डा श्याम गुप्त |
पार्थो सेन -लेखक |
व्यक्तित्व व कृतित्व एक सिक्के के ही दो पहलू हैं। यहाँ यह कहना अनुचित नहीं होगा की कृतित्व ही व्यक्तित्व को ऊंचा करने में सहायक होता है।आज हम जिन्हें महापुरुषों के रूप में सम्मान करते हैं उनके कर्मों ने ही उन्हें महान बनाया है जो उनका व्यक्तित्व होगया ।
डा श्याम बाबू गुप्त जी ने विधिवत पदार्पण २००४ में अपनी प्रथम कृति " काव्यदूत "से किया।और अब तक उनकी छः कृतियाँ प्रकाशित होकर प्रशंसित चुकी हैं । यहाँ विस्तार से हम उनके योगदान की चर्चा करना आवश्यक समझते हैं ।
आपका जन्म १० नवम्बर, १९४४ ई .को ग्राम मिढाकुर जिला आगरा में हुआ। आपके पिता श्री जगन्नाथ प्रसाद गुप्त व माता का नाम श्रीमती राम भेजी देवी था। दोनों ही संस्कारित व धर्मपारायण थे जिसका प्रभाव डा गुप्त के जीवन एवं साहित्य पर स्पष्ट रूप से झलकता है। अप चार भाई-बहन के मध्य पाले-बढे और सफलता आपको पग पग पर मिलती रही।
साहित्य क्षेत्र में पदार्पण का कोई कारण या संयोग होता है जहां से व्यक्ति उस क्षेत्र में शनैः शनैः अग्रसर होता है। एसा ही कुछ आपके साथ भी हुआ। १९६० ई. में कक्षा आठ के विद्यार्थी के रूप में इनके सहपाठी श्री राम कुमार अग्रवाल कवितायें लिखते थे और इन्हें दिखाते थे, बस यहीं से इनके ह्रदय में भी परिवर्तन आया और आप कलम के साधक बन गए। यहाँ यह सत्य ही है की आप पहले साहित्य के क्षेत्र में आये और तत्पश्चात शल्य-चिकित्सा के जगत में । चूंकि शल्य-चिकित्सा आपकी जीविका रही अतः यह आवश्यक था कि वे उसका निर्वाह करते। अतः सन २००४ ई. में सेवा निवृत्त होते ही उन्होंने अपनी कृति 'काव्य-दूत ' को हम सबके समक्ष प्रस्तुत कर दिया । प्रथम कृति 'काव्य-दूत' २००४ में आयी, इसमें तुकांत व अतुकांत रचनाओं के विविधता लिए हुए संग्रह है।जिसे अपनी जीवन संगिनी श्रीमती सुषमा गुप्ता को समर्पित किया है ।एक कवितांश देखिये....
मन के अंतर्द्वंद्व से
यह विचार उभर कर आया
चेतना ने,
जीवन की कविता लिखने को सुझाया ।
दूसरी कृति "काव्य-निर्झरिणी " २००५ में गे गीतों का संग्रह है । जिसमें नीति, शिक्षा ,धर्म, अध्यात्म, विज्ञान, दर्शन , संस्कृति आदि सभी निहित हैं ।सरल भाषा में रचित यह संग्रह आपने अपने मात-पिता को समर्पित किया है। दो पंक्तियाँ देखिये----
कविता वह है जो रहे, सुन्दर सरल, सुबोध।
जन मानस को कर सके हर्षित, प्रखर, प्रबोध ।।
आपकी तीसरी कृति " काव्य-मुक्तामृत" भी २००५ में प्रकाशित हुई जो अतुकांत गीतों का संग्रह है ।मूल रूप से रचनाएँ मर्यादा, नैतिकता, आचरण-शुचिता पर आधारित हैं।इस कृति को आपने अपने अग्रज डा राम बाबू गुप्ता को समर्पित किया है। कवी स्वयं की समीक्षा करते हुए लिखता है----
कवि को भरना होता है,
गागर में सागर ।
तब कविता होजाती है मुक्त,
छंद से, छंद भाव-जाल से ,
बन जाती है,
मुक्त-छंद कविता ।
आपकी चतुर्थ कृति नवीनता लिए हुए २००६ ई. में "सृष्टि " शीर्षक से आयी ।जिसमें सृष्टि व ब्रह्माण्ड को नायक का रूप देकर अगीत विधा में महाकाव्य की रचना कर हिन्दी साहित्य जगत एवं अगीत विधा के उन्नयन का एक सराहनीय कार्य किया है । यह कृति बेटी और दामाद को समर्पित है । एक उदाहरण देखें ...
" निज को जग को जानेंगे,
समता भाव तभी मानेंगे।
तब नर, नर से करे समन्वय,
आपस के भावों का अन्वय ।
........."
२००७ में आपकी पांचवी कृति " प्रेम-काव्य" प्रकाशित हुई , जिसमें नायक व नायिका अमूर्त भाव ..प्रेम.. ही है । जो गीतों व छंदों में रचित महाकाव्य है और प्रेम की प्रेरणादायिनी राधाजे को समर्पित है। यह बहुचर्चित कृति रही । एक उदाहरण प्रस्तुत है...
सर्जनाएं , वर्जनाएं
नीति की सब व्यंजनायें ।
मंद करलो निज स्वरों को,
प्रीति स्वर जब गुनुगुनाएं ।।
आपकी छटी पुस्तक " शूर्पणखा" अगीत -विधा में खंड काव्य है जिसे कवि ने 'काव्य-उपन्यास ' की संज्ञा देकर हिन्दी साहित्य जगत को एक नया सन्देश दिया है । इसमें मानवीय आचरण -शुचिता, अनाचार,पुरुष-नारी -समाज व धर्म पर चर्चा की गयी है । इस कृति को अपने पिता व राष्ट्र-पिता महात्मा गांधी जी दोनों को ही समर्पित किया गया है ।एक उदाहरण है---
" विदुषी शिक्षित और साक्षर ,
नारी ही आधार है सदा,
हर समाज की नर जीवन की ......"
इन सभी कृतियों की समीक्षाएं प्रमुख दैनिक व साप्ताहिक पत्रों --दैनिक जागरण ...अगीतायन आदि में प्रकाशित हुईं । कृतियों के शीर्षक स्वयं एक आदर्श प्रस्तुत करते हैं वैसी ही विषय-वस्तु व सामग्री है। अतः वे निसंदेह ही एक सिद्धहस्त महाकवि हैं ।
कृतियों के सृजन के साथ साथ वे ब्लॉग जगत से भी जुड़े हैं एवं विविधब्लॉग मंचों से विशिष्ट सम्मान भी प्राप्त किये । परिमार्जित हिन्दी के अतिरिक्त आपने बृजभाषा में भी कवितायें लिखी हैं ।एक काव्यांश देखिये....
''साँचु न्याय व्रत नेमु धरम
अब काहू कों न सुहावै ,
कारे धन की खूब कमाई ,
पाछे सब जग धावै ।"
हिन्दी के अतिरिक्त डा श्याम गुप्त अंगरेजी में भी कविता लिखते हैं । चार पंक्तियाँ देखें...
" There was darkness in life,
And life was a great strife.
Someone brought the ray of hope,
And filled the heart with light ."
कविता के अध्याय के पश्चात 'संतुलित कहानी कार' के रूप में भी आपका परिचय देना आवश्यक है । मूलतः आप संतुलित तथा लघु कहानियां लिखते हैं....खरगोश के जोड़े की कहानी, विकृति की जड़-जो माँ-बाप व बच्चों के संस्कार पर आधारित है...भव-चक्र -वृद्धों की स्थिति से परिचित कराती है...पाठकों द्वारा सराहे गएँ हैं। आपकी अब तक लगभग बाईस कहानियां प्रकाशित होचुकी हैं।
आपसे साहित्य का कोइ अंग छूटा नहीं है । आप 'संघात्मक समीक्षा पद्धति' से भी जुड़े हैं । स्नेह-प्रभा जी की " कर्म-बीर " मधु त्रिपाठी जी की "मधु -माधुरी " व डा ऊषा गुप्ता की " अमेरिकी प्रवासी भारतीय कवि " की समीक्षाएं आपकी प्रशंसित समीक्षाएं हैं। जो अन्य समीक्षकों को दिशा भी प्रदान करती हैं । समय समय पर आप अन्य लेखकों की रचनाओं पर शुभाशंसाएँ भी देते है । जिनमें में श्री अजित कुमार वर्मा के व्यंग्य लेखों के संग्रह " मैं गधा हूँ " प्रमुख है।
इस प्रकार बाईस कहानियाँ, पचास से अधिक आलेख , छः कृतियों के प्रकाशन के अतुरिक्त लगभग आठ अप्रकाशित कृतियाँ भी आपकी उपलब्धि के अंग हैं ।आपको कई साहित्यिक मंचों , ब्लॉग मंचों से सामान प्राप्त हुआ है। आपकी साहित्य यात्रा इसी प्रकार गतिमान रहे इसी मंगलकामना के साथ में डा श्याम गप्त के कृतित्व व व्यक्तित्व को नमन करता हूं एवं सम्मानार्थ बधाई देता हूँ ।
----- पार्थो सेन
सन्योजक, अ.भा.अगीत परिषद एवं
सृजन संस्था वार्षिक समारोह समिति
लखनऊ
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