इस चिट्ठे पर हिन्दी की अतुकान्त कविता धारा की एक विशेष विधा " अगीत- कविता " व उसके साहित्य के विविध रूप-भाव प्रस्तुत किये जायेंगे.....
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Friday, 27 November 2015
डा रंगनाथ मिश्र सत्य के हाइकू......डा श्याम गुप्त....
डा रंगनाथ मिश्र सत्य
के हाइकू....
मैं जानता हूँ
तुम्हारी हर चाल
पहचानता हूँ |
कहता नहीं
लेकिन कहना भी
नहीं चाहता |
हंसीं उड़ाते हैं
मेरी सहजता की
वे लगातार
सहजता ही
मनुष्य की होती है
सहज मित्र
बढजाती है
मनुष्य की आयु भी
प्राणायाम से
जीवन जियो
सच्चाई के साथ ही
सुखी रहोगे
त्याग तपस्या
बेकार न समझें
कभी भी मित्र
चलते रहें
कर्म के पथ पर
सुख मिलेगा
योग करिए
जीवन सुधारिए
स्वस्थ रहिये
Sunday, 22 November 2015
माननीय मुलायम सिंह यादव जी को जन्मदिवस की शुभकामनाएं ...डा श्याम गुप्त
जन्मदिवस की शुभकामनाएं
गाँव गाँव हर शहर शहर की गली गली में डोलेंगे |
फ़ैल रहा जो जहर देश में उसमें अमृत घोलेंगे |
हर मज़हब के रहने वाले एक सूत्र में बंधे रहें |
कन्या से कश्मीर की घाटी तक हम हल्ला बोलेंगे ||
---डा रंगनाथ मिश्र ‘सत्य’
परम आदरणीय माननीय मुलायम सिंह यादव जी पूर्व मुख्यमंत्री उत्तरप्रदेश एवं पूर्व रक्षामंत्री भारत सरकार को उनके ७७वें जन्मदिवस पर बधाई एवं शत शत अभिनन्दन | वे शतायु होकर प्रदेश, देश-राष्ट्र, हिन्दी भाषा व साहित्य की अहर्निश सेवा करते रहें, ऐसी हमारी कामना है |
दिनांक -२२-११-२०१५ई. -----डा रंगनाथ मिश्र ‘सत्य
गाँव गाँव हर शहर शहर की गली गली में डोलेंगे |
फ़ैल रहा जो जहर देश में उसमें अमृत घोलेंगे |
हर मज़हब के रहने वाले एक सूत्र में बंधे रहें |
कन्या से कश्मीर की घाटी तक हम हल्ला बोलेंगे ||
---डा रंगनाथ मिश्र ‘सत्य’
परम आदरणीय माननीय मुलायम सिंह यादव जी पूर्व मुख्यमंत्री उत्तरप्रदेश एवं पूर्व रक्षामंत्री भारत सरकार को उनके ७७वें जन्मदिवस पर बधाई एवं शत शत अभिनन्दन | वे शतायु होकर प्रदेश, देश-राष्ट्र, हिन्दी भाषा व साहित्य की अहर्निश सेवा करते रहें, ऐसी हमारी कामना है |
दिनांक -२२-११-२०१५ई. -----डा रंगनाथ मिश्र ‘सत्य
Wednesday, 7 October 2015
चाय पर साहित्यिक चर्चा ..डा श्याम गुप्त...
.
चाय पर चर्चा
उ.प्र.हिन्दी संस्थान द्वारा साहित्य भूषण पुरस्कार से सम्मानित, लखनऊ के चर्चित वरिष्ठ साहित्यकार एवं अगीत कविता विधा के संस्थापक एवं संतुलित कहानी तथा संघीय समीक्षा पद्धति के जनक.. साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र ‘सत्य’ को मैंने सोमवार ०५-१०-१५ को अपने घर पर चाय पर आमंत्रित किया | डा रंगनाथ मिश्र को साहित्यभूषण पुरस्कार मिलना अगीत-विधा की सम्पूर्ण स्वीकृति के साथ साथ, साहित्य की सभी विधाओं में पारंगत एक कर्मठ, कर्मयोगी की भांति चुपचाप, निरंतर, बिना लाग-लपेट, सभी कवियों साहित्यकारों व विधाओं के साथ सहज, समन्वय व समभाव से व्यवहार करने वाले सरल ह्रदय, उदारमना एवं हिदी साहित्य में एक दुर्लभ व विरले साहित्यकार का सम्मान है, जो हिन्दी व साहित्य का सम्मान ही है |
चाय की चुस्कियों के मध्य साहित्य व गीत की वर्त्तमान स्थिति एवं अगीत पर चर्चा हुई | डा सत्य ने बताया कि १९६० ई में भारतीय दर्शन के विचारों से ओत-प्रोत अगीत का सूत्रपात मैंने इसलिए किया कि अनाटक, अकविता, अकहानी जैसे आंदोलन पाश्चात्य नक़ल पर चल रहे थे | अगीत का सम्बन्ध मनुष्य की आस्था से है, भारतीयता से है, उसकी संस्कृति से है | अतः अगीत- हिन्दी व हिन्दी साहित्य के लिए विकास व उसे गति देने में सहायक व सक्षम है और इसीलिये यह विश्व भर में फ़ैल चुका है | गीत में 'अ' प्रत्यय लगा कर मैंने अगीत को संज्ञा के रूप में स्वीकार किया | अगीत, गीत नहीं के रूप में न लिया जाय | यह एक वैज्ञानिक पद्धति है जिसने संक्षिप्तता को ग्रहण किया है, सतसैया के दोहरे की भांति |
अगीत की सम्पूर्ण स्वीकृति के सम्बन्ध में डा सत्य ने स्पष्ट किया कि यूं तो आज अगीत विधा नई नहीं रही वह पहले ही अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर आलोकित है | आज विश्व भर में अगणित कवि व साहित्यकार अगीत कविता में रचनारत हैं | इसमें लगभग १०० से अधिक पुस्तकें रची जा चुकी हैं जिनमें श्री जगतनारायण पांडे के एवं आपके स्वयं के ( मेरे –डा श्याम गुप्त) रचित महाकाव्य व खंडकाव्य तथा अगीत का प्रथम शास्त्रीय ग्रंथ छंद विधान “अगीत साहित्य दर्पण” हैं | अभी हाल में ही बुद्धकथा पर कुमार तरल का अगीत महाकाव्य का लोकार्पण हुआ है | परन्तु पुरस्कार व सम्मान निश्चय ही किसी कवि, साहित्यकार, काव्य व विधा को नवीन गति प्रदान करते हैं | अतः इसे अगीत-विधा का भी विधिवत सम्मान समझा जायगा |
मेरे शीघ आने वाले प्रेम व श्रृंगार गीतों की कृति ‘तुम तुम और तुम’ के सन्दर्भ में गीत के प्रश्न पर उनका मत था कि गीत मृत्युंजय है | गीत परंपरा सदैव की भांति जीवित रहेगी | गीत व अगीत का अथवा नयी कविता का आपस में कोई मतभेद नहीं है न तुकांत व अतुकांत छंद या कविता में | सभी साहित्य की विविध कोटियाँ हैं, सभी आदर की पात्र हैं | मेरे सद्य प्रकाशित पुस्तक ‘कुछ शायरी की बात होजाए’ के सन्दर्भ में उनका मत था कि हिन्दी ग़ज़ल को भी पुरा उर्दू नियमों व अप्रचलित फारसी उर्दू के शब्दों से मुक्त किया जाना चाहिए | प्रगति के लिए यह आवश्यक है |
लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा ‘डा श्याम गुप्त के व्यक्तित्व व कृतित्व’ पर की गयी शोध पर चर्चा करते हुए मैंने उन्हें बताया कि इसमें वस्तुपरक व शिल्प परक अध्ययन में मेरे अगीत महाकाव्य सृष्टि व अगीत खंडकाव्य शूर्पणखा का विशद व व्याख्यायित रूप में उल्लेख किया गया है | सृष्टि को कामायनी की भांति एक शोध-प्रबंध कहा गया है | मेरे द्वारा नवीन सृजित अगीत के विविध छंदों का उल्लेख करते हुए ‘अगीत पर अलग से शोध की आवश्यकता है’ कहा गया है | महाकाव्य प्रेमकाव्य में ‘प्रेम-अगीत’ खंड में प्रयुक्त के ‘लयबद्ध अगीत छंद’ का भी उल्लेख है| ब्रजभाषा काव्य-ब्रजबांसुरी के अगीत में लिखित द्रौपदी के पत्र को सोदाहरण प्रस्तुत किया गया है |
चित्र-- चाय पर चर्चारत --साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य व डा श्याम गुप्त ...
उ.प्र.हिन्दी संस्थान द्वारा साहित्य भूषण पुरस्कार से सम्मानित, लखनऊ के चर्चित वरिष्ठ साहित्यकार एवं अगीत कविता विधा के संस्थापक एवं संतुलित कहानी तथा संघीय समीक्षा पद्धति के जनक.. साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र ‘सत्य’ को मैंने सोमवार ०५-१०-१५ को अपने घर पर चाय पर आमंत्रित किया | डा रंगनाथ मिश्र को साहित्यभूषण पुरस्कार मिलना अगीत-विधा की सम्पूर्ण स्वीकृति के साथ साथ, साहित्य की सभी विधाओं में पारंगत एक कर्मठ, कर्मयोगी की भांति चुपचाप, निरंतर, बिना लाग-लपेट, सभी कवियों साहित्यकारों व विधाओं के साथ सहज, समन्वय व समभाव से व्यवहार करने वाले सरल ह्रदय, उदारमना एवं हिदी साहित्य में एक दुर्लभ व विरले साहित्यकार का सम्मान है, जो हिन्दी व साहित्य का सम्मान ही है |
चाय की चुस्कियों के मध्य साहित्य व गीत की वर्त्तमान स्थिति एवं अगीत पर चर्चा हुई | डा सत्य ने बताया कि १९६० ई में भारतीय दर्शन के विचारों से ओत-प्रोत अगीत का सूत्रपात मैंने इसलिए किया कि अनाटक, अकविता, अकहानी जैसे आंदोलन पाश्चात्य नक़ल पर चल रहे थे | अगीत का सम्बन्ध मनुष्य की आस्था से है, भारतीयता से है, उसकी संस्कृति से है | अतः अगीत- हिन्दी व हिन्दी साहित्य के लिए विकास व उसे गति देने में सहायक व सक्षम है और इसीलिये यह विश्व भर में फ़ैल चुका है | गीत में 'अ' प्रत्यय लगा कर मैंने अगीत को संज्ञा के रूप में स्वीकार किया | अगीत, गीत नहीं के रूप में न लिया जाय | यह एक वैज्ञानिक पद्धति है जिसने संक्षिप्तता को ग्रहण किया है, सतसैया के दोहरे की भांति |
अगीत की सम्पूर्ण स्वीकृति के सम्बन्ध में डा सत्य ने स्पष्ट किया कि यूं तो आज अगीत विधा नई नहीं रही वह पहले ही अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर आलोकित है | आज विश्व भर में अगणित कवि व साहित्यकार अगीत कविता में रचनारत हैं | इसमें लगभग १०० से अधिक पुस्तकें रची जा चुकी हैं जिनमें श्री जगतनारायण पांडे के एवं आपके स्वयं के ( मेरे –डा श्याम गुप्त) रचित महाकाव्य व खंडकाव्य तथा अगीत का प्रथम शास्त्रीय ग्रंथ छंद विधान “अगीत साहित्य दर्पण” हैं | अभी हाल में ही बुद्धकथा पर कुमार तरल का अगीत महाकाव्य का लोकार्पण हुआ है | परन्तु पुरस्कार व सम्मान निश्चय ही किसी कवि, साहित्यकार, काव्य व विधा को नवीन गति प्रदान करते हैं | अतः इसे अगीत-विधा का भी विधिवत सम्मान समझा जायगा |
मेरे शीघ आने वाले प्रेम व श्रृंगार गीतों की कृति ‘तुम तुम और तुम’ के सन्दर्भ में गीत के प्रश्न पर उनका मत था कि गीत मृत्युंजय है | गीत परंपरा सदैव की भांति जीवित रहेगी | गीत व अगीत का अथवा नयी कविता का आपस में कोई मतभेद नहीं है न तुकांत व अतुकांत छंद या कविता में | सभी साहित्य की विविध कोटियाँ हैं, सभी आदर की पात्र हैं | मेरे सद्य प्रकाशित पुस्तक ‘कुछ शायरी की बात होजाए’ के सन्दर्भ में उनका मत था कि हिन्दी ग़ज़ल को भी पुरा उर्दू नियमों व अप्रचलित फारसी उर्दू के शब्दों से मुक्त किया जाना चाहिए | प्रगति के लिए यह आवश्यक है |
लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा ‘डा श्याम गुप्त के व्यक्तित्व व कृतित्व’ पर की गयी शोध पर चर्चा करते हुए मैंने उन्हें बताया कि इसमें वस्तुपरक व शिल्प परक अध्ययन में मेरे अगीत महाकाव्य सृष्टि व अगीत खंडकाव्य शूर्पणखा का विशद व व्याख्यायित रूप में उल्लेख किया गया है | सृष्टि को कामायनी की भांति एक शोध-प्रबंध कहा गया है | मेरे द्वारा नवीन सृजित अगीत के विविध छंदों का उल्लेख करते हुए ‘अगीत पर अलग से शोध की आवश्यकता है’ कहा गया है | महाकाव्य प्रेमकाव्य में ‘प्रेम-अगीत’ खंड में प्रयुक्त के ‘लयबद्ध अगीत छंद’ का भी उल्लेख है| ब्रजभाषा काव्य-ब्रजबांसुरी के अगीत में लिखित द्रौपदी के पत्र को सोदाहरण प्रस्तुत किया गया है |
चित्र-- चाय पर चर्चारत --साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य व डा श्याम गुप्त ...
Sunday, 4 October 2015
Tuesday, 4 August 2015
अगीत कविता विधा के संस्थापक वरिष्ठ साहित्यकार ड़ा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' को उ.प्र. हिन्दी संस्थान द्वारा "साहित्य-भूषण" सम्मान-2014 देने की घोषणा
ड़ा रंगनाथ मिश्र सत्य
साहित्य में अगीत कविता विधा के स्थापक "सृजन" संस्था के संरक्षक व अखिल भारतीय अगीत परिषद् के संस्थापक-अध्यक्ष देश के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रंगनाथ मिश्र 'सत्य' जी को उ.प्र. हिन्दी संस्थान ने "साहित्य-भूषण" सम्मान-2014 देने की घोषणा की।
साहित्य में अगीत कविता विधा के स्थापक "सृजन" संस्था के संरक्षक व अखिल भारतीय अगीत परिषद् के संस्थापक-अध्यक्ष देश के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रंगनाथ मिश्र 'सत्य' जी को उ.प्र. हिन्दी संस्थान ने "साहित्य-भूषण" सम्मान-2014 देने की घोषणा की।
जीवन परिचय....
साठोत्तरी
कविता जगत में कविता की नवीन विधा अगीत के संस्थापक साहित्यकार डा रंगनाथ मिश्र
सत्य का जन्म १ मार्च १९४२ को जनपद रायबरेली ( उ.प्र.) के ग्राम कुर्री सुदौली के
एक संभ्रांत कान्यकुब्ज परिवार में हुआ | आपके पिता का नाम श्री रघुनन्दन प्रसाद
एवं माता श्रीमती शिवानाथा देवी मिश्रा था| धार्मिक वातावरण में जन्मे डा सत्य जी
अपने भाइयों में सबसे छोटे थे | अल्पायु में ही पिता का निधन होने पर प्रारम्भिक
शिक्षा-दीक्षा गाँव में ही बड़े भाइयों के संरक्षण में हुई|
आपने कानपुर
श्रमिक शिक्षा केंद्र से श्रमिक-शिक्षक का प्रशिक्षण भी प्राप्त किया आगे की उच्च
शिक्षा शिक्षा लखनऊ के विद्यांत डिग्री कालेज से प्राप्त की | इन्टरमीडिएट की
परीक्षा के उपरांत उ.प्र. राज्य परिवहन
निगम कैसरबाग में अपनी सेवायें अर्पित कीं एवं साथ-साथ ही उच्च शिक्षा भी प्राप्त
करते रहे | हिन्दी-साहित्य में परास्नातक की उपाधि लखनऊ विश्वविद्यालय से करने के
उपरांत डा उषा गुप्ता के निर्देशन में ‘नए हिन्दी काव्य में कतिपय प्रमुख वाद‘ विषय पर पीएचडी
की उपाधि प्राप्त की | आप सन 2000 ई में उ.प्र. राज्य परिवहन निगम कैसरबाग में
केंद्र प्रभारी पद से सेवानिवृत्त हुए| वे हिन्दी साहित्य परिषद् के महामंत्री तथा
लखनऊ वि वि के हिन्दी विद्यार्थी परिषद् के अध्यक्ष भी रहे |
आपका विवाह
कालूखेडा उन्नाव के स्व. गंगाचरण शुक्ल की पुत्री श्रीमती कल्याणी देवी से हुआ|
आपके दो पुत्र अनुराग मिश्र व आशुतोष मिश्र एवं दो पुत्रियाँ मधु व सीमा हैं|
साहित्यिक परिचय .
क्रान्तियुगोत्तर साहित्यकार, अगीत काव्य के प्रणेता, ‘संतुलित
कहानी विधा’ के जनक एवं ‘संघीय समीक्षा पद्धति’ के अगुआ तथा आधुनिक
हिन्दी कविता और वर्तमान भारत की भाषायी व सांस्कृतिक गौरव को पहचान दिलाने में
समकालीन नव-साहित्यकारों व युवाओं के प्रेरणास्रोत डा रंगनाथ मिश्र ‘सत्य’ का नाम
हिन्दी साहित्य जगत के लिए नया नहीं है| वाल्याकाल से ही आप कविता से जुड़े रहे |
आपने तरुण साहित्यकार सम्मलेन एवं कवि कोविद क्लब के मंत्री पद से साहित्य सेवा
में अमूल्य योगदान दिया | आपने सं १९६६ में साठोत्तरी कविता जगत में अतुकांत काव्य
की एक नयी विधा ‘अगीत कविता’ को जन्म दिया|, १९७५ में ‘संतुलित
कहानी; तथा १९९८ में ‘संघीय समीक्षा पद्धति’ का प्रचलन किया
| आपका प्रथम स्वरचित काव्य संग्रह ‘बिछुड़े मीत’ १९६० में प्रकाशित
हुआ| ‘कवि सोहनलाल सुबुद्ध एक परिचय’ तथा ‘ महाकवि जगत नारायण पांडे; एक परिचय
‘ आपकी अन्य लोकप्रिय कृतियाँ हैं| आपने ‘अगीत काव्य के चौदह रत्न’, ‘अगीत के
इक्कीस स्तम्भ’, ‘अगीत काव्य के अष्टादश पथी’ एवं ‘अगीत के सोलह महारथी’ आदि
पुस्तकों का सम्पादन किया| ‘अगीतोत्सव -89’, ‘कश्मीर हमारा है’, ‘जवानो आगे
बढ़ो’ ‘पनघट’ आदि काव्य संग्रहों तथा
‘समीक्षा पद्धति की पुस्तक गुणदोष (पार्थोसेन), लघु उपन्यास ‘सुमि’ निबंध
संग्रह ‘स्वयंगंधा’, का भी संपादन किया | १९६६ से आपने लगभग १५ वर्षों तक अगीत-त्रैमासिक
पत्रिका का सम्पादन किया तत्पश्चात उनके संरक्षण में ‘अगीतायन साप्ताहिक
पत्र’ का लगातार संपादन किया जा रहा है|
आपने दर्ज़नों पुस्तकों की भूमिका लिखी जिनमें महाकाव्य, खंडकाव्य, काव्य
संग्रह भी शामिल हैं| जिनमें अगीत विधा खंडकाव्य
‘मोह व पश्चाताप’ एवं प्रथम अगीत महाकाव्य ‘सौमित्र गुणाकर ( ले.श्री जगत नारायण पांडे ) एवं सृष्टि-अगीत
विधा महाकाव्य, प्रेम काव्य—गीति-विधा महाकाव्य, शूर्पणखा-अगीत-विधा
काव्य-उपन्यास एवं अगीत विधा कविता के विधि-विधान पर शास्त्रीय-ग्रन्थ "अगीत साहित्य दर्पण ( ले. ड़ा श्याम गुप्त ) उल्लेखनीय हैं |
नियमित रूप
से आपके कार्यक्रम आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर प्रसारित होते रहते हैं| आप लगभग साढ़े
चार हज़ार से अधिक साहत्यिक व सांस्कृतिक समारोहों का आयोजन संचालन व अध्यक्षता
कुशल पूर्वक कर चुके हैं| प्रथम विश्व हिन्दी सम्मलेन नागपुर एवं हिन्दी सम्मलेन
दिल्ली में वे अ.भा. अगीत परिषद् का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं| आपके ऊपर एक लखनऊ विशाविद्यालय
द्वारा शोध-प्रबंध ‘ अगीत परिषद् साहित्यिक संस्था, एक अनुशीलन ‘ किया जा
चुका है| आपको देश भर के अनेक सम्मानों व पुरस्कारों से समानित किया जा चुका है|
संपर्क-
अगीतायन, ई-३८८५,राजाजीपुरम,लखनऊ-१७.,दू.भा. ०५२२-२४१४८१७ ..मो.९३३५९९०४३५
..
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