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Saturday, 10 November 2012

सृष्टि महाकाव्य-नवम सर्ग---प्रज़ा खंड...डा श्याम गुप्त......

सृष्टि महाकाव्य-नवम सर्ग---प्रज़ा खंड....









         सृष्टि महाकाव्य-(ईषत- इच्छा या बिगबेंग--एक अनुत्तरित उत्तर )-- -------वस्तुत सृष्टि हर पल, हर कण कण में होती रहती है,यह एक सतत प्रक्रिया है , जो ब्रह्म संकल्प-(ज्ञान--ब्रह्मा को ब्रह्म द्वारा ज्ञान) ,ब्रह्म इच्छा-(एकोहं बहुस्याम ... इच्छा) सृष्टि (क्रिया- ब्रह्मा रचयिता ) की क्रमिक प्रक्रिया है --किसी भी पल प्रत्येक कण कण में चलती रहती है, जिससे स्रिष्टि व प्रत्येक पदार्थ की उत्पत्ति होती हैप्रत्येक पदार्थ नाश(लय-प्रलय- शिव ) की और प्रतिपल उन्मुख है
 
(यह महाकाव्य अगीत विधामें आधुनिक विज्ञान ,दर्शन व वैदिक-विज्ञान के समन्वयात्मक विषय पर सर्वप्रथम रचितमहाकाव्य है , इसमेंसृष्टि की उत्पत्ति, ब्रह्माण्ड व जीवन और मानव की उत्पत्ति के गूढ़तम विषयको सरल भाषा मेंव्याख्यायित कियागया है | इस .महाकाव्यको हिन्दी साहित्य की अतुकांत कविता की 'अगीत-विधा' के छंद - 'लयबद्धषटपदी अगीत छंद' -में - निवद्ध किया गया है जो एकादश सर्गों में वर्णित है).... ...... रचयिता --डा श्याम गुप्त ...

                              पिछले अष्टम सर्ग में मानव व अन्य जीव सृष्टि का वर्णन किया गया था | प्रस्तुत नवम सर्ग-प्रजा खंड में मानव व मानवेतर की विभिन्न भाव-सृष्टियों द्वारा उत्पत्ति  व स्वचालित प्रज़नन प्रक्रिया -मैथुनी -भाव(automatic sexual reproduction ) का अवतरण, तत्पश्चात समस्त जीव सृष्टि व मानव में काम भाव , मैथुनी भाव द्वारा सतत वृद्धि के प्रारम्भ के बारे में वर्णन किया जायगा | कुल छंद ..१३....
१-
मन : संकल्प और शरीरांश से,
सत तम रज के रूप भाव से ,
बृक्ष, देव,पर्वत, जड़-जंगम ;
सारी सृष्टि रची ब्रह्मा ने |
उत्तम पुरुष-भाव युत मानव ,
सर्वोत्तम कृति रचयिता की ||
२-
मानव के विस्तार हेतु , फिर-
ब्रह्मा ने संकल्प- भाव से;
सनक सनंदन और सनातन-
सनत्कुमार ऋषि स्वयं रचाए |
रमे नहीं वे प्रजा-भाव में ,
योग साधना भाव लिए थे ||
३-
नारद, भृगु और कर्म, प्रचेतस
प्रलह,अंगिरस, क्रतु,पुलस्त्य सब ;
अत्रि,मरीचि,दस महर्षि-प्रजापति-
रचे, विविध प्रयोग धर्मी थे |
देव, ऋषि,गन्धर्व, अप्सरा -
यक्ष, असुर सब योनि रच गईं ||
४-
भृगु,पुलस्त्य,मरीचि,अंगिरा,
क्रतु,वशिष्ठ,अत्रि, पुलह और -
दक्ष आदि नौ मानस सुत ,और
ख्याति भूति सम्भूति प्रीति व ,
क्षमा प्रसूति आदि नौ कन्या ;
मानस-सृष्टि रची ब्रह्मा ने ||
५-
तप संकल्प२ ,स्पर्श भाव३ युत,
संतति-वृद्धि में थे प्रवृत्त सब |
किंतु नहीं था निश्चित क्रम कुछ ,
सतत निरंतर संवर्धन का४ |
चिंतित ब्रह्मा ध्यान-मग्न हो,
करने लगे स्मरण प्रभु का ||
६-
चिंतित ब्रह्मा ध्यान मग्न थे ,
कैसे क्या उपक्रम हो जिससे;
मानव की संख्या बढ़ जाए |
कुछ ऐसी हो स्वतः प्रक्रिया ,
मानव स्वयं को रचता जाए ;
बढ़ती जाए प्रजा स्वयं ही ||
७-
चिंतित ब्रह्मा के ललाट से,
हुए प्रकट तब रूद्रदेव , जो-
महाविष्णु की इच्छा रूपी,
आदि शक्ति की स्फुरणा से ;
शंभु-महेश्वर और माया का,
लिंग रूप था नर-नारी का ||
८-
आधा नर, आधा नारी का,
रूप लिए थे रुद्रदेव५ जो -
अर्धनारीश्वर रूप स्वयंभू ,
पुरुष रूप थे लिंग-महेश्वर;
नारी माया -योनि स्वरूपा ,
आदि योग माया जो शंभु की ||
९-
नर नारी भागों को स्वयं के,
किया विभाजित रुद्रदेव ने |
सौम्य-क्रूर,श्यामा-गौरी और-
शांत-अशांत,शीला औ अशीला ,
आदिक ग्यारह भाव नारियां ;
ग्यारह नर६ के भाव बन गए ||
१०-
स्वयं भाव७ रूप ब्रह्मा का ,
नर -नारी में हुआ विभाजित;
प्रथम मनु-नर भाग कहाया ,
नारी भाग बनी शतरूपा |
सब नर नारी भाव रूद्र के,
हुए समाहित इन दोनों में ||
११-
मनु-शतरूपा में स्फुरणा,
काम-भाव की हुई पल्लवित ;
लिंग-महेश्वर और माया के,
स्वयं समाहित होजाने से |
काम-सृष्टि का प्रथम वार तब,
आविर्भाव होगया जग में ||
१२-
मन-संकल्प,स्पर्श-भाव युत,
काम-भाव८ से भी प्रेरित हो;
मनु-शतरूपा बन पति-पत्नी ,
रचाने लगे मानवी संतति |
प्रथम काम संकल्पित संतति,
प्रियव्रत और उत्तानपाद थे ||
१३-
महा प्रतापी भरत हुए थे,
प्रियव्रत-कुल में,नाम से जिनके-
आर्यावर्त, भारत कहलाया |
ध्रुव महान , उत्तानपाद कुल
महा तपस्वी अतुल भक्त थे,
जिनसे धन्य हुई यह धरणी || ----नवम सर्ग समाप्त........क्रमश...दशम सर्ग....

(कुंजिका----१= सनक, सनंदन, सनातन व सनत्कुमार ...सर्वप्रथम रचित मानव ...जो सदा नग्न ऋषि के रूप में दिखाए जाते हैं , ये ब्रह्मा की संकल्प से रचे मानव थे अतः कोई काम( अलिन्गी -asexual- सृष्टि ) व कर्म भावना न होने से सदा तपस्या-रत रहने लगे ...२= तप व संकल्प मात्र से मानव आदि के सृजन की प्रक्रिया ...३= सिर्फ स्पर्श से किसी जीव का सृजन की प्रक्रिया (क्लोनिंग )...४= लगातार अपने आप मानव व जीवों के सृजन की स्वतः प्रक्रिया ....५= आदि-शिव, रूद्र रूप , अर्धनारीश्वर (उभयलिंगी-bisexual- ) का प्रादुर्भाव ...६= ग्यारह नर व नारी भावों के जोड़े ( गुणात्मक व ऋणात्मक भावों के युग्म जो बाद में मानव व्यवहार के मूल गुण बने ) जो नर-नारी शरीर के साथ प्रत्येक प्राणी में नर-नारी भाव व मैथुनी -प्रक्रिया बन कर प्रतिष्ठित हुए ...७= ब्रह्मा का मूल शरीर -जो विभाजित होकर स्त्री-पुरुष बना ... ८= काम भाव --स्त्री-पुरुष के संयोग ,मैथुनी प्रक्रिया से संतति उत्पन्न करने का मूल- भाव ..जो सदा के लिए प्रत्येक जीवधारी के स्वतः -प्रज़नन द्वारा संतति -वृद्धि का उपादान बना |)