अगीत साहित्य दर्पण (क्रमश:) अध्याय ४ - अगीत छंद एवं उनका रचना विधान
अतुकांत कवितायें व गीत प्रायः बृहदाकार होते हैं | उनमें संक्षिप्तता, वर्ण्य-सटीकता, तीब्र भाव- सम्प्रेषण के साथ ही विषय विशेष की संप्रेषणीयता के अभाव में अगीत का जन्म हुआ और वह फला-फूला | जैसी भविष्य वाणी की गयी थी तदनुसार आज अगीत न केवल कवियों, रचनाओं व कृतियों से समृद्ध है अपितु विविध नए-नए छंदों से भी निरंतर समृद्ध होता जा रहा है | इसका प्रचार-प्रसार अंतर्राष्ट्रीय जगत में भी हुआ है | अब अगीत हिन्दी साहित्य व विश्व साहित्य में एक सुस्थापित व समृद्ध विधा है |
वर्तमान में अगीत कविता विधा न केवल हिन्दी कविता व साहित्य की विभिन्न परम्पराओं में एक प्रमुख धारा के रूप में जानी जाती है अपितु उत्तरोत्तर नवीन उप-धाराओं से आप्लावित होती हुई हिन्दी व साहित्य को समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण योगदान कर रही है |
अगीत कविता का मुख्य अभिप्राय: है राष्ट्र, समाज व जमीन से जुडी वह छोटी अतुकांत कविता जो पांच से दस पंक्तियों से कम या अधिक की न हो | जिसमें लय व गति हो , गेयता का बंधन न हो एवं मात्रा- बंधन भी आवश्यक नहीं | वर्तमान में अगीत काव्य-विधा में प्रचलित व प्रयोग होरहे विविध छंदों का नीचे वर्णन किया जा रहा है | वे छंद ये हैं-----
(१)- अगीत छंद
२-लयबद्ध अगीत
३-गतिमय सप्तपदी अगीत
४-लयबद्ध षटपदी अगीत
५-नव-अगीत
६-त्रिपदा अगीत
७-त्रिपदा अगीत गज़ल |
(१)- अगीत छंद ---सन १९६६ में डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' द्वारा स्थापित अगीत विधा का मूल छंद , अतुकांत कविता में संक्षिप्तता की कम से उत्पन्न व अचूक भाव संप्रेषणीयता, सामान्य भाषा में कविता की जन-जन तक पहुँच के अभाव की पूर्ति-हित प्रचालन में आया, जिसमे दोहे जैसी सम्प्रेषण शक्ति, उर्दू के शेर जैसी प्रभावोत्पादकता निहित है | अगीत छंद के मुख्य रचना-विधान नियम ये हैं----
१-अतुकांत कविता
२.सामान्यतया पांच से आठ ( अधिकतम दस ) पंक्तियों से कम व अधिक नहीं |
३.मात्रा बंधन नहीं
४.गति, यति व लय होनी चाहिए
५.गेयता, अगेयता का बंधन नहीं |
.यथा---
"इधर उधर जाने से
क्या होगा ;
मोड़ मोड़ पर जमी हुईं हैं ,
परेशानियां |
शब्द -शब्द अर्थ सहित
कह रहीं कहानियां
मन को बहलाने से
क्या होगा |" ----- डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य'
"आज उन्हें चलना होगा
शान्ति के पथ पर ,
जिन्होंने कल
हमारे खून की,
होली खेली है |" ------डा सुरेशचंद्र शुक्ल, नार्वे
" झरबेरी के कांटे
तुमने क्यों बांटे ?
सुबह शाम दोनों -
बोल उठे राम-राम ;
सच्चाई के गाल पर
पड़ते हैं चांटे |" --- वीरेंद्र निझावन
" प्रेम विह्वलता,विरह, भावातिरेक की धारा ,
बहती है जब मन में ,
अजस्र, अपरिमित, प्रवाहमान; तब-
गीत निस्रत होते हैं.
सरिता की अविरल धारा की तरह |
वही धारा, प्रश्नों को उत्तरित करती हुई
व्याख्या, विश्लेषण, सत्य को
जन -जन के लिए उद्घाटित करती हुई,
निस्रत निर्झरिणी बन कर -
अगीत बन जाती है |" ---डा श्याम गुप्त
(२)- लयबद्ध अगीत छंद ... सन २००७ में, मैंने ( डा श्याम गुप्त ) अपना गीति-विधा महाकाव्य -प्रेम-काव्य' लिखा जो अमूर्त भाव प्रेम को नायक बनाकर लिखा गया प्रथम महाकाव्य था | इस काव्य में मैंने... प्रेम-अगीत ( प्रेम भाव खंड ) में लयबद्ध अगीतों की रचना की जो गेय -अगीत थे | इनका रचना-विधान निम्न होना चाहिए ---
१-अतुकांत गीत
२.सात से दश तक पंक्तियाँ
३.गति, लय व गेयता आवश्यक
४. प्रत्येक पंक्ति में सोलह निश्चित मात्राएँ |
उदाहरण-----
"तुम जो सदा कहा करती थीं
मीत सदा मेरे बन रहना |
तुमने ही मुख फेर लिया क्यों
मैंने तो कुछ नहीं कहा था |
शायद तुमको नहीं पता था ,
मीत भला कहते हैं किसको |
मीत शब्द को नहीं पढ़ा था ,
तुमने मन के शब्दकोश में ||" ----प्रेम काव्य से ( डा श्याम गुप्त )
(३)-गतिमय सप्तपदी अगीत -- सन २००३ में अगीत परिषद के वरिष्ठ सदस्य व ख्याति-प्राप्त कवि श्री जगत नारायण पाण्डेय 'एडवोकेट' ने अगीत विधा में सर्वप्रथम खंड काव्य ' मोह और पश्चाताप लिखा, उसमें पांडे जी ने अगीत के प्रचलित छंद से अन्यथा एक नवीन छंद " गतिमय सप्तपदी अगीत" का प्रयोग किया जो उनकी स्वयं की परिकल्पना थी | इसका रचना विधान यह है ----
१.अतुकांत कविता
२.सात पंक्तियों से कम व अधिक नहीं
३.गतिमयता आवश्यक
४.गेयता होनी चाहिए | --एक उदाहरण देखें ....
" छुब्ध हो रहा है हर मानव
पनप रहा है बैर निरंतर ;
राम और शिव के अभाव में ,
विकल हो रहीं मर्यादाएं ;
व्याप्त होरहा विष, चन्दन में |
पीड़ायें हर सकूं जगत की,
ज्ञान मुझे दो प्रभु, प्रणयन का ||" -------- मोह व पश्चाताप से (श्री जगत नारायण पाण्डेय )
(४) लयबद्ध षट्पदी अगीत ....सन २००५ में मैं ( डा श्याम गुप्त ) डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' व पं. जगत नारायण पाण्डेय के संपर्क में आया तथा अगीत छंदों से प्रभावित होकर अपना अगीत विधा महाकाव्य " सृष्टि" लिखा जो अमूर्त ईश्वर व मूर्त जीव, माया, जगत को नायकत्व देकर रचा गया प्रथम अगीत महाकाव्य था | इस कृति में मैंने एक और नवीन अगीत छंद ' लयबद्ध षट्पदी अगीत ' की परिकल्पना व प्रयोग किया जिसे बाद में शूर्पणखा काव्य-उपन्यास में भी प्रयोग किया गया | इस छंद का रचना विधान इस प्रकार है ----
१.अतुकांत कविता
२.लयबद्धता व गेयता अनिवार्य
३.गतिमयता आवश्यक
४.छ : पंक्तियों से कम व अधिक नहीं
५.प्रत्येक पंक्ति में सोलह निश्चित मात्राएँ |
उदाहरण----
" परम व्योम की इस अशान्ति से ,
द्वंद्व भाव कण-कण में उभरा ;
हलचल से गति मिली कणों को ,
अप:तत्व में साम्य जगत के |
गति से आहत नाद बने ,फिर -
शब्द वायु ऊर्जा जल और मन ||" ----सृष्टि महाकाव्य से |
एवं ....
लोलुप भ्रमरों की बातें क्या ,
ललचाते अतुलित शूर वीर |
इस तन की कृपा, प्रणय भिक्षा ,
हित, कितने ही पद-दलित हुए |
पर आज मुझे क्यों लगता है,
संगीत फूटता कण कण से ||" ---- ( शूर्पणखा काव्य-उपन्यास से...डा श्याम गुप्त )
५-नव-अगीत ....सन २००६ में कवयित्री श्रीमती सुषमा गुप्ता द्वारा लिखे गए एम् अत्यंत लघु अगीत पर मेरी टिप्पणी ' इतना छोटा अगीत ' के प्रत्युत्तर में अचानक उनका कथन कि ..'यह नव-अगीत' है -- से प्रेरित होकर डा रंगनाथ मिश्र सत्य की प्रेरणा व परामर्श से एक नयी धारा के अगीत छंद का सूत्रपात हुया जो पारंपरिक अगीत से भी लघु होता है | इसे नव-अगीत का नाम दिया गया | इस छंद का रचना विधान निम्न है.....
१.अतुकांत लघु अगीत छंद
२.तीन से कम व पांच से अधिक पंक्तियाँ नहीं
३.लय, गति व मात्रा बंधन से मुक्त
४. मुख्यतया: सामाजिक सरोकारों ,कटु सत्य, नवीन विचारों से युक्त परन्तु अनिवार्यता व बंधन नहीं |
उदाहरण-----
" बेडियाँ तोडो
ज्ञान दीप जलाओ ;
नारी ! अब-
तुम्हीं राह दिखाओ,
समाज को जोड़ो |" ------सुषमा गुप्ता
"मुस्तैद मित्र पुलिस
हरदम तैयार ;
फिर भी नहीं मिली ,
उत्तम प्रदेश में-
चोरी गयी कार |" -----डा श्याम गुप्त
"सावधान होजायें
ऐसे दुमुहे
मुझे न भाएँ ;
जो खाएं और गुर्रायें
इन दुमुहों के पास न जाएँ |" ---- सोहन लाल सुबुद्ध
"शब्द वेधी वाण ने
हरे श्रवण के प्राण ;
कैकयी की वाणी ने .
वन भेजा सुकुमार |" --- पार्थो सेन |
(६) त्रिपदा अगीत .... क्रांतिकारी, पत्रकार, साहित्यकार , समाजसेवी व कवि पद्मश्री पं.वचनेश त्रिपाठी जो अगीत आंदोलन व अगीतायन से जुड़े थे एवं वरिष्ठ परामर्शदाता थे ; उनके निधन ( सन २००६ई) पर श्रृद्धांजलि समारोह के अवसर पर उनकी स्मृति में मैंने ( डा श्याम गुप्त ) एक अन्य नवीन अगीत छंद का सृजन किया | इसे 'त्रिपदा अगीत ' का नाम दिया गया | इस छंद को पं. वचनेश त्रिपाठीजी को ही समर्पित किया गया | इस छंद का रचना विधान यह है ----
१.अतुकांत छंद
२.तीन पंक्तियों से कम व अधिक नहीं
३.गतिबद्ध परन्तु गेयता का बंधन नहीं
४. सोलह-सोलह निश्चित मात्राओं की तीनों पंक्तियाँ |
यथा----
"श्वेत धवल दाडी लहराती,
भाल विशाल, उच्च आभामय ;
सच्चे निस्पृह युग-ऋषि थे वे |" ---- वचनेश त्रिपाठी के प्रति ( डा श्याम गुप्त )
""" प्यार बना ही रहे हमेशा ,
ऐसा सदा नहीं क्यों होता ;
सुन्दर नहीं नसीब सभी का |" ----- सुषमा गुप्ता
७- त्रिपदा अगीत गज़ल .... सन २००७ ए में मैंने ( डा श्याम गुप्त ) हिन्दी में त्रिपदा गज़ल लिखना प्रारम्भ किया , जिसे त्रिपदा अगीत गज़ल का नाम दिया | इसका रचना विधान निम्न है .....
१.त्रिपदा अगीत छंदों की मालिका जिसमें तीन या अधिक छंद होने चाहिए |
२.प्रथम छंद की तीनों पंक्तियों के अंत में वही शब्द आवृत्ति होनी चाहिए |
३.शेष छंदों में वही शब्द आवृत्ति अंतिम पंक्ति में आना आवश्यक है |
४.अंतिम छंद में कवि अपनी इच्छानुसार अपना नाम या उपनाम रख सकता है |
उदाहरण देखें ....
पागल दिल
क्यों पागल दिल हर पल उलझे ,
जाने क्यों किस जिद में उलझे ;
सुलझे कभी, कभी फिर उलझे |
तरह-तरह से समझा देखा ,
पर दिल है उलझा जाता है ;
क्यों ऐसे पागल से उलझे |
धडकन बढती जाती दिल की,
कहता बातें किस्म किस्म की ;
ज्यों काँटों में आँचल उलझे || ---डा श्याम गुप्त
बात करें
भग्न अतीत की न बात करें ,
व्यर्थ बात की क्या बात करें ;
अब नवोन्मेष की बात करें |
यदि महलों में जीवन हंसता ,
झोपडियों में जीवन पलता ;
क्या उंच-नीच की बात करें |
शीश झुकाएं क्यों पश्चिम को,
क्यों अतीत से हम भरमाएं ;
कुछ आदर्शों की बात करें |
शास्त्र बड़े-बूढ़े और बालक ,
है सम्मान देना, पाना तो;
मत श्याम' व्यंग्य की बात करें || ---डा श्याम गुप्त |
--- इति अध्याय ४ ---
अगीत साहित्य दर्पण ( क्रमश:) अध्याय ५ ...अगली पोस्ट में
अतुकांत कवितायें व गीत प्रायः बृहदाकार होते हैं | उनमें संक्षिप्तता, वर्ण्य-सटीकता, तीब्र भाव- सम्प्रेषण के साथ ही विषय विशेष की संप्रेषणीयता के अभाव में अगीत का जन्म हुआ और वह फला-फूला | जैसी भविष्य वाणी की गयी थी तदनुसार आज अगीत न केवल कवियों, रचनाओं व कृतियों से समृद्ध है अपितु विविध नए-नए छंदों से भी निरंतर समृद्ध होता जा रहा है | इसका प्रचार-प्रसार अंतर्राष्ट्रीय जगत में भी हुआ है | अब अगीत हिन्दी साहित्य व विश्व साहित्य में एक सुस्थापित व समृद्ध विधा है |
वर्तमान में अगीत कविता विधा न केवल हिन्दी कविता व साहित्य की विभिन्न परम्पराओं में एक प्रमुख धारा के रूप में जानी जाती है अपितु उत्तरोत्तर नवीन उप-धाराओं से आप्लावित होती हुई हिन्दी व साहित्य को समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण योगदान कर रही है |
अगीत कविता का मुख्य अभिप्राय: है राष्ट्र, समाज व जमीन से जुडी वह छोटी अतुकांत कविता जो पांच से दस पंक्तियों से कम या अधिक की न हो | जिसमें लय व गति हो , गेयता का बंधन न हो एवं मात्रा- बंधन भी आवश्यक नहीं | वर्तमान में अगीत काव्य-विधा में प्रचलित व प्रयोग होरहे विविध छंदों का नीचे वर्णन किया जा रहा है | वे छंद ये हैं-----
(१)- अगीत छंद
२-लयबद्ध अगीत
३-गतिमय सप्तपदी अगीत
४-लयबद्ध षटपदी अगीत
५-नव-अगीत
६-त्रिपदा अगीत
७-त्रिपदा अगीत गज़ल |
(१)- अगीत छंद ---सन १९६६ में डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' द्वारा स्थापित अगीत विधा का मूल छंद , अतुकांत कविता में संक्षिप्तता की कम से उत्पन्न व अचूक भाव संप्रेषणीयता, सामान्य भाषा में कविता की जन-जन तक पहुँच के अभाव की पूर्ति-हित प्रचालन में आया, जिसमे दोहे जैसी सम्प्रेषण शक्ति, उर्दू के शेर जैसी प्रभावोत्पादकता निहित है | अगीत छंद के मुख्य रचना-विधान नियम ये हैं----
१-अतुकांत कविता
२.सामान्यतया पांच से आठ ( अधिकतम दस ) पंक्तियों से कम व अधिक नहीं |
३.मात्रा बंधन नहीं
४.गति, यति व लय होनी चाहिए
५.गेयता, अगेयता का बंधन नहीं |
.यथा---
"इधर उधर जाने से
क्या होगा ;
मोड़ मोड़ पर जमी हुईं हैं ,
परेशानियां |
शब्द -शब्द अर्थ सहित
कह रहीं कहानियां
मन को बहलाने से
क्या होगा |" ----- डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य'
"आज उन्हें चलना होगा
शान्ति के पथ पर ,
जिन्होंने कल
हमारे खून की,
होली खेली है |" ------डा सुरेशचंद्र शुक्ल, नार्वे
" झरबेरी के कांटे
तुमने क्यों बांटे ?
सुबह शाम दोनों -
बोल उठे राम-राम ;
सच्चाई के गाल पर
पड़ते हैं चांटे |" --- वीरेंद्र निझावन
" प्रेम विह्वलता,विरह, भावातिरेक की धारा ,
बहती है जब मन में ,
अजस्र, अपरिमित, प्रवाहमान; तब-
गीत निस्रत होते हैं.
सरिता की अविरल धारा की तरह |
वही धारा, प्रश्नों को उत्तरित करती हुई
व्याख्या, विश्लेषण, सत्य को
जन -जन के लिए उद्घाटित करती हुई,
निस्रत निर्झरिणी बन कर -
अगीत बन जाती है |" ---डा श्याम गुप्त
(२)- लयबद्ध अगीत छंद ... सन २००७ में, मैंने ( डा श्याम गुप्त ) अपना गीति-विधा महाकाव्य -प्रेम-काव्य' लिखा जो अमूर्त भाव प्रेम को नायक बनाकर लिखा गया प्रथम महाकाव्य था | इस काव्य में मैंने... प्रेम-अगीत ( प्रेम भाव खंड ) में लयबद्ध अगीतों की रचना की जो गेय -अगीत थे | इनका रचना-विधान निम्न होना चाहिए ---
१-अतुकांत गीत
२.सात से दश तक पंक्तियाँ
३.गति, लय व गेयता आवश्यक
४. प्रत्येक पंक्ति में सोलह निश्चित मात्राएँ |
उदाहरण-----
"तुम जो सदा कहा करती थीं
मीत सदा मेरे बन रहना |
तुमने ही मुख फेर लिया क्यों
मैंने तो कुछ नहीं कहा था |
शायद तुमको नहीं पता था ,
मीत भला कहते हैं किसको |
मीत शब्द को नहीं पढ़ा था ,
तुमने मन के शब्दकोश में ||" ----प्रेम काव्य से ( डा श्याम गुप्त )
(३)-गतिमय सप्तपदी अगीत -- सन २००३ में अगीत परिषद के वरिष्ठ सदस्य व ख्याति-प्राप्त कवि श्री जगत नारायण पाण्डेय 'एडवोकेट' ने अगीत विधा में सर्वप्रथम खंड काव्य ' मोह और पश्चाताप लिखा, उसमें पांडे जी ने अगीत के प्रचलित छंद से अन्यथा एक नवीन छंद " गतिमय सप्तपदी अगीत" का प्रयोग किया जो उनकी स्वयं की परिकल्पना थी | इसका रचना विधान यह है ----
१.अतुकांत कविता
२.सात पंक्तियों से कम व अधिक नहीं
३.गतिमयता आवश्यक
४.गेयता होनी चाहिए | --एक उदाहरण देखें ....
" छुब्ध हो रहा है हर मानव
पनप रहा है बैर निरंतर ;
राम और शिव के अभाव में ,
विकल हो रहीं मर्यादाएं ;
व्याप्त होरहा विष, चन्दन में |
पीड़ायें हर सकूं जगत की,
ज्ञान मुझे दो प्रभु, प्रणयन का ||" -------- मोह व पश्चाताप से (श्री जगत नारायण पाण्डेय )
(४) लयबद्ध षट्पदी अगीत ....सन २००५ में मैं ( डा श्याम गुप्त ) डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' व पं. जगत नारायण पाण्डेय के संपर्क में आया तथा अगीत छंदों से प्रभावित होकर अपना अगीत विधा महाकाव्य " सृष्टि" लिखा जो अमूर्त ईश्वर व मूर्त जीव, माया, जगत को नायकत्व देकर रचा गया प्रथम अगीत महाकाव्य था | इस कृति में मैंने एक और नवीन अगीत छंद ' लयबद्ध षट्पदी अगीत ' की परिकल्पना व प्रयोग किया जिसे बाद में शूर्पणखा काव्य-उपन्यास में भी प्रयोग किया गया | इस छंद का रचना विधान इस प्रकार है ----
१.अतुकांत कविता
२.लयबद्धता व गेयता अनिवार्य
३.गतिमयता आवश्यक
४.छ : पंक्तियों से कम व अधिक नहीं
५.प्रत्येक पंक्ति में सोलह निश्चित मात्राएँ |
उदाहरण----
" परम व्योम की इस अशान्ति से ,
द्वंद्व भाव कण-कण में उभरा ;
हलचल से गति मिली कणों को ,
अप:तत्व में साम्य जगत के |
गति से आहत नाद बने ,फिर -
शब्द वायु ऊर्जा जल और मन ||" ----सृष्टि महाकाव्य से |
एवं ....
लोलुप भ्रमरों की बातें क्या ,
ललचाते अतुलित शूर वीर |
इस तन की कृपा, प्रणय भिक्षा ,
हित, कितने ही पद-दलित हुए |
पर आज मुझे क्यों लगता है,
संगीत फूटता कण कण से ||" ---- ( शूर्पणखा काव्य-उपन्यास से...डा श्याम गुप्त )
५-नव-अगीत ....सन २००६ में कवयित्री श्रीमती सुषमा गुप्ता द्वारा लिखे गए एम् अत्यंत लघु अगीत पर मेरी टिप्पणी ' इतना छोटा अगीत ' के प्रत्युत्तर में अचानक उनका कथन कि ..'यह नव-अगीत' है -- से प्रेरित होकर डा रंगनाथ मिश्र सत्य की प्रेरणा व परामर्श से एक नयी धारा के अगीत छंद का सूत्रपात हुया जो पारंपरिक अगीत से भी लघु होता है | इसे नव-अगीत का नाम दिया गया | इस छंद का रचना विधान निम्न है.....
१.अतुकांत लघु अगीत छंद
२.तीन से कम व पांच से अधिक पंक्तियाँ नहीं
३.लय, गति व मात्रा बंधन से मुक्त
४. मुख्यतया: सामाजिक सरोकारों ,कटु सत्य, नवीन विचारों से युक्त परन्तु अनिवार्यता व बंधन नहीं |
उदाहरण-----
" बेडियाँ तोडो
ज्ञान दीप जलाओ ;
नारी ! अब-
तुम्हीं राह दिखाओ,
समाज को जोड़ो |" ------सुषमा गुप्ता
"मुस्तैद मित्र पुलिस
हरदम तैयार ;
फिर भी नहीं मिली ,
उत्तम प्रदेश में-
चोरी गयी कार |" -----डा श्याम गुप्त
"सावधान होजायें
ऐसे दुमुहे
मुझे न भाएँ ;
जो खाएं और गुर्रायें
इन दुमुहों के पास न जाएँ |" ---- सोहन लाल सुबुद्ध
"शब्द वेधी वाण ने
हरे श्रवण के प्राण ;
कैकयी की वाणी ने .
वन भेजा सुकुमार |" --- पार्थो सेन |
(६) त्रिपदा अगीत .... क्रांतिकारी, पत्रकार, साहित्यकार , समाजसेवी व कवि पद्मश्री पं.वचनेश त्रिपाठी जो अगीत आंदोलन व अगीतायन से जुड़े थे एवं वरिष्ठ परामर्शदाता थे ; उनके निधन ( सन २००६ई) पर श्रृद्धांजलि समारोह के अवसर पर उनकी स्मृति में मैंने ( डा श्याम गुप्त ) एक अन्य नवीन अगीत छंद का सृजन किया | इसे 'त्रिपदा अगीत ' का नाम दिया गया | इस छंद को पं. वचनेश त्रिपाठीजी को ही समर्पित किया गया | इस छंद का रचना विधान यह है ----
१.अतुकांत छंद
२.तीन पंक्तियों से कम व अधिक नहीं
३.गतिबद्ध परन्तु गेयता का बंधन नहीं
४. सोलह-सोलह निश्चित मात्राओं की तीनों पंक्तियाँ |
यथा----
"श्वेत धवल दाडी लहराती,
भाल विशाल, उच्च आभामय ;
सच्चे निस्पृह युग-ऋषि थे वे |" ---- वचनेश त्रिपाठी के प्रति ( डा श्याम गुप्त )
""" प्यार बना ही रहे हमेशा ,
ऐसा सदा नहीं क्यों होता ;
सुन्दर नहीं नसीब सभी का |" ----- सुषमा गुप्ता
७- त्रिपदा अगीत गज़ल .... सन २००७ ए में मैंने ( डा श्याम गुप्त ) हिन्दी में त्रिपदा गज़ल लिखना प्रारम्भ किया , जिसे त्रिपदा अगीत गज़ल का नाम दिया | इसका रचना विधान निम्न है .....
१.त्रिपदा अगीत छंदों की मालिका जिसमें तीन या अधिक छंद होने चाहिए |
२.प्रथम छंद की तीनों पंक्तियों के अंत में वही शब्द आवृत्ति होनी चाहिए |
३.शेष छंदों में वही शब्द आवृत्ति अंतिम पंक्ति में आना आवश्यक है |
४.अंतिम छंद में कवि अपनी इच्छानुसार अपना नाम या उपनाम रख सकता है |
उदाहरण देखें ....
पागल दिल
क्यों पागल दिल हर पल उलझे ,
जाने क्यों किस जिद में उलझे ;
सुलझे कभी, कभी फिर उलझे |
तरह-तरह से समझा देखा ,
पर दिल है उलझा जाता है ;
क्यों ऐसे पागल से उलझे |
धडकन बढती जाती दिल की,
कहता बातें किस्म किस्म की ;
ज्यों काँटों में आँचल उलझे || ---डा श्याम गुप्त
बात करें
भग्न अतीत की न बात करें ,
व्यर्थ बात की क्या बात करें ;
अब नवोन्मेष की बात करें |
यदि महलों में जीवन हंसता ,
झोपडियों में जीवन पलता ;
क्या उंच-नीच की बात करें |
शीश झुकाएं क्यों पश्चिम को,
क्यों अतीत से हम भरमाएं ;
कुछ आदर्शों की बात करें |
शास्त्र बड़े-बूढ़े और बालक ,
है सम्मान देना, पाना तो;
मत श्याम' व्यंग्य की बात करें || ---डा श्याम गुप्त |
--- इति अध्याय ४ ---
अगीत साहित्य दर्पण ( क्रमश:) अध्याय ५ ...अगली पोस्ट में
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