सृष्टि महाकाव्य -सर्ग दशम -माहेश्वरी प्रजा खंड ..डा श्याम गुप्त
सृष्टि महाकाव्य-(ईषत- इच्छा या बिगबेंग--एक अनुत्तरित उत्तर )-- -------वस्तुत सृष्टि हर पल, हर कण कण में होती रहती है,यह एक सतत प्रक्रिया है , जो ब्रह्म संकल्प-(ज्ञान--ब्रह्मा को ब्रह्म द्वारा ज्ञान) ,ब्रह्म इच्छा-(एकोहं बहुस्याम ... इच्छा) व सृष्टि (क्रिया- ब्रह्मा रचयिता ) की क्रमिक प्रक्रिया है --किसी भी पल प्रत्येक कण कण में चलती रहती है, जिससे स्रिष्टि व प्रत्येक पदार्थ की उत्पत्ति होती है । प्रत्येक पदार्थ नाश (लय-प्रलय- लय ) की और प्रतिपल उन्मुख है।
(यह
महाकाव्य अगीत विधामें आधुनिक विज्ञान ,दर्शन व वैदिक-विज्ञान के
समन्वयात्मक विषय पर सर्वप्रथम रचितमहाकाव्य है , इसमेंसृष्टि की
उत्पत्ति, ब्रह्माण्ड व जीवन और मानव की उत्पत्ति के गूढ़तम विषयको सरल
भाषा मेंव्याख्यायित कियागया है | इस .महाकाव्यको हिन्दी साहित्य की
अतुकांत कविता की 'अगीत-विधा' के छंद - 'लयबद्धषटपदी अगीत छंद' -में - निवद्ध किया गया है जो एकादश सर्गों में वर्णित है).... ...... रचयिता --डा श्याम गुप्त ...
नवम सर्ग में यह बताया गया था की किस प्रकार मानव सृष्टि के उपरांत
नारी व पुरुष की उत्पत्ति हुई | वस्तुतः आधुनिक विज्ञान गहन जेनेटिक
साइंस तक पहुंचने के बाद भी अभी सृष्टि में सेक्सुअल सिलेक्शन ,
लिंग-भिन्नता चयन क्यों, कैसे व कब प्रथम वार हुई यह नहीं बता पाता |
वैदिक विज्ञान में ये प्रश्न मौजूद हैं |
प्रस्तुत दशम सर्ग माहेश्वरी प्रजा खंड
में पुरुष की बजाय स्त्री की व पुत्र की अपेक्षा पुत्री की , नारी भाव
की उत्पत्ति की क्यों महत्ता आवश्यक हुई व है, लिंग-चयन क्यों व कैसे हुआ
इस पर विचार किया गया है | कुल छंद --९ .....
१-
मनु-शतरूपा प्रथम युगल थे,
सूत्रधार मानवी सृष्टि के;
नियमित मानव उत्पत्ति के |
मनु प्रथम मानव कहलाये ,
मनुज कहाए सब मनु वंशज ;
सर्वोत्तम कृति रचयिता की ||
२-
कन्या-द्वय, प्रसूति -आकूती ,
काम-संकल्प सुता थीं मनु की |
दिया जिन्हें मनु-शतरूपा ने,
दक्ष प्रजापति१ को संतति हित |
मानस-सृष्टि२ -भाव सारे ही ,
फलित नहीं हो सके दक्ष को ||
३-
तब मैथुनी-भाव३ अपनाकर,
पांच हज़ार सुत हुए दक्ष के;
काम-बीज सम्भोग क्रिया से |
पर नारद के उपदेशों से,
रमे नहीं संतति वर्धन में;
विरत रहे थे काम भाव से ||
४-
एक हज़ार सुत फिर जन्मे थे,
वैरुणी नाम दक्ष पत्नी से |
वे भी नारद के प्रभाव से ,
चले गए तप हेतु सदा को |
क्रोधित दक्ष ने शाप देदिया,
नारद रहे घूमता जग में ||
५-
पुनः समागम से पत्नी के ,
साठ पुत्रियाँ हुईं दक्ष को |
सोम अंगिरा धर्म व कश्यप,
अरिष्टनेमि आदि ऋषियों को;
दिया दक्ष ने फलित-सृष्टि हित,
ब्रह्मा की इच्छानुसार फिर ||
६-
मैथुनि-सृष्टि से इन ऋषियों की,
बढ़ने लगी प्रजा, दिन-प्रतिदिन |
शंभु-महेश्वर लिंग रूप में ,
मूल भाव हैं काम-बीज के |
अतः मैथुनी-सृष्टि मनुज की,
माहेश्वरी-प्रजा कहलाई ||
७-
नारी-भाव नहीं था जब तक,
फलित सृष्टि की स्वतः प्रक्रिया४ ,
कैसे भला सफल होपाती |
आद्य-शक्ति का हुआ अवतरण ,
हुआ समन्वय नर-नारी का;
पूर्ण हुआ क्रम सृष्टि-यग्य का ||
८-
प्रथम मैथुनी-जन्म५ सृष्टि में ,
प्रसूति के गर्भ से हुआ था ।
अतः गर्भ को धारण करना,
नारी का प्रसूति कहलाया ।
और जन्म देने का उपक्रम ,
गर्भाधान, प्रसव कहलाया ॥
९-
मैथुन-सृष्टि से संतति के
उत्पादन की सतत प्रक्रिया;
का प्रारम्भ हुआ इस जग में।
फ़लित-सृष्टि की स्वत: प्रक्रिया ,
का प्रतिपादन हुआ दक्ष से ,
पूरा हुआ सृष्टि-क्रम विधि का ॥ --क्रमश: सर्ग ११...उपसंहार...
(कुन्जिका -- १=प्रथम प्रज़ापति--जिनसे मानव उत्पत्ति की मिथुनीय
पद्धति की स्वयं-प्रक्रिया की उत्पत्ति हुई; २= दक्ष के समय तक
सन्कल्प व स्पर्श मात्र से सन्तति उत्पन्न करने की शक्ति लुप्त हो गयी
थी ; ३=नर-मादा संयोग से संतान उत्पन्न करने की स्वतः प्रक्रिया ; ४=
स्त्री-पुरुष के काम भाव समागम/संभोग सेसंतति प्राप्ति; ५= नर-मादा संयोग
से संतति उत्पत्ति ।)