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Saturday, 9 June 2012

श्याम स्मृति ....आधुनिक मनुस्मृति ...डा श्याम गुप्त के चार अगीत ...

       पुत्र
वे चलते थे ,
पिता के, अग्रजों के पदचिन्हों पर-
ससम्मान, सादर सानंद,
आग्यानत  होकर -
देश राष्ट्र समाज उन्नतिहित ,
सुपुत्र  कहलाते थे |
आज वे पिताको, अग्रजों को,
मनमर्जी से चलाते हैं ,एन्जॉय करने हेतु,
अवज्ञारत होकर ,
स्वयं को एडवांस्ड बताते हैं ,
सनी  कहलाते हैं |


सुख-चैन
 वह दिनरात ,
जी तोडकर,सुखचैन छोडकर -
सुख-साधन के -
उपकरण बनाने में जुटा है , ताकि-
 जी सके..सुख चैन से |


राजनीतिज्ञ
वह जो ठीक लगता था ,
वही करता था;
सत्य-नीति पर चलता था |
आज वह सभ्य  होगया है -
सत्य से शर्माता है,
सच को भी चासनी में लपेट कर बताता है ,
राजनीतिज्ञ कहलाता है |


ईश्वर 
वह ईश्वर व उसके गुणों को -
ह्रदय में धारण करता था ;
कहीं भी पूजा, आवाहन कर-
साक्षात् दर्शन पाता  था |
जब  उसने मंदिर-मूर्तियों को मन लगाया,
ईश्वर बताया ,
तब से आज तक-
ईश्वर को नहीं पाया |