अगीत की शिक्षा शाला ---कार्यशाला ३४-----अगीत का भाव पक्ष ----
\
\
अगीत की
भाव-संपदा
\\
तत्कालीन
कविता में
संक्षिप्तता के
साथ सहज
भाव-सम्प्रेषण, सम-सामयिक समस्याओं
से जूझने
के साथ
ही समस्या-समाधान का
अभाव, कथ्य, प्रदर्शन
की दिशा-ज्ञान का
न होना, विधा
की अस्वस्थता
व सर्व-साधारण
के लिए
दुर्बोधता के
कारण सर्वग्राही कविता के हित 'अगीत' का प्रादुर्भाव हुआ | भाव-संपदा
अगीत
का
प्राण
है | अगीत रचनाकार
नए-नए भाव,
विषय, समाजोपेक्षी संस्कार,
नवीनता, युगबोध, विचार-क्रान्ति व
आस्थामूलक भावों
पर रचना
करता है
| भाषा की
नई सम्वेदना
व संवेग, कथ्य की
विविधता व
अनूठा प्रयोग,
परिमाप की
पोषकता, विश्वधर्मी प्रयोगों
के साथ
सहज एवं
सर्वग्राही भाव-सम्प्रेषणीयता अगीत का गुण धर्म है
| कम से
कम शब्दों व पंक्तियों में पूरी
बात कहने
का श्रेय
अगीत रचनाओं को ही
है | युग
की हर
संभावना का
समावेश, विषय व
कथ्य वैविध्यता
अगीत की
अपनी अभिज्ञानता
का प्रतीक
है | अतः अगीत
प्रमुखतः अर्थ
व भाव
प्रधान काव्य
संपदा विधा
है | अगीत
"
शब्दमिति " अर्थात तुलसी
की भाषा
में... " अमित अरथ
आखर अति थोरे" की भाव-भूमि पर
आविर्भूत हुआ
है |
कथ्य व
भाषा की
संवेदना, अनूठा
प्रयोग व
बिम्बधर्मी- संक्षिप्तता में एक
प्रयोग प्रस्तुत
है--
" बूँद बूँद बीज ये कपास के,
खिल-खिल कर पड रही दरार;
सडी-गली मछली के संग,
ढूँढ रहा विस्मय विस्तार,
डूब गए कपटी विश्वास के | " ---- ड़ा रंग नाथ मिश्र 'सत्य'
अगीत के एक प्रमुख कवि व अगीत पर विभिन्न साहित्यिक लेखों के लेखक श्री सोहन लाल सुबुद्ध के अनुसार ..." अगीत जमीन से जुडी वह कविता है जिसमें लय व गति हो, समाजोपयोगी स्वस्थ विचार व सम्यक दृष्टिबोध समाहित हो |" ( प्रतियोगिता दर्पण --उद्बोधन से ) | अगीतकार पाश्चात्य प्रभाव के अन्धानुकरण में वर्ग संघर्ष की बजाय कर्तव्य के प्रति आष्टा, यथार्थ कर्तव्य-बोध , अपने भारतीय समाज , भारतीय भाव-भूमि पर आधारित शास्त्रीयता, राष्ट्रीयता,भाषाई एकता, दृष्टिबोध को अधिक महत्त्व देता है | शास्त्रीयता के साथ साथ नवोन्मेष, पुरा-नव समन्वयता, वर्ग भेद समाप्ति के लिए विचार मंथन अगीत की एक महत्वपूर्ण भाव-भूमि व विषय है |
एक साक्षात्कार में ड़ा सत्य ने कहा था --" अगीत विधा में भाव को प्रधानता दी जाती है | यदि गीत नियमों की बंदिश से मुक्त कोई तुकांत या अतुकांत रचना , चार से दश पंक्तियों में अपने भाव, लय,गति व्यक्त करने में सक्षम है तो वह अगीत है | " अगीत कविता के विभिन्न भावों, विषयों पर संक्षिप्त व सोदाहरण वर्णन से अगीत विधा की भाव-संपदा व उसके भाव-पक्ष को स्पष्ट किया जा सकता है |
खिल-खिल कर पड रही दरार;
सडी-गली मछली के संग,
ढूँढ रहा विस्मय विस्तार,
डूब गए कपटी विश्वास के | " ---- ड़ा रंग नाथ मिश्र 'सत्य'
अगीत के एक प्रमुख कवि व अगीत पर विभिन्न साहित्यिक लेखों के लेखक श्री सोहन लाल सुबुद्ध के अनुसार ..." अगीत जमीन से जुडी वह कविता है जिसमें लय व गति हो, समाजोपयोगी स्वस्थ विचार व सम्यक दृष्टिबोध समाहित हो |" ( प्रतियोगिता दर्पण --उद्बोधन से ) | अगीतकार पाश्चात्य प्रभाव के अन्धानुकरण में वर्ग संघर्ष की बजाय कर्तव्य के प्रति आष्टा, यथार्थ कर्तव्य-बोध , अपने भारतीय समाज , भारतीय भाव-भूमि पर आधारित शास्त्रीयता, राष्ट्रीयता,भाषाई एकता, दृष्टिबोध को अधिक महत्त्व देता है | शास्त्रीयता के साथ साथ नवोन्मेष, पुरा-नव समन्वयता, वर्ग भेद समाप्ति के लिए विचार मंथन अगीत की एक महत्वपूर्ण भाव-भूमि व विषय है |
एक साक्षात्कार में ड़ा सत्य ने कहा था --" अगीत विधा में भाव को प्रधानता दी जाती है | यदि गीत नियमों की बंदिश से मुक्त कोई तुकांत या अतुकांत रचना , चार से दश पंक्तियों में अपने भाव, लय,गति व्यक्त करने में सक्षम है तो वह अगीत है | " अगीत कविता के विभिन्न भावों, विषयों पर संक्षिप्त व सोदाहरण वर्णन से अगीत विधा की भाव-संपदा व उसके भाव-पक्ष को स्पष्ट किया जा सकता है |
सामाजिक सरोकार अगीत
कविता का
मुख्य भाव
है .......
" सामजिक सरोकारों को ,
अपने में समाये ;
नव-प्रभात लाने,
नव-अगीत आये | " ------ड़ा श्याम गुप्त
" मां बीमार है,
रकम उसके नाम से
खाते से निकाल कर
स्वघोषित सुपुत्र,
खा रहे बाँट कर | " ----- पं. जगत नारायण पांडे
सामाजिक बदलाव की पहल के लिए एक उद्बोधन देखें --
" मेरी एक सलाह है,
अबकी बार चुनाव में,
उनको वोट देकर जीतने का मौक़ा दीजिए ,
जो चरित्रवान हैं ;
ताकि एक बार वे भी,
सत्ता की कुर्सी पर बैठ सकें ,
शासन करने | " -----जबाहर लाल 'मधुकर' चेन्नई ( राजनीति के रंग से )
वर्ग संघर्ष की अपेक्षा ...वर्ग-न्याय, मानवता आधारित सामाजिक सरोकार प्रमुख भाव होना चाहिए.....
" दलितों के प्रति मत करो अन्याय ,
उन्हें भी दो समानता से-
जीने का अधिकार , अन्यथा-
भावी पीढ़ी धिक्कारेगी, और-
लेगी प्रतिकार ;अतः --
ओ समाज के ठेकेदारो !
उंच-नीच की खाई पाटो ,
दो शोषितों को ही न्याय | " ----- ड़ा सत्य
ठहरी हुई भीड़ में दौडना ,
दौडती हुई भीड़ में रोकना ,
क्या अर्थ रखता है ?
स्वतन्त्रता के लाभ में,
सबका समान हिस्सा है | " -----तेज नारायण राही
समाजवाद के विकृत रूप व तथाकथित विकासमानता पर व्यंग्य भाव भी हैं--
" सुनते सुनते बूढ़ी होगई ,
झिनकू की औलाद ;
परन्तु,
अभी तक नहीं आया,
समाजवाद | " ------वीरेंद्र निझावन
" विकसित व विकासशील देशों में ,
सबसे बड़ा अंतर ,
एक में मानवता अवशेष ,
दूसरे में छूमंतर | " ----- धन सिंह मेहता 'अनजान'( प्रवासी भारतीय, अमेरिका )
युग परिवर्तन अगीत का प्रिय भाव व अगीतकार का मुख्य ध्येय है ----
" खोल दो घूंघट के पट,
हटा दो ह्रदय-पट से,
आवरण;
मिटे तमिस्रा,
हो नव-विहान | " -----सुषमा गुप्ता
" घर घर में खुशहाली लाएं ,
जीवन साकार करें ;
नवयुग निर्माण करें ,
सबको,
निज गले लगाएं | " ----डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य'
पश्चिम की भांति रक्ताभ-क्रान्ति नहीं , अमानवीयता नहीं वरन मानवता के साथ युग क्रान्ति , वर्ग न्याय के साथ सहज क्रान्ति हो -----
" आओ चलें ,
मानवता को साथ लें,
किसी का भला करें ;
लोग जलें, जला करें ,
इस कृतघ्न समाज में ,
अपनी जगह बनायें-
क्रान्ति लाएं चारों ओर | " ------विजय कुमारी मौर्य ( सिसकता विजय पथ )
" मिटा सके भूखे की हसरत,
दो रोटी भी उपलब्ध नहीं ;
क्या करोगे ढूँढ कर अमृत | " ------ त्रिपदा अगीत ( ड़ा श्याम गुप्त )
संस्कार क्रान्ति के परिपेक्ष्य में विचार-क्रान्ति का अनुपम व दूरगामी भाव अगेत में खूब उपलब्ध है ----
" जग की इस अशांति-क्रंदन का,
लालच लोभ मोह-बंधन का |
भ्रष्ट पतित सत्ता गठबंधन,
यह सब क्यों, इस यक्ष -प्रश्न का |
एक यही उत्तर सीधा सा ;
भूल गया नर आप स्वयं को || " ------सृष्टि महाकाव्य से ( ड़ा श्याम गुप्त )
" अपनी ही विकृतियों की
अंधी सुरंग में ,
भटक रहे हम;
भविष्य को क्या देंगे | " -----अगीतिका से ( पं. जगत नारायण पांडे )
विश्व शान्ति, राष्ट्रवाद, देश-प्रेम, हिन्दी भाषा, स्वभाषा-प्रेम ---अगीतकार के अन्य महत्वपूर्ण भाव हैं | हिन्दी पूर्ण राष्ट्र -भाषा बने भारतीय जन मानस की यह इच्छा अगीतकार की जन-अभिलाषा है | वैज्ञानिक प्रगति भी अगीत कवि को खूब भाती है | इसके साथ ही राजनीति, न्याय व्यवस्था, प्रजातंत्र, सामाजिक विकृतियों पर भी अगीताकार कवि ने खूब कलम चलाई है ----यथा....
" सामजिक सरोकारों को ,
अपने में समाये ;
नव-प्रभात लाने,
नव-अगीत आये | " ------ड़ा श्याम गुप्त
" मां बीमार है,
रकम उसके नाम से
खाते से निकाल कर
स्वघोषित सुपुत्र,
खा रहे बाँट कर | " ----- पं. जगत नारायण पांडे
सामाजिक बदलाव की पहल के लिए एक उद्बोधन देखें --
" मेरी एक सलाह है,
अबकी बार चुनाव में,
उनको वोट देकर जीतने का मौक़ा दीजिए ,
जो चरित्रवान हैं ;
ताकि एक बार वे भी,
सत्ता की कुर्सी पर बैठ सकें ,
शासन करने | " -----जबाहर लाल 'मधुकर' चेन्नई ( राजनीति के रंग से )
वर्ग संघर्ष की अपेक्षा ...वर्ग-न्याय, मानवता आधारित सामाजिक सरोकार प्रमुख भाव होना चाहिए.....
" दलितों के प्रति मत करो अन्याय ,
उन्हें भी दो समानता से-
जीने का अधिकार , अन्यथा-
भावी पीढ़ी धिक्कारेगी, और-
लेगी प्रतिकार ;अतः --
ओ समाज के ठेकेदारो !
उंच-नीच की खाई पाटो ,
दो शोषितों को ही न्याय | " ----- ड़ा सत्य
ठहरी हुई भीड़ में दौडना ,
दौडती हुई भीड़ में रोकना ,
क्या अर्थ रखता है ?
स्वतन्त्रता के लाभ में,
सबका समान हिस्सा है | " -----तेज नारायण राही
समाजवाद के विकृत रूप व तथाकथित विकासमानता पर व्यंग्य भाव भी हैं--
" सुनते सुनते बूढ़ी होगई ,
झिनकू की औलाद ;
परन्तु,
अभी तक नहीं आया,
समाजवाद | " ------वीरेंद्र निझावन
" विकसित व विकासशील देशों में ,
सबसे बड़ा अंतर ,
एक में मानवता अवशेष ,
दूसरे में छूमंतर | " ----- धन सिंह मेहता 'अनजान'( प्रवासी भारतीय, अमेरिका )
युग परिवर्तन अगीत का प्रिय भाव व अगीतकार का मुख्य ध्येय है ----
" खोल दो घूंघट के पट,
हटा दो ह्रदय-पट से,
आवरण;
मिटे तमिस्रा,
हो नव-विहान | " -----सुषमा गुप्ता
" घर घर में खुशहाली लाएं ,
जीवन साकार करें ;
नवयुग निर्माण करें ,
सबको,
निज गले लगाएं | " ----डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य'
पश्चिम की भांति रक्ताभ-क्रान्ति नहीं , अमानवीयता नहीं वरन मानवता के साथ युग क्रान्ति , वर्ग न्याय के साथ सहज क्रान्ति हो -----
" आओ चलें ,
मानवता को साथ लें,
किसी का भला करें ;
लोग जलें, जला करें ,
इस कृतघ्न समाज में ,
अपनी जगह बनायें-
क्रान्ति लाएं चारों ओर | " ------विजय कुमारी मौर्य ( सिसकता विजय पथ )
" मिटा सके भूखे की हसरत,
दो रोटी भी उपलब्ध नहीं ;
क्या करोगे ढूँढ कर अमृत | " ------ त्रिपदा अगीत ( ड़ा श्याम गुप्त )
संस्कार क्रान्ति के परिपेक्ष्य में विचार-क्रान्ति का अनुपम व दूरगामी भाव अगेत में खूब उपलब्ध है ----
" जग की इस अशांति-क्रंदन का,
लालच लोभ मोह-बंधन का |
भ्रष्ट पतित सत्ता गठबंधन,
यह सब क्यों, इस यक्ष -प्रश्न का |
एक यही उत्तर सीधा सा ;
भूल गया नर आप स्वयं को || " ------सृष्टि महाकाव्य से ( ड़ा श्याम गुप्त )
" अपनी ही विकृतियों की
अंधी सुरंग में ,
भटक रहे हम;
भविष्य को क्या देंगे | " -----अगीतिका से ( पं. जगत नारायण पांडे )
विश्व शान्ति, राष्ट्रवाद, देश-प्रेम, हिन्दी भाषा, स्वभाषा-प्रेम ---अगीतकार के अन्य महत्वपूर्ण भाव हैं | हिन्दी पूर्ण राष्ट्र -भाषा बने भारतीय जन मानस की यह इच्छा अगीतकार की जन-अभिलाषा है | वैज्ञानिक प्रगति भी अगीत कवि को खूब भाती है | इसके साथ ही राजनीति, न्याय व्यवस्था, प्रजातंत्र, सामाजिक विकृतियों पर भी अगीताकार कवि ने खूब कलम चलाई है ----यथा....
" अंग्रेज़ी आया ने,
हिन्दी मां को घर से निकाला;
देकर, फास्ट-फ़ूड ,पिज्जा, बर्गर -
क्रिकेट, केम्पा-कोला, कम्प्यूटरीकरण ,
उदारीकरण, वैश्वीकरण
का हवाला | " ------ड़ा श्याम गुप्त
" सबने देखा ,
पिटते चिल्लाते,
कोई न बोला, सब खामोश:
प्रत्यक्ष दर्शी के अभाव में,
छूटा मुकदमा ,
वाहरी न्याय व्यवस्था | " -----रवीन्द्र कुमार 'राजेश'
" आया न्योता,
कर आये परमाणु समझौता:
लिए हाथ में,
कठौता | " ----- नन्द कुमार मनोचा
" आओ हम अंधकार दूर करें ,
रात और दिन खुशी-खुशी बीते;
सारा संसार शान्ति पाए ,
अपना यह राष्ट्र प्रगतिगामी हो ;
वैज्ञानिक उन्नति से ,
इसको भरपूर बनाएँ | " -----डा सत्य
" रात्रि गयी, दिन आया,
जगह दी परस्पर को,
मान दिया समय को,
क्या यही प्रवृत्ति,
प्रजातंत्र है ?" -----राम दरश मिश्र
हिन्दी मां को घर से निकाला;
देकर, फास्ट-फ़ूड ,पिज्जा, बर्गर -
क्रिकेट, केम्पा-कोला, कम्प्यूटरीकरण ,
उदारीकरण, वैश्वीकरण
का हवाला | " ------ड़ा श्याम गुप्त
" सबने देखा ,
पिटते चिल्लाते,
कोई न बोला, सब खामोश:
प्रत्यक्ष दर्शी के अभाव में,
छूटा मुकदमा ,
वाहरी न्याय व्यवस्था | " -----रवीन्द्र कुमार 'राजेश'
" आया न्योता,
कर आये परमाणु समझौता:
लिए हाथ में,
कठौता | " ----- नन्द कुमार मनोचा
" आओ हम अंधकार दूर करें ,
रात और दिन खुशी-खुशी बीते;
सारा संसार शान्ति पाए ,
अपना यह राष्ट्र प्रगतिगामी हो ;
वैज्ञानिक उन्नति से ,
इसको भरपूर बनाएँ | " -----डा सत्य
" रात्रि गयी, दिन आया,
जगह दी परस्पर को,
मान दिया समय को,
क्या यही प्रवृत्ति,
प्रजातंत्र है ?" -----राम दरश मिश्र
" कुछ कितना विलासप्रिय,
जीवन जी रहे हैं;
हम,
ईर्ष्या में भरे हुए,
दांत पीस रहे हैं | " -----नरेश चन्द्र श्रीवास्तव
नवीन परिवर्तन, युग परिवर्तन, अपरिहार्य है | यह युगसंधि का सम सामयिक परिवर्तन है अतः युग-परिवर्तन के अँधेरे पक्ष को समझते हुए भी अगीत कवि, युग नवीनता के लिए उसे गले लगाता है ......
"टूट रहा मन का विश्वास ,
संकोची हैं सारी
मन की रेखाएं|
रोक रहीं मुझको
गहरी बाधाएं |
अंधकार और बढ़ रहा ,
उलट रहा सारा इतिहास | " -------- ड़ा रंग नाथ मिश्र 'सत्य'
अनियंत्रित विकास हो या जीवन व्यापार अति सभी की बुरी है | अगीतों में इनकी हानियों व प्रभावों को खूब उजागर किया है | यांत्रिकता व सामयिक यथार्थ, पर्यावरण, प्रदूषण पर भी कलम चली है ----
" रात भर काल सेंटर पर,
जागते हैं ,
भारत के युवक ;
दिन भर सोता है ,
भारत का भाग्य | " -------स्नेह प्रभा
" मैले कुचले, फटे बसनों में,
लौह की एक शलाका,
लिए हाथों में --
यहाँ वहाँ कूडे के ढेर में,
नंगे पग, दौड़-दौड़
ढूँढ रहे जिंदगी | " ----- राम कृपाल 'ज्योति'
" सभ्यता की अटारी पर ,
जब आधुनिक नारी चढी ;
तो उसे पसीना छूटने लगा,
वह अपना लिबास ,
फैंकने लगी | " ------ विनय शंकर दीक्षित
" सावन सूखा बीत गया तो,
दोष बहारों को मत देना ;
तुमने सागर किया प्रदूषित | " ---- डा श्याम गुप्त
नारी-पुरुष व समाज का त्रिआयामी विमर्श अगीतकारों की एक अन्य विशेष भूमि है | सिर्फ फैशन, स्मार्टनेस , कपडे-गहने , सजाने-सजाने, पुरुषों की बराबरी या उन्हें अपमानित करने में नारी स्वाधीनता निहित नहीं है | नियम-निषेध तीनों के लिए आवश्यक हैं तभी समन्वय होता है एवं समन्वयात्मक समाज की स्थापना -----
जीवन जी रहे हैं;
हम,
ईर्ष्या में भरे हुए,
दांत पीस रहे हैं | " -----नरेश चन्द्र श्रीवास्तव
नवीन परिवर्तन, युग परिवर्तन, अपरिहार्य है | यह युगसंधि का सम सामयिक परिवर्तन है अतः युग-परिवर्तन के अँधेरे पक्ष को समझते हुए भी अगीत कवि, युग नवीनता के लिए उसे गले लगाता है ......
"टूट रहा मन का विश्वास ,
संकोची हैं सारी
मन की रेखाएं|
रोक रहीं मुझको
गहरी बाधाएं |
अंधकार और बढ़ रहा ,
उलट रहा सारा इतिहास | " -------- ड़ा रंग नाथ मिश्र 'सत्य'
अनियंत्रित विकास हो या जीवन व्यापार अति सभी की बुरी है | अगीतों में इनकी हानियों व प्रभावों को खूब उजागर किया है | यांत्रिकता व सामयिक यथार्थ, पर्यावरण, प्रदूषण पर भी कलम चली है ----
" रात भर काल सेंटर पर,
जागते हैं ,
भारत के युवक ;
दिन भर सोता है ,
भारत का भाग्य | " -------स्नेह प्रभा
" मैले कुचले, फटे बसनों में,
लौह की एक शलाका,
लिए हाथों में --
यहाँ वहाँ कूडे के ढेर में,
नंगे पग, दौड़-दौड़
ढूँढ रहे जिंदगी | " ----- राम कृपाल 'ज्योति'
" सभ्यता की अटारी पर ,
जब आधुनिक नारी चढी ;
तो उसे पसीना छूटने लगा,
वह अपना लिबास ,
फैंकने लगी | " ------ विनय शंकर दीक्षित
" सावन सूखा बीत गया तो,
दोष बहारों को मत देना ;
तुमने सागर किया प्रदूषित | " ---- डा श्याम गुप्त
नारी-पुरुष व समाज का त्रिआयामी विमर्श अगीतकारों की एक अन्य विशेष भूमि है | सिर्फ फैशन, स्मार्टनेस , कपडे-गहने , सजाने-सजाने, पुरुषों की बराबरी या उन्हें अपमानित करने में नारी स्वाधीनता निहित नहीं है | नियम-निषेध तीनों के लिए आवश्यक हैं तभी समन्वय होता है एवं समन्वयात्मक समाज की स्थापना -----
"
पुरुष ने नारीको,
देकर केवल अपना नाम ;
छीन ली बदले में
उसकी हर सुबह ,
हर शाम | " -------मंजू सक्सेना 'विनोद'
" अज्ञान तमिस्रा मिटाकर,
आर्थिक रूप से,
समृद्ध होगी, सुबुद्ध होगी ;
नारी ! तू तभी-
स्वतंत्र होगी,
प्रबुद्ध होगी | " ----- सुषमा गुप्ता
" नारी केन्द्र - बिंदु है भ्राता !
व्यष्टि,समष्टि,राष्ट्र की,जग की |
इसीलिये तो वह अबध्य है,
और सदा सम्माननीय भी |
लेकिन वह भी तो मानव है,
नियम-निषेध मानने होंगे | " ----- शूर्पणखा काव्य-उपन्यास से ( डा श्याम गुप्त )
" कर रहे हो ह्त्या तुम,
कन्या के भ्रूण की |
कर रहे पाप छीन के जीवन ,
भविष्य की मां का तुम |
जन्म कौन देगा फिर ,
पैगम्बरों को,
अवतारों को | " ------ अगीतिका में ( पं.जगत नारायण पाण्डेय )
प्रकृति वर्णन, हास्य-व्यंग्य, लास्य व सौंदर्य, प्रेम आदि भावों से भी अगीत कविता अछूती नहीं रही है -----
" ओ बसंत ! फिर आना
सिहरन के साथ |
तेरे आने की
आहट मिल जाती है;
पाहुन से मिलने की,
इच्छा तडपाती है ;
ओ बसंत ! फिर आना ,
मनसिज के साथ | " ---- डा सत्य
" चंचला ,
तेरी मधुर मुस्कान से
मेरा ह्रदय पिघल जाता है |
तुझे पाने के लिए
मैं अपना ,
सर्वस्व लुटा देता हूँ | " ------ सुरेन्द्र कुमार वर्मा
" नई वैज्ञानिक खोज
आधुनिक स्टोव;
तेल खर्च सीमित
समय बचाता है ;
सास नन्द सुरक्षित,
बहू जलाता है | " ----- सुभाष हुडदंगी
" तेरे संग हर ऋतु मस्तानी ,
हर बात लगे नई कहानी ;
रात दिवानी सुबह सुहानी| " ---डा श्याम गुप्त
संस्कृति, आस्था, मनोविज्ञान, धर्म, दर्शन एवं दर्शन के उच्चतम रूप वेदान्त में अवस्थित भारतीय आस्तिकता,.... मानवता, शोषण , साम्प्रदायिकता के भाव प्रस्तुत हैं------
" गरीब के पसीने से,
अपना घर सजाया है;
किसी ने तख़्त,
किसी ने -
ताज बनाया है | " ----- धन सिंह मेहता
" मृत्यु देखकर
हम अमरत्व चाहते हैं;
और मृत्यु के बिना
अमरत्व अर्थ हीन होता है |
फिर अनेक यत्न करते हैं,
लेकिन अमरत्व अप्राप्य है,
मृत्यु एक सत्य है,
अमरत्व एक आशा | " ----- नरेश चन्द्र श्रीवास्तव
" समस्त सौर प्रणालियाँ ,
समस्त कार्बनिक सिद्धांत,
समस्त प्राकृतिक संपदा
समस्त बुद्धिजीवी
समस्त दिव्य अग्नि,
आपसे पाकर
हम धन्य हुए,
अपनी कृपाओं से हमें कृतार्थ करें | " ---- धुरेन्द्र स्वरुप बिसारिया ( दिव्य अगीत से )
" क्यों पश्चिम अपनाया जाए,
सूरज उगता है पूरब में;
पश्चिम में तो ढलना निश्चित | " --- डा श्याम गुप्त
देकर केवल अपना नाम ;
छीन ली बदले में
उसकी हर सुबह ,
हर शाम | " -------मंजू सक्सेना 'विनोद'
" अज्ञान तमिस्रा मिटाकर,
आर्थिक रूप से,
समृद्ध होगी, सुबुद्ध होगी ;
नारी ! तू तभी-
स्वतंत्र होगी,
प्रबुद्ध होगी | " ----- सुषमा गुप्ता
" नारी केन्द्र - बिंदु है भ्राता !
व्यष्टि,समष्टि,राष्ट्र की,जग की |
इसीलिये तो वह अबध्य है,
और सदा सम्माननीय भी |
लेकिन वह भी तो मानव है,
नियम-निषेध मानने होंगे | " ----- शूर्पणखा काव्य-उपन्यास से ( डा श्याम गुप्त )
" कर रहे हो ह्त्या तुम,
कन्या के भ्रूण की |
कर रहे पाप छीन के जीवन ,
भविष्य की मां का तुम |
जन्म कौन देगा फिर ,
पैगम्बरों को,
अवतारों को | " ------ अगीतिका में ( पं.जगत नारायण पाण्डेय )
प्रकृति वर्णन, हास्य-व्यंग्य, लास्य व सौंदर्य, प्रेम आदि भावों से भी अगीत कविता अछूती नहीं रही है -----
" ओ बसंत ! फिर आना
सिहरन के साथ |
तेरे आने की
आहट मिल जाती है;
पाहुन से मिलने की,
इच्छा तडपाती है ;
ओ बसंत ! फिर आना ,
मनसिज के साथ | " ---- डा सत्य
" चंचला ,
तेरी मधुर मुस्कान से
मेरा ह्रदय पिघल जाता है |
तुझे पाने के लिए
मैं अपना ,
सर्वस्व लुटा देता हूँ | " ------ सुरेन्द्र कुमार वर्मा
" नई वैज्ञानिक खोज
आधुनिक स्टोव;
तेल खर्च सीमित
समय बचाता है ;
सास नन्द सुरक्षित,
बहू जलाता है | " ----- सुभाष हुडदंगी
" तेरे संग हर ऋतु मस्तानी ,
हर बात लगे नई कहानी ;
रात दिवानी सुबह सुहानी| " ---डा श्याम गुप्त
संस्कृति, आस्था, मनोविज्ञान, धर्म, दर्शन एवं दर्शन के उच्चतम रूप वेदान्त में अवस्थित भारतीय आस्तिकता,.... मानवता, शोषण , साम्प्रदायिकता के भाव प्रस्तुत हैं------
" गरीब के पसीने से,
अपना घर सजाया है;
किसी ने तख़्त,
किसी ने -
ताज बनाया है | " ----- धन सिंह मेहता
" मृत्यु देखकर
हम अमरत्व चाहते हैं;
और मृत्यु के बिना
अमरत्व अर्थ हीन होता है |
फिर अनेक यत्न करते हैं,
लेकिन अमरत्व अप्राप्य है,
मृत्यु एक सत्य है,
अमरत्व एक आशा | " ----- नरेश चन्द्र श्रीवास्तव
" समस्त सौर प्रणालियाँ ,
समस्त कार्बनिक सिद्धांत,
समस्त प्राकृतिक संपदा
समस्त बुद्धिजीवी
समस्त दिव्य अग्नि,
आपसे पाकर
हम धन्य हुए,
अपनी कृपाओं से हमें कृतार्थ करें | " ---- धुरेन्द्र स्वरुप बिसारिया ( दिव्य अगीत से )
" क्यों पश्चिम अपनाया जाए,
सूरज उगता है पूरब में;
पश्चिम में तो ढलना निश्चित | " --- डा श्याम गुप्त
" काश कोई ऐसा धर्म होता,
जो प्रबचन के साथ-
रोटी भी देता;
ताकि मनुष्य धर्म से-
अधर्म की ओर न जाता | " ----- पार्थो सेन
" आस्था के द्वार से,
आस्था के द्वार तक;
यात्रा ही यात्रा है,
जीवन के पार तक | " -----डा मिथिलेश दीक्षित,शिकोहा बाद
" जिस दिन,
धर्म से मुक्त राजनीति होगी:
उसी दि साम्प्रदायवाद की
अवनति होगी | " --- जवाहर लाल 'मधुकर' चेन्नई
एतिहासिक सन्दर्भ, दृष्टांत, व्यंजनात्मक अन्योक्ति व अन्य दूरस्थ भाव भी अगीत कवियों ने खूब प्रयोग किये हैं -----
" दुर्योधन !
ठगे रह गए थे तुम, देखकर--
'सारी बीच नारी है
या नारी बीच सारी है '
आज भी सफल नहीं होपाओगे;
साडी-हीन नारी देख,
ठगे रह जाओगे | " ----डा श्याम गुप्त ( श्याम स्मृति से )
" अकेला मन,
कुछ तलाशता है ;
आस-पास कुछ समेटता है,
शायद इसी में मिल जाय-
खोई हुई खुशी;
पता नहीं क्यों नहीं की
उसने खुद्कुशी | " ---- विजय कुमारी मौर्या
जो प्रबचन के साथ-
रोटी भी देता;
ताकि मनुष्य धर्म से-
अधर्म की ओर न जाता | " ----- पार्थो सेन
" आस्था के द्वार से,
आस्था के द्वार तक;
यात्रा ही यात्रा है,
जीवन के पार तक | " -----डा मिथिलेश दीक्षित,शिकोहा बाद
" जिस दिन,
धर्म से मुक्त राजनीति होगी:
उसी दि साम्प्रदायवाद की
अवनति होगी | " --- जवाहर लाल 'मधुकर' चेन्नई
एतिहासिक सन्दर्भ, दृष्टांत, व्यंजनात्मक अन्योक्ति व अन्य दूरस्थ भाव भी अगीत कवियों ने खूब प्रयोग किये हैं -----
" दुर्योधन !
ठगे रह गए थे तुम, देखकर--
'सारी बीच नारी है
या नारी बीच सारी है '
आज भी सफल नहीं होपाओगे;
साडी-हीन नारी देख,
ठगे रह जाओगे | " ----डा श्याम गुप्त ( श्याम स्मृति से )
" अकेला मन,
कुछ तलाशता है ;
आस-पास कुछ समेटता है,
शायद इसी में मिल जाय-
खोई हुई खुशी;
पता नहीं क्यों नहीं की
उसने खुद्कुशी | " ---- विजय कुमारी मौर्या
अंत में शब्दमिति अर्थात संक्षिप्तता के साथ विभिन्न भावों पर नए नए विचार-भाव, नवीन सन्दर्भ व युवा-मन के भाव भी खूब प्रदर्शित हुए हैं ------
" असत्य ने
सत्य के वक्ष पर,
तांडव किया;
औ चीख चीख कर कहा ,
देखो,
मैं विजित हुआ | " ----डा योगेश गुप्त
" चित्र खिंचा,
मैं हुई निस्तब्ध ;
कलपना यथार्थ का मिश्रण ,
खड़ी खड़ी मैं हुई निरुत्तर;
मैं तटस्थ होकर भी -
निरुत्तर | " ----गीता आकांक्षा
" पकड़ ली जब खाट
तब देखा कभी नहीं ,
मरने के बाद-
कह रहे,
अच्छा इंसान था | " ----- देवेश द्विवेदी ' देवेश"
" यह अ.जा. का
यह अ.ज.जा. का
यह अन्य पिछडों का
यह सवर्णों का,
कहाँ है --
मेरा राष्ट्र, मेरा देश ? " ---- डा श्याम गुप्त
अतः निश्चय ही अगीत-विधा भाव-पक्ष-प्रधान एक सशक्त काव्य-विधा है | अगीत रचनाओं व कृतियों में सशक्त, समर्थ व संपन्न भाव-संपदा के सम्यक दर्शन होते हैं |
" असत्य ने
सत्य के वक्ष पर,
तांडव किया;
औ चीख चीख कर कहा ,
देखो,
मैं विजित हुआ | " ----डा योगेश गुप्त
" चित्र खिंचा,
मैं हुई निस्तब्ध ;
कलपना यथार्थ का मिश्रण ,
खड़ी खड़ी मैं हुई निरुत्तर;
मैं तटस्थ होकर भी -
निरुत्तर | " ----गीता आकांक्षा
" पकड़ ली जब खाट
तब देखा कभी नहीं ,
मरने के बाद-
कह रहे,
अच्छा इंसान था | " ----- देवेश द्विवेदी ' देवेश"
" यह अ.जा. का
यह अ.ज.जा. का
यह अन्य पिछडों का
यह सवर्णों का,
कहाँ है --
मेरा राष्ट्र, मेरा देश ? " ---- डा श्याम गुप्त
अतः निश्चय ही अगीत-विधा भाव-पक्ष-प्रधान एक सशक्त काव्य-विधा है | अगीत रचनाओं व कृतियों में सशक्त, समर्थ व संपन्न भाव-संपदा के सम्यक दर्शन होते हैं |
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