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Friday 9 August 2013

अगीत विधा का अमूल्य दस्तावेज़ : 'अगीत साहित्य दर्पण ' --प्रोफ. उषा सिन्हा



           अगीत विधा का अमूल्य दस्तावेज़ : 'अगीत साहित्य दर्पण '
                                                         --समीक्षक -प्रोफ. उषा सिन्हा

           मुझे डा श्याम गुप्त द्वारा प्रणीत 'अगीत साहित्य दर्पण' के अवगाहन का सुयोग प्राप्त हुआ | शल्य चिकित्सक डा गुप्त साहित्य के प्रति समर्पित अगीत विधा के सशक्त रचनाकार हैं| उन्होंने अत्यंत परिश्रमपूर्वक प्रचुर सामग्री का संकलन करके वर्णानात्मक  एवं विश्लेषणात्मक पद्दतियों के आधारपर अगीत विधा का सांगोपांग अध्ययन प्रस्तुत करके नि:संदेह श्लाघनीय कार्य किया है | हिन्दी साहित्य  की स्थापित  एवं समृद्ध अगीत विधा का समग्र अध्ययन छः सुगठित अद्यायों में विभाजित है |
            अगीत विधा के प्रणेता , दिशावाहक,ध्वजावाहक डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' द्वारा लिखित प्रस्तावना  में अगीत विधा का सम्यग् परिचय  स्तुत्य है | मंगलाचरण  से कृति का शुभारम्भ हुआ है जिसमें रचनाकार ने वाग्देवी माँ सरस्वती से अगीत को नवीन भावों के साथ सुर लय ताल से परिपूर्ण करने और उसके प्रचार-प्रसार हेतु आशीर्वाद प्रदान करने की याचना की है |
               प्रथम अध्याय 'एतिहासिक पृष्ठभूमि व परिदृश्य ' में डा. गुप्त विवेचन ने अगीत के आविर्भाव एवं विकास यात्रा का सम्यक विवेचन किया है | डा र'सत्य' द्वारा लखनऊ में स्थापित 'अखिल भारतीय अगीत परिषद् . के बढ़ाते चरणों , अभिनव कलेवर, अगीत त्रैमासिक मुखपत्र 'अगीतायन', संतुलित कहानी विधा, संघात्मक समीक्षा पद्धति तथा विश्व-विद्यालयों के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में अगीत विधा को महत्त्व प्राप्त होने की सार्थक चर्चा की गयी है |अगेत विधा के प्रचार प्रसार में योगदान देने वाले वरिष्ठ साहित्यकारों के साथ ही नवांकुरों के कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर इसकी अनुगूंज को भी रेखांकित किया गया है |
                     द्वितीय अध्याय के अंतर्गत अगीत की उत्पत्ति की पृष्ठभूमि , अवधारणा व   अभिप्राय की सारगर्भित व्याख्या करते हुए डा गुप्त ने उसके स्वरुप, वैशिष्ट्य एवं उपयोगिता को रेखांकित किया है | लेखक का मानना है.. 'यह एक वैज्ञानिक पद्धति है, सामाजिक सरोकारों व उनके समाधान के लिए एक विद्रोह है , एक नवीन खोज है | भाषा की नयी संवेदना, कथ्य का अनूठा प्रयोग, संक्षिप्तता व परिमाण की पोषकता , बिम्बधर्मी प्रयोग के साथ सरलता से भाव सम्प्रेषण अगीत का एक और गुण है ' .... अगीत रचनाकार सिर्फ कल्पनाजीवी नहीं वह स्वजीवी , यथार्थजीवी व समाजजीवी है | वह निरास्दिता के विपरीत सौन्दर्यबोध व आशावादिता को स्वीकारता है | अगीत में पश्चिम के अन्धानुकरण की अपेक्षा  कविता को अपनी जमीन, अपने चारों और के वातावरण पर रचने का प्रयास खूब है |
                    अगीत के वर्त्तमान परिदृश्य एवं संभावना की विस्तृत विवेचना तृतीय अध्याय की विषय वास्तु है | अगीत के विस्तृत फलक की चर्चा करते हुए डा गुप्त ने लखनऊ व बाहर के अनेक रचनाकारों, समीक्षकों , कवियों , उनकी रचनाओं, पत्र-पत्रिकाओं , महाकाव्य, खंडकाव्यों शोधग्रंथों का सम्यक निरूपण किया | विदेशों में बसे अगीत रचनाकारों का भी उल्लेख किया है | इसके अतिरिक्त अगीत के प्रचार-प्रसार में सक्रीय साहित्यकारों द्वारा आयोजित गोष्ठियों, बृहद आयोजनों , सम्मानों आदि विविध गतिविधियों को भी उद्घाटित किया है | इसी सन्दर्भ में अगीत के उत्कर्ष में सहायक विभिन्न भारतीय एवं अभारतीय विद्वानों, कवियों, साहित्यकारों के विचारों , सम्मतियों तथा टिप्पणियों को भी प्रस्तुत किया गया है|
          चतुर्थ अध्याय -'अगीत छंद एवं उनके रचना विधान' अत्यंत महत्वपूर्ण है | वर्त्तमान में अगीत विधा में प्रचलित एवं विविध नवीन प्रयोगों यथा अगीत छंद, लयबद्ध अगीत, शताप्दी अगीत, नव-अगीत, गतिमय सप्तपदी अगीत, त्रिपदा अगीत एवं त्रिपदा अगीत ग़ज़ल के रचनाविधान को डा गुप्त ने समुचित उद्धरणों के माध्यम से स्पष्ट करने का सार्थक प्रयास किया है|
              अगीत विधा एक भावपक्ष प्रधान सशक्त काव्य-विधा है , इसका गहन चिंतन एवं विवेचन पंचम अध्याय 'अगीत की भाव संपदा' के अंतर्गत प्रस्तुत किया गया है | अगीत की बहुआयामी भाव-भूमि ...सामाजिक सरोकार, सामाजिक बदलाव,युग परिवर्तन, विचारक्रान्ति, स्त्री विमर्श , प्रकृति चित्रण , हास्य-व्यंग्य ,सन्दर्भ, मनोविज्ञान, धर्म एवं दर्शन के साथ ही स्वदेश, स्वभाषा, स्वसंस्कृति के प्रति निष्ठा ,प्रेम की अभिव्यक्ति का निरूपण विभिन्न रचनाओं के उद्धरणों के माध्यम से पा गुप्त ने अपने विषय ज्ञान का परिचय दिया है |
                   'अगीत का कलापक्ष '  षष्ट अध्याय है जिसमें कलापक्ष पर समुचित प्रकाश डाला गया है | इस सन्दर्भ में इस तथ्य का भी उल्लेख किया गया है कि " यद्यपि अगीत रचनाकार शव्द-विन्यास, अलंकार, रस लक्षणाओं आदि कलापक्ष पर अधिक आधारित नहीं रहता तथापि छंद विधा व गीत का समानधर्मा होने के कारण अगीत में भी पर्याप्त मात्रा में आवश्यक रस, छंद अलंकर व अन्य काव्य के गुण सहज व स्वतः रूप से ही आजाते हैं| डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' , सोहनलाल सुबुद्ध,पार्थोसें व डा श्याम गुप्त ने अपने आलेखों एवं कृतियों के माध्यम से अगीत काव्य में प्रयुक्त शिल्प सौन्दर्य की चर्चा की है|डा श्याम गुप्त ने इस अध्याय में अनेक सटीक उद्धरणों द्वारा अगीत में रस, छंद , अलंकारों, माधर्य, ओज,प्रसाद के साथ अभिधा, लक्षणा , व्यंजना के प्रयोग की सारगर्भित एवं विषद विवेचना की है |

             इस प्रकार अगीत रचनाकार डा श्याम गुप्त ने अगीत काव्य की सुदीर्घ सृजन यात्रा विभिन्न आयामों एवं अभिनव कलेवर का सार्थक विवेचन करके इस तथ्य को भी उदघाटित किया है कि हिन्दी साहित्य को समृद्ध बनाने में इसका सराहनीय योगदान आज सर्वस्वीकृत  है | कृति की भाषा सहज, बोधगम्य व प्रवाहपूर्ण एवं शैली
विषयानुरूप है | तथ्यानुसंधान एवं प्रस्तुतीकरण के दृष्टि से यह कृति अगीत काव्य को समझने एवं इस दिशा में रचनाक्रम में प्रवृत्त होने के लिए डा श्याम गुप्त को हार्दिक  बधाई एवं अगीत काव्य एवं समस्त रचनाकारों के उज्जवल भविष्य हेतु मंगल कामनाएं |

                                                                                        
 --प्रोफ. उषा सिन्हा
पूर्व अध्यक्ष
भाषा विज्ञान विभाग
लखनऊ विश्व विद्यालय

Wednesday 5 September 2012

‘अगीत साहित्य दर्पण’ क्रमश :....प्रस्तावना..डा रंग नाथ मिश्र 'सत्य'...


.                             प्रस्तावना
   अगीत साहित्य दर्पण’ रचनाकारों के लिए एक मानक ग्रन्थ होगा –डा. रंगनाथ मिश्र ’सत्य’....
        हिन्दी साहित्य को समर्पित, मूलतः चिकित्सक व सर्जन महाकवि डा श्याम गुप्त द्वारा लिखित ‘अगीत साहित्य दर्पण’  प्रकाशित होकर विज्ञ पाठकों के समक्ष प्रस्तुत होने जा रहा है| इसमें लेखक ने अगीत छंद विधा व उसका साहित्यिक पक्ष विस्तार से लिखने का समुचित प्रयास किया है| डा श्याम गुप्त ने अगीत-विधा में सृष्टि व् जीवन की उत्पत्ति पर “सृष्टि–ईशत-इच्छा या बिगबैंग” महाकाव्य तथा रामकथा पर आधारित नारी-विमर्श पर “शूर्पणखा” खंड काव्य का प्रणयन करके अगीत की स्थापना में अपना अमूल्य योगदान दिया है|
       सन १९६६ ई. में मैंने अपने कुछ सहयोगियों के साथ ‘अखिल भारतीय अगीत परिषद’ साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्था की स्थापना की| एक पत्रक प्रकाशित करके सारे देश के प्रवुद्ध रचनाकारों को भेजा, जिसमें सुझाव मांगे गए थे कि अगीत काव्य-विधा को किस प्रकार स्थापित करके समाज को नयी दिशा प्रदान की जाय| बहुत से सुझाव आये एवं सैकड़ों नए रचनाकारों ने इस विधा से जुडकर कार्य आरंभ कर दिया |  
      सन १९६०-७० के दशक में साहित्यकार-रचनाकार यह नहीं सुनिश्चित कर पाए कि कविता को कौन सी सही दिशा प्रदान की जाय | कविता के क्षेत्र में अकविता, ठोस-कविता, चेतन-कविता, अचेतन-कविता, युयुत्सावादी-कविता, खबरदार-कविता, कबीरपंथी, आदि आंदोलन चले| गीत में नयागीत, नवगीत, अनुगीत जैसे नए-नए आंदोलन आये| इन सब पर विशेष रूप से पाश्चात्य दर्शन का प्रभाव था| फ्रांस से जो आंदोलन चले वे बंगला साहित्य में आये, तत्पश्चात उन्हें हिन्दी में अपनाया जाने लगा | इन आन्दोलनों में अस्पष्टता व सर्वसाधारण के लिए दुर्वोधता झलकती रही| अतः यह आवश्यक हुआ कि कविता में ‘अगीत-काव्य’ को स्वीकार किया जाय |
       वैज्ञानिक अन्वेषणों से संसार में दूरी का महत्व सिमट गया है| विश्व ने जहां इस शताव्दी के पूर्वार्ध में दो महायुद्धों के दुष्परिणामों को नयी शक्तियों के उभरते शीत-युद्धों की सरगर्मी के रूप में देखा है वहीं एक सर्वथा नए धरातल पर प्रतिष्ठित युवा-चेतना का उन्मेष भी विभिन्न रूपों में सामने आया है| स्वतन्त्रता के पश्चात भारतीय समाज और साहित्य में भी इसी प्रकार अपनी पूर्व-परम्परा से हटकर अधिक चैतन्य व स्वाभाविक होने लगा | हम जानते हैं कि भारत को भी कई महायुद्धों का सामना करना पडा | इस संक्रांति काल में युवक-युवतियों में पाश्चात्य सभ्यता को अपनाने की होड लगी हुई थी| एसी स्थिति में मैंने २०-२५ सहयोगियों के साथ ‘हिन्दी कविता में अगीत-आंदोलन’ की शुरूआत की जो युवा चेतना के उन्मेष का दृष्टा था | तब से १९९२ तक पच्चीस वर्षों में अगीत विधा पर कई काव्य-संग्रह प्रकाशित हुए| तदुपरांत हिन्दी के विद्वान समीक्षक डा विश्वंभर नाथ उपाध्याय, कुलपति कानपुर वि.वि., अ.भा. अगीत परिषद की संरक्षक डा उषा गुप्ता, पद्मश्री प.बचनेश त्रिपाठी, संगमलाल मालवीय (मास्को), डा लक्ष्मी नारायण लाल दुबे ( सागर वि.वि.), सुबोध मिश्र,संपादक सफरनामा आदि की प्रेरणा से अखिल भारतीय अगीत परिषद की की रजत जयन्ती वर्ष पर परिचयात्मक ग्रन्थ “अगीत काव्य के चौदह रत्न”  प्रकाशित कराया गया| जिसमें चौदह अगीत कवियों १०-१० अगीत प्रकाशित किये गए|
           सन १९६६-६७ में जो अगीत का मेनीफेस्टो प्रकाशित हुआ उसमें यह स्पष्ट कर दिया गया था कि अगीत खोज की और अग्रसर है उसमें नए रचनाकार बराबर जुडते रहेंगे क्योंकि खोज कभी रूढिगत नहीं होती| अगीत विधा के रचनाकार किसी ‘वाद’ में विश्वास नहीं रखते किन्तु कोई भी आंदोलन अधिक दिनों तक चलता है तो वह वाद का रूप ले लेता है | अतः आज ४५-४६ वर्षों बाद हम इसे ‘अगीतवाद’ के नाम से भी पुकार सकते हैं | अगीत विधा का आकाशवाणी , दूरदर्शन, देश-विदेश की पत्र-पत्रिकाओं द्वारा, शोध-प्रबंधों व कानपुर व लखनऊ के विश्व-विद्यालयों में परीक्षाओं में प्रश्न पूछे जाने से व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ है| साथ ही इस विधा का विकास कई कोटियों के माध्यम से हुआ है यथा कविता के....शिल्प, मात्रा, गुणवत्ता, विविध-साहित्य, विषय, भाषा, उपादान व भाव की कोटि |
          अगीत काव्य पर दूसरा परिचयात्मक काव्य-संग्रह १९९३ में “ अगीत काव्य के इक्कीस स्तंभ”. तृतीय संग्रह अगीतोत्सव -९५ के अवसर पर ”अगीत काव्य के अष्ठादस पथी  एवं चौथा संकलन आजादी के स्वर्ण-जयन्ती वर्ष १९९७ को गांधी-शास्त्री जन्म-दिवस पर “अगीत-काव्य के सोलह महारथी” के नाम से प्रकाशित हुआ| अगीत का पांचवा संकलन “ अगीत काव्य के पैंतालीस सशक्त हस्ताक्षर “ के नाम से प्रकाशित होकर शीघ्र प्रस्तुत किया जाएगा|
         ‘अगीत काव्य के चौदह रत्न’.. व ‘अगीत काव्य के इक्कीस स्तंभ’ एवं ‘अगीत काव्य के अष्ठादस पथी’ का संपादन मेरे द्वारा किया गया जो अ.भा.अगीत परिषद की संरक्षक डा ऊषा गुप्ता, ब्रज-विभूति चौ.नबाव सिंह यादव,भू.पू. मंत्री उ.प्र व प.रामचंद्र शुक्ल पूर्व न्यायाधीश को समर्पित किये गए| ‘अगीत काव्य के सोलह महारथी’ का संपादन मेरे व डा नीरज कुमार द्वारा किया ग्याजो मेरे भतीजे युवा साहित्यकार यशशेष अरुणकुमार मिश्र उर्फ श्रीधर को समर्पित किया गया|
         वर्त्तमान दो दशकों में अगीत-विधा में महाकाव्य व खंड-काव्य भी लिखे गए हैं| ‘मोह और पश्चाताप’, सृष्टि, शूर्पणखा‘सौमित्र गुणाकर’ आदि महाकाव्य एवं खंड-काव्य  प्रकाशित हुए जो अगीतवाद की स्थापना में मील-स्तंभ का कार्य कर रहे हैं |
        मैं यह जानता हूँ कि परम्परागत काव्य में शिल्पगत विशेषताओं के अंतर्गत छंद-विधान योजना, पद्यात्मक भाषाशैली  व अलंकार सौष्ठव आदि का महत्वपूर्ण स्थान है | अगीत काव्य के कवियों ने इन परम्पराओं का त्याग किया है | तथापि काव्य-भाव होने से काव्य-सौन्द्र्यानुसार अलंकार व रस-भाव तो प्रत्येक प्रकार की कविता में स्वतः ही आजाते हैं| अगीत काव्य में परम्परागत छंदों के स्थान पर मुक्त-छंद व गद्यात्मक शैली को अपनाया है| भाषा पर भी नए प्रयोग किये हैं| अगीत-काव्य में यह स्वीकारा गया है कि संक्षिप्तता के माध्यम से कवि अपनी बात कहे| अगीत कवियों में निराशा, कुंठा, घुटन, आस्था-अनास्था, समष्टि-कल्याण की भावना व लघु-मानव की प्रतिष्ठा हेतु विद्रोह के स्वर भी अभिव्यक्त हुए हैं|
       महाकवि डा श्याम गुप्त द्वारा लिखित यह “ अगीत साहित्य दर्पण” अगीत विधा के रचनाकारों व सभी साहित्यकारों के लिए वरदान सिद्ध होगा | महाकवि ने कठिन श्रम और अध्ययन करके इसे तैयार किया है जिसमें अगीत-काव्य के सभी मानदंडों को स्थापित करने में अपनी लेखनी का प्रयोग करते हुए गतिमय सप्तपदी, लयबद्ध षट्पदी अगीत, नव-अगीत, त्रिपदा अगीत, त्रिपदा अगीत हज़ल आदि अगीत की विभिन्न विधाओं का भी उल्लेख किया है| उनके द्वारा आगे भी अगीतवाद की स्थापना में अन्य ग्रन्थ भी लिखे जायेंगे और उनके अन्य अगीत संग्रह, महाकाव्य व खंडकाव्य आदि आगे भी प्रकाशित होंगे, ऐसी मेरी आशा ही नहीं विश्वास है | मैं महाकवि डा श्याम गुप्त की लेखनी का वंदन-अभिनन्दन करता हूँ और कामना करता हूँ कि कि यह ग्रन्थ ‘अगीत साहित्य दर्पण’ अगीत विधा के रचनाकारों को अपना अमूल्य योगदान दे | मंगल कामनाओं के साथ |....मेरे दो अगीत प्रस्तुत हैं....
परिवर्तन,                                       हिन्दी के प्रति रहो समर्पित ...|
जीवन का मूल मन्त्र;                              हिन्दी ही भारत की आशा ,       
जैसा कल बीता                                   होगी यही राष्ट्र की भाषा ;          
जो आज जी रहे                                  देवनागरी को अपनाएं ,
आगे जो आएगा ,                                 प्रगति पथ पर ,     
उसमें भी होंगे –                                  बढ़ाते जाएँ |
उत्थान-पतन |                                              
                                                          हस्ताक्षर           
सम्प्रति— अगीतायन,                            ( डा रंगनाथ मिश्र ‘सत्य’...एम् ए,पी.एच.डी)  ई-३८८५,राजाजी पुरम, लखनऊ-१७                   अध्यक्ष –अखिल भारतीय अगीत परिषद, लखनऊ                                                                        मो.९३३५९९०४३५ ...दूभा.०५२२-२४१४८१७   

            ------- क्रमश:-- अगीत साहित्य दर्पण ...शुभाशंसा...अगली पोस्ट में .. 



अगीत का छंद-विधान ...अगीत साहित्य दर्पण ...डा श्याम गुप्त


अगीत का छंद-विधान ....डा श्याम गुप्त की नयी पुस्तक.....अगीत साहित्य दर्पण ...

                                    

      अतुकांत कविता  की एक विशिष्ट विधा---अगीत कविता---का प्रथम छंद-विधान--एक शास्त्रीय ग्रन्थ

नाम पुस्तक--- अगीत साहित्य दर्पण (अगीत काव्य एवं अगीत छंद विधान )
रचयिता ------ डा श्याम गुप्त
प्रकाशन ------ सुषमा प्रकाशन , लखनऊ  एवं अखिल भारतीय अगीत परिषद , लखनऊ
प्रकाशन वर्ष --१ मार्च, २०१२ ई....पृष्ठ ---९४ ...मूल्य ....१५०/-रु.

                                                             संक्षिप्त विवरण
 समर्पण--- डा रंगनाथ मिश्र सत्य  एवं  महाकवि श्री जगत नारायण पांडे  को |

 प्रस्तावना----"'अगीत साहित्य दर्पण'  रचनाकारों के लिए एक मानक ग्रन्थ होगा"-    -डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' संस्थापक अध्यक्ष , अखिल भारतीय अगीत परिषद, लखनऊ

शुभाशंसा ----प्रोफ. कैलाश देवी सिंह,  पीएचडी . डी लिट, विभागाध्यक्ष, हिन्दी तथा आधुनिक  भाषा विभाग, लखनऊ वि. विद्यालय, लखनऊ |

दो शब्द ------  कविवर श्री रामदेव लाल 'विभोर' महामंत्री, काव्य कला मंदिर, लखनऊ |

पूर्व कथन व आभार ....  लेखक

                                               
                                                         मंगलाचरण ----           
 १.
 माँ वाणी! माँ सरस्वती |
माँ शारदे |
अगीत को नवीन सुरलय ताल का
संसार  दे |
नए  नए स्वर, छंद-
नवल विचार दे |
यह अगीत काव्य ,
जन जन में विस्तार पाए ;
मूढमति श्याम का -
माँ जीवन सुधार दे ||

२.
हे अगीत ! तुम निहित गीत में,
गीत तुम्हारे अंतर स्थित |
नए छंद , नव भाव, नवल स्वर ,
ले अवतरित हुए हे  चेतन !
वंदन  हित वाणी-विनायकौ ,
नमन श्याम का हो स्वीकार ||

                                               विषय - अनुक्रमणिका  ....

प्रथम अध्याय ....अगीत: एतिहासिक पृष्ठभूमि व् परिदृश्य ..

द्वितीय अध्याय ....अगीत : क्यों व क्या है एवं उसकी उपयोगिता ..

तृतीय अध्याय ...अगीत : वर्त्तमान परिदृश्य व भविष्य की संभावना ..

चतुर्थ अध्याय ....अगीत छंद व उनका रचना विधान ..

पंचम अध्याय ....अगीत की भाव संपदा ..

षष्ठ अध्याय ..... अगीत का कला पक्ष ......


                             ----क्रमश .....प्रस्तावना ...अगली पोस्ट में ......