अगीत कवि कुल गुरु
–डा रंगनाथ मिश्र ’सत्य’ व अगीत कविता---एक अवलोकन
( डा श्याम गुप्त )
अगीत गुरु एवं अगीत कविता के कुल-गुरु, हिन्दी साहित्य व कविता में नये युग ”अगीत
युग’ के सूत्रधार ,हिन्दी के समर्थ कवि व निष्ठावान साहित्यकार –डा रंगनाथ
मिश्र” सत्य’ के शिष्य व शिष्याएं, समर्थक, प्रशन्सक व शुभेच्छु, लखनऊ व सारे देश
में ही नहीं अपितु विश्व भर में फ़ैल चुके हैं एवं उनकी जगाई हुई अलख तथा स्थापित
कविता विधा ’अगीत’ के प्रसार में संलग्न हैं, जो हिन्दी साहित्य में उच्च
आदर्शों व मानदन्डों की स्थापना को कटिबद्ध है ।
महाकवि
जायसी व युगप्रवर्तक महावीर प्रसाद द्विवेदी की जन्मस्थली जनपद रायबरेली के ग्राम
कुर्री सुदौली में जन्मे व साहित्यकारों की उर्वरा भूमि लखनऊ में स्थापित, लखनऊ वि
विद्यालय से एम ए, पी एच डी , ’अगीत’ के
सूत्रधार डा रंगनाथ मिश्र ’सत्य’ एक जुझारू व्यक्तित्व का नाम है जो अपने सरल,
उदारमना व्यक्तित्व, सबको साथ लेकर चलने वाले समर्थ साहित्यकार के रूप में हिन्दी
जगत में विख्यात हैं ।
यद्यपि
कविता की मूलधारा वैदिक युग से ही अतुकान्त-विधा रही, परन्तु हिन्दी में अतुकान्त
कविता की विधिवत स्थापना निराला जी ने की। निरालायुग की अतुकान्त कवितायें
लम्बे वर्णानात्मक, यथार्थ व पौराणिक विषयों पर आधारित थीं। उससे आगे आधुनिक युग
की सामयिक आवश्यकता-संक्षिप्तता,सरलता,रुचिकरता, तीब्र-भावसंप्रेषणता, यथार्थता के
साथ साथ सामाजिक-सरोकारों का उचित समाधा्न-प्रदर्शन हेतु “अगीत कविता” की
स्थापना हुई, जिसका प्रवर्तन -’लीक छांडि तीनों चलें शायर, सिन्ह, सपूत’-
वाले अंदाज १९६६ ई. में में डा सत्य ने’ अखिल भा. अगीत परिषद, लखनऊ’
की स्थापना करके किया। तब से यह युगानुकूल विधा अगणित कवियों, साहित्यकारों द्वारा
रचित कविताओं, काव्य-संग्रहों, खंड-काव्यों, महाकाव्यों व विभिन्न अगीत-छंदों के
अवतरण से निरन्तर समृद्धि -शिखर की ओर प्रयाणरत है जो
निश्चय ही हिन्दी भाषा, साहित्य व कविता एवं छंदशास्त्र के इतिहास व विकास की
अग्रगामी ध्वज व पताकाएं हैं।
अनेकों काव्य-ग्रंथों की रचना व संपादन के साथ
ही डा सत्य ने १९७५ ई. में “संतुलित कहानी” एवं १९९८ई. में हिन्दी समीक्षा
क्षेत्र में “संघात्मक समीक्षा “ पद्दति की स्थापना की। उनकी कर्मठता, लगन,
धैर्य पूर्ण सेवा व परिश्रम के फ़लस्वरूप उन्हें देश भर में विभिन्न पुरस्कार व
सम्मान प्रात हुए। उनके प्रशन्सकों ने उनके जन्मदिन, १ मार्च को ’साहित्यकार दिवस”
के रूप में मनाना प्रारम्भ कर दिया। नगर की विभिन्न साहित्यिक संस्थाओंने उनके
संयोजकत्व में व अ.भा.अगीत परिषद के सह-तत्वावधान में गोष्ठियां, कवि-मेले व
कवि-कुंभ आदि आयोजित करने प्रारम्भ कर दिये। एसे व्यक्तित्व को यदि अगीत
कविकुल्गुरु की उपधि से पुकारा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। जब सत्य जी कहते हैं----
।
“आंखों को चित्र भागया, तथा “अहंकार मन से दूर करें हम
बाधाएं एक नहीं हज़ारों जीवन में
समरसता लायें
आशाएं कर रहीं श्रंगार।“ प्रगति पंथ पर बढते जायें
मन में विश्वास हो,नूतन उत्साह
हो
संघर्षों को मिलकर दूर करें।“
तो
विश्वास सामाजिकता समरसता, नवीन के प्रति उनकी ललक, उत्साह व संघर्षप्रियता के
दर्शन होते हैं। जब वे गाते हैं--- “मत
जीना बुखार सी ज़िन्दगी,
सुख दुख में मस्त रहो
सबका सम्मान करो
मत करना उधार की ज़िन्दगी।“ -- तो वे अलमस्त, विन्दास, परंतु शान से, बिना
किसी दबाव में झुके, बाधाओं से निपटते हुए नज़र आते हैं तथा कवियॊं को भी एक उचित
उद्देश्यपूर्ण राह दिखाते हैं।
“आओ
राष्ट्र को जगाएं…..” व “ देवनागरी को
अपनाएं…..”आदि अगीतों में डा सत्य का
कवि-मन राष्ट्रीय भावना व हिन्दी के प्रति दीवानगी प्रदर्शन के साथ ही हिन्दी जनमानस
व कवियों को भी संबल प्रदान करता है। “ अप्प दीपो भव “ की भांति सत्य जी ने अपना
रास्ता स्वयं ही बनाया है एवं जन-मानस व नवीन कवियों को भी उन्होंने दीपक की भांति
ग्यान से प्रकाशित किया है और यही संदेश वे--
“ चलना ही नियति हमारी है,
जलना ही प्रगति हमारी है……..” अगीत गाकर सभी को
देते हैं। “ उदार चेतां तु वसुधैव कुटुम्बकं” पर चलने वाले सत्य जी, सबको साथ लेकर
चलने में विश्वास रखते हैं। नव-साहित्यकारों या अन्य को हेय द्रष्टि से
देखने-समझने वाले मठाधीशों को वे स्पष्ट उत्तर देते हैं---
“शब्दहीन
कौन है यहां
पुलकित
हैं सभी यहां आज
परिचित
है सभी से समाज
फ़ैल
रही मधु भरी किरन
गंधहीन
कौन है यहां…..” ------- ’सत्य जी का
स्वयं का क्या योगदान है”, ’अगीत का भविष्य क्या है” आदि आदि व्यर्थ आलोचना करने
वालों को ललकार कर जबाव देते हुए वे कहते हैं ---
“दिशाहीन
नहीं हूं अभी
पाई
है केवल बदनामी
खोज
रहे हैं मुझको मेरे प्रेरक सपने
मिलनातुर
हैं मुझसे मेरे अपने
क्रियाहीन
नहीं हूं अभी
यह
तो है जग की नादानी ।“
एसे कर्मठ, आशावादी,सरल ह्रदय साहित्यकार,
पथप्रदर्शक व युगप्रवर्तक डा सत्य ’चरैवैति चरैवैति’ की भांति प्रगति-दीप हाथ में
लेकर प्रगतिपथ पर चलते ही जारहे हैं एवं चलते ही रहें एसी मेरी आकांक्षा, आशा व
विश्वास है ।
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