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Tuesday, 17 September 2013

त्रिपदा अगीत..अगीत की शिक्षाशाला--कार्यशाला १०....डा श्याम गुप्त ....

अगीत की शिक्षा शाला   --                                       

                      { अगीत विधा कविता में  अगीत , लयबद्ध अगीत ,गतिमय सप्तपदी अगीत , लयबद्ध षट्पदी अगीत , नव-अगीतत्रिपदा अगीत  आदि छः प्रकार के अतुकांत छंद प्रयोग होरहे हैं एवं  सातवीं विधा 'त्रिपदा अगीत ग़ज़ल' है|)

 

                                  कार्यशाला १०....   त्रिपदा अगीत ....

              त्रिपदा अगीत ....प्रत्येक पंक्ति में १६-१६ निश्चित मात्राओं  एवं  निश्चित तीन पंक्तियों  वाला यह संक्षिप्त अतुकांत ,अगीत छंद ...त्रिपदा-अगीत है जिसमें तुकांतता  का बंधन नहीं होता|

                  क्रांतिकारी,  पत्रकार, साहित्यकार , समाजसेवी व कवि पद्मश्री पं.वचनेश त्रिपाठी जो अगीत आंदोलन व अगीतायन से जुड़े थे एवं वरिष्ठ परामर्शदाता थे ; उनके निधन ( सन २००६ई) पर श्रृद्धांजलि समारोह के अवसर पर उनकी स्मृति में मैंने ( डा श्याम गुप्त ) एक अन्य नवीन अगीत छंद का सृजन किया | इसे 'त्रिपदा अगीत ' का नाम दिया गया | इस छंद को पं. वचनेश त्रिपाठीजी को ही समर्पित किया गया | इस छंद का रचना विधान यह है ----
 

१.अतुकांत छंद
२.तीन पंक्तियों से कम व अधिक नहीं
३.गतिबद्ध परन्तु गेयता का बंधन नहीं
४. सोलह-सोलह निश्चित मात्राओं की तीनों पंक्तियाँ |

यथा----

"श्वेत धवल दाडी लहराती,
भाल  विशाल, उच्च आभामय ;
सच्चे निस्पृह युग-ऋषि थे वे |"           
           ---- वचनेश त्रिपाठी के प्रति ( डा श्याम गुप्त )

   प्यार बना ही रहे हमेशा ,
ऐसा सदा नहीं क्यों होता ;
सुन्दर नहीं नसीब सभी  का |"     
                  ----- सुषमा गुप्ता  


आँख मूद कर हुक्म बजाना,
सच  की बात न मुंह पर लाना ;
पड जाएगा कष्ट उठाना | "                          ---- डा श्याम गुप्त

" नैन नैन मिल गए सुन्दरी,
नैना  लिए झुके भला क्यों ;
मिलते क्या बस झुक जाने को |"                        डा श्याम गुप्त


"निहारूंगा मैं तुझे अपलक
   जैसे एक अबोध कता है
    इन्द्रधनुष  की ओर एक टक |"                              .... पार्थोसेन ...


" पायल छनका कर दूर हुए,
हम कुछ ऐसे मज़बूर हुए ;
उस नाद-ब्रह्म मद चूर हुए |"                   ---डा श्याम गुप्त

" सावन सूखा बीत गया तो,
दोष बहारों को मत देना ;
तुमने सागर किया प्रदूषित | "                        ---- डा श्याम गुप्त   

 


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