अर्थ
अर्थ, स्वयं
ही एक अनर्थ है;
मन में भय चिंता भ्रम
की -
उत्पत्ति में समर्थ है |
इसकी प्राप्ति,
रक्षण एवं उपयोग में भी ,
करना पडता
है कठोर
श्रम ;
आज है, कल होगा या होगा नष्ट-
इसका नहीं
है कोई निश्चित क्रम |
अर्थ, मानव
के पतन में समर्थ है ,
फिर भी, जीवन के -
सभी अर्थों
का अर्थ
है ||
अर्थ-हीन अर्थ
अर्थहीन सब अर्थ होगये ,
तुम जबसे राहों में खोये |
शब्द छंद रस व्यर्थ होगये,
जब से तुम्हें भुलाया मैंने |
मैंने तुमको भुला दिया है ,
यह तो -कलम यूंही कह बैठी ;
कल जब तुम स्वप्नों में आकर ,
नयनों में आंसू भर लाये ;
छलक उठी थी स्याही मन की |