अगीत की शिक्षा शाला
{ अगीत विधा कविता में अगीत , लयबद्ध अगीत ,गतिमय सप्तपदी अगीत , लयबद्ध षट्पदी अगीत , नव-अगीत, त्रिपदा अगीत आदि छः प्रकार के अतुकांत छंद प्रयोग होरहे हैं एवं सातवीं विधा 'त्रिपदा अगीत ग़ज़ल' है|)
कार्यशाला -९ ..नव-अगीत छंद
२००८ में कवयित्री श्रीमती सुषमागुप्ता के एक छोटे से अगीत पर मेरी प्रतिक्रया 'इतना छोटा अगीत" पर उनके कथन कि यह नव-अगीत है ... से प्रेरित होकर मैंने अगीत के एक अन्य छंद
का सूत्रपात किया जो पारंपरिक अगीत से भी
लघु है....जिसे " नव-अगीत" नाम दिया गया |
नव-अगीत छंद--- ३ से अधिक ५ से
कम पन्क्तियों वाला, अतुकान्त अगीत छन्द है... ..इस छंद
का रचना
विधान निम्न
है.....
१.अतुकांत
लघु अगीत
छंद
२.तीन
से कम
व पांच से
अधिक पंक्तियाँ
नहीं
३.लय,
गति व
मात्रा बंधन
से मुक्त
४. मुख्यतया:
सामाजिक सरोकारों
,कटु सत्य,
नवीन विचारों
से युक्त
परन्तु अनिवार्यता
व बंधन नहीं
|
--
यथा--
बेडियां तोडो,
ज्ञान-दीप जलाओ,
नारी ! अब -
तुम्ही राह दिखाओ;
समाज को जोडो. । -सुषमा गुप्ता
देश की प्रगति ही,
सबका
कल्याण,
यही
हमारा उद्देश्य,
रखती हूं
मैं
इसका ध्यान । ---विजय कुमारी मौर्य ’विजय’
आदमी ,
इतना विषैला होगया है;
सांप ,
अब आस्तीन में नहीं रहते। ---डा श्याम गप्त
"
हम मरते हैं,
कटते हैं,
समस्यायें मौन खड़ी हैं,
बे परिणाम |" ----सुरेश चन्द्र शुक्ल, नार्वे
कटते हैं,
समस्यायें मौन खड़ी हैं,
बे परिणाम |" ----सुरेश चन्द्र शुक्ल, नार्वे
"मुस्तैद मित्र पुलिस
हरदम तैयार
;
फिर भी नहीं मिली
,
उत्तम प्रदेश में-
चोरी गयी कार
|"
-----डा श्याम
गुप्त
"सावधान होजायें
ऐसे दुमुहे
मुझे न भाएँ
;
जो खाएं और गुर्रायें
इन दुमुहों के पास न जाएँ
|"
---- सोहन लाल
सुबुद्ध
"शब्द वेधी वाण ने
हरे श्रवण के प्राण
;
कैकयी की वाणी ने
.
वन
भेजा
सुकुमार
|"
--- पार्थो सेन
|
"
दिवस
के अवसान में
उद्भासित अरुणाभा ,
देती है सन्देश
क्षितिज पर मिलन का,
उषा की बेला में |"
--- अगीतिका
से ( पं. जगत नारायण पाण्डेय )
"कवि चिथड़े पहने
चखता संकेतों का रस,
रचता -रस, छंद, अलंकार
ऐसे कवि के क्या कहने |"
------डा
रंगनाथ मिश्र 'सत्य'
.
" आज के समाज का
सबसे बड़ा व्यंग्य ;
सच को भी -
व्यंग्य कहकर,
कहना पड रहा है |"
----- गिरीश
पाण्डेय ( धरती जानती है )
“खोल दो घूंघट के पट ,
हटादो ह्रदय पट से,
आवरण,
मिटे तमिस्रा,
हो नव-विहान |"
----श्रीमती सुषमा गुप्ता
" ओ दिव्य कवि !
तेरी मधुर रागमयी बांसुरी की
धुन
सागर की उत्ताल तरंगों से
संगत करती,
आकाश के अंतहीन उसार में ,
कोमलता से गुंजन करती |"
-----श्री
धुरेन्द्र स्वरुप बिसरिया ( दिव्य-अगीत से )
---क्रमश -- त्रिपदा अगीत ...अगली कार्यशाला में ......
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