति से ,
इसको भरपूर बनाएँ | " -----डा सत्य
" रात्रि गयी, दिन आया,
जगह दी परस्पर को,
मान दिया समय को,
क्या यही प्रवृत्ति,
प्रजातंत्र है ?" -----राम दरश मिश्र
" कुछ कितना विलासप्रिय,
जीवन जी रहे हैं;
हम,
ईर्ष्या में भरे हुए,
दांत पीस रहे हैं | " -----नरेश चन्द्र श्रीवास्तव
नवीन परिवर्तन, युग परिवर्तन, अपरिहार्य है | यह युगसंधि का सम सामयिक परिवर्तन है अतः युग-परिवर्तन के अँधेरे पक्ष को समझते हुए भी अगीत कवि, युग नवीनता के लिए उसे गले लगाता है ......
"टूट रहा मन का विश्वास ,
संकोची हैं सारी
मन की रेखाएं|
रोक रहीं मुझको
गहरी बाधाएं |
अंधकार और बढ़ रहा ,
उलट रहा सारा इतिहास | " -------- ड़ा रंग नाथ मिश्र 'सत्य'
क्रमश:-- अध्याय-५-भाग ..अगीत की भाव संपदा(भाग दो ) अगले पोस्ट में ....
तत्कालीन कविता में संक्षिप्तता के साथ सहज भाव-सम्प्रेषण , सम-सामयिक समस्याओं से झूझने के साथ ही समस्या-समाधान का अभाव, कथ्य प्रदर्शन की दिशा ज्ञान का न होना, विधा की अस्वस्थता व सर्व-साधारण के लिए दुर्बोधता के कारण सर्वग्राही कविता के हित 'अगीत' का प्रादुर्भाव हुआ | भाव-संपदा अगीत का प्राण है |अगीत रचनाकार नए नए भाव, विषय, समाजोपेक्षी संस्कार, नवीनता, युगबोध, विचार क्रान्ति व आस्थामूलक भावों पर रचना करता है | भाषा की नई सम्वेदना व संवेग, कथ्य की विविधता व अनूठा प्रयोग, परिमाप की पोषकता, विश्वधर्मी प्रयोगों के साथ सहज एवं सर्वग्राही भाव सम्प्रेषणीयता अगीत का गुण धर्म है | कम से कम शब्दों व पंक्तियों में पूरी बात कहने का श्रेय अगीत रचनाओं को ही है | युग की हर संभावना का समावेश, विषय व कथ्य वैविध्यता अगीत की अपनी अभिज्ञानता का प्रतीक है | अतः अगीत प्रमुखतः अर्थ व भाव प्रधान काव्य संपदा विधा है | अगीत " शब्दमिति " अर्थात तुलसी की भाषा में... " अमित अरथ आखर अति थोरे" की भाव-भूमि पर आविर्भूत हुआ है |
कथ्य व भाषा की संवेदना, अनूठा प्रयोग व बिम्बधर्मी- संक्षिप्तता में एक प्रयोग प्रस्तुत है----
" बूँद बूँद बीज ये कपास के,
खिल-खिल कर पड रही दरार;
सडी-गली मछली के संग,
ढूँढ रहा विस्मय विस्तार,
डूब गए कपटी विश्वास के | " ---- ड़ा रंग नाथ मिश्र 'सत्य'
अगीत के एक प्रमुख कवि व अगीत पर विभिन्न साहित्यिक लेखों के लेखक श्री सोहन लाल सुबुद्ध के अनुसार ..." अगीत जमीन से जुडी वह कविता है जिसमें लय व गति हो, समाजोपयोगी स्वस्थ विचार व सम्यक दृष्टिबोध समाहित हो |" ( प्रतियोगिता दर्पण --उद्बोधन से ) | अगीतकार पाश्चात्य प्रभाव के अन्धानुकरण में वर्ग संघर्ष की बजाय कर्तव्य के प्रति आष्टा, यथार्थ कर्तव्य-बोध , अपने भारतीय समाज , भारतीय भाव-भूमि पर आधारित शास्त्रीयता, राष्ट्रीयता,भाषाई एकता, दृष्टिबोध को अधिक महत्त्व देता है | शास्त्रीयता के साथ साथ नवोन्मेष, पुरा-नव समन्वयता, वर्ग भेद समाप्ति के लिए विचार मंथन अगीत की एक महत्वपूर्ण भाव-भूमि व विषय है |
एक साक्षात्कार में ड़ा सत्य ने कहा था --" अगीत विधा में भाव को प्रधानता दी जाती है | यदि गीत नियमों की बंदिश से मुक्त कोई तुकांत या अतुकांत रचना , चार से दश पंक्तियों में अपने भाव, लय,गति व्यक्त करने में सक्षम है तो वह अगीत है | " अगीत कविता के विभिन्न भावों, विषयों पर संक्षिप्त व सोदाहरण वर्णन से अगीत विधा की भाव-संपदा व उसके भाव-पक्ष को स्पष्ट किया जा सकता है |
सामाजिक सरोकार अगीत कविता का मुख्य भाव है .......
" सामजिक सरोकारों को ,
अपने में समाये ;
नव-प्रभात लाने,
नव-अगीत आये | " ------ड़ा श्याम गुप्त
" मां बीमार है,
रकम उसके नाम से
खाते से निकाल कर
स्वघोषित सुपुत्र,
खा रहे बाँट कर | " ----- पं. जगत नारायण पांडे
सामाजिक बदलाव की पहल के लिए एक उद्बोधन देखें --
" मेरी एक सलाह है,
अबकी बार चुनाव में,
उनको वोट देकर जीतने का मौक़ा दीजिए ,
जो चरित्रवान हैं ;
ताकि एक बार वे भी,
सत्ता की कुर्सी पर बैठ सकें ,
शासन करने | " -----जबाहर लाल 'मधुकर' चेन्नई ( राजनीति के रंग से )
वर्ग संघर्ष की अपेक्षा ...वर्ग-न्याय, मानवता आधारित सामाजिक सरोकार प्रमुख भाव होना चाहिए.....
" दलितों के प्रति मत करो अन्याय ,
उन्हें भी दो समानता से-
जीने का अधिकार , अन्यथा-
भावी पीढ़ी धिक्कारेगी, और-
लेगी प्रतिकार ;अतः --
ओ समाज के ठेकेदारो !
उंच-नीच की खाई पाटो ,
दो शोषितों को ही न्याय | " ----- ड़ा सत्य
ठहरी हुई भीड़ में दौडना ,
दौडती हुई भीड़ में रोकना ,
क्या अर्थ रखता है ?
स्वतन्त्रता के लाभ में,
सबका समान हिस्सा है | " -----तेज नारायण राही
समाजवाद के विकृत रूप व तथाकथित विकासमानता पर व्यंग्य भाव भी हैं-----
" सुनते सुनते बूढ़ी होगई ,
झिनकू की औलाद ;
परन्तु,
अभी तक नहीं आया,
समाजवाद | " ------वीरेंद्र निझावन
" विकसित व विकासशील देशों में ,
सबसे बड़ा अंतर ,
एक में मानवता अवशेष ,
दूसरे में छूमंतर | " ----- धन सिंह मेहता 'अनजान'( प्रवासी भारतीय, अमेरिका )
युग परिवर्तन अगीत का प्रिय भाव व अगीतकार का मुख्य ध्येय है ----
" खोल दो घूंघट के पट,
हटा दो ह्रदय-पट से,
आवरण;
मिटे तमिस्रा,
हो नव-विहान | " -----सुषमा गुप्ता
" घर घर में खुशहाली लाएं ,
जीवन साकार करें ;
नवयुग निर्माण करें ,
सबको,
निज गले लगाएं | " ----डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य'
पश्चिम की भांति रक्ताभ-क्रान्ति नहीं , अमानवीयता नहीं वरन मानवता के साथ युग क्रान्ति , वर्ग न्याय के साथ सहज क्रान्ति हो -----
" आओ चलें ,
मानवता को साथ लें,
किसी का भला करें ;
लोग जलें, जला करें ,
इस कृतघ्न समाज में ,
अपनी जगह बनायें-
क्रान्ति लाएं चारों ओर | " ------विजय कुमारी मौर्य ( सिसकता विजय पथ )
" मिटा सके भूखे की हसरत,
दो रोटी भी उपलब्ध नहीं ;
क्या करोगे ढूँढ कर अमृत | " ------ त्रिपदा अगीत ( ड़ा श्याम गुप्त )
संस्कार क्रान्ति के परिपेक्ष्य में विचार-क्रान्ति का अनुपम व दूरगामी भाव अगेत में खूब उपलब्ध है ----
" जग की इस अशांति-क्रंदन का,
लालच लोभ मोह-बंधन का |
भ्रष्ट पतित सत्ता गठबंधन,
यह सब क्यों, इस यक्ष -प्रश्न का |
एक यही उत्तर सीधा सा ;
भूल गया नर आप स्वयं को || " ------सृष्टि महाकाव्य से ( ड़ा श्याम गुप्त )
" अपनी ही विकृतियों की
अंधी सुरंग में ,
भटक रहे हम;
भविष्य को क्या देंगे | " -----अगीतिका से ( पं. जगत नारायण पांडे )
विश्व शान्ति, राष्ट्रवाद, देश-प्रेम, हिन्दी भाषा, स्वभाषा-प्रेम ---अगीताकार के अन्य महत्वपूर्ण भाव हैं | हिन्दी पूर्ण राष्ट्र -भाषा बने भारतीय जन मानस की यह इच्छा अगीतकार की जन-अभिलाषा है | वैज्ञानिक प्रगति भी अगीत कवि को खूब भाती है | इसके साथ ही राजनीति, न्याय व्यवस्था, प्रजातंत्र, सामाजिक विकृतियों पर भी अगीताकार कवि ने खूब कलम चलाई है ----यथा....
" अंग्रेज़ी आया ने,
हिन्दी मां को घर से निकाला;
देकर, फास्ट-फ़ूड ,पिज्जा, बर्गर -
क्रिकेट, केम्पा-कोला, कम्प्यूटरीकरण ,
उदारीकरण, वैश्वीकरण
का हवाला | " ------ड़ा श्याम गुप्त
" सबने देखा ,
पिटते चिल्लाते,
कोई न बोला, सब खामोश:
प्रत्यक्ष दर्शी के अभाव में,
छूटा मुकदमा ,
वाहरी न्याय व्यवस्था | " -----रवीन्द्र कुमार 'राजेश'
" आया न्योता,
कर आये परमाणु समझौता:
लिए हाथ में,
कठौता | " ----- नन्द कुमार मनोचा
" आओ हम अंधकार दूर करें ,
रात और दिन खुशी-खुशी बीते;
सारा संसार शान्ति पाए ,
अपना यह राष्ट्र प्रगतिगामी हो ;
वैज्ञानिक उन्नति से ,
इसको भरपूर बनाएँ | " -----डा सत्य
" रात्रि गयी, दिन आया,
जगह दी परस्पर को,
मान दिया समय को,
क्या यही प्रवृत्ति,
प्रजातंत्र है ?" -----राम दरश मिश्र
" कुछ कितना विलासप्रिय,
जीवन जी रहे हैं;
हम,
ईर्ष्या में भरे हुए,
दांत पीस रहे हैं | " -----नरेश चन्द्र श्रीवास्तव
नवीन परिवर्तन, युग परिवर्तन, अपरिहार्य है | यह युगसंधि का सम सामयिक परिवर्तन है अतः युग-परिवर्तन के अँधेरे पक्ष को समझते हुए भी अगीत कवि, युग नवीनता के लिए उसे गले लगाता है ......
"टूट रहा मन का विश्वास ,
संकोची हैं सारी
मन की रेखाएं|
रोक रहीं मुझको
गहरी बाधाएं |
अंधकार और बढ़ रहा ,
उलट रहा सारा इतिहास | " -------- ड़ा रंग नाथ मिश्र 'सत्य'
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