अगीत की शिक्षाशाला.....कार्यशाला १९.... अगीत छंद व उनका रचना विधान.....त्रिपदा अगीत
छंद ...
अगीत की शिक्षाशाला.... अगीत में रस छंद अलंकार योजना---क्रमश ... अगीत- छंद....
( लय व गति काव्य-विधा के अपरिहार्य तत्व व विशेषताएं हैं जो इसे गद्य-विधा से पृथक करती
है | यति --काव्य को संगीतमयता के आरोह-अवरोह के साथ कथ्य व भाव को अगले स्तर पर परिवर्तन की
स्पष्टता से विषय सम्प्रेषण को आगे बढाती है | तुकांत बद्धता ..काव्य के शिल्प सौंदर्य को बढाती है परन्तु
संक्षिप्तता, शीघ्र भाव-सम्प्रेषणता व अर्थ-प्रतीति का ह्रास करती है | अतः वैदिक छंदों व ऋचाओं की अनुरूपता
व तादाम्य लेते हुए अगीत मूलतः अतुकांत छंद है | हाँ लय व गति इसके अनिवार्य तत्व हैं तथा तुकांत, यति,
मात्रा व गेयता का बंधन नहीं है | अगीत वस्तुतः अतुकांत गीत है |
अगीत कविता का मुख्य अभिप्राय: है राष्ट्र, समाज व जमीन से जुडी वह छोटी अतुकांत कविता जो पांच से दस पंक्तियों से कम या अधिक की न हो | जिसमें लय व गति हो, गेयता का बंधन न हो एवं मात्रा- बंधन भी आवश्यक नहीं | वर्तमान में अगीत काव्य-विधा में प्रचलित व प्रयोग होरहे विविध छंदों का नीचे वर्णन किया जा रहा है | वे छंद ये हैं-----
१- अगीत छंद ......२-लयबद्ध अगीत ३-गतिमय सप्तपदी अगीत ४-लयबद्ध षटपदी अगीत ५-नव-अगीत ६-त्रिपदा अगीत ७-त्रिपदा अगीत गज़ल ... )
कार्यशाला -१९ ...त्रिपदा अगीत छंद.... .इस छंद
का रचना
विधान निम्न
है.....
त्रिपदा अगीत
.... इस छंद
का रचना
विधान यह
है ----
१.अतुकांत
छंद
२.तीन
पंक्तियों से
कम व
अधिक नहीं
३.गतिबद्ध
परन्तु गेयता
का बंधन
नहीं
४. सोलह-सोलह निश्चित
मात्राओं की
तीनों पंक्तियाँ
|
यथा----
"श्वेत धवल दाडी लहराती,
भाल
विशाल, उच्च
आभामय ;
सच्चे निस्पृह युग-ऋषि
थे
वे
|"
---- वचनेश त्रिपाठी
के प्रति
( डा श्याम
गुप्त )
" प्यार
बना
ही
रहे
हमेशा ,
ऐसा सदा नहीं क्यों होता
;
सुन्दर नहीं नसीब सभी
का
|"
----- सुषमा गुप्ता
" नैन नैन मिल गए सुन्दरी,
नैना लिए झुके भला क्यों ;
मिलते क्या बस झुक जाने को |" ... डा श्याम गुप्त
" पायल छनका कर दूर हुए,
हम कुछ ऐसे मज़बूर हुए ;
उस नाद-ब्रह्म मद चूर हुए |"
..... डा श्याम गुप्त
" आँख मूद कर हुक्म बजाना,
सच की बात न मुंह पर लाना ;
पड जाएगा कष्ट उठाना |
"
---- डा श्याम गुप्त
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