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Sunday, 30 April 2017

अगीत की शिक्षाशाला---कार्यशाला-३१ ---अगीत क्यों व क्या है एवं उसकी उपादेयता .....डा श्याम गुप्त..



                            अगीत की शिक्षाशाला---कार्यशाला-३१

           अगीत क्यों व क्या है एवं उसकी उपादेयता .....डा श्याम गुप्त..

                         
स्वतन्त्रता के पश्चात भारतीय समाज की भांति साहित्य भी अपनी पूर्व रूढियों व परम्पराओं से हटकर अधिक चैतन्य व स्वाभाविक होने लगा | कविगण समाज का मुर्दा स्वरुप, द्वंद्व, कुंठा, हताशा, निराशा, महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, रंग बदलते हुए व्यक्ति, शासन व समाज, टूटती सामाजिक व्यवस्था व पुरातन मूल्यों से मुठभेड, युद्धों की विभीषिका आदि सामयिक भावों पर लिखने लगे निराला जी ने अतुकांत छंद प्रचलित किया, साथ ही नई कविता, खबरदार कविता, अकविता, चेतन कविता, अचेतन कविता,यथार्थवादी कविता आदि वुभिन्न विधाओं का प्रादुर्भाव हुआ इन सब में  सम सामयिक स्थितियों व परिस्थितियों से जूखाने के विचार तो थे परन्तु युग की आवश्यकता --संक्षिप्तता, तीब्र-भाव सम्प्रेषण, समाधान की दिशा व प्रदर्शन का अभाव था जिसकी पूर्ति हित 'अगीत ' का जन्म हुआअगीत रचनाकार समस्या का समाधान भी प्रस्तुत करता है, इसीलिये अन्य सारे आंदोलन आज लुप्तप्रायः हैं परन्तु 'अगीत' जीवित है | अतः निराला व समकालीन कवियों की रचनाओं व कविता आंदोलनों से अगीत एक भिन्न व अगले सोपान का अग्रगामी आंदोलन है, जिसका उद्देश्य हिन्दी साहित्य धारा को एक स्पष्ट दिशा व एक अर्थ देना है |
                 स्वतन्त्रता पश्चात पिछले चार दशकों में हम यह नहीं जान  पाए कि नई कविता को कौन सी सही  दिशा प्रदान की  जाय जिन-जिन विधाओं में कविता की गयी उसमें अस्वस्थता, सर्वसाधारण के लिए दुर्वोधता, दुरूहता झलकती रही | एक निरर्थकता, विचार विश्रन्खलता  झलकती रही |अतः सरल व सर्वग्राही कविता के लिए 'अगीत' की उत्पत्ति  हुई  | तत्कालीन कविता की निरर्थकता का उदाहरण देखिये.....

"मूत्र सिंचित मृत्तिका 
के वृत्त में ,
तीन टांगों पर खडा 
नतग्रीव ,
धैर्य धन गदहा |                      ...तथा..

" वो नीम के पेड़ के पीछे ,
भेंस  की पीठ पर कोहनी टिकाये,
एक लड़का और एक लडकी ;
देखते ही देखते चिकोटी काटी..
और......|"

              १९९५-९५ ई. में जो अगीत का मूल विचार मूल तात्विक अर्थ -विवरण का घोषणा-पत्र (मेनीफेस्टो ) प्रकाशित हुआ तो उसमें यह स्पष्ट था कि  " अगीत खोज के लिए अग्रसर रहेगा और इस विधा में निरंतर नए -नए रचनाकार जुडकर विधा को एक वाद के  रूप में स्थापित करने में योगदान दे सकेंगे , क्योंकि खोज कभी रूढिगत नहीं होती |"
               छंद शास्त्रीय पक्ष के अनुसार -'अगीत पांच से दस तक पंक्तियों वाली कविता है जिसमें मात्रा व तुकांत बंधन नहीं है | यह एक वैज्ञानिक पद्धति है वर्तमान में सामाजिक सरोकारों व उनके समाधान के लिए विद्रोह है, एक नवीन खोज है | अगीत में वह सब कुछ है जिसके लिए प्रत्येक रचनाकार लालायित रहता है | अतः वह आगे आने के लिए प्रयासरत है |
                अगीत को अ -गीत या  गीत नहीं के अर्थ में नहीं लिया जाना चाहिए | इसका अर्थ है --अन्तर्निहित गीत, अंतर्द्वंद्व के गीत , अतुकांत गीत, अपरिमित भाव के गीत, अर्थवत्तात्मक  विचार व अनुशीलन के गीत , असीम ---अर्थात छंद बंधन की सीमा -अनिवार्यता से मुक्त गीत | इसमें लय से युक्त शब्द-योजना , शब्द-सौंदर्य सब कुछ है | अगीत व गीत में इतना ही भेद है कि गीत के नियमों का अगीत में लागू होना अनिवार्य नहीं है | कवि यदि चार से दस पंक्तियों में अपने सम्पूर्ण विचार    भावों को व्यक्त करने में समर्थ है तो वह अगीत आंदोलन से जुड सकता है | साहित्यकार श्री सोहन लाल 'सुबुद्ध' ने .." डा सत्य के श्रेष्ठ अगीत " नामक पुस्तक में कहा है कि..."  'का अर्थ सिर्फ विपरीतार्थक लगाना अल्पज्ञता होगी |"   तथा एक अन्य स्थान पर ( प्रतियोगिता दर्पण--२००३ ) वे कहते हैं..." अगीत का अर्थ है जमीन से जुडी वह छोटी कविता जिसमें लय हो, गति हो एवं समाजोपयोगी एक स्वस्थ विचार व सम्यक दृष्टि बोध हो |"
                 एक साक्षात्कार में अगीत विधा के संस्थापक डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' का कथन है कि.." गीत में '' प्रत्यय लगा कर    मैंने अगीत को संज्ञा के रूप में स्वीकार किया | अगीत, गीत नहीं के रूप में न लिया जाय | यह एक वैज्ञानिक पद्धति है जिसने संक्षिप्तता को ग्रहण किया है, सतसैया के दोहरे की भांति |"  महाकवि पं. जगत नारायण पाण्डेय ' अगीतिका' के  आत्मकथ्य में कहते हैं कि .." अगीत पांच से दस पंक्तियों के बीच अपने आकार को ग्रहण करके भावगत तथ्य को सम्पूर्णता से प्रेषित करता है |"..यथा ...

"एक लघु वाक्य 
करता है हमारे भाव का
स्पष्ट सम्प्रेषण |
अगीत की लघु काया में 
लेता है आकार
हमारे विचार का
स्पष्ट विस्तृत वाच्य |"              ----श्री जगत नारायण पाण्डेय( अगीतिका से )

      डा सत्य के अनुसार --अगीत व्यक्ति एवं समाज व साहित्य के तनावों से उत्पन्न हुआ है | इसकी स्थापना के लिए दो माध्यम आवश्यक हैं--- (१) द्रव्य ( Matter)  तथा ..(२) आवेष्ठन (environment ) |
अगीत में वह सब कुछ है जो वर्तमान समाज के लिए आवश्यक है | वह ' वसुधैव कुटुम्बकम ' का हामी है | अगीतिका के आत्मकथ्य में पं. जगत नारायण पांडे कहते हैं..."अगीत वह जुगनू है जो बंद मुट्ठी  में भी अपने प्रकाश को उद्भाषित करता रहता है, अर्थात अगीत मौन रहते हुए भी मुखर रहता है जो मन व  बुद्धि के सम्यक अनुशीलन से उत्पन्न एक विधा है, एक धारा है |"
     
                                             कविता में लय व गति को सदैव स्वीकारा गया है | लय व गति के बिना कोई भी रचना जीवंत व कालजयी नहीं होती | अगीत में भी लय व गति को स्वीकारा गया है | अगीत का अभिप्रायः है---राष्ट्र व समाज के प्रति जमीन से जुडी छंदयुक्त, गद्यात्मक शैली की वह अतुकांत कविता जिसमें लय व गति हो, सरल व बोधगम्य भाषा, नए-नए शब्दों का प्रयोग व समष्टि कल्याण भाव हो | गेयता, अगेयता , तुकांत व मात्रा बंधन आवश्यक न हो | कवि ने कहा भी है..
" अन्तर्निहित  गीत हैगति है,
लय यति गति व्यति वह अगीत है |
, असीम है,परिधि अपरिमित ,
  का अर्थ वह नहीं , नहीं है |
त्रिपदा, सप्तपदी  या षटपद ,
है अगीत वह नव-अगीत भी ||"                  ----डा श्याम गुप्त ..

                               श्री  हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा था ...." काव्य अलंकरण का भोजन है , उससे मिलने वाला तोष इस पर निर्भर नहीं करता कि इसे किसने बनाया है व किन-किन वस्तुओं से बना है, व क्या क्या प्रक्रियाएं अपनाई गईं हैं | उसका महत्त्व व मूल्य स्वाद पर निर्भर करता है |"
                          गीत से भिन्न 'अगीत' नकार पर आधृत है जिसकी संक्षिप्तता में अनकहे का उन्माद है, शिल्प का अपना ही वैशिष्ट्य है | युग की नवीनतम  सम्भावनाओं का समावेश, कथ्य की नवोक्तियों व तथ्य की नवीन प्रस्तुति ..अगीत की अपनी अभिज्ञानता  का प्रतीक है | अगीत में लय युक्त शब्द-सौंदर्य योजना व अर्थ सौंदर्य सब कुछ है | यथा ...
" दिवस के अवसान में
उद्भासित अरुणाभा ,
देती है सन्देश 
क्षितिज पर मिलन का,
उषा की बेला में |"                        --- अगीतिका से ( पं. जगत नारायण पाण्डेय )
                            भाषा की नई संवेदना, कथ्य का अनूठा प्रयोग, संक्षिप्तता व परिमाण की पोषकता , बिम्बधर्मी प्रयोग के साथ सरलता से सरलता से भाव-सम्प्रेषण अगीत का एक और गुण है | देखें ....
" बूँद -बूँद बीज ये कपास के,
खिल खिल कर पड रही दरार ;
सडी-गली मछली के संग ,
उंच-नीच अंतर में
ढूँढ  रहा विस्मय, विस्तार ;
डूब गए कपटी विश्वास के |"             -------डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य

           अगीत रचनाकार सिर्फ कल्पनाजीवी नहीं ..वह स्वजीवी, यथार्थजीवी व समाज जीवी है वह निराशावादिता के विपरीत सौंदर्यबोध व आशावाद को स्वीकारता है वर्ग-संघर्ष अभारतीय चिंतन है , उसके स्थान पर 'मंथन' का भारतीय भाव-शब्द का प्रयोग होना चाहिए | यह विचार मंथन -भाव अगीत-विधा का विशिष्ट गुण है जो समाजोपयोगी सोद्देश्य कविता व कालजयी साहित्य रचना के लिए महत्वपूर्ण व आवश्यक गुण है | अगीत का सामाजिक व साहित्यिक महत्ब उसके इस विशिष्ट गुण में निहित है | उदाहरणार्थ ...
"कवि चिथड़े पहने 
चखता संकेतों का रस,
रचता -रस, छंद, अलंकार
ऐसे कवि के क्या कहने |"            ------डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' .           
एवं  ....
" क्यों मानव ने भुला दिया है ,
वह ईश्वर का स्वयं अंश है |
मुझमें तुझमें , शत्रु-मित्र में ,
ब्रह्म समाया कण कण में वह;
और  स्वयं भी वही ब्रह्म है,
फिर क्या अपना और पराया ||"                     --- डा श्याम गुप्त ( सृष्टि महाकाव्य से )...

                    अगीत में पश्चिम के अंधानुकरण की अपेक्षा कविता को अपनी जमीन अपने चारों ओर के वातावरण पर रचाने का प्रयास खूब  है | चेतना में उद्बोधन भी है ...
" स्तम्भन एक और ....
संबंधी  भीड़-भाड 
ध्वंस  की कतारों में ;
मक्षिका नहा रही-
दूध के पिटारों में |
ढला ढला लगता सब ओर...
अपने में स्नेह-सिक्त,
तिरछा  भूगोल |"                   ---- डा सत्य ...
                                 हर नई विधा में कुछ चमत्कार होता है, परन्तु यदि उसमें समाज में अपेक्षित संस्कार , साहित्य के उचित गुण, भाव, कला व देश कालानुसार आस्था भी होती है तो वह कालजयी होती है, उसका समादर होता है| अगीत की लोकप्रियता का कारण निश्चय ही ज्ञान व अनुभव की आस्थामूलक भावना है | साहित्यकार श्री सोहन लाल सुबुद्ध का कहना है --" काव्य को परखने की दृष्टि बहुत एकाकी नहीं होनी चाहिए | काव्य मा महत्त्व उसकी समग्रता में निहित रहता है | इसमें गीत का भी महत्त्व है, अगीत का भी | काव्य में भेद-भाव नहीं चल सकता कि गीतकार, अगीतकार को तच्छ कह कर नकार दे|" --डा सत्य व उनके श्रेष्ठ अगीत के कथ्य में)  
              सरलता  रुचिकरता, संक्षिप्तता, जन जन भाव संप्रेषणीयता, सन्देश की स्पष्टता व आकर्षण अगीत के प्रिय भाव हैं ---
"मौसम श्रृंगार नख-शिखों की ,
बातें  पुरानी    होगईं   हैं;
कवि गीत गाओ राष्ट्र के अब |"                 -- --त्रिपदा अगीत ( डा श्याम गुप्त )


" मन का कठोर होना ,
कितना मुश्किल होता है |
मन ही तो जीवन में 
कोमलतम होता है |
हम कितने भी पाषाण ह्रदय बन जाएँ,
अंतस में कहीं न कहीं ,
नेह प्रान्कुर बसता है |"                          -----स्नेह प्रभा |

                   एक साक्षात्कार में डा सत्य का कथन है कि..." भारतीय दर्शन के विचारों से ओत-प्रोत अगीत का सूत्रपात मैंने इसलिए किया कि अनाटक, अकविता, अकहानी जैसे  आंदोलन पाश्चात्य नक़ल पर चल रहे थे | अगीत का सम्बन्ध मनुष्य की आस्था  से है, भारतीयता से है, उसकी संस्कृति से है | अतः अगीत- हिन्दी व हिन्दी साहित्य के लिए विकास व उसे गति देने में सहायक व सक्षम है और इसीलिये यह विश्व भर में फ़ैल रहा है, तथा मैं भविष्य के प्रति आशान्वित हूँ |"

                   चेतन कविता, अचेतन कविता, खबरदार कविता, अमेरिका की बीटनिक पीढ़ी, बंगाल की भूखी पीढ़ी आदि कबकी काल-कवलित हो चुकीं | अगीत इन सब से अलग है, स्थायी रहा है और रहेगा | अगीत आंदोलन के एक और महत्वपूर्ण समाजोपयोगी व युगानुकूल मांग है कि हिन्दी पूर्ण राष्ट्र भाषा बने -----
"देव नागरी को अपनाएं
हिन्दी है जन जन की भाषा ,
भारत माता की अभिलाषा |
बने राष्ट्रभाषा अब हिन्दी,
सब बहनों की बड़ी बहन है 
हिन्दी सबका मान  बढाती ,
हिन्दी का अभियान चलायें|"                  --- डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य'
           मानवता, पतन, समाजोत्थान पर विचारशीलता, मंथन व समाधान के भाव दृष्टगत करें ....
" विकसित व विकासशील देशों में,
सबसे बड़ा अंतर ;
एक में मानवता अवशेष 
दूसरे में छूमंतर |"                        ---- धनसिंह मेहता 'अनजान'( प्रवासी भारतीय -अमेरिका )


" बेडियाँ तोडो 
ज्ञान दीप जलाओ,
नारी अब-
तुम्ही राह दिखाओ,
समाज को जोड़ो |"                       ----सुषमा गुप्ता ..
                 सम-सामयिक भाव, दृष्टिबोध ...अगीत का एक अन्य विशिष्ट गुण है | प्रदूषण व सत्य-सामाजिक व्यंग्य के भाव भी हैं | एक उदाहरण देखें ....
" आज के समाज का 
सबसे बड़ा व्यंग्य ;
सच को भी -
व्यंग्य कहकर,
कहना पड  रहा है |"                      ----- गिरीश पाण्डेय ( धरती जानती है )

" वाह रे प्रदूषण !
धरा हो या गगन, सलिल या पवन ,
यहाँ तक कि मानव मन -
भी प्रदूषित है |
असुराचारी मानव बना खरदूषण ,
कैसे सुधरे पर्यावरण |"                  ------सुरेन्द्र कुमार शर्मा ( मेरे अगीत छंद )
             कवि का अगीत प्रेम उसके प्रति ललक व भावना की उच्चता कुछ इस प्रकार मुखर हुई..
-"जब भी उठी कल्पना मन में,
लिखने  बैठा गीत;
गीत  नहीं बन पाया साथी
वह बन गया अगीत |"                     -----राम गुलाम रावत 
                इस प्रकार राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व साहित्यिक क्षेत्रों में बाधाओं व उपस्थित अंधकार के बावजूद भी अगीत कविता युग-परिवर्तन व नए युग का श्री गणेश करेगी यह अगीतकारों व अगीत के सद्भावी साहित्यकारों की प्रबल उत्कंठा, आकांक्षा व आशा है | ...
टूट रहा मन का विश्वास,
संकोची हैं सारी मन की रेखाएं,
रोक रहीं मुझको-
गहरी बाधाएं ,
अंधकार और बढ़ रहा ,
उलट रहा सारा इतिहास |"                       -----डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य'

खोल दो घूंघट के पट ,
हटादो  ह्रदय पट से,
आवरण,
मिटे  तमिस्रा,
हो नव-विहान |"                                     ----श्रीमती  सुषमा गुप्ता 

ओ दिव्य कवि !
तेरी मधुर रागमयी बांसुरी की धुन
सागर की उत्ताल तरंगों से संगत करती,
आकाश के अंतहीन उसार में ,
कोमलता से गुंजन करती |"                    -----श्री धुरेन्द्र स्वरुप बिसरिया ( दिव्य-अगीत से )

        
क्रमश कार्यशाला-३२.....अगली पोस्ट में ....


Friday, 28 April 2017

अगीत की शिक्षाशाला-३०-----नव अगीत--- डा श्याम गुप्त----

                              ---- अगीत की शिक्षाशाला-३०-----नव अगीत---




..नव-अगीत छंद--- ३ से अधिक ५ से कम पन्क्तियों वाला, अतुकान्त अगीत छन्द है -- -  यथा--         
           बेडियां तोडो, 
          ग्यान दीप जलाओ,
          नारी! अब -
          तुम्ही राह दिखाओ;
          समाज को जोडो.        -सुषमा गुप्ता         
  
     देश की प्रगति ही,
     सबका कल्याण,
     यही हमारा उद्देश्य,
     रखती हूं मैं
     इसका ध्यान ।  ---विजय कुमारी मौर्य ’विजय’




नवअगीत छंद ( अगीतिका से )-जगत नारायण पांडे ---
\\
अँधेरे में छिपा लेते हैं पाप
दिन में पर रखते हैं
चेहरा ,
हर दम साफ़ |
.\
सब के सब टूट गए
निष्ठा के प्रतिमान
जीवित संबंधों के
तटबंध डूब गए
स्रोत संकल्पों के रीत गए |
\
सिद्धांत का अभाव
डराता है सत्य को
यही है
सत्ता का स्वभाव |



  नव-अगीत ---डा श्याम गुप्त ----

\
प्रश्न 
कितने शहीद ,
कब्र से उठकर पूछते हैं-
हम मरे किस देश के लिए ,
अल्लाह के, या-
ईश्वर के |
\
बंधन 
वह बंधन में थी ,
संस्कृति संस्कार सुरुचि के
परिधान कन्धों पर धारकर  ;
अब वह मुक्त है ,
सहर्ष , कपडे उतारकर |

\
 
दिशाहीन  
मस्त हैं सब -
अपने काम काज, या -
मनोरंजन में; और -
खड़े हैं हर मोड़ पर
दिशाहीन || 
\
 मेरा देश कहाँ                           
यह जा का ,
यह जा का ,
यह अन्य पिछड़ों का ,
यह सवर्णों का ;
कहाँ है मेरा देश ?
\
तुम्हारी छवि
" मन के अंधियारे पटल पर ,
तुम्हारी छवि,
ज्योति-किरण सी लहराई;
एक नई कविता,
पुष्पित हो आई ||




Tuesday, 1 November 2016

अगीत विधा का अमूल्य दस्तावेज़ : 'अगीत साहित्य दर्पण '---प्रोफ. उषा सिन्हा ......

                   अगीत विधा का अमूल्य दस्तावेज़ : 'अगीत साहित्य दर्पण '
                                                                         --समीक्षक -प्रोफ. उषा सिन्हा
                 मुझे डा श्याम गुप्त द्वारा प्रणीत 'अगीत साहित्य दर्पण' के अवगाहन का सुयोग प्राप्त हुआ | शल्य चिकित्सक डा गुप्त साहित्य के प्रति समर्पित अगीत विधा के सशक्त रचनाकार हैं| उन्होंने अत्यंत परिश्रमपूर्वक प्रचुर सामग्री का संकलन करके वर्णानात्मक एवं विश्लेषणात्मक पद्दतियों के आधारपर अगीत विधा का सांगोपांग अध्ययन प्रस्तुत करके नि:संदेह श्लाघनीय कार्य किया है | हिन्दी साहित्य की स्थापित एवं समृद्ध अगीत विधा का समग्र अध्ययन छः सुगठित अद्यायों में विभाजित है |
                     अगीत विधा के प्रणेता, दिशावाहक, ध्वजावाहक डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' द्वारा लिखित प्रस्तावना में अगीत विधा का सम्यग् परिचय स्तुत्य है | मंगलाचरण से कृति का शुभारम्भ हुआ है जिसमें रचनाकार ने वाग्देवी माँ सरस्वती से अगीत को नवीन भावों के साथ सुर लय ताल से परिपूर्ण करने और उसके प्रचार-प्रसार हेतु आशीर्वाद प्रदान करने की याचना की है |
                        प्रथम अध्याय 'एतिहासिक पृष्ठभूमि व परिदृश्य ' में डा. गुप्त विवेचन ने अगीत के आविर्भाव एवं विकास यात्रा का सम्यक विवेचन किया है | डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' द्वारा लखनऊ में स्थापित 'अखिल भारतीय अगीत परिषद् . के बढ़ते चरणों, अभिनव कलेवर, अगीत त्रैमासिक मुखपत्र 'अगीतायन', संतुलित कहानी विधा, संघात्मक समीक्षा पद्धति तथा विश्व-विद्यालयों के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में अगीत विधा को महत्त्व प्राप्त होने की सार्थक चर्चा की गयी है | अगीत विधा के प्रचार प्रसार में योगदान देने वाले वरिष्ठ साहित्यकारों के साथ ही नवांकुरों के कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर इसकी अनुगूंज को भी रेखांकित किया गया है |
                       द्वितीय अध्याय के अंतर्गत अगीत की उत्पत्ति की पृष्ठभूमि, अवधारणा व अभिप्राय की सारगर्भित व्याख्या करते हुए डा गुप्त ने उसके स्वरुप, वैशिष्ट्य एवं उपयोगिता को रेखांकित किया है | लेखक का मानना है.. 'यह एक वैज्ञानिक पद्धति है, सामाजिक सरोकारों व उनके समाधान के लिए एक विद्रोह है, एक नवीन खोज है | भाषा की नयी संवेदना, कथ्य का अनूठा प्रयोग, संक्षिप्तता व परिमाण की पोषकता, बिम्बधर्मी प्रयोग के साथ सरलता से भाव सम्प्रेषण अगीत का एक और गुण है ' .... अगीत रचनाकार सिर्फ कल्पनाजीवी नहीं वह स्वजीवी, यथार्थजीवी व समाजजीवी है | वह निराशावादिता के विपरीत सौन्दर्यबोध व आशावादिता को स्वीकारता है | अगीत में पश्चिम के अन्धानुकरण की अपेक्षा कविता को अपनी जमीन, अपने चारों और के वातावरण पर रचने का प्रयास खूब है |
                         अगीत के वर्त्तमान परिदृश्य एवं संभावना की विस्तृत विवेचना तृतीय अध्याय की विषय वस्तु है | अगीत के विस्तृत फलक की चर्चा करते हुए डा गुप्त ने लखनऊ व बाहर के अनेक रचनाकारों, समीक्षकों, कवियों, उनकी रचनाओं, पत्र-पत्रिकाओं, महाकाव्य, खंडकाव्यों शोधग्रंथों का सम्यक निरूपण किया | विदेशों में बसे अगीत रचनाकारों का भी उल्लेख किया है | इसके अतिरिक्त अगीत के प्रचार-प्रसार में सक्रिय साहित्यकारों द्वारा आयोजित गोष्ठियों, बृहद आयोजनों, सम्मानों आदि विविध गतिविधियों को भी उद्घाटित किया है | इसी सन्दर्भ में अगीत के उत्कर्ष में सहायक विभिन्न भारतीय एवं अभारतीय विद्वानों, कवियों, साहित्यकारों के विचारों, सम्मतियों तथा टिप्पणियों को भी प्रस्तुत किया गया है|
                        चतुर्थ अध्याय -'अगीत छंद एवं उनके रचना विधान' अत्यंत महत्वपूर्ण है | वर्त्तमान में अगीत विधा में प्रचलित एवं विविध नवीन प्रयोगों यथा अगीत छंद, लयबद्ध अगीत, शताप्दी अगीत, नव-अगीत, गतिमय सप्तपदी अगीत, त्रिपदा अगीत एवं त्रिपदा अगीत ग़ज़ल के रचना विधान को डा गुप्त ने समुचित उद्धरणों के माध्यम से स्पष्ट करने का सार्थक प्रयास किया है|
                            अगीत विधा एक भावपक्ष प्रधान सशक्त काव्य-विधा है, इसका गहन चिंतन एवं विवेचन पंचम अध्याय 'अगीत की भाव संपदा' के अंतर्गत प्रस्तुत किया गया है | अगीत की बहुआयामी भाव-भूमि ...सामाजिक सरोकार, सामाजिक बदलाव,युग परिवर्तन, विचारक्रान्ति, स्त्री विमर्श, प्रकृति चित्रण, हास्य-व्यंग्य, सन्दर्भ, मनोविज्ञान, धर्म एवं दर्शन के साथ ही स्वदेश, स्वभाषा, स्वसंस्कृति के प्रति निष्ठा,प्रेम की अभिव्यक्ति का निरूपण विभिन्न रचनाओं के उद्धरणों के माध्यम से डा गुप्त ने अपने विषय ज्ञान का परिचय दिया है |
                            'अगीत का कलापक्ष ' षष्ट अध्याय है जिसमें कलापक्ष पर समुचित प्रकाश डाला गया है | इस सन्दर्भ में इस तथ्य का भी उल्लेख किया गया है कि " यद्यपि अगीत रचनाकार शव्द-विन्यास, अलंकार, रस लक्षणाओं आदि कलापक्ष पर अधिक आधारित नहीं रहता तथापि छंद विधा व गीत का समानधर्मा होने के कारण अगीत में भी पर्याप्त मात्रा में आवश्यक रस, छंद अलंकर व अन्य काव्य के गुण सहज व स्वतः रूप से ही आजाते हैं| डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य', सोहनलाल सुबुद्ध,पार्थोसेन व डा श्याम गुप्त ने अपने आलेखों एवं कृतियों के माध्यम से अगीत काव्य में प्रयुक्त शिल्प सौन्दर्य की चर्चा की है| डा श्याम गुप्त ने इस अध्याय में अनेक सटीक उद्धरणों द्वारा अगीत में रस, छंद , अलंकारों, माधर्य, ओज,प्रसाद के साथ अभिधा, लक्षणा, व्यंजना के प्रयोग की सारगर्भित एवं विषद विवेचना की है |
                            इस प्रकार अगीत रचनाकार डा श्याम गुप्त ने अगीत काव्य की सुदीर्घ सृजन यात्रा विभिन्न आयामों एवं अभिनव कलेवर का सार्थक विवेचन करके इस तथ्य को भी उदघाटित किया है कि हिन्दी साहित्य को समृद्ध बनाने में इसका सराहनीय योगदान आज सर्वस्वीकृत है | कृति की भाषा सहज, बोधगम्य व प्रवाहपूर्ण एवं शैली विषयानुरूप है | तथ्यानुसंधान एवं प्रस्तुतीकरण के दृष्टि से यह कृति अगीत काव्य को समझने एवं इस दिशा में रचनाक्रम में प्रवृत्त होने के लिए डा श्याम गुप्त को हार्दिक बधाई एवं अगीत काव्य एवं समस्त रचनाकारों के उज्जवल भविष्य हेतु मंगल कामनाएं |

--प्रोफ. उषा सिन्हा
पूर्व अध्यक्ष
भाषा विज्ञान विभाग
लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ