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Thursday, 11 October 2012

अगीत साहित्य दर्पण( क्रमश:) अध्याय-५ ..भाग दो...

                                    अगीत की भाव संपदा ( भाग दो )--पिछली पोस्ट से आगे ...

              अनियंत्रित विकास हो या जीवन व्यापार अति सभी की बुरी है | अगीतों  में इनकी  हानियों  व प्रभावों को खूब उजागर किया है | यांत्रिकता व सामयिक यथार्थ, पर्यावरण, प्रदूषण पर भी कलम चली है ----

" रात भर काल सेंटर पर,
जागते  हैं ,
भारत के युवक ;
दिन भर सोता है ,
भारत का भाग्य | "                                          -------स्नेह प्रभा

" मैले कुचले, फटे बसनों में,
लौह की एक शलाका,
लिए हाथों में --
यहाँ वहाँ कूडे  के ढेर में,
नंगे पग, दौड़-दौड़ 
ढूँढ  रहे जिंदगी | "                                             ----- राम कृपाल 'ज्योति'

"  सभ्यता की अटारी पर ,
जब आधुनिक नारी चढी ;
तो उसे पसीना छूटने लगा,
वह अपना लिबास ,
फैंकने लगी | "                                               ------ विनय शंकर दीक्षित

" सावन सूखा बीत गया तो,
दोष बहारों को मत देना ;
तुमने सागर किया प्रदूषित | "                        ---- डा श्याम गुप्त   

                         नारी-पुरुष व समाज का त्रिआयामी विमर्श  अगीतकारों की एक अन्य विशेष भूमि है | सिर्फ फैशन, स्मार्टनेस , कपडे-गहने , सजाने-सजाने, पुरुषों की बराबरी या उन्हें अपमानित करने में नारी स्वाधीनता निहित नहीं है | नियम-निषेध तीनों के लिए आवश्यक हैं तभी समन्वय होता है एवं समन्वयात्मक समाज की स्थापना -----
"  पुरुष ने नारीको,
देकर  केवल अपना नाम ;
छीन  ली बदले में
उसकी हर सुबह ,
हर शाम | "                                        -------मंजू सक्सेना 'विनोद'

" अज्ञान तमिस्रा मिटाकर,
आर्थिक रूप से,
समृद्ध होगी, सुबुद्ध होगी ;
नारी ! तू तभी-
स्वतंत्र होगी,
प्रबुद्ध होगी | "                                         ----- सुषमा गुप्ता

" नारी    केन्द्र - बिंदु   है   भ्राता !
व्यष्टि,समष्टि,राष्ट्र की,जग की |
इसीलिये तो वह अबध्य  है,
और  सदा सम्माननीय भी |
लेकिन वह भी तो मानव है,
नियम-निषेध मानने होंगे | "              ----- शूर्पणखा काव्य-उपन्यास से ( डा श्याम गुप्त )

" कर रहे हो ह्त्या तुम,
कन्या के भ्रूण की |
कर रहे पाप छीन के जीवन ,
भविष्य की मां का तुम |
जन्म कौन देगा फिर ,
पैगम्बरों को,
अवतारों को | "                                 ------ अगीतिका में ( पं.जगत नारायण पाण्डेय )

                    प्रकृति वर्णन, हास्य-व्यंग्य, लास्य व सौंदर्य, प्रेम आदि भावों से भी अगीत कविता अछूती नहीं रही है -----
" ओ बसंत ! फिर आना
सिहरन के साथ |
तेरे आने की 
आहट मिल जाती है;
पाहुन से मिलने की,
इच्छा तडपाती है ;
ओ  बसंत ! फिर आना ,
मनसिज के साथ | "                                     ---- डा सत्य

" चंचला ,
तेरी मधुर मुस्कान से 
मेरा ह्रदय पिघल जाता है |
तुझे पाने के लिए
मैं अपना ,
सर्वस्व लुटा देता हूँ | "                                 ------ सुरेन्द्र कुमार वर्मा

" नई वैज्ञानिक खोज 
आधुनिक स्टोव;
तेल खर्च सीमित 
समय बचाता है ;
सास नन्द सुरक्षित,
बहू जलाता है | "                                           ----- सुभाष हुडदंगी

" तेरे संग हर ऋतु  मस्तानी ,
हर बात लगे नई कहानी ;
 रात दिवानी सुबह सुहानी| "                          ---डा श्याम गुप्त

                                         संस्कृति, आस्था, मनोविज्ञान, धर्म, दर्शन  एवं दर्शन के उच्चतम रूप वेदान्त में अवस्थित भारतीय आस्तिकता,....   मानवता, शोषण ,साम्प्रदायिकता के भाव  प्रस्तुत हैं------   

" गरीब के पसीने से,
अपना घर सजाया है;
किसी ने तख़्त,
किसी ने -
ताज बनाया है | "                                      ----- धन सिंह मेहता

" मृत्यु देखकर 
हम अमरत्व चाहते हैं;
और मृत्यु के बिना 
अमरत्व अर्थ हीन होता है |
फिर  अनेक यत्न करते हैं,
लेकिन अमरत्व अप्राप्य है,
मृत्यु एक सत्य है,
अमरत्व एक आशा | "                               ----- नरेश चन्द्र श्रीवास्तव


" समस्त सौर प्रणालियाँ ,
 समस्त कार्बनिक सिद्धांत,
समस्त प्राकृतिक संपदा 
समस्त बुद्धिजीवी 
समस्त दिव्य अग्नि,
आपसे पाकर 
हम धन्य हुए,
अपनी कृपाओं से हमें कृतार्थ करें | "                ---- धुरेन्द्र स्वरुप बिसारिया ( दिव्य अगीत से )    

" क्यों पश्चिम अपनाया जाए,
सूरज उगता है पूरब में;
पश्चिम में तो ढलना निश्चित | "                     --- डा श्याम गुप्त   

" काश कोई ऐसा धर्म होता,
जो प्रबचन के साथ-
रोटी भी देता;
ताकि मनुष्य धर्म से-
अधर्म की ओर न जाता | "                               ----- पार्थो सेन

" आस्था के द्वार से,
आस्था के द्वार तक;
यात्रा  ही यात्रा है,
जीवन के पार तक | "                                        -----डा मिथिलेश दीक्षित,शिकोहा बाद 

" जिस दिन,
धर्म  से मुक्त राजनीति होगी:
उसी  दि साम्प्रदायवाद की 
अवनति होगी | "                                             --- जवाहर लाल 'मधुकर' चेन्नई

                       एतिहासिक सन्दर्भ, दृष्टांत, व्यंजनात्मक अन्योक्ति व अन्य दूरस्थ भाव भी अगीत कवियों ने खूब प्रयोग किये हैं -----
" दुर्योधन !
ठगे रह गए थे तुम, देखकर--
'सारी बीच नारी है
या नारी बीच सारी है '
आज भी सफल नहीं होपाओगे;
 साडी-हीन नारी देख,
ठगे रह जाओगे | "                                 ----डा श्याम गुप्त ( श्याम स्मृति से )

" अकेला मन,
कुछ तलाशता है ;
आस-पास कुछ समेटता है,
शायद इसी में मिल जाय-
खोई हुई खुशी;
पता नहीं क्यों नहीं की 
उसने खुद्कुशी | "                                 ---- विजय कुमारी मौर्या

                     अंत में शब्दमिति अर्थात संक्षिप्तता के साथ विभिन्न भावों पर नए नए विचार-भाव, नवीन सन्दर्भ व युवा-मन के भाव  भी  खूब प्रदर्शित हुए हैं ------

" असत्य ने 
सत्य के वक्ष पर,
तांडव किया;
औ चीख चीख कर कहा ,
देखो,
मैं विजित हुआ | "                                 ----डा योगेश गुप्त

" चित्र खिंचा,
मैं हुई निस्तब्ध ;
कलपना यथार्थ का मिश्रण ,
खड़ी खड़ी मैं हुई निरुत्तर;
मैं तटस्थ होकर भी -
निरुत्तर | "                                         ----गीता आकांक्षा

" पकड़ ली जब खाट
तब देखा कभी नहीं ,
मरने के बाद-
कह रहे,
अच्छा इंसान था | "                           ----- देवेश द्विवेदी ' देवेश" 

" यह अ.जा. का 
यह अ.ज.जा. का 
यह अन्य पिछडों का 
यह सवर्णों का,
कहाँ है --
मेरा राष्ट्र, मेरा देश ? "                       ---- डा श्याम गुप्त   

                 अतः  निश्चय ही अगीत-विधा भाव-पक्ष-प्रधान एक सशक्त काव्य-विधा है | अगीत रचनाओं व कृतियों में सशक्त, समर्थ व संपन्न भाव-संपदा के सम्यक दर्शन होते हैं |

                                                             अध्याय -५ समाप्त......
                                     क्रमश: अगीत साहित्य दर्पण -अध्याय -६ अगले पोस्ट में ....