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Monday, 26 August 2013

अगीत की शिक्षा शाला -गतिमय सप्तपदी अगीत---कार्यशाला -6 ....डा श्याम गुप्त ...

                                        अगीत की शिक्षा शाला                                             

                     
{ अगीत विधा कविता में  अगीत , लयबद्ध अगीत ,गतिमय सप्तपदी अगीत , लयबद्ध षट्पदी अगीत , नव-अगीत,  त्रिपदा अगीत  आदि छः प्रकार के अतुकांत छंद प्रयोग होरहे हैं एवं  सातवीं विधा 'त्रिपदा अगीत ग़ज़ल' है|)

                             कार्यशाला- 6 --गतिमय सप्तपदी अगीत

 

         यह सात पक्तियों वाली, सममात्रिक, गतिमयता व गेयता युक्त अतुकान्त छंद रचना है जिसमें प्रत्येक पन्क्ति में--१६ मात्रायें होती हैं |यह छंद प्रवुद्ध अगीतकार पंडित जगत नारायण पण्डे ने सर्वप्रथम अपने खंडकाव्य ' मोह और पश्चाताप ' में नव-सृजित करके प्रयोग किया था |उदाहरणार्थ...
 
“छुब्ध  होरहा है हर मानव ,
पनप रहा है वैर निरन्तर,
राम और शिव के अभाव में,
विकल हो रहीं मर्यादायें;
पीडाएं हर सकूं जगत की,
ज्ञान मुझे दो प्रभु प्रणयन का।            --जगत नारायण पान्डे  (मोह और पश्चाताप से)

      
"
क्रोध देखकर भृगु नायक का,
मंद हुई  गति धरा-गगन की;
मौन  सभा मंडप में छाया |
बोले,' कौन दुष्ट है जिसने -
भंग किया पिनाक यह शिव का ;
उत्तर नहीं मिला तो तत्क्षण ,
कर दूंगा निर्वीर्य धारा को || "
  
              --महाकवि पं. जगत नारायण पांडे  )

                                                                         
" गणनायक की कृपादृष्टि को ,
माँ वाणी ने दिया सहारा |
खुले कपाट बुद्धि के जब, तब-
हुए शब्द-अक्षर संयोजित;
पाई  शक्ति लेखनी ने फिर|
रामानुज की विमल कथा का,
प्रणयन है अगीत शैली में ||"            ------सौमित्र गुणाकर महाकाव्य से |


                          ------क्रमश --कार्यशाला -७ --षट्पदी अगीत छंद  .....