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Tuesday, 2 October 2012

अगीत साहित्य दर्पण(क्रमश:) अध्याय ४ - अगीत छंद एवं उनका रचना विधान .....

                     अगीत साहित्य दर्पण (क्रमश:)  अध्याय ४ - अगीत छंद एवं उनका रचना विधान

               अतुकांत कवितायें व गीत प्रायः बृहदाकार  होते हैं | उनमें संक्षिप्तता, वर्ण्य-सटीकता, तीब्र भाव- सम्प्रेषण के साथ ही विषय विशेष की संप्रेषणीयता के अभाव में अगीत का जन्म  हुआ और वह फला-फूला | जैसी भविष्य वाणी की गयी थी तदनुसार आज अगीत न केवल कवियों, रचनाओं व कृतियों से समृद्ध है अपितु विविध नए-नए छंदों से भी निरंतर समृद्ध होता जा रहा है | इसका प्रचार-प्रसार अंतर्राष्ट्रीय जगत में भी  हुआ है | अब अगीत हिन्दी साहित्य व विश्व साहित्य में एक सुस्थापित व समृद्ध  विधा है |
                 वर्तमान में अगीत कविता विधा न केवल हिन्दी  कविता व साहित्य की विभिन्न परम्पराओं में  एक प्रमुख धारा के रूप में जानी जाती है अपितु उत्तरोत्तर नवीन उप-धाराओं से आप्लावित होती  हुई हिन्दी व साहित्य को समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण योगदान कर रही है |
                   अगीत कविता का मुख्य अभिप्राय: है राष्ट्र, समाज व जमीन से जुडी वह छोटी अतुकांत कविता जो पांच से दस पंक्तियों से कम या अधिक की न हो | जिसमें लय व गति हो , गेयता का बंधन न हो एवं मात्रा- बंधन भी आवश्यक नहीं |  वर्तमान में अगीत काव्य-विधा में प्रचलित व प्रयोग होरहे विविध छंदों का नीचे वर्णन किया जा रहा है | वे छंद ये हैं-----
(१)- अगीत छंद
२-लयबद्ध अगीत
३-गतिमय सप्तपदी अगीत
४-लयबद्ध षटपदी अगीत
५-नव-अगीत
६-त्रिपदा अगीत
७-त्रिपदा अगीत गज़ल |

(१)- अगीत छंद ---सन १९६६ में डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' द्वारा स्थापित अगीत विधा का मूल छंद , अतुकांत कविता में संक्षिप्तता की कम से उत्पन्न व अचूक भाव संप्रेषणीयता, सामान्य भाषा में कविता की जन-जन तक पहुँच के अभाव की पूर्ति-हित प्रचालन में आया, जिसमे दोहे जैसी सम्प्रेषण शक्ति, उर्दू के शेर जैसी प्रभावोत्पादकता निहित है | अगीत छंद के मुख्य रचना-विधान नियम ये हैं----
१-अतुकांत कविता
२.सामान्यतया पांच से आठ ( अधिकतम दस ) पंक्तियों से कम व अधिक नहीं |
३.मात्रा बंधन नहीं
४.गति, यति व लय होनी चाहिए
५.गेयता, अगेयता का बंधन नहीं |
             .यथा---

"इधर उधर जाने से
 क्या होगा ;
मोड़ मोड़ पर जमी हुईं  हैं ,
परेशानियां |
शब्द -शब्द अर्थ सहित
कह  रहीं कहानियां
मन को बहलाने से
क्या होगा |"                                      ----- डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य'

"आज उन्हें चलना होगा
शान्ति के पथ पर ,
जिन्होंने कल
हमारे खून की,
होली खेली है |"                               ------डा सुरेशचंद्र शुक्ल, नार्वे

" झरबेरी के कांटे
तुमने क्यों बांटे ?
सुबह शाम दोनों -
बोल उठे राम-राम ;
सच्चाई के गाल पर
पड़ते हैं चांटे |"                                 --- वीरेंद्र निझावन

" प्रेम विह्वलता,विरह, भावातिरेक की धारा ,
 बहती है जब मन में ,
अजस्र, अपरिमित, प्रवाहमान; तब-
गीत निस्रत  होते हैं.
सरिता की अविरल धारा की तरह  |
वही  धारा, प्रश्नों को उत्तरित करती हुई
व्याख्या, विश्लेषण, सत्य को
जन -जन के लिए उद्घाटित करती हुई,
निस्रत  निर्झरिणी बन कर -
अगीत बन जाती है |"                                     ---डा श्याम गुप्त

(२)- लयबद्ध अगीत छंद ... सन २००७  में, मैंने ( डा श्याम गुप्त ) अपना गीति-विधा महाकाव्य -प्रेम-काव्य' लिखा जो अमूर्त भाव प्रेम को नायक बनाकर लिखा गया प्रथम महाकाव्य था | इस काव्य में मैंने... प्रेम-अगीत ( प्रेम भाव खंड ) में लयबद्ध अगीतों की रचना की जो गेय -अगीत थे | इनका रचना-विधान निम्न होना चाहिए ---
१-अतुकांत गीत
२.सात से दश तक पंक्तियाँ
३.गति, लय व गेयता आवश्यक
४. प्रत्येक पंक्ति में सोलह निश्चित मात्राएँ |

उदाहरण-----
"तुम जो सदा कहा करती थीं 
मीत सदा मेरे बन रहना |
तुमने ही मुख फेर लिया क्यों 
मैंने  तो कुछ नहीं कहा था |
शायद तुमको नहीं पता था ,
मीत भला कहते हैं किसको |
मीत शब्द को नहीं पढ़ा था ,
तुमने मन के शब्दकोश में ||"                 ----प्रेम काव्य से ( डा श्याम गुप्त )

(३)-गतिमय सप्तपदी अगीत --  सन २००३ में अगीत परिषद के वरिष्ठ सदस्य व ख्याति-प्राप्त कवि श्री जगत नारायण पाण्डेय 'एडवोकेट' ने अगीत विधा में सर्वप्रथम खंड काव्य ' मोह और पश्चाताप  लिखा, उसमें पांडे जी ने अगीत के प्रचलित छंद से अन्यथा एक नवीन छंद  " गतिमय सप्तपदी अगीत" का प्रयोग किया जो उनकी स्वयं की परिकल्पना थी | इसका रचना विधान यह है ----
१.अतुकांत कविता
२.सात पंक्तियों से कम व अधिक नहीं
३.गतिमयता आवश्यक
४.गेयता होनी चाहिए |                    --एक उदाहरण देखें ....

" छुब्ध हो रहा है हर मानव
पनप रहा है बैर निरंतर ;
राम और शिव के अभाव में ,
विकल हो रहीं मर्यादाएं ;
व्याप्त  होरहा विष, चन्दन में |
पीड़ायें हर सकूं जगत की,
ज्ञान मुझे दो प्रभु, प्रणयन का ||"                 -------- मोह व पश्चाताप से (श्री जगत नारायण पाण्डेय )

(४)  लयबद्ध षट्पदी अगीत ....सन २००५  में मैं ( डा श्याम गुप्त ) डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य'  व  पं. जगत नारायण पाण्डेय के संपर्क में आया  तथा अगीत छंदों से प्रभावित होकर अपना अगीत विधा महाकाव्य " सृष्टि"   लिखा जो अमूर्त ईश्वर व मूर्त जीव, माया, जगत को नायकत्व देकर रचा गया प्रथम अगीत महाकाव्य था | इस कृति में मैंने एक और नवीन अगीत छंद ' लयबद्ध षट्पदी अगीत ' की  परिकल्पना व प्रयोग किया जिसे बाद में  शूर्पणखा काव्य-उपन्यास में भी  प्रयोग किया गया  | इस छंद का रचना विधान इस प्रकार है ----
१.अतुकांत कविता
२.लयबद्धता व गेयता अनिवार्य
३.गतिमयता आवश्यक
४.छ : पंक्तियों से कम व अधिक नहीं
५.प्रत्येक पंक्ति में सोलह निश्चित मात्राएँ |

उदाहरण----
" परम व्योम की इस अशान्ति से ,
द्वंद्व भाव कण-कण में उभरा ;
हलचल से गति मिली कणों को ,
अप:तत्व  में  साम्य जगत के |
गति से  आहत नाद बने ,फिर -
शब्द वायु ऊर्जा जल और मन ||"                               ----सृष्टि महाकाव्य से |

       एवं ....

लोलुप भ्रमरों की बातें क्या ,
ललचाते  अतुलित  शूर वीर |
इस  तन की कृपा, प्रणय भिक्षा ,
हित, कितने ही पद-दलित हुए |
पर आज मुझे क्यों लगता है,
संगीत फूटता कण कण से ||"                          ---- ( शूर्पणखा काव्य-उपन्यास से...डा श्याम गुप्त )

५-नव-अगीत ....सन २००६ में कवयित्री श्रीमती सुषमा गुप्ता द्वारा लिखे गए एम् अत्यंत लघु अगीत पर मेरी टिप्पणी ' इतना छोटा अगीत ' के प्रत्युत्तर में अचानक उनका कथन कि ..'यह नव-अगीत' है -- से प्रेरित होकर डा रंगनाथ मिश्र सत्य की प्रेरणा व परामर्श से एक नयी धारा के अगीत छंद का सूत्रपात हुया जो पारंपरिक अगीत से भी लघु होता है | इसे नव-अगीत का नाम दिया गया | इस छंद का रचना विधान निम्न है.....
१.अतुकांत लघु अगीत छंद
२.तीन से कम व पांच से अधिक पंक्तियाँ नहीं
३.लय, गति व मात्रा बंधन से मुक्त
४. मुख्यतया: सामाजिक सरोकारों ,कटु सत्य, नवीन विचारों से युक्त परन्तु अनिवार्यता व बंधन नहीं |
 उदाहरण-----

" बेडियाँ तोडो 
ज्ञान दीप जलाओ ;
नारी ! अब-
तुम्हीं राह दिखाओ,
समाज को जोड़ो |"                               ------सुषमा गुप्ता

"मुस्तैद मित्र पुलिस 
हरदम तैयार ;
फिर भी नहीं मिली ,
उत्तम प्रदेश में-
चोरी गयी कार |"                                  -----डा श्याम गुप्त

"सावधान होजायें 
ऐसे दुमुहे 
मुझे न भाएँ ;
जो खाएं और गुर्रायें
इन दुमुहों के पास न जाएँ |"                     ---- सोहन लाल सुबुद्ध

"शब्द वेधी वाण ने 
हरे श्रवण के प्राण ;
कैकयी की वाणी ने .
वन  भेजा सुकुमार |"                                  --- पार्थो सेन  |


(६) त्रिपदा अगीत .... क्रांतिकारी,  पत्रकार, साहित्यकार , समाजसेवी व कवि पद्मश्री पं.वचनेश त्रिपाठी जो अगीत आंदोलन व अगीतायन से जुड़े थे एवं वरिष्ठ परामर्शदाता थे ; उनके निधन ( सन २००६ई) पर श्रृद्धांजलि समारोह के अवसर पर उनकी स्मृति में मैंने ( डा श्याम गुप्त ) एक अन्य नवीन अगीत छंद का सृजन किया | इसे 'त्रिपदा अगीत ' का नाम दिया गया | इस छंद को पं. वचनेश त्रिपाठीजी को ही समर्पित किया गया | इस छंद का रचना विधान यह है ----
१.अतुकांत छंद
२.तीन पंक्तियों से कम व अधिक नहीं
३.गतिबद्ध परन्तु गेयता का बंधन नहीं
४. सोलह-सोलह निश्चित मात्राओं की तीनों पंक्तियाँ |

यथा----

"श्वेत धवल दाडी लहराती,
भाल  विशाल, उच्च आभामय ;
सच्चे निस्पृह युग-ऋषि थे वे |"                      ---- वचनेश त्रिपाठी के प्रति ( डा श्याम गुप्त )

"""    प्यार बना ही रहे हमेशा ,
ऐसा सदा नहीं क्यों होता ;
सुन्दर नहीं नसीब सभी  का |"                       ----- सुषमा गुप्ता 

७- त्रिपदा अगीत गज़ल .... सन २००७ ए में मैंने ( डा श्याम गुप्त ) हिन्दी में त्रिपदा गज़ल लिखना प्रारम्भ किया , जिसे त्रिपदा अगीत गज़ल का नाम दिया | इसका रचना विधान निम्न है .....
१.त्रिपदा अगीत छंदों  की मालिका जिसमें तीन या अधिक छंद होने चाहिए |
२.प्रथम छंद की तीनों पंक्तियों के अंत में वही शब्द आवृत्ति होनी  चाहिए |
३.शेष छंदों में वही शब्द आवृत्ति अंतिम पंक्ति में आना आवश्यक है |
४.अंतिम छंद में कवि अपनी इच्छानुसार अपना नाम या उपनाम रख सकता है |

उदाहरण देखें ....

          पागल दिल 
क्यों पागल दिल हर पल उलझे ,
जाने क्यों किस जिद में उलझे ;
सुलझे कभी, कभी फिर उलझे |

 तरह-तरह से समझा देखा ,
पर दिल है उलझा जाता है ;
क्यों  ऐसे पागल से उलझे |

धडकन बढती जाती दिल की,
कहता  बातें किस्म किस्म की ;
ज्यों काँटों में आँचल उलझे  ||                         ---डा श्याम गुप्त


         बात करें
भग्न अतीत की न बात करें ,
व्यर्थ बात की क्या बात करें ;
अब नवोन्मेष की बात करें |

यदि महलों में जीवन हंसता ,
झोपडियों में जीवन पलता ;
क्या उंच-नीच की बात करें |

शीश झुकाएं क्यों पश्चिम को,
क्यों अतीत से हम भरमाएं ;
कुछ आदर्शों की बात करें |

शास्त्र बड़े-बूढ़े और बालक ,
है सम्मान देना, पाना तो;
मत श्याम' व्यंग्य की बात करें ||                     ---डा श्याम गुप्त  |



                                              ---  इति अध्याय ४  ---

                          अगीत साहित्य दर्पण ( क्रमश:) अध्याय ५ ...अगली  पोस्ट में



















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