अगीत की शिक्षा शाला
{ अगीत विधा कविता में अगीत , लयबद्ध अगीत
,गतिमय सप्तपदी अगीत , लयबद्ध षट्पदी अगीत , नव-अगीत, त्रिपदा अगीत आदि
छः प्रकार के अतुकांत छंद प्रयोग होरहे हैं एवं सातवीं विधा 'त्रिपदा अगीत
ग़ज़ल' है|)
कार्यशाला- 6 --गतिमय सप्तपदी अगीत
यह सात पक्तियों वाली, सममात्रिक, गतिमयता व गेयता युक्त अतुकान्त छंद रचना है जिसमें प्रत्येक
पन्क्ति में--१६ मात्रायें होती हैं |यह छंद प्रवुद्ध अगीतकार पंडित जगत नारायण पण्डे ने सर्वप्रथम अपने खंडकाव्य ' मोह और पश्चाताप ' में नव-सृजित करके प्रयोग किया था |उदाहरणार्थ...
“छुब्ध होरहा है हर मानव ,
पनप रहा है वैर निरन्तर,
राम और शिव के अभाव में,
विकल हो रहीं मर्यादायें;
पीडाएं हर सकूं जगत की,
ज्ञान मुझे दो प्रभु प्रणयन का।“ --जगत नारायण पान्डे (मोह और पश्चाताप से)
" क्रोध देखकर भृगु नायक का,
मंद हुई गति धरा-गगन की;
मौन सभा मंडप में छाया |
बोले,' कौन दुष्ट है जिसने -
भंग किया पिनाक यह शिव का ;
उत्तर नहीं मिला तो तत्क्षण ,
कर दूंगा निर्वीर्य धारा को || " --महाकवि पं. जगत नारायण पांडे )
" गणनायक की कृपादृष्टि को ,
माँ वाणी ने दिया सहारा |
खुले कपाट बुद्धि के जब,
तब-
हुए शब्द-अक्षर संयोजित;
पाई
शक्ति लेखनी ने फिर|
रामानुज की विमल कथा का,
प्रणयन है अगीत शैली में ||"
------सौमित्र गुणाकर महाकाव्य से |
------क्रमश --कार्यशाला -७ --षट्पदी अगीत छंद .....