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Friday, 24 August 2018

डॉ शिखा कौशिक नूतन के अगीत ---- डा श्याम गुप्त

डॉ शिखा कौशिक नूतनके अगीत ----


1-नारी सशक्तिकरण
का ये कैसा दौर है,
करना था नंगा
पुरुष की दंभी सोच को
पर हो रही नंगी औरत
हर ओर है!!!

2-
पुरूष की अहम
पिपासा निराली है,
जो खींचते हैं हाथ
भरे दरबार
द्रौपदी के चीर,
घूंघटों में रखते
अपनी घरवाली हैं!!!

3 -
कृतज्ञता ज्ञापित
करने में नहीं चुकाना
पड़ता है पैसा
फिर भी कुछ घमंडी
नहीं हो पाते कृतज्ञ
किसी के भी प्रति,
निश्चित रूप में
वे हैं प्रभु की
निकृष्टतम कृति!

4-
आपकी एक मुस्कान
कर  देती है
दृष्टा का ह्रदय प्रफुल्ल,
और उसकी प्रफुल्लता
बन मिश्री
जीवन में जाती घुल!

5-
टुकड़े टुकड़े
कर दिये
लड़की के जिस़्म के,
प्रेम की हैवानियत
या
हैवान का ये प्रेम?

6
मर्द की मर्दानगी
को है नहीं बर्दाश्त
वो प्रेम निवेदन करे
और औरत करे इंकार,
इस बेइज्जती ने
दिल में ऐसी लगाई आग
झुलसा दिया औरत को
फेंक कर तेजाब.

7-
आज के हर मर्द को
एक पीड़ा सालती,
कठपुतलियां
नहीं क्यों  इशारों पे
नाचती?

8-
मैडम के मातहत है
दफ्तर के जितने मर्द,
इस  राय को मिला है
एकमत से बहुमत
मैडम का चरितर
जाने खुदा जाने,
वैसे वे रवैया
रखती हैं बहुत सख्त! 

Tuesday, 10 April 2018

अगीत त्रयी-----भाग दो------अगीत त्रयी का कथ्य --आगे --- डा.श्याम गुप्त...

------अगीत त्रयी-----भाग दो---आगे ---
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अगीत त्रयी का कथ्य
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आज कविता की अगीत-विधा का संसार व्यापक हो चुका है तथा विश्व भर में फैले कवियों, अगीत रचनाओं, अगीत-काव्य व साहित्य के प्रति आलेखों, समीक्षाओं, काव्य-कृतियों, खंड-काव्यों, महाकाव्यों, पत्र-पत्रिकाओं एवं विविध आयोजनों के माध्यम से केवल भारत में ही नहीं अपितु अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर स्थापित होकर दैदीप्यमान हो रहा है |
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बेंगलोर के तमिल-अंग्रेज़ी कवि डा नेव्युला बी राजन का अंग्रेज़ी ब्लेंक-वर्स में एक त्रिपदा-अगीत देखें ....
The world as it stands today
Is because of the dreamers
Their dreams never die. -----Dreams never die.
…..जिसका हिन्दी अनुवाद इस प्रकार है---- अगीत-त्रयी का कथ्य ..
आज जो यह दुनिया जैसी दिखती है,
सपने देखने वालों के कारण है;
जिनके सपने कभी नहीं मरते |....( अनुवाद –डा श्याम गुप्त )
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अगीत-विधा की इस व्यापकता की उद्देश्य यात्रा में उसके स्तम्भ रूप तीन साहित्यकार, रचनाकार व कृतिकार हैं जो इस विधा के संस्थापक, गति प्रदायक एवं उन्नायक रहे हैं | १९६६ई में अगीत-विधा के संस्थापक डा रंगनाथ मिश्र ‘सत्य’, अगीत-विधा में सर्वप्रथम खंडकाव्य एवं महाकाव्य रचकर उसे गति देने वाले स्व.श्री जगत नारायण पाण्डे एवं अगीत-विधा में प्रथमबार सृष्टि-रचना जैसे गूढ़तम दार्शनिक, वैज्ञानिक विषय पर हिन्दी में प्रथम महाकाव्य ‘सृष्टि-ईषत इच्छा या बिगबेंग-एक अनुत्तरित उत्तर‘ के रचयिता, अगीत-विधा के विविध छंदों के सृजक एवं अगीत-काव्य का सर्वप्रथम छंद-विधान ‘अगीत साहित्य दर्पण’ जैसी कृति रचकर विधा के उन्नायक डा श्याम गुप्त |
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अगीत-त्रयी के ये कवि समाज के भिन्न भिन्न क्षेत्रों व व्यवसाय एवं विचार-धारा से हैं एवं मूल में साहित्य के बाहर के क्षेत्र होते हुए भी साहित्य की शास्त्रीय छंदीय-विधा, तुकांत काव्य-विधा, गीति-विधा एवं कथा-समीक्षा-लेख आदि गद्य-काव्य में भी सफलतापूर्वक रचनारत हैं | वे पर्याप्त अनुभवी हैं, समाज में गहन रूचि रखते हुए प्रतीत होते हैं जिसके कारण वे साहित्यिक क्षेत्र में अवतरित हुए | वे अगीत के क्षेत्र में उस विधा की काव्य-जिजीविषा, काव्य-विकास एवं समकालीन काव्य की प्रगति की संभावना दृष्टिगत होने के कारण पदार्पित हुए |
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अगीत-त्रयी- ‘अगीत साहित्य दर्पण’ की भांति एक ऐतिहासिक दस्तावेज तो है ही, साठोत्तरी दशक की काव्य-प्रगति को समझने के लिए भी यह अनिवार्य है। इस सदी के साठोत्तरी काल का कवि अपने समय से अग्रगामी काव्य-तत्व लिए हुए नवीन काव्य विधा ..अगीत...से किस ढंग से प्रभावित हुआ और आज वह विधा व कवि का कविता तत्व से सम्बन्ध किस प्रकार विभिन्न रूप भंगिमाएँ ग्रहण करता कहाँ पहुँचा है, यह इसके यथार्थबोध की कृति है | कहना असंगत न होगा कि बीसवीं सदी के साठोत्तरी दशक एवं समकालीन काव्य-इतिहास में ‘अगीत काव्य-विधा’ ने जो स्थान पाया और जिस अर्थ और भाव में उसका प्रभाव परवर्ती काव्य-विकास में व्याप्त है एवं व्याप्त होता जा रहा है उसके व्यक्त-अव्यक्त प्रभाव को प्रस्तुत प्रकाशन रेखांकित करता है |
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कम ही होती हैं काव्य-कृतियाँ जो स्वयं इतिहास का एक अंग बन जाएँ और आगे के लिए दिशा-दृष्टि दे सकें| कहा जा सकता है कि प्रस्तुत काव्य-संकलन, हिन्दी काव्य का दिशाबोधक है और आज के सन्दर्भ में आधुनिक हिन्दी काव्य के इतिहास में अगीत कविता विधा के छंद-विधान “अगीत साहित्य दर्पण” की भांति एक और मील का पत्थर है, एक और प्रगतिशील आलोक शिखा समान है |
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प्रस्तुत कृति “अगीत-त्रयी” अगीत के इन तीन स्तंभों के परिचय, साहित्य सेवा एवं उनके ३०-३० श्रेष्ठ अगीतों के संकलन के साथ हिन्दी काव्य जगत में प्रस्तुत की जा रही है, इस दृष्टि व आत्मविश्वास के साथ कि यह कृति अगीत-विधा को नए नए आयाम प्रदान करने के साथ नए नए कवियों, साहित्यकारों को अगीतों की रचना हेतु प्रोत्साहित करेगी एवं अगीत कविता विधा और समृद्धि शिखर की और अग्रसर होती रहेगी |
-- डा श्याम गुप्त

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मंगलाचरण
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माँ वाग्देवी !
आपकी कृपा-वीणा की झंकार से उद्भूत
गगनांगन में ध्वनित-तरंगायित होती हुई
नए भोर की उषा सरीखे स्वर्णिम रंगों को बिखराती
काव्य-निशान्धकार को भेद, वक्त के सांचे को बदलने
यह काव्य विधा ‘अगीत’-
नीलगगन से उतरी -धीरे धीरे धीरे |
माँ वरदायिनी! आशिष मिले- श्याम को,
यह नव-स्वर, नवलय, नवल-भाव, नवोल्लास युत काव्यधारा,
विहरित रहे धरा पर |
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पुस्तक का ..पश्च -पृष्ठ -का वक्तव्य ----
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कम ही होती हैं काव्य-कृतियाँ जो स्वयं इतिहास का एक अंग बन जाएँ और आगे के लिए दिशा-दृष्टि दे सकें | कहा जा सकता है कि इस अगीत–त्रयी के जो तीन कवि हैं वे और उनकी अगीत काव्य-कृतियाँ हिन्दी काव्य के दिशाबोधक हैं, और प्रस्तुत काव्य-संकलन आज के सन्दर्भ में आधुनिक हिन्दी काव्य के इतिहास में अगीत कविता विधा के प्रामाणिक शास्त्रीय ग्रन्थ छंद-विधान “अगीत साहित्य दर्पण” की भांति एक और मील का पत्थर है, एक और प्रगतिशील आलोक शिखा समान है |
अगीत-त्रयी- ‘अगीत साहित्य दर्पण’ की भांति एक ऐतिहासिक दस्तावेज तो है ही, साठोत्तरी दशक की काव्य-प्रगति को समझने के लिए भी यह अनिवार्य है। इस सदी के साठोत्तरी काल का कवि अपने समय से अग्रगामी काव्य-तत्व लिए हुए नवीन काव्य विधा ..अगीत...से किस ढंग से प्रभावित हुआ और आज वह विधा व कवि का कविता तत्व से सम्बन्ध किस प्रकार विभिन्न रूप भंगिमाएँ ग्रहण करता कहाँ पहुँचा है, यह इसके यथार्थबोध की कृति है | कहना असंगत न होगा कि बीसवीं सदी के साठोत्तरी दशक एवं समकालीन काव्य-इतिहास में ‘अगीत काव्य-विधा’ ने जो स्थान पाया और जिस अर्थ और भाव में उसका प्रभाव परवर्ती काव्य-विकास में व्याप्त है एवं व्याप्त होता जा रहा है उसके व्यक्त-अव्यक्त प्रभाव को प्रस्तुत प्रकाशन रेखांकित करता है | जो प्रत्येक संग्रहालय के लिए आवश्यक, प्रत्येक समकालीन हिन्दी काव्य के अध्येता एवं जिज्ञासु के लिए अनिवार्य भी |
--- प्रकाशक
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क्रमश --भाग तीन---. डा रंगनाथ मिश्र ’सत्य’ – वक्तव्य, परिचय व अगीत रचनाएँ ..

Monday, 9 April 2018

अगीत - त्रयी...----अगीत कविता विधा के तीन स्तम्भ कवियों के परिचय साहित्यिक परिचय एवं रचनाओं का परिचय --- डा श्याम गुप्त

अगीत - त्रयी...----अगीत कविता विधा के तीन स्तम्भ कवियों के परिचय साहित्यिक परिचय एवं रचनाओं का परिचय ---
अगीत कवि कुलगुरु डा रंगनाथ मिश्र सत्य
महाकवि श्री जगत नारायण पांडे
महाकवि डा श्याम गुप्त-
                                       ------- भाग -एक ----- |

***अनुक्रमणिका ***
१..सम्पादकीय – डा रंगनाथ मिश्र ‘सत्य’ संस्थापक अगीत विधा
२.अगीत-त्रयी का कथ्य –डा श्याम गुप्त
३.समर्पण व आभार
.४. डा रंगनाथ मिश्र ’सत्य’ – वक्तव्य, परिचय व अगीत रचनाएँ ..
५.श्री जगत नारायण पांडे -..........” .......................
६.डा श्याम गुप्त ............”.....................
*** समर्पण व आभार ***

                           अगीत की प्रतिष्ठा व प्रगति हेतु साहित्य सेवा में संलग्न सभी पूर्व, वर्त्तमान व भविष्य के कवियों, रचनाकारों, प्रेरक, उन्नायक, सहयोगी, प्रशंसक, सहिष्णु व तटस्थ साहित्यकारों, समीक्षकों व प्रबुद्ध पाठकों को एवं हिन्दी भाषा तथा साहित्य की उन्नति व प्रगति के प्रबल आकांक्षी विद्वानों, समीक्षकों, आलोचकों, प्रतिद्वंदी, साहित्यकारों को जो अगीत-विधा की स्थापना, प्रगति, उन्नयन व वर्तमान परिदृश्य तक के लम्बे काल में अपनी खट्टी, मीठी, तिक्त, सापेक्ष, निरपेक्ष उक्तियों, कथनों, वचनों, संवादों, आलेखों व टिप्पणियों रूपी सुप्रेरणा द्वारा अगीत कविता-विधा की उत्तरोत्तर प्रगति में सहायक रहे |
                                                                                                            ---- लेखक
***सम्पादकीय ***
                                 पिछले लगभग पांच दशकों में साहित्यकार इस बात को निश्चित नहीं कर सके कि कविता को कौन सी सही दिशा दी जाय | परिणाम स्वरुप जिन जिन प्रणालियों में कविता की गयी उसमें अस्वस्थता और सर्वसाधारण की दुर्बोधता झलकती रही | अतः सरल व सर्वग्राही कविता के लिए 'अगीत' की उत्पत्ति हुई जिसने इस परिस्थिति में एक विशिष्ट दिशाबोध प्रस्तुत किया और साहित्य-जगत के लिए यह अनिवार्य होगया कि ‘अगीत’ को स्वीकार किया जाय|
                           इस काल में भारत को कई युद्ध करने पड़े | पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव भी युवक-युवतियों पर पडा|
--------हम यह भली प्रकार से जानते हैं कि काव्य का सृजन युगीन परिस्थितियों के अनुसार होता है| इस आधार पर अगीत काव्य-धारा का प्रभाव किस प्रकार सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं राजनैतिक क्षेत्रों पर पडा, इसे विवेचित करने का प्रयास प्रस्तुत कृति ‘अगीत-त्रयी’ में संकलित रचनाओं के आधार पर करने का प्रयास किया गया है | अगीत-काव्य की प्रारम्भिक अवस्था में कविता व कवियों में निम्नलिखित बिंदु देखने को मिले —- १.निराशा, कुंठा और घुटन की भावना ...२.आस्था और अनास्था के स्वर ...३.घोर वैयक्तिक्तता ....४.विद्रोह के स्वर....५.समष्टि कल्याण की प्रवृत्ति...६. सौंदर्यबोध ...७. राजनैतिक प्रभाव | अतः अगीत की अभिव्यक्ति के लिए निम्नलिखित स्थायित्व आवश्यक हैं – (१) द्रव्य (matter) .(२) आवेष्ठन (Environment ) |
--------------अगीत विधा पर लखनऊ वि.विद्यालय में एम् ऐ (प्रथम वर्ष )तथा कानपुर वि.विद्यालय में एम् ऐ (द्वितीय वर्ष) में प्रश्न पूछे गए| अगीत-विधा के रचनाकारों की आकाशवाणी व दूरदर्शन से रचनाएँ व वार्ताएं प्रसारित होती हैं| भारत की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं तथा हिन्दी के इतिहास व शोध ग्रंथों के माध्यम से इस विधा का युद्ध स्तर पर प्रचार व प्रसार हो रहा है |
----------------अगीत-विधा के बारे में विभिन्न विद्वानों ने अपनी कृतियों, आलेखों, निबंधों, शोधों व इतिहास ग्रंथों में पर्याप्त उल्लेख किया है यथा- १-समकालीन कविता और अगीत-जंग बहादुर सक्सेना...२- अगीत--उद्भव, विकास व संभावनाएं -गिरिजा शंकर पांडे 'अंकुर'...३-हिन्दी साहित्य का इतिहास व द्वितीय महायुद्धोत्तर हिन्दी साहित्य का चित्रण--डा लक्ष्मी शंकर वार्ष्णेय...४-नया साहित्य नए रूप--डा सूर्य प्रसाद दीक्षित..५-साहित्य की विभिन्न प्रवृत्तियां--डा जय किशन दीक्षित..६-छायावादोत्तर प्रगीत-काव्य--डा विनोद गोधरे...७-हिन्दी साहित्य का विवेचनात्मक इतिहास --डा राजनाथ शर्मा, आगरा..८-समकालीन कविता-विविध परिदृश्य--डा हर दयाल..९-अकविता और कला सौंदर्य--डा श्याम परमार–भोपाल..१०-अमेरिकी प्रवासी=भारतीय:हिन्दी प्रतिभाएं--डा उषा गुप्ता..११-टूटी-फूटी कड़ियाँ–निबंध संग्रह -डा हरिबंशराय 'बच्चन'..१२-हिन्दी साहित्य का सुबोध इतिहास--बाबू गुलाब राय(परिवर्धित संस्करण सन २०००ई) १३.हिन्दी साहित्य का वस्तुपरक इतिहास (डा राम प्रसाद मिश्र )..१४.अकविता और कला सन्दर्भ (डा श्याम परमार) आदि ने अपने अपने ग्रंथों में अगीत का उल्लेख किया है|
--------इसके अतिरिक्त-डा वेरस्की, वारसा विश्वविद्यालय, पोलेंड के आलेख में अगीत का उल्लेख है -डा वोलीशेव--रूसी-हिन्दी विद्वान, मास्को द्वारा 'प्रावदा 'में प्रकाशित आलेख- "भारत की किस्म किस्म की कविता " में अगीत का उल्लेख है --जिसका हिन्दी दिनमान में अनुवाद हेमचंद पांडे ने किया |."हिन्दी साहित्य सेवी संस्था :अगीतपरिषद का अनुशीलन" -लाल बहादुर वर्मा द्वारा किया गया अगीत पर शोध प्रबंध उल्लेखनीय है|
---------------अगीत, गीत सा नहीं ..के सन्दर्भ में न लिया जाय, वह गीत ही है, गीत की एक अतुकांत धारा | अगीत के रचनाकार किसी वाद का सहारा नहीं लेते किन्तु जब कोइ आन्दोलन बहुत काल तक चलता है तो वह वाद का सहारा ले लेता है| आज लगभग पचास वर्षों बाद अगीत को ‘अगीतावाद’ के नाम से पुकार सकते हैं|
-----------------अगीतरचनाकार केवल कल्पनाजीवी न होकर स्वजीवी है | अगीत में सत्य को स्वीकार किया गया है| इसमें लय, गति के साथ साथ सौन्दर्यबोध को भी बढ़ावा दिया गया है |
सं १९६६ ई में मैंने अपने कुछ सहयोगियों के साथ इस विधा की शुरूआत की| अगीत त्रैमासिक पत्रिका का सम्पादन प्रारम्भ किया| अखिल भारतीय अगीत परिषद्, लखनऊ के नाम से साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था का पंजीकरण कराया गया | यह संस्था हिन्दी और हिन्दी साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए अखिल भारतीय स्तर पर बड़े बड़े साहित्यिक कार्यक्रम कराती चली आरही है | एक मार्च को मेरे (डा सत्य के ) जन्म दिन पर पर संस्था प्रतिवर्ष साहित्यकार सम्मलेन आयोजित करती है जिसे साहित्यकार-दिवस के रूप में मनाया जाता है जिसमें सम्पूर्ण देश के साहित्यकार भाग लेते हैं| | इस आयोजन मे दिवंगत साहित्यकारों की पावन स्मृति में रचनाकारों को सम्मानित किया जाता है |
------------अगीत विधा में अब तक जो प्रकाशन हुए हैं वे हैं--समकालीन कविता और अगीत, अगीतिका (प.जगतनारायण पाण्डेय ) अगीतश्री(सोहनलाल सुबुद्ध) अगीत काव्य के चौदह रत्न (डा रंगनाथ मिश्र सत्य), काव्यमुक्तामृत ( डा श्यामगुप्त), अगीतोत्सव ( डा सत्य ), मेरे सौ अगीत ( अनिल किशोर निडर ), महकते फूल अगीत के (मंजू सक्सेना विनोद), अगीत-महल (सुदर्शन कमलेश), अगीतमाला के चौदह रत्न, आँचल के अगीत (काशी नरेश श्रीवास्तव), झांकते अगीत (श्रीकृष्ण तिवारी ), मेरे अगीत छंद (सुरेन्द्र कुमार वर्मा), अगीत काव्य के इक्कीस स्तंभ, अष्टादश पथी व सोलह महारथी ( सभी सम्पादन- डा सत्य ), कवि सोहनलाल सुबुद्ध का परिचय ( डा सत्य), चाँद को चूमते अगीत(वीरेंद्र निझावन), गूंजते अगीत (अमरनाथ बाजपई ), अगीतान्कुर व अगीत सौरभ (गिरिजा शंकर पांडे ), विश्वास की ह्त्या (रामकृष्ण दीक्षित फक्कड ), अनकहे अगीत (वीरेंद्र निझावन), अगीत सुमन (प्रेमचंद गुप्त विशाल ), अगीत प्रसून ( राजीव सरन ), मेरे प्रिय अगीत ( गिरिजा देवी निर्लिप्त ), मेरे सौ अगीत, उन्मुक्त अगीत (नित्यानंद तिवारी ),अगीत-आँजुरी (नारायण प्रकाश नज़र ), औरत एक नहीं (वाहिदअली वाहिद), अगीतमाला, व्यंग्य अगीत, दिव्य-अगीत आदि....के साथ ही मोह और पश्चाताप, सौमित्र गुणाकर, सृष्टि, शूर्पणखा, बुद्धकथा आदि महाकाव्य व खंडकाव्य लिखे गए हैं | साथ ही- मैं भी गांधी हूँ (सूर्य नारायण मिश्र), अवंतिका (रामचंद्र शुक्ल), अगीतप्रवाह( तेज नारायण राही), नैतिकता पूछती है (सोहनलाल सुबुद्ध ), मन दर्पण (मंजू लता तिवारी), मैं भी शिव हूँ (कौशलेन्द्र पांडे), विद्रोही गीत (भगवान स्वरुप कटियार), काव्य-प्रभा (त्रिभुवन सिंह चौहान), काव्य-वाटिका ( तेज नारायण राही), तुम्हारी याद में (जय प्रकाश शर्मा), कोरिया है सपनों का देश ( डा नीरज कुमार), गुनहगार हूँ मैं (जावेद अली), प्रवासी अमेरिकी भारतीय (डा उषा गुप्ता-अमेरिका ) एवं वर्तिका ( डा योगेश गुप्त)...आदि संग्रहों में भी अगीत प्रकाशित हुए हैं|
---------------अगीतवाद में इतना कार्य होने के पश्चात मैंने यह यह अनुभव किया कि अगीत विधा के तीन प्रमुख रचनाकारों का एक ‘अगीत काव्य संकलन.’सम्पादन किया जाय | इसमें मेरे, महाकवि प.जगतनारायण पांडे एवं महाकवि डा श्यामगुप्त के जीवन-परिचय, साहित्य-यात्रा के साथ तीस-तीस अगीत रचनाओं के संकलन का सम्पादन करके एक कृति ‘अगीत-त्रयी’ नाम से प्रकाशित कराई जाय ताकि भारत व विदेशी विश्व-विद्यालयों में जहां हिन्दी पढाई जाती है, अगीत की विस्तृत जानकारी हेतु इसे सहायक पुस्तक के रूप में लगाया जा सके | मुझे आशा है कि हिन्दी के भारतीय व विदेशी विद्वानों द्वारा इस अगीत-त्रयी कृति का उचित मूल्यांकन किया जायगा | कृति कैसी बन पडी है इसके लिए सुधी पाठकों एवं विद्वानों के विचारों की प्रतीक्षा रहेगी |
संपर्क – डा रंगनाथ मिश्र “सत्य’ डीलिट्
अगीतायन, ई-३८८५, राजाजीपुरम, लखनऊ संस्थापक अध्यक्ष
दू भा. ०५२२-२४१४८१७ ..मो.९३३५ ९९०४३५ अ.भा. अगीत परिषद्, लखनऊ-१७
दि.१-३-२०१६ साहित्यकार दिवस

-----क्रमश ----अगीत त्रयी---भाग दो...अगली पोस्ट में ...

Wednesday, 10 January 2018

अगीत की शिक्षा शाला ---कार्यशाला --३५---लखनऊ विश्वविद्यालय के शोधप्रबंध में अगीत का उल्लेख ----डा श्याम गुप्त



              अगीत की शिक्षा शाला ---कार्यशाला --३५...

   ----लखनऊ विश्वविद्यालय के शोधप्रबंध में अगीत का उल्लेख ----

१. - पृष्ठ १८—     “ड़ा श्याम गुप्त ने कई नवीन छंदों की सृष्टि भी की है | उदाहरणार्थ गीति-विधा के ‘पंचक सवैया’ एवं ‘श्याम सवैया छंद’ आदि तथा अगीत-विधा के ‘लयबद्ध-अगीत’, ‘षटपदी-अगीत’ , ‘त्रिपदा-अगीत’, ‘नव-अगीत छंद’ व ‘त्रिपदा अगीत ग़ज़ल’ आदि भी लिखे हैं | अगीत पर पृथक शोध की आवश्यकता है |  
२. - पृष्ठ -४०..”.प्रेम अगीत में ड़ा श्यामगुप्त ने अगीत-विधा में अपने स्वयं सृजित नवीन छंद ‘लयबद्ध अगीत‘ में प्रेम के विविध भावों को सरस गीतिमयता द्वारा अभिव्यक्त किया है |”

३.---- शोध प्रबंध में अगीत महाकाव्य ‘सृष्टि –ईशत इच्छा या बिगबेंग-एक अनुत्तारित उत्तर‘ एवं अगीत खंडकाव्य ‘शूर्पणखा’ की विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत  की गयी है | 

पृष्ठ-१८ पर अगीत छंदों का वर्णन एवं  ४६ पर अगीत का उदहारण व पृष्ठ ८५ पर अगीत कृतियों  का विवरण ---
:





सन्दर्भ –लखनऊ विश्वविद्यालय,लखनऊ..शोध प्रबंध,  डा. श्याम गुप्त का व्यक्तित्व एवं कृतित्व: एक अध्ययन-2015 ई. ..शोधार्थी-अर्चना कुमारी एम् ऐ हिन्दी, निर्देशक –प्रोफ. पवन अग्रवाल एम् ऐ ,पीएचडी(हिन्दी) हिन्दी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग |

Saturday, 29 July 2017

अगीत की शिक्षा शाला ---कार्यशाला ३४-----अगीत का भाव पक्ष --- डा श्याम गुप्त...

                         अगीत की शिक्षा शाला ---कार्यशाला ३४-----अगीत का भाव पक्ष ----
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अगीत की भाव-संपदा
 \\
           तत्कालीन कविता में संक्षिप्तता के साथ सहज भाव-सम्प्रेषण, सम-सामयिक समस्याओं से जूझने के साथ ही समस्या-समाधान का अभाव, कथ्य, प्रदर्शन की दिशा-ज्ञान का न होना, विधा की अस्वस्थता व सर्व-साधारण के लिए दुर्बोधता के कारण सर्वग्राही कविता के हित 'अगीत' का प्रादुर्भाव हुआ | भाव-संपदा अगीत का प्राण है | अगीत रचनाकार नए-नए भाव, विषय, समाजोपेक्षी संस्कार, नवीनता, युगबोध, विचार-क्रान्ति व आस्थामूलक भावों पर रचना करता है | भाषा की नई सम्वेदना व  संवेग, कथ्य की विविधता व अनूठा प्रयोग, परिमाप की पोषकता, विश्वधर्मी प्रयोगों के साथ सहज एवं सर्वग्राही भाव-सम्प्रेषणीयता अगीत का गुण धर्म है | कम से कम शब्दों पंक्तियों में  पूरी बात कहने का श्रेय अगीत रचनाओं को ही है |   युग की हर संभावना का समावेश, विषय व कथ्य वैविध्यता अगीत की अपनी अभिज्ञानता  का प्रतीक है |  अतः अगीत प्रमुखतः अर्थ भाव प्रधान काव्य संपदा विधा है | अगीत शब्दमिति "   अर्थात तुलसी  की भाषा में... अमित अरथ  आखर अति थोरे"    की भाव-भूमि पर आविर्भूत हुआ है |
 
         कथ्य भाषा की संवेदना, अनूठा प्रयोग बिम्बधर्मी- संक्षिप्तता में एक प्रयोग प्रस्तुत है--

" बूँद बूँद बीज ये कपास के,
खिल-खिल कर पड रही दरार;
सडी-गली मछली के संग,
ढूँढ रहा विस्मय विस्तार,
डूब गए कपटी विश्वास के | "                      ---- ड़ा रंग नाथ मिश्र 'सत्य'

                  
अगीत के एक प्रमुख कवि अगीत पर विभिन्न साहित्यिक लेखों के  लेखक श्री सोहन लाल सुबुद्ध के अनुसार ..." अगीत जमीन से जुडी वह कविता है जिसमें लय गति हो, समाजोपयोगी स्वस्थ विचार सम्यक दृष्टिबोध समाहित हो |" ( प्रतियोगिता दर्पण --उद्बोधन से )अगीतकार पाश्चात्य प्रभाव के अन्धानुकरण में वर्ग संघर्ष की बजाय कर्तव्य के प्रति आष्टा, यथार्थ कर्तव्य-बोध , अपने भारतीय समाज , भारतीय भाव-भूमि पर आधारित शास्त्रीयता, राष्ट्रीयता,भाषाई एकता, दृष्टिबोध को अधिक महत्त्व देता है | शास्त्रीयता के साथ साथ नवोन्मेष, पुरा-नव समन्वयता, वर्ग भेद समाप्ति के लिए विचार मंथन अगीत की एक महत्वपूर्ण भाव-भूमि विषय है |
                    
एक साक्षात्कार में ड़ा सत्य ने कहा था --" अगीत विधा में भाव को प्रधानता दी जाती है | यदि गीत नियमों की बंदिश से मुक्त कोई तुकांत या अतुकांत रचना , चार से दश पंक्तियों में अपने भाव, लय,गति व्यक्त करने में सक्षम है तो वह अगीत है | " अगीत कविता के विभिन्न भावों, विषयों पर संक्षिप्त सोदाहरण वर्णन से अगीत विधा की भाव-संपदा उसके भाव-पक्ष को स्पष्ट किया जा सकता है |
 
                         सामाजिक सरोकार अगीत कविता का मुख्य भाव है .......
"
सामजिक सरोकारों को ,
अपने में समाये ;
नव-प्रभात लाने,
नव-अगीत आये | "                           ------ड़ा श्याम गुप्त

"
मां बीमार है,
रकम उसके नाम से
खाते से निकाल कर
स्वघोषित सुपुत्र,
खा रहे बाँट कर | "                         ----- पं. जगत नारायण पांडे

                          
सामाजिक बदलाव की  पहल के लिए एक उद्बोधन देखें --
"
मेरी एक सलाह है,
अबकी बार चुनाव में,
उनको वोट देकर जीतने का मौक़ा दीजिए ,
जो चरित्रवान हैं ;
ताकि एक बार वे भी,
सत्ता की कुर्सी पर बैठ सकें ,
शासन करने | "                                    -----जबाहर लाल 'मधुकर' चेन्नई ( राजनीति के रंग से )

                           
वर्ग संघर्ष की अपेक्षा ...वर्ग-न्याय, मानवता आधारित सामाजिक सरोकार प्रमुख भाव होना चाहिए.....
"
दलितों के प्रति मत करो अन्याय ,
उन्हें भी दो समानता से-
जीने का अधिकार , अन्यथा-
भावी पीढ़ी धिक्कारेगी, और-
लेगी प्रतिकार ;अतः --
समाज के ठेकेदारो !
उंच-नीच की खाई पाटो ,
दो शोषितों को ही न्याय | "                                         ----- ड़ा सत्य

ठहरी हुई भीड़ में दौडना ,
दौडती हुई भीड़ में रोकना ,
क्या अर्थ रखता है ?
स्वतन्त्रता के लाभ में,
सबका समान हिस्सा है | "                                         -----तेज नारायण राही

                            
समाजवाद के विकृत रूप तथाकथित विकासमानता पर व्यंग्य भाव भी हैं--
"
सुनते सुनते बूढ़ी होगई ,
झिनकू की औलाद ;
परन्तु,
अभी तक नहीं आया,
समाजवाद | "                                                     ------वीरेंद्र निझावन

"
विकसित विकासशील देशों में ,
सबसे  बड़ा अंतर ,
एक में मानवता अवशेष ,
दूसरे में छूमंतर | "               ----- धन सिंह मेहता 'अनजान'( प्रवासी भारतीय, अमेरिका )

                             
युग परिवर्तन अगीत का प्रिय भाव अगीतकार का मुख्य ध्येय है ----
"
खोल दो घूंघट के पट,
हटा दो ह्रदय-पट से,
आवरण;
मिटे तमिस्रा,
हो नव-विहान | "                             -----सुषमा गुप्ता

"
घर घर में खुशहाली लाएं ,
जीवन साकार करें ;
नवयुग  निर्माण करें ,
सबको,
निज  गले लगाएं | "                        ----डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य'

                          
पश्चिम की  भांति रक्ताभ-क्रान्ति नहीं , अमानवीयता  नहीं वरन मानवता के साथ युग क्रान्ति , वर्ग न्याय के साथ सहज क्रान्ति हो -----
"
आओ चलें ,
मानवता को साथ लें,
किसी  का भला करें ;
लोग जलें, जला करें ,
इस कृतघ्न समाज में ,
अपनी जगह बनायें-
क्रान्ति लाएं चारों ओर | "                      ------विजय कुमारी मौर्य ( सिसकता विजय पथ )

"
मिटा सके भूखे की हसरत,
 
दो रोटी भी उपलब्ध नहीं ;
क्या करोगे ढूँढ कर अमृत | "                  ------ त्रिपदा अगीत ( ड़ा श्याम गुप्त )

                        
संस्कार क्रान्ति के परिपेक्ष्य में विचार-क्रान्ति का अनुपम दूरगामी भाव अगेत में खूब उपलब्ध है ----
"
जग की इस अशांति-क्रंदन का,
लालच  लोभ  मोह-बंधन का |
भ्रष्ट  पतित सत्ता गठबंधन,
यह सब क्यों, इस यक्ष -प्रश्न का |
 
एक यही  उत्तर सीधा सा ;
भूल  गया नर आप स्वयं को || "            ------सृष्टि महाकाव्य से ( ड़ा श्याम गुप्त )

"
अपनी ही विकृतियों की 
अंधी सुरंग में ,
भटक रहे हम;
भविष्य को क्या देंगे | "          -----अगीतिका से  ( पं. जगत नारायण पांडे )

                         
विश्व  शान्ति, राष्ट्रवाद, देश-प्रेम, हिन्दी भाषा, स्वभाषा-प्रेम ---अगीतकार के  अन्य महत्वपूर्ण भाव हैंहिन्दी पूर्ण राष्ट्र -भाषा  बने भारतीय जन मानस  की यह इच्छा अगीतकार की जन-अभिलाषा है | वैज्ञानिक प्रगति भी अगीत कवि को खूब भाती है | इसके साथ ही राजनीति, न्याय व्यवस्था, प्रजातंत्र, सामाजिक विकृतियों पर भी अगीताकार कवि ने खूब कलम चलाई है ----यथा....

" अंग्रेज़ी आया ने,
हिन्दी मां को घर से निकाला;
देकर, फास्ट-फ़ूड ,पिज्जा, बर्गर -
क्रिकेट, केम्पा-कोला, कम्प्यूटरीकरण ,
उदारीकरण, वैश्वीकरण 
का  हवाला | "                                                  ------ड़ा श्याम गुप्त

"
सबने देखा ,
पिटते चिल्लाते,
कोई बोला, सब खामोश:
प्रत्यक्ष दर्शी के अभाव में,
छूटा मुकदमा ,
वाहरी न्याय व्यवस्था | "                                     -----रवीन्द्र कुमार 'राजेश'

"
आया न्योता,
कर आये परमाणु समझौता:
लिए  हाथ में,
कठौता | "                                                         ----- नन्द कुमार मनोचा

"
आओ हम अंधकार दूर करें ,
रात और दिन खुशी-खुशी बीते;
सारा संसार शान्ति पाए ,
अपना यह राष्ट्र प्रगतिगामी हो ;
वैज्ञानिक उन्नति से ,
इसको भरपूर बनाएँ | "                                      -----डा सत्य

"
रात्रि  गयी, दिन आया,
जगह  दी परस्पर को,
मान  दिया समय को,
क्या यही प्रवृत्ति,
प्रजातंत्र है ?"                                                   -----राम दरश मिश्र


" कुछ कितना विलासप्रिय,
जीवन जी रहे हैं;
हम,
ईर्ष्या में भरे हुए,
दांत पीस रहे हैं | "                                         -----नरेश चन्द्र श्रीवास्तव

               
नवीन परिवर्तन, युग परिवर्तन, अपरिहार्य हैयह युगसंधि का सम सामयिक परिवर्तन है अतः युग-परिवर्तन के अँधेरे पक्ष को समझते हुए भी अगीत कवि, युग नवीनता के लिए उसे गले लगाता है ......

"
टूट रहा मन का विश्वास ,
संकोची   हैं सारी 
मन की रेखाएं|
रोक  रहीं मुझको
गहरी बाधाएं |
अंधकार और बढ़ रहा ,
उलट रहा सारा इतिहास | "                            -------- ड़ा रंग नाथ मिश्र 'सत्य'


             

             
अनियंत्रित विकास हो या जीवन व्यापार अति सभी की बुरी है | अगीतों  में इनकी  हानियों  प्रभावों को खूब उजागर किया है | यांत्रिकता सामयिक यथार्थ, पर्यावरण, प्रदूषण पर भी कलम चली है ----

"
रात भर काल सेंटर पर,
जागते  हैं ,
भारत के युवक ;
दिन भर सोता है ,
भारत का भाग्य | "                                          -------स्नेह प्रभा

"
मैले कुचले, फटे बसनों में,
लौह की एक शलाका,
लिए हाथों में --
यहाँ वहाँ कूडे  के ढेर में,
नंगे पग, दौड़-दौड़ 
ढूँढ  रहे जिंदगी | "                                             ----- राम कृपाल 'ज्योति'

सभ्यता की अटारी पर ,
जब आधुनिक नारी चढी ;
तो उसे पसीना छूटने लगा,
वह अपना लिबास ,
फैंकने लगी | "                                               ------ विनय शंकर दीक्षित

"
सावन सूखा बीत गया तो,
दोष बहारों को मत देना ;
तुमने सागर किया प्रदूषित | "                        ---- डा श्याम गुप्त   

                        
नारी-पुरुष समाज का त्रिआयामी विमर्श  अगीतकारों की एक अन्य विशेष भूमि है | सिर्फ फैशन, स्मार्टनेस , कपडे-गहने , सजाने-सजाने, पुरुषों की बराबरी या उन्हें अपमानित करने में नारी स्वाधीनता निहित नहीं है | नियम-निषेध तीनों के लिए आवश्यक हैं तभी समन्वय होता है एवं समन्वयात्मक समाज की स्थापना -----

पुरुष ने नारीको,
देकर  केवल अपना नाम ;
छीन  ली बदले में
उसकी हर सुबह ,
हर शाम | "                                        -------मंजू सक्सेना 'विनोद'

"
अज्ञान तमिस्रा मिटाकर,
आर्थिक रूप से,
समृद्ध होगी, सुबुद्ध होगी ;
नारी ! तू तभी-
स्वतंत्र होगी,
प्रबुद्ध होगी | "                                         ----- सुषमा गुप्ता

"
नारी    केन्द्र - बिंदु   है   भ्राता !
व्यष्टि,समष्टि,राष्ट्र की,जग की |
इसीलिये तो वह अबध्य  है,
और  सदा सम्माननीय भी |
लेकिन वह भी तो मानव है,
नियम-निषेध मानने होंगे | "              ----- शूर्पणखा काव्य-उपन्यास से ( डा श्याम गुप्त )

"
कर रहे हो ह्त्या तुम,
कन्या के भ्रूण की |
कर रहे पाप छीन के जीवन ,
भविष्य की मां का तुम |
जन्म कौन देगा फिर ,
पैगम्बरों को,
अवतारों को | "                                 ------ अगीतिका में ( पं.जगत नारायण पाण्डेय )

                   
प्रकृति वर्णन, हास्य-व्यंग्य, लास्य सौंदर्य, प्रेम आदि भावों से भी अगीत कविता अछूती नहीं रही है -----
"
बसंत ! फिर आना
सिहरन के साथ |
तेरे आने की 
आहट मिल जाती है;
पाहुन से मिलने की,
इच्छा तडपाती है ;
  बसंत ! फिर आना ,
मनसिज के साथ | "                                     ---- डा सत्य

"
चंचला ,
तेरी मधुर मुस्कान से 
मेरा ह्रदय पिघल जाता है |
तुझे पाने के लिए
मैं अपना ,
सर्वस्व लुटा देता हूँ | "                                 ------ सुरेन्द्र कुमार वर्मा

"
नई वैज्ञानिक खोज 
आधुनिक स्टोव;
तेल खर्च सीमित 
समय बचाता है ;
सास नन्द सुरक्षित,
बहू जलाता है | "                                           ----- सुभाष हुडदंगी

"
तेरे संग हर ऋतु  मस्तानी ,
हर बात लगे नई कहानी ;
 
रात दिवानी सुबह सुहानी| "                          ---डा श्याम गुप्त

                                        
संस्कृति, आस्था, मनोविज्ञान, धर्म, दर्शन  एवं दर्शन के उच्चतम रूप वेदान्त में अवस्थित भारतीय आस्तिकता,....   मानवता,  शोषण , साम्प्रदायिकता के भाव  प्रस्तुत हैं------   

"
गरीब के पसीने से,
अपना घर सजाया है;
किसी ने तख़्त,
किसी ने -
ताज बनाया है | "                                      ----- धन सिंह मेहता

"
मृत्यु देखकर 
हम अमरत्व चाहते हैं;
और मृत्यु के बिना 
अमरत्व अर्थ हीन होता है |
फिर  अनेक यत्न करते हैं,
लेकिन अमरत्व अप्राप्य है,
मृत्यु एक सत्य है,
अमरत्व एक आशा | "                               ----- नरेश चन्द्र श्रीवास्तव


"
समस्त सौर प्रणालियाँ ,
 
समस्त कार्बनिक सिद्धांत,
समस्त प्राकृतिक संपदा 
समस्त बुद्धिजीवी 
समस्त दिव्य अग्नि,
आपसे पाकर 
हम धन्य हुए,
अपनी कृपाओं से हमें कृतार्थ करें | "                ---- धुरेन्द्र स्वरुप बिसारिया ( दिव्य अगीत से )    

"
क्यों पश्चिम अपनाया जाए,
सूरज उगता है पूरब में;
पश्चिम में तो ढलना निश्चित | "                     --- डा श्याम गुप्त   




" काश कोई ऐसा धर्म होता,
जो प्रबचन के साथ-
रोटी भी देता;
ताकि मनुष्य धर्म से-
अधर्म की ओर जाता | "                               ----- पार्थो सेन

"
आस्था के द्वार से,
आस्था के द्वार तक;
यात्रा  ही यात्रा है,
जीवन के पार तक | "                                        -----डा मिथिलेश दीक्षित,शिकोहा बाद 

"
जिस दिन,
धर्म  से मुक्त राजनीति होगी:
उसी  दि साम्प्रदायवाद की 
अवनति होगी | "                                             --- जवाहर लाल 'मधुकर' चेन्नई

                      
एतिहासिक सन्दर्भ, दृष्टांत, व्यंजनात्मक अन्योक्ति अन्य दूरस्थ भाव भी अगीत कवियों ने खूब प्रयोग किये हैं -----
"
दुर्योधन !
ठगे रह गए थे तुम, देखकर--
'
सारी बीच नारी है
या नारी बीच सारी है '
आज भी सफल नहीं होपाओगे;
 
साडी-हीन नारी देख,
ठगे रह जाओगे | "                                 ----डा श्याम गुप्त ( श्याम स्मृति से )

"
अकेला मन,
कुछ तलाशता है ;
आस-पास कुछ समेटता है,
शायद इसी में मिल जाय-
खोई हुई खुशी;
पता नहीं क्यों नहीं की 
उसने खुद्कुशी | "                                 ---- विजय कुमारी मौर्या

               
          अंत में शब्दमिति अर्थात संक्षिप्तता के साथ विभिन्न भावों पर नए नए विचार-भाव, नवीन सन्दर्भ युवा-मन के भाव  भी  खूब प्रदर्शित हुए हैं ------

"
असत्य ने 
सत्य के वक्ष पर,
तांडव किया;
चीख चीख कर कहा ,
देखो,
मैं विजित हुआ | "                                 ----डा योगेश गुप्त

"
चित्र खिंचा,
मैं हुई निस्तब्ध ;
कलपना यथार्थ का मिश्रण ,
खड़ी खड़ी मैं हुई निरुत्तर;
मैं तटस्थ होकर भी -
निरुत्तर | "                                         ----गीता आकांक्षा

"
पकड़ ली जब खाट
तब देखा कभी नहीं ,
मरने के बाद-
कह रहे,
अच्छा इंसान था | "                           ----- देवेश द्विवेदी ' देवेश

"
यह .जा. का 
यह ..जा. का 
यह अन्य पिछडों का 
यह सवर्णों का,
कहाँ है --
मेरा राष्ट्र, मेरा देश ? "                       ---- डा श्याम गुप्त   

                
अतः  निश्चय ही अगीत-विधा भाव-पक्ष-प्रधान एक सशक्त काव्य-विधा है | अगीत रचनाओं कृतियों में सशक्त, समर्थ संपन्न भाव-संपदा के सम्यक दर्शन होते हैं |