अगीत की शिक्षाशाला.....कार्यशाला 20 .... अगीत छंद व उनका रचना विधान..... त्रिपदा अगीत ग़ज़ल.....
अगीत की शिक्षाशाला.... अगीत में रस छंद अलंकार योजना---क्रमश ... अगीत- छंद.... त्रिपदा अगीत ग़ज़ल.....
( लय व गति काव्य-विधा के अपरिहार्य तत्व व विशेषताएं हैं जो इसे गद्य-विधा से पृथक करती
है | यति --काव्य को संगीतमयता के आरोह-अवरोह के साथ कथ्य व भाव को अगले स्तर पर परिवर्तन की
स्पष्टता से विषय सम्प्रेषण को आगे बढाती है | तुकांत बद्धता ..काव्य के शिल्प सौंदर्य को बढाती है परन्तु
संक्षिप्तता, शीघ्र भाव-सम्प्रेषणता व अर्थ-प्रतीति का ह्रास करती है | अतः वैदिक छंदों व ऋचाओं की अनुरूपता
व तादाम्य लेते हुए अगीत मूलतः अतुकांत छंद है | हाँ लय व गति इसके अनिवार्य तत्व हैं तथा तुकांत, यति,
मात्रा व गेयता का बंधन नहीं है | अगीत वस्तुतः अतुकांत गीत है |
अगीत कविता का मुख्य अभिप्राय: है राष्ट्र, समाज व जमीन से जुडी वह छोटी अतुकांत कविता जो पांच से दस पंक्तियों से कम या अधिक की न हो | जिसमें लय व गति हो, गेयता का बंधन न हो एवं मात्रा- बंधन भी आवश्यक नहीं | वर्तमान में अगीत काव्य-विधा में प्रचलित व प्रयोग होरहे विविध छंदों का नीचे वर्णन किया जा रहा है | वे छंद ये हैं-----
१- अगीत छंद ......२-लयबद्ध अगीत ३-गतिमय सप्तपदी अगीत ४-लयबद्ध षटपदी अगीत ५-नव-अगीत ६-त्रिपदा अगीत ७-त्रिपदा अगीत गज़ल ... )
७.त्रिपदा अगीत गज़ल-– तीन तीन पंक्तियों की ...त्रिपदा-अगीत
छन्दों की मालिका.....
इसका रचना
विधान निम्न
है .....
१.त्रिपदा
अगीत छंदों
की मालिका
जिसमें तीन
या अधिक
छंद होने
चाहिए |
२.प्रथम
छंद की
तीनों पंक्तियों
के अंत
में वही
शब्द आवृत्ति
होनी चाहिए |
३.शेष
छंदों में
वही शब्द
आवृत्ति अंतिम
पंक्ति में
आना आवश्यक
है |
४.अंतिम
छंद में
कवि अपनी
इच्छानुसार अपना
नाम या
उपनाम रख
सकता है
|
भग्न अतीत की न बात करें,
व्यर्थ बात की क्या बात करें;
अब नवोन्मेष की बात करें।
यदि महलों मैं जीवन हंसता,
झोंपडियों में जीवन पलता;
क्या ऊंच नीच की बात करें।
शीश झुकायें क्यों पश्चिम को,
क्यों अतीत से हम भरमायें;
कुछ आदर्शों की बात करें ।
शास्त्र ,बडे बूडे ओ बालक,
है सम्मान देना पाना तो;
मत श्याम व्यन्ग्य की बात करें ।
--डा श्याम गुप्त
ग़ज़ल....
पागल दिल
क्यों पागल
दिल हर
पल उलझे
,
जाने क्यों
किस जिद
में उलझे
;
सुलझे कभी,
कभी फिर
उलझे |
तरह-तरह से
समझा देखा
,
पर दिल
है उलझा
जाता है
;
क्यों ऐसे
पागल से
उलझे |
धडकन बढती
जाती दिल
की,
कहता बातें
किस्म किस्म
की ;
ज्यों काँटों
में आँचल
उलझे
||
---डा श्याम
गुप्त
---- क्रमश: ...काव्य के गुण व अगीत.....