अगीत की शिक्षा शाला ---कार्यशाला ३४-----अगीत का भाव पक्ष ----
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अगीत की
भाव-संपदा
\\
तत्कालीन
कविता में
संक्षिप्तता के
साथ सहज
भाव-सम्प्रेषण, सम-सामयिक समस्याओं
से जूझने
के साथ
ही समस्या-समाधान का
अभाव, कथ्य, प्रदर्शन
की दिशा-ज्ञान का
न होना, विधा
की अस्वस्थता
व सर्व-साधारण
के लिए
दुर्बोधता के
कारण सर्वग्राही कविता के हित 'अगीत' का प्रादुर्भाव हुआ | भाव-संपदा
अगीत
का
प्राण
है | अगीत रचनाकार
नए-नए भाव,
विषय, समाजोपेक्षी संस्कार,
नवीनता, युगबोध, विचार-क्रान्ति व
आस्थामूलक भावों
पर रचना
करता है
| भाषा की
नई सम्वेदना
व संवेग, कथ्य की
विविधता व
अनूठा प्रयोग,
परिमाप की
पोषकता, विश्वधर्मी प्रयोगों
के साथ
सहज एवं
सर्वग्राही भाव-सम्प्रेषणीयता अगीत का गुण धर्म है
| कम से
कम शब्दों व पंक्तियों में पूरी
बात कहने
का श्रेय
अगीत रचनाओं को ही
है | युग
की हर
संभावना का
समावेश, विषय व
कथ्य वैविध्यता
अगीत की
अपनी अभिज्ञानता
का प्रतीक
है | अतः अगीत
प्रमुखतः अर्थ
व भाव
प्रधान काव्य
संपदा विधा
है | अगीत
"
शब्दमिति " अर्थात तुलसी
की भाषा
में... " अमित अरथ
आखर अति थोरे" की भाव-भूमि पर
आविर्भूत हुआ
है |
कथ्य व
भाषा की
संवेदना, अनूठा
प्रयोग व
बिम्बधर्मी- संक्षिप्तता में एक
प्रयोग प्रस्तुत
है--
" बूँद बूँद बीज ये कपास के,
खिल-खिल कर पड रही दरार;
सडी-गली मछली के संग,
ढूँढ रहा विस्मय विस्तार,
डूब गए कपटी विश्वास के |
"
---- ड़ा रंग
नाथ मिश्र
'सत्य'
अगीत के
एक प्रमुख
कवि व
अगीत पर
विभिन्न साहित्यिक
लेखों के
लेखक श्री
सोहन लाल
सुबुद्ध के
अनुसार ..." अगीत
जमीन
से
जुडी
वह
कविता
है
जिसमें
लय
व
गति
हो, समाजोपयोगी स्वस्थ विचार व सम्यक दृष्टिबोध समाहित हो
|" ( प्रतियोगिता दर्पण
--उद्बोधन
से ) | अगीतकार
पाश्चात्य प्रभाव के अन्धानुकरण में वर्ग
संघर्ष की
बजाय कर्तव्य के प्रति
आष्टा, यथार्थ कर्तव्य-बोध
, अपने भारतीय समाज , भारतीय भाव-भूमि
पर आधारित शास्त्रीयता, राष्ट्रीयता,भाषाई एकता,
दृष्टिबोध को
अधिक महत्त्व
देता है
| शास्त्रीयता के
साथ साथ
नवोन्मेष, पुरा-नव
समन्वयता, वर्ग भेद
समाप्ति के
लिए विचार
मंथन अगीत
की एक
महत्वपूर्ण भाव-भूमि व
विषय है
|
एक साक्षात्कार
में ड़ा
सत्य ने
कहा था
--" अगीत विधा में भाव को प्रधानता दी जाती है | यदि गीत नियमों की बंदिश से मुक्त कोई तुकांत या अतुकांत रचना , चार से दश पंक्तियों में अपने भाव, लय,गति व्यक्त करने में सक्षम है तो वह अगीत है | " अगीत
कविता के
विभिन्न भावों,
विषयों पर
संक्षिप्त व
सोदाहरण वर्णन
से अगीत
विधा की
भाव-संपदा व
उसके भाव-पक्ष को
स्पष्ट किया
जा सकता
है |
सामाजिक सरोकार अगीत
कविता का
मुख्य भाव
है .......
"
सामजिक सरोकारों को ,
अपने में समाये ;
नव-प्रभात लाने,
नव-अगीत आये
|
"
------ड़ा श्याम
गुप्त
"
मां बीमार है,
रकम उसके नाम से
खाते से निकाल कर
स्वघोषित सुपुत्र,
खा रहे बाँट कर
| "
----- पं. जगत नारायण
पांडे
सामाजिक बदलाव की
पहल के
लिए एक
उद्बोधन देखें
--
" मेरी एक सलाह है,
अबकी
बार
चुनाव
में,
उनको
वोट
देकर
जीतने
का
मौक़ा
दीजिए ,
जो
चरित्रवान
हैं ;
ताकि
एक
बार
वे
भी,
सत्ता
की
कुर्सी
पर
बैठ
सकें ,
शासन
करने | "
-----जबाहर लाल
'मधुकर' चेन्नई ( राजनीति
के रंग
से )
वर्ग
संघर्ष की
अपेक्षा ...वर्ग-न्याय,
मानवता आधारित सामाजिक सरोकार प्रमुख भाव
होना चाहिए.....
"
दलितों के प्रति मत करो अन्याय
,
उन्हें भी दो समानता से-
जीने का अधिकार , अन्यथा-
भावी पीढ़ी धिक्कारेगी, और-
लेगी प्रतिकार
;अतः --
ओ समाज के ठेकेदारो
!
उंच-नीच की खाई पाटो
,
दो शोषितों को ही न्याय |
"
----- ड़ा सत्य
ठहरी हुई भीड़ में दौडना ,
दौडती हुई भीड़ में रोकना ,
क्या अर्थ रखता है
?
स्वतन्त्रता के लाभ में,
सबका समान हिस्सा है
| "
-----तेज नारायण
राही
समाजवाद के
विकृत रूप
व तथाकथित विकासमानता पर
व्यंग्य भाव
भी हैं--
"
सुनते सुनते बूढ़ी होगई
,
झिनकू की औलाद ;
परन्तु,
अभी तक नहीं आया,
समाजवाद |
"
------वीरेंद्र निझावन
"
विकसित व विकासशील देशों में ,
सबसे बड़ा अंतर
,
एक में मानवता अवशेष
,
दूसरे में छूमंतर | "
----- धन सिंह
मेहता 'अनजान'( प्रवासी
भारतीय, अमेरिका )
युग परिवर्तन अगीत का
प्रिय भाव
व अगीतकार का
मुख्य ध्येय
है ----
"
खोल दो घूंघट के पट,
हटा दो ह्रदय-पट से,
आवरण;
मिटे तमिस्रा,
हो नव-विहान | "
-----सुषमा
गुप्ता
"
घर घर में खुशहाली लाएं ,
जीवन साकार करें ;
नवयुग निर्माण करें
,
सबको,
निज गले लगाएं
| "
----डा रंगनाथ
मिश्र 'सत्य'
पश्चिम की भांति रक्ताभ-क्रान्ति नहीं
, अमानवीयता नहीं वरन
मानवता के
साथ युग
क्रान्ति , वर्ग
न्याय के
साथ सहज
क्रान्ति हो
-----
" आओ चलें
,
मानवता को साथ लें,
किसी का भला करें ;
लोग जलें,
जला करें
,
इस कृतघ्न समाज में
,
अपनी जगह बनायें-
क्रान्ति लाएं चारों ओर
| "
------विजय कुमारी
मौर्य ( सिसकता विजय
पथ )
"
मिटा सके भूखे की हसरत,
दो रोटी भी उपलब्ध नहीं ;
क्या करोगे ढूँढ कर अमृत | "
------ त्रिपदा अगीत
( ड़ा श्याम
गुप्त )
संस्कार क्रान्ति के परिपेक्ष्य में विचार-क्रान्ति का
अनुपम व
दूरगामी भाव
अगेत में
खूब उपलब्ध
है ----
"
जग की इस अशांति-क्रंदन का,
लालच लोभ मोह-बंधन का
|
भ्रष्ट पतित सत्ता गठबंधन,
यह सब क्यों, इस यक्ष
-प्रश्न का
|
एक यही
उत्तर सीधा सा ;
भूल गया नर आप स्वयं को ||
" ------सृष्टि महाकाव्य
से ( ड़ा श्याम
गुप्त )
"
अपनी ही विकृतियों की
अंधी सुरंग में ,
भटक रहे हम;
भविष्य को क्या देंगे
| "
-----अगीतिका से
( पं. जगत नारायण
पांडे )
विश्व शान्ति,
राष्ट्रवाद, देश-प्रेम, हिन्दी भाषा, स्वभाषा-प्रेम ---अगीतकार के
अन्य महत्वपूर्ण
भाव हैं
| हिन्दी
पूर्ण
राष्ट्र -भाषा बने
भारतीय जन
मानस की यह
इच्छा अगीतकार
की जन-अभिलाषा है
| वैज्ञानिक प्रगति भी अगीत
कवि को
खूब भाती
है | इसके साथ
ही राजनीति,
न्याय व्यवस्था,
प्रजातंत्र, सामाजिक विकृतियों पर
भी अगीताकार
कवि ने
खूब कलम
चलाई है
----यथा....
" अंग्रेज़ी आया ने,
हिन्दी मां को घर से निकाला;
देकर, फास्ट-फ़ूड
,पिज्जा, बर्गर -
क्रिकेट, केम्पा-कोला,
कम्प्यूटरीकरण ,
उदारीकरण, वैश्वीकरण
का हवाला |
"
------ड़ा श्याम
गुप्त
"
सबने देखा
,
पिटते चिल्लाते,
कोई न बोला, सब खामोश:
प्रत्यक्ष दर्शी के अभाव में,
छूटा मुकदमा
,
वाहरी न्याय व्यवस्था | "
-----रवीन्द्र कुमार
'राजेश'
"
आया न्योता,
कर आये परमाणु समझौता:
लिए हाथ में,
कठौता | "
----- नन्द
कुमार मनोचा
"
आओ हम अंधकार दूर करें ,
रात और दिन खुशी-खुशी बीते;
सारा संसार शान्ति पाए
,
अपना यह राष्ट्र प्रगतिगामी हो ;
वैज्ञानिक उन्नति से ,
इसको भरपूर बनाएँ |
"
-----डा
सत्य
" रात्रि गयी, दिन आया,
जगह दी परस्पर को,
मान दिया समय को,
क्या यही प्रवृत्ति,
प्रजातंत्र है
?"
-----राम
दरश मिश्र
" कुछ कितना विलासप्रिय,
जीवन जी रहे हैं;
हम,
ईर्ष्या में भरे हुए,
दांत पीस रहे हैं
| "
-----नरेश चन्द्र
श्रीवास्तव
नवीन परिवर्तन,
युग परिवर्तन,
अपरिहार्य है
| यह युगसंधि
का सम
सामयिक परिवर्तन
है अतः
युग-परिवर्तन के
अँधेरे पक्ष
को समझते
हुए भी
अगीत कवि,
युग नवीनता
के लिए
उसे गले
लगाता है
......
"टूट रहा मन का विश्वास ,
संकोची हैं सारी
मन की रेखाएं|
रोक रहीं मुझको
गहरी बाधाएं
|
अंधकार और बढ़ रहा
,
उलट रहा सारा इतिहास
| "
-------- ड़ा रंग
नाथ मिश्र
'सत्य'
अनियंत्रित विकास हो या जीवन व्यापार अति सभी की बुरी है | अगीतों में इनकी हानियों व प्रभावों को खूब उजागर किया है | यांत्रिकता व सामयिक यथार्थ, पर्यावरण, प्रदूषण पर भी कलम चली है ----
"
रात भर काल सेंटर पर,
जागते हैं ,
भारत के युवक ;
दिन भर सोता है ,
भारत का भाग्य |
"
-------स्नेह प्रभा
" मैले कुचले, फटे बसनों में,
लौह की एक शलाका,
लिए हाथों में --
यहाँ वहाँ कूडे के ढेर में,
नंगे पग, दौड़-दौड़
ढूँढ रहे जिंदगी |
" ----- राम कृपाल 'ज्योति'
"
सभ्यता की अटारी पर ,
जब आधुनिक नारी चढी ;
तो उसे पसीना छूटने लगा,
वह अपना लिबास ,
फैंकने लगी | "
------ विनय शंकर दीक्षित
"
सावन सूखा बीत गया तो,
दोष बहारों को मत देना ;
तुमने सागर किया प्रदूषित | "
---- डा श्याम गुप्त
नारी-पुरुष व समाज का त्रिआयामी विमर्श अगीतकारों की एक अन्य विशेष भूमि है | सिर्फ फैशन, स्मार्टनेस , कपडे-गहने , सजाने-सजाने, पुरुषों की बराबरी या उन्हें अपमानित करने में नारी स्वाधीनता निहित नहीं है | नियम-निषेध तीनों के लिए आवश्यक हैं तभी समन्वय होता है एवं समन्वयात्मक समाज की स्थापना -----
"
पुरुष ने नारीको,
देकर केवल अपना नाम ;
छीन ली बदले में
उसकी हर सुबह ,
हर शाम |
"
-------मंजू सक्सेना 'विनोद'
"
अज्ञान तमिस्रा मिटाकर,
आर्थिक रूप से,
समृद्ध होगी, सुबुद्ध होगी ;
नारी ! तू तभी-
स्वतंत्र होगी,
प्रबुद्ध होगी |
"
----- सुषमा गुप्ता
"
नारी केन्द्र - बिंदु है भ्राता !
व्यष्टि,समष्टि,राष्ट्र की,जग की |
इसीलिये तो वह अबध्य है,
और सदा सम्माननीय भी |
लेकिन वह भी तो मानव है,
नियम-निषेध मानने होंगे | "
----- शूर्पणखा काव्य-उपन्यास से ( डा श्याम गुप्त )
"
कर रहे हो ह्त्या तुम,
कन्या के भ्रूण की |
कर रहे पाप छीन के जीवन ,
भविष्य की मां का तुम |
जन्म कौन देगा फिर ,
पैगम्बरों को,
अवतारों को |
"
------ अगीतिका में ( पं.जगत नारायण पाण्डेय )
प्रकृति वर्णन, हास्य-व्यंग्य, लास्य व सौंदर्य, प्रेम आदि भावों से भी अगीत कविता अछूती नहीं रही है -----
"
ओ बसंत ! फिर आना
सिहरन के साथ |
तेरे आने की
आहट मिल जाती है;
पाहुन से मिलने की,
इच्छा तडपाती है ;
ओ बसंत ! फिर आना ,
मनसिज के साथ | "
---- डा सत्य
"
चंचला ,
तेरी मधुर मुस्कान से
मेरा ह्रदय पिघल जाता है |
तुझे पाने के लिए
मैं अपना ,
सर्वस्व लुटा देता हूँ |
"
------ सुरेन्द्र कुमार वर्मा
"
नई वैज्ञानिक खोज
आधुनिक स्टोव;
तेल खर्च सीमित
समय बचाता है ;
सास नन्द सुरक्षित,
बहू जलाता है |
"
----- सुभाष हुडदंगी
"
तेरे संग हर ऋतु मस्तानी ,
हर बात लगे नई कहानी ;
रात दिवानी सुबह सुहानी| "
---डा श्याम गुप्त
संस्कृति, आस्था, मनोविज्ञान, धर्म, दर्शन एवं दर्शन के उच्चतम रूप वेदान्त में अवस्थित भारतीय आस्तिकता,.... मानवता, शोषण , साम्प्रदायिकता के भाव प्रस्तुत हैं------
"
गरीब के पसीने से,
अपना घर सजाया है;
किसी ने तख़्त,
किसी ने -
ताज बनाया है |
"
----- धन सिंह मेहता
"
मृत्यु देखकर
हम अमरत्व चाहते हैं;
और मृत्यु के बिना
अमरत्व अर्थ हीन होता है |
फिर अनेक यत्न करते हैं,
लेकिन अमरत्व अप्राप्य है,
मृत्यु एक सत्य है,
अमरत्व एक आशा | "
----- नरेश चन्द्र श्रीवास्तव
"
समस्त सौर प्रणालियाँ ,
समस्त कार्बनिक सिद्धांत,
समस्त प्राकृतिक संपदा
समस्त बुद्धिजीवी
समस्त दिव्य अग्नि,
आपसे पाकर
हम धन्य हुए,
अपनी कृपाओं से हमें कृतार्थ करें | "
---- धुरेन्द्र स्वरुप बिसारिया ( दिव्य अगीत से )
"
क्यों पश्चिम अपनाया जाए,
सूरज उगता है पूरब में;
पश्चिम में तो ढलना निश्चित | "
--- डा श्याम गुप्त
" काश कोई ऐसा धर्म होता,
जो प्रबचन के साथ-
रोटी भी देता;
ताकि मनुष्य धर्म से-
अधर्म की ओर न जाता |
"
----- पार्थो सेन
"
आस्था के द्वार से,
आस्था के द्वार तक;
यात्रा ही यात्रा है,
जीवन के पार तक | "
-----डा मिथिलेश दीक्षित,शिकोहा बाद
"
जिस दिन,
धर्म से मुक्त राजनीति होगी:
उसी दि साम्प्रदायवाद की
अवनति होगी |
"
--- जवाहर लाल 'मधुकर' चेन्नई
एतिहासिक सन्दर्भ, दृष्टांत, व्यंजनात्मक अन्योक्ति व अन्य दूरस्थ भाव भी अगीत कवियों ने खूब प्रयोग किये हैं -----
"
दुर्योधन !
ठगे रह गए थे तुम, देखकर--
'सारी बीच नारी है
या नारी बीच सारी है '
आज भी सफल नहीं होपाओगे;
साडी-हीन नारी देख,
ठगे रह जाओगे | "
----डा श्याम गुप्त ( श्याम स्मृति से )
"
अकेला मन,
कुछ तलाशता है ;
आस-पास कुछ समेटता है,
शायद इसी में मिल जाय-
खोई हुई खुशी;
पता नहीं क्यों नहीं की
उसने खुद्कुशी | "
---- विजय कुमारी मौर्या
अंत में शब्दमिति अर्थात संक्षिप्तता के साथ विभिन्न भावों पर नए नए विचार-भाव, नवीन सन्दर्भ व युवा-मन के भाव भी खूब प्रदर्शित हुए हैं ------
"
असत्य ने
सत्य के वक्ष पर,
तांडव किया;
औ चीख चीख कर कहा ,
देखो,
मैं विजित हुआ |
"
----डा योगेश गुप्त
"
चित्र खिंचा,
मैं हुई निस्तब्ध ;
कलपना यथार्थ का मिश्रण ,
खड़ी खड़ी मैं हुई निरुत्तर;
मैं तटस्थ होकर भी -
निरुत्तर |
"
----गीता आकांक्षा
"
पकड़ ली जब खाट
तब देखा कभी नहीं ,
मरने के बाद-
कह रहे,
अच्छा इंसान था | "
----- देवेश द्विवेदी ' देवेश"
"
यह अ.जा. का
यह अ.ज.जा. का
यह अन्य पिछडों का
यह सवर्णों का,
कहाँ है --
मेरा राष्ट्र, मेरा देश ? "
---- डा श्याम गुप्त
अतः निश्चय ही अगीत-विधा भाव-पक्ष-प्रधान एक सशक्त काव्य-विधा है | अगीत रचनाओं व कृतियों में सशक्त, समर्थ व संपन्न भाव-संपदा के सम्यक दर्शन होते हैं |