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Tuesday, 15 May 2012

कविवर डी तन्गवेलन की हिन्दी कविता --मातृत्व की महक ... डा श्याम गुप्त


                 
          
                                      चित्तूर, आंध्रप्रदेश में जन्मे, तमिल भाषी ' बेंगलूर में कर्नाटक हिन्दी प्रचार समिति, में कार्यरत, प्रबंध व परिक्षा मंत्री (मानद)- कविवर श्री डी तन्गवेलन ' सहृदय'  ने बनारस हिन्दू वि वि , वाराणसी से एम ए (हिन्दी ) किया| वे तमिल, तेलगू .कन्नड़, हिन्दी व अंग्रेज़ी में नाटक, निबंध  लिखते थे| आपने ८१ वर्ष की उम्र में कविता लिखना प्रारम्भ किया और अपने ८१ वें जन्म दिन पर ८१ कविताओं का संग्रह 'जीवन-शोध' प्रकाशित किया |यह काव्य-संग्रह मुझे सौभाग्य से अपने उपन्यास 'इन्द्रधनुष' के लोकार्पण समारोह पर मेरे सम्मानार्थ प्रदत्त साहित्य के साथ  प्राप्त हुआ।  जीवन के सत्य से अनुप्राणित आपकी कवितायें सामान्य भाषा व उक्तियों में सशक्त अन्योक्तियों के माध्यम से व्यंजना गुण युक्त महत्वपूर्ण  सामाजिक सन्देश प्रसारित करती हैं । संस्कृत-निष्ठ हिन्दी, तमिल-तेलगू निष्ठ स्वर-भाष व अगीत काव्य की भांति अतुकांत गीत-बंद युक्त छंद  इसकी विशेषता है |   एक कविता 'मातृत्व की महक' प्रस्तुत है| ।
गमले के खिले गुलाब ने चलते
कविवर डी तंगवेलन 'सहृदय'
चंचल पवन से भरते अठखेलियाँ ,
अपने गमले की बंदी मिटते से,
सहज कुतूहलवश प्रश्न किया|
'क्या तुझे पास की मिट्टी से
 मिलजुल कर  सदा मोद  से,
मन  बहलाने की मह्दिच्छा मधुर 
कभी न मचली अंतराल से ।'
गमले की मिट्टी ने हंसकर कहा,
'क्यों नहीं होती ! रहती हर दम 
मैं अपने इर्द-गिर्द की सखियों से 
हिले-मिले मन फूले रहती ।
अब भी है मन होता, गले मिलूँ 
मगर मैं ने अपना घर अलग
बसालिया, जो मेरा बहु प्यारा
मानों, मन इससे चिपक गया ।
मेरी थी एक अदम्य कामना
मेरा स्तन्य पीता बालक
घुटनों के बल चलें इस आँगन में ,
दिन रात की मांग, भगवान से ।
मेरे इस सपने को चरितार्थ
करने तू आया आँगन में ।
जन्म देकर तुझे, मैं धन्य हुई,
सार्थक मेरा यह जन्म हुआ ।
कहता जिसे तू बंधन, वह है
वास्तव में मेरा सौभाग्य ,
जो करता स्वर्ग का अवहेलन
है मुक्ति को दूर से सलाम ।'
सुन मातृहृदय का उमडा उद्गार
स्नेह स्निग्ध कामना मंगल ,
फूल खिला, मिला जगत को सुगंध
अनन्य अन्वय अलंकार ।।