सृष्टि महाकाव्य -अंतिम सर्ग- एकादश...उपसंहार......डा श्याम गुप्त.....
सृष्टि महाकाव्य-(ईषत- इच्छा या बिगबेंग--एक अनुत्तरित उत्तर )-- -------वस्तुत सृष्टि हर पल, हर कण कण में होती रहती है,यह एक सतत प्रक्रिया है , जो ब्रह्म संकल्प-(ज्ञान--ब्रह्मा को ब्रह्म द्वारा ज्ञान) ,ब्रह्म इच्छा-(एकोहं बहुस्याम ... इच्छा) व सृष्टि (क्रिया- ब्रह्मा रचयिता ) की क्रमिक प्रक्रिया है --किसी भी पल प्रत्येक कण कण में चलती रहती है, जिससे स्रिष्टि व प्रत्येक पदार्थ की उत्पत्ति होती है । प्रत्येक पदार्थ नाश(लय-प्रलय- लय ) की और प्रतिपल उन्मुख है।
(यह
महाकाव्य अगीत विधामें आधुनिक विज्ञान ,दर्शन व वैदिक-विज्ञान के
समन्वयात्मक विषय पर सर्वप्रथम रचितमहाकाव्य है , इसमेंसृष्टि की
उत्पत्ति, ब्रह्माण्ड व जीवन और मानव की उत्पत्ति के गूढ़तम विषयको सरल
भाषा मेंव्याख्यायित कियागया है | इस .महाकाव्यको हिन्दी साहित्य की
अतुकांत कविता की 'अगीत-विधा' के छंद - 'लयबद्धषटपदी अगीत छंद' -में - निवद्ध किया गया है जो एकादश सर्गों में वर्णित है).... ...... रचयिता --डा श्याम गुप्त ...
अब तक प्रस्तुत महाकाव्य में १० सर्गों में सृष्टि कैसे हुई व
जीवन कैसे उत्पन्न हुआ, लिंग-चयन आदि विषय पर अधुना-वैज्ञानिक, दार्शनिक
और वैदिक मतों व उनके समन्वय का वर्णन किया गया ...इस अंतिम सर्ग-उपसंहार - में -इस
विषय की आज के युग में क्या महत्ता है, कोई इसको क्यों पढ़े , क्या
सार्थकता है; ईश्वर, दर्शन, अध्यात्म, धर्म की क्या आवश्यकता है, ईश्वर के
होने न होने का क्या अर्थ व उपादेयता है ; विज्ञान व वैज्ञानिकों एवं
अनास्थावादियों द्वारा उठाये गए विभिन्न प्रश्नों के उत्तरों का वर्णन किया
जायगा | कुल १४ छंद...
१-
यद्यपि विज्ञान यही कहता है,
ईश्वर का क्या काम जगत में |
यह संसार स्वतः की रचना,
आदि रहित और अंत रहित है|
पर अंतस में चाह यही है,
थाह जानलें प्रभु के मन की ||
२-
प्रश्न१ ये बार बार उठते हैं,
एसा ही क्यों जगत बनाया |
अन्य विकल्प क्या क्या थे उस पर|
और ब्रह्माण्ड सृजन से पहले,
क्या करता था? चाह यही है,
थाह जानलें, उस ईश्वर की ||
३-
इन सब ही प्रश्नों के उत्तर ,
ज्ञात नहीं विज्ञान को अब तक|
पर वैदिक भण्डार ज्ञान का,
कहता है- था असद२ रूप में ;
ईश्वर सृष्टि सृजन से पहले ,
स्थिर शांत, महा-अर्णव३ में ||
४-
हैं बहुत विकल्प ईश्वर पर,
सृष्टि-सृजन की प्रक्रिया के |
नयी सृष्टि हर मन्वंतर४ में ,
रचता है वह विविधि रूप से |
पृथक मनु ऋषि देव शक्ति कण,
रचता है प्रत्येक कल्प५ में ||
५-
पाश्चात्य अध्यात्म बताता६ ,
पृथ्वी जल और अग्नि वायु से ;
यह सारा ब्रह्माण्ड बना है |
गगन७ नाम का तत्व पांचवां ,
दिया नाम विज्ञान ने ईथर,
प्रतिपादन वैदिक दर्शन का ||
६-
यही तत्व तो भाव-तत्व है,
भौतिकता से परे जगत का |
मानव-मन का अतल गहन तल,
महाकाश है महाविष्णु का ;
भव-सागर है आत्मतत्व का,
ओंकार गुंजित अर्णव है ||
७-
इसी तत्व के भाव जगत में,
मानव मन की गहराई के;
सत्य दया करूणा परहित औ,
ईश्वर-प्रेम के भाव बिचरते |
मानव-प्रेम से जग हो सुन्दर,
सत्य औ शिव संकल्प उभरते ||
८-
नव-विज्ञान के सभी तथ्य भी,
वैदिक तथ्यों की ही गाथा |
कण उपकण परमाणु और अणु,
बनाने की रासायनिक क्रिया ;
यग्य-प्रक्रिया है ब्रह्मा की ,
और विस्फोट८ संकल्प ब्रह्म का ||
९-
इस संकल्प की हलचल से ही,
आदि-ऊर्जा कण बन जाते |
सभी देव ही ऊर्जा कण हैं ,
आत्म-रूप ईश्वर का मिलकर,
गति, जीवन मिलता है कण को;
पृथ्वी पर जीवन लहराता ||
१०-
जब फैलाव अधिक होजाता,
अति-शीतल ब्रह्माण्ड होगया|
कण-प्रतिकण स्थिर होजाते,
यह ब्रह्माण्ड सिकुड़ने लगता;
लय-संकल्प परम-ईश्वर का,
रचाने को इक नई श्रृष्टि फिर ||
११-
"एकोहं बहुस्यामि "९ और,
" अब मैं पुनः एक होजाऊँ "१०
के संकल्प ही तो कारण हैं ,
सृष्टि और लय की क्रिया के |
स्वतः फैलना और सिकुड़ना ,
कहता है विज्ञान इसी को ||
१२-
नहीं महत्ता इसकी है कि,
ईश्वर ने यह जगत बनाया|
अथवा वैज्ञानिक भाषा में ,
आदि-अंत बिन, स्वतः रच गया |
अथवा ईश्वर की सत्ता है,
अथवा ईश्वर कहीं नहीं है ||
१३-
यदि मानव खुद ही कर्ता है,
और स्वयं ही भाग्यविधाता |
इसी सोच का यदि पोषण हो,
अहं- भाव जाग्रत होजाता |
मानव संभ्रम में घिर जाता,
और पतन की राह यही है ||
१४-
पर ईश्वर है जगत-नियंता,
कोई है अपने ऊपर भी |
रहे तिरोहित अहं-भाव सब,
सत्व गुणों से युत हो मानव;
सत्यं शिवं भाव अपनाता,
सारा जग सुन्दर११ होजाता ||
----इति--- सृष्टि महाकाव्य .....
{कुंजिका--१= 'ओरिजिन
एंड फेट ऑफ़ यूनिवर्स' .( विश्व-विख्यात अंतरिक्ष वैज्ञानिक -.स्टीफन
डव्ल्यू हाकिंस) ...में उठाये गए ईश्वर व सृष्टि विषयक विभिन्न वैज्ञानिक प्रश्न ....जो वास्तव में विज्ञान की ईश्वर को जानने की ही इच्छा का प्रतिबिम्ब है |; २= अव्यक्त रूप में ; ३= गगन या ईथर, महाकाश, शून्य, क्षीर सागर, मानव अंतस, अंतरिक्ष ; ४=कल्प का एक भाग -१ कल्प=१४ मन्वन्तर, १ मन्वंतर =३०६७२०००० मानव वर्ष ); ५=
कल्प --आज तक समय की सबसे बड़ी नाप जो सिर्फ हिन्दू ग्रंथों में है , १
कल्प =चार अरब ३२ करोड़ मानव वर्ष , प्रत्येक कल्प के पश्चात प्रलय होती है
और पुनः सृष्टि रचना होती है |; ६= अरस्तू के अनुसार सिर्फ चार तत्व होते थे..अर्थ, एयर, फायर, वाटर ..( ए ब्रीफ हिस्टरी ऑफ़ टाइम..स्टीफन हाकिंस )..; ७= पांचवां तत्व जो सर्वप्रथम वैदिक साहित्य में वर्णित है ; ८= बिग-बेंग --जिससे आधुनिक-विज्ञान के अनुसार सृष्टि-प्रक्रिया प्रारम्भ हुई |; ९= सृष्टि सृजन का ब्रह्म-संकल्प..; १०= अनेकता ( सृष्टि -फैलाव ) से एकात्मकता प्राप्ति का ब्रह्म संकल्प |; ११= सत्यं
शिवं सुन्दरं ---भारतीय-वैदिक- मूल-कार्य प्रणाली का मूल भाव -तत्व
--प्रत्येक कार्य, वस्तु, तथ्य, विचार, व्यापार,---सत्यं, शिवं सुन्दरम की
कसौटी पर खरा उतरने के बाद ही कार्यरूप में लाया जाना चाहिए |}