अगीत साहित्य दर्पण -तृतीय अध्याय ---वर्तमान परिदृश्य एवं भविष्य की संभावना
यदि हिन्दी भाषा व साहित्य के वर्तमान परिदृश्य पर एक गहन दृष्टि डाली जाय तो
अगीत का एक विस्तृत फलक दृश्यमान होता है | आज
अगीत के अगणित कवि, साहित्यकार, रचनाकार व प्रशंसक समस्त लखनऊ नगर में ही नहीं अपितु समस्त प्रदेश, राष्ट्र व
विश्वभर में फैले दिखाई देते हैं| अगीत आज देश की सीमाओं को पार करके
अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर भी अपनी छटा व सौरभ बिखेरता दिखाई देता है | साहित्यिक जगत के अतिरिक्त देश के विश्वविद्यालयों व संस्थाओं में अगीत की चर्चा होती है एवं पढ़ाया जाता है | स्नातकोत्तर स्तर तक परीक्षाओं में प्रश्न पूछे जाते हैं | एक साक्षात्कार में
अगीत के प्रणेता डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' का कथन है कि..
" अगीत, हिन्दी भाषा व हिन्दी साहित्य को गति व दिशा देने में सहायक, सक्षम व सफल है ; इसीलिये यह आज विश्वभर में फ़ैल रहा है और मैं भविष्य के प्रति आशान्वित हूँ |"... निश्चय ही अगीत एक दिन हिन्दी साहित्य के साथ साथ अन्य विश्व साहित्य में भी अपना स्थान बनाने में सफल होगा |
अंतर्राष्ट्रीय सन्दर्भ में अगीत रचनाओं के कुछ उदहारण अगीत के विस्तृत फलक को दृष्टि देते हैं.....
" ख्याल मेरे तो,
रूह की चुनरी पर काढते रहते हैं फूल;
तू एक भूली-बिसरी याद जैसे एक तस्वीर;
और मैं , इस तस्वीर का खाली फ्रेम,
लकड़ी का चौखटा तथा आंसुओं की किश्ती ,
सोच की सुई, चुप का पानी,
निराशा का गरल |" ---- वक्शीश कौर सन्धू ( प्रवासी भारतीय -अमेरिका )
" गीत गज़ल लिखने से अच्छा है ,
रोते बच्चे को बाहों में उठा लेना ;
काम करती थकती पत्नी का,
सहायक बन, घर संवार देना ;
खर-पतवार निरा देना,
प्यासे पेड़ों को पानी पिलाना |" ---- कैलाश नाथ तिवारी, अमेरिका ( प्रवासी के स्वर से )
" हम मरते हैं,
कटते हैं,
सामस्यायें मौन खड़ी हैं,
बे परिणाम |" ----सुरेश चन्द्र शुक्ल, नार्वे
रूसी भाषाविद साहित्यकार श्री संगमलाल मालवीय , नई दिल्ली ---अपने एक लेख में लिखते हैं ---
"आधुनिक हिन्दी साहित्य में अगीत साठोत्तरी देन है इसलिए 'अगीत' के नाम से स्कूली बच्चों तक को मोह होगया है | क्या आश्चर्य पाठ्य-पुस्तकों में रचयिता कभी 'अ' अनार की जगह 'अ' माने अगीत लिखना ही पसंद करें |"
अगीत विधा के प्रसार व प्रचार व काव्य रचना में लिप्त कवियों, कथाकारों, समीक्षकों व अन्य साहित्यकारों का एक बड़ा वर्ग एवंडा सत्य के शिष्य-शियाओं का, श्रोताओं का, प्रशंसकों व सद्भावी लोगों का एक बहुत बड़ा वर्ग देश भर में एवं अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर फैला है जिससे प्रेरित होकर
कविवर सोहन लाल 'सुबुद्ध ' को कहना पड़ा----
" चलाई कविवर सत्य ने कविता विधा अगीत,
जिससे जुड चर्चित हुए बहुतेरे कवि मीत |"
आज अगीत -विधा के विभिन्न रचनाकारों व कवियों को काव्य- गोष्ठियों, सम्मेलनों, रेडियो-दूरदर्शन व विचार मंचों पर अगीत के प्रतिनिधि के रूप में बुलाया जाता है | राष्ट्रीय स्तर के समारोहों में देश भर की विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मान दिया जाता है |
अगीत रचनाओं में संलग्न कवियों, कृतिकारों,साहित्यकारों द्वारा विभिन्न काव्यगोष्ठियों , कवि सम्मेलनों व विचार मंचों का आयोजन किया जा रहा है | वर्तमान में माह के प्रत्येक प्रथम रविवार को डा सत्य के आवास
'अगीतायन' राजाजी पुरम में काव्य-गोष्ठी का बृहद आयोजन होता है तथा नगर के विभिन्न आयोजनों व साहित्यिक विचार मंचों का आयोजन, संचालन अगीत परिषद के संयुक्त तत्वावधान में किया जाता है |
प्रत्येक वर्ष एक मार्च को अगीत व अगीत परिषद के संस्थापक डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' के जन्म दिवस पर अगीत विधा रचनाकारों द्वारा
'साहित्यकार दिवस' मनाया जाता है इस वृहद आयोजन में रचनाकारों व कवियों को विभिन्न सम्मानों से सम्मानित किया जाता है | प्रत्येक वर्ष बाबा रविकांत खरे, संस्थापक, व अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष ,'
अखिल भारत वैचारिक क्रान्ति मंच ' एवं '
अखिल भारतीय अगीत परिषद' के संयुक्त तत्वावधान में
कवि संगम, कवि मेला, कवि कुम्भ आदि का आयोजन राष्ट्रीय स्तर पर देश के विभिन्न भागों में किया जाता है ; जिसमें देश-विदेश के कवि, साहित्यकार, विचारक, चिन्तक विद्वान साहित्य, समाज व राष्ट्रीय महत्त्व के सम-सामयिक विषयों पर विचार-विमर्श व विचार-मंथन करते हैं एवं रचनाएँ व कृतियाँ प्रस्तुत की जाती हैं |
अगीत आंदोलन को वर्तमान में गति देने में डा सत्य द्वारा स्थापित साप्ताहिक समाचार पात्र
"अगीतायन" का विशेष महत्वपूर्ण स्थान रहता है | इसके संपादक
श्री अनुराग मिश्र वर्षों से अगीत को गति देने के पुनीत कार्य में संलग्न हैं| यह अगीत का मुखपत्र अगीत के प्रचार-प्रसार के अतिरिक्त काव्य की हर विधा गीत,गज़ल छंद-विधा, समीक्षा, लेख, कथा, विचार, साक्षात्कार आदि सभी साहित्यिक गतिविधियों के प्रचार प्रसार में संलग्न है | प्रथम अगीत महाकाव्य प्रणेता
पं. जगत नारायण पांडे ' अगीतिका' में कहते हैं --
" अनेक रचनाकारों ने अगीटन की रचना करके उसे एक स्थान दिया है |"
हिन्दी के अंतर्राष्ट्रीय विद्वान
डा वेरस्की ( वारसा--पोलेंड) का कथन है---
" अगीत की अतीव आवश्यकता है "...इसी क्रम में
पद्मश्री डा लक्ष्मी नारायण लाल का कहना है --"
आज छोटी कविताओं व अगीत का युग है |"...लखनऊ विश्व-विद्यालय के पूर्व कुलपति
डा हरेकृष्ण अवस्थी का कथन था कि..
"मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि अगीत की गति आगे बढ़ रही है |" डा शम्भूनाथ का कथन है कि..
"कविता के क्षेत्र में गीत-अगीत की निर्झरिणी बह रही है |" ... इस तरह अगीत काव्य-धारा का प्रभाव आज समाज के सभी क्षेत्रों --सांस्कृतिक, सामाजिक, साहित्यिक, राजनैतिक क्षेत्रों पर पड़ा है | यह अगीत रचनाओं को पढ़ कर जाना जा सकता है |
कविवर श्री सुरेन्द्र कुमार वर्मा , बछरावां , रायवरेली की हाल में ही प्रकाशित रचना
" मेरे अगीत छंद" की भूमिका में डा राम नरेश प्राचार्य दयानंद पोस्ट ग्रेजुएट कालिज बछरावां का कथन है कि --" ..
.अब यह विधा हिन्दी साहित्य के इतिहास में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी है | विधागत सीमाओं और सम्भावनाओं की चर्चा-परिचर्चा में हिन्दी के वरेण्य समीक्षक अगीत से अनभिज्ञ नहीं रहे हैं , यथानुसार अगीत का उल्लेख होता रहा है |"...कवि सुरेन्द्र कुमार वर्मा का स्वयं का भाव है ..
" अन्यथा मुझ जैसा अज्ञ और कहाँ अगीत का महासागर ...|"
अगीत की यह अल्हड निर्झरिणी आज विभिन्न धाराओं -उपधारों से समाहित कालिंदी का रूप धारण करके कल-कल निनाद के साथ प्रवाहमान है तथा आगे और आगे बढती जा रही है, काव्य-महासागर बनने | यह न केवल हिन्दी कविता व साहित्य की परम्पराओं में एक प्रमुख धारा की भांति प्रवाहित है अपितु उत्तरोत्तर नवीन उपधाराओं से आप्लावित हो रही है | अगीत विधा के कवि-पुष्प अगीत की काव्य-वाटिका में अपना सौरभ बिखेरते जा रहे हैं एवं कवियों साहित्यकारों, समीक्षकों व जन मानस को अपने नए विषय-भावों, रूपों व विविध छंदों से हर्षित व आंदोलित कर रहे हैं | अगीत विधा के इस प्रसार के साथ ही साहित्य में अर्वाचीन साहित्यिक गुलामी की प्रथा की पुष्टि करने वाले एवं यथार्थ व अकविता के नाम पर घिसे-पिटे विषयों को चिल्ला चिल्ला कर कहने वाले एवं बुद्धि-विलास प्रदर्शन वाले
स्वनाम-धन्य महान कविगणों , साहित्याचार्यों, संस्थाओं व मठाधीशों का आवर्त टूटता जा रहा है | अगीत जन जन में , जन सामान्य में अपनी व साहित्य की पैठ बनाने में समर्थ सिद्ध हो रहा है |
काव्य-उपन्यास -'शूर्पणखा' की भूमिका में प्रतिष्ठा साहित्यिक संस्था के अध्यक्ष साहित्यभूषण डा रामाश्रय सविता कहते हैं--"
यह काव्य कृति अगीत विधा में लिखी गयी है | मेरा दृड मत है कि श्री जगत नारायण पाण्डेय एवं डा श्याम गुप्त के काव्यात्मक योगदान से अगीत-विधा को शक्ति, सामर्थ व ठोस आधार प्राप्त हुआ है |"
इस प्रकार कहा जा सकता है कि अगीत विधा का भविष्य उज्जवल है | जिस प्रकार इस विधा में कवि व साहित्यकार सतत रचनाओं व अन्य साहित्यिक गतिविधियों में संलग्न हैं तथा अगीत में महाकाव्य, खंडकाव्य आदि तीब्रता से लिखे जा रहे हैं, यह विधा के स्थायित्व व उत्तरोत्तर प्रगति का परिचायक है |
महाकाव्य 'सृष्टि' की भूमिका में डा रामाश्रय सविता ने कहा था --
" सृष्टि के गूढतम रहस्य को सरल और सहज अगीत काव्य में ढालकर एक स्तुत्य कार्य किया है | इस महाकाव्य का एक अनन्यतम महत्त्व यह भी है कि इससे अगीत विधा को एक गहन -गंभीर व ठोस आधार मिलेगा जो उसकी स्थापना में महत्वपूर्णकारक का कार्य करेगा |
लखनऊ विश्व विद्यालय की विभागाध्यक्ष ( हिन्दी)
डा सरला शुक्ला का ' मोह व पश्चाताप' खंड-काव्य की भूमिका में यह कथन--
"भविष्य में अन्य रचनाकार भी अगीत विधा में काव्य-रचना करके साहित्य का भंडार भरेंगे |"...सत्य सिद्ध हो रहा है | उन्होंने यह ही कहा " अगीत का भविष्य उज्जवल है |"
प्रोफ. यशपाल का कथन--"
अधिकतर देशों में कहीं भी कविता गाकर नहीं पढ़ी जाती , अतः अगीत का भविष्य उज्जवल है |" श्री अमृत लाल नागर का कथनहै- "
अगीत का भविष्य उज्जवल है एवं " स्वतन्त्रता सेनानी
श्री कमलापति मिश्र का कथन--
" मुझे विश्वास है कि अगीत स्थायित्व ग्रहण करेगा |'..अवश्य ही सत्य सिद्ध होरहे हैं |
शूर्पणखा अगीत खंडकाव्य की भाव भूमि में रचयिता का कथन है कि ---
" प्रवाह व लय काव्य की विशेषताएं हैं जो काव्य के विशय०भाव व भाव सम्प्रेषण क्षमता की आवश्यकतानुसार छंदीय काव्य में भी होसकती हैं मुक्त-छंद काव्य में भी | अतः गीत-अगीत कोई विवाद का विषय नहीं हैं गेयता दोनों में ही होती है | वस्तुतः स्वयं संगीत व काव्य-गीत से अन्यथा कोई रचना पूर्ण गे नहीं होती अतः अगीत में भी अपार संभावनाएं हैं |"
अंत में अगीत के वर्तमान परिदृश्य व भविष्य पर विहंगम दृष्टिपात हेतु
मुख्य अगीत कवि, रचनाएं, अगीत पर हुए शोध प्रबंध एवं विभिन्न विद्वानों, साहित्यकारों की सम्मतियों पर दृष्टि डालना समीचीन होगा |
अगीत विधा में रचनारत प्रमुख कवि, साहित्यकार व समीक्षक .....
१- डा उषा गुप्ता-- पूर्व रीडर, हिन्दी विभाग, लखनऊ विश्व-विद्यालय व संत साहित्य की सुधी संरक्षक, अखिल भारतीय अगीत परिषद एवं अगीत विधा की प्रेरक |
२- कविवर डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' --- अगीत विधा के प्रवर्तक , संस्थापक व राष्ट्रीय अध्यक्ष , अखिल भारतीय अगीत परिषद |
३- श्री ( स्व.) जगत नारायण पाण्डेय -- अधिवक्ता ,लखनऊ ---प्रथम अगीत खंडकाव्य व महाकाव्य ( सौमित्र गुणाकर व मोह और पश्चाताप ) के रचयिता एवं श्रेष्ठ गज़लकार, छंदकार |
४- डा श्याम गुप्त -- वरिष्ठ शल्य चिकित्सक, उत्तर रेलवे लखनऊ एवं अगीत विधा महाकाव्य "सृष्टि" व काव्य-उपन्यास "शूर्पणखा" के रचयिता एवं प्रस्तुत कृति के रचनाकार |
५- श्री सोहनलाल सुबुद्ध -प्रमुख अगीतवादी कवि, अगीत पर शास्त्रीय व साहित्यिक आलेखों के लेखक |
६-श्री पार्थोसेन --'अगीतायन' साप्ताहिक पत्र के, कृतियों के संघीय पद्धति से समीक्षक व अगीत कवि |
७- श्री अनिल किशोर 'निडर'
८-डा मंजू सक्सेना विनोद, कवियत्री व प्रमुख कथाकार |
९- श्री सुभाष श्रीवास्तव 'हुडदंगी '---हास्य-व्यंग्य कवि |
१०- श्री तेज नारायण राही, इन्दुबाला गहलौत, रामगुलाम रावत, वीरेंद्र निझावन, सुषमा गुप्ता, मंजू लता तिवारी, डा योगेश गुप्ता, डा मंजू शुक्ला, श्रृद्धा विजय लक्ष्मी , क्षमा पूर्णा पाठक, विजय कुमारी मौर्या, रवीन्द्र राजेश, देवेश द्विवेदी 'देवेश ', चंद्रपाल सिंह, वाहिद अली वाहिद, बुद्धि राम विमल ,श्री कृष्ण द्विवेदी , नन्द कुमार मनोचा, गिरीश चन्द्र वर्मा'दोषी', गीता आकांक्षा, अमरनाथ, डा कृष्णा शर्मा, कवि प्रकाश वुड्ड, विनय सक्सेना, अवधेश मिश्रा ,डा नीरज कुमार, यतीश चतुर्वेदी, रचना शुक्ला, वासुदेव मिश्र, भगत राम पोखरियाल, धुरेन्द्र स्वरुप बिसारिया 'प्रभंजन' आदि तथा नगर भर में फैले अन्य कविगण.......|
----- अगीत साहित्य दर्पण, अध्याय तीन ( क्रमश )....शेष अगली पोस्ट में .....