अगीत-विधा एवं उसका विम्ब-विधान
(डा श्याम
गुप्त)
हिन्दी कविता जगत में हिन्दी अतुकान्त
काव्य-धारा की एक नवीन धारा “अगीत-विधा” अब एक स्थापित विधा है। यह महाप्राण निराला से आगे
मुक्त-अतुकान्त छ्न्द की एक नवीन धारा है, जिसने सन्क्षिप्तता को धारण किया है एवं आज के युग की आवश्यकता है। यह ५ से ८ पन्क्तियॊ की कविता है। कविता जगत मैं अगीत-विधा का आजकल काफ़ी प्रचलन है .। यह विधा
१९६६ से लखनऊ नगर से डा. रंगनाथ मिश्र ’सत्य’ द्वारा प्रचलित की गयी है। और आज देश की सीमायें लांघ कर अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज़
पर अपना परचम लहरा रही है। अगीत
एक छोटा अतुकान्त गीत-रचना है, ५ से ८ पन्क्तियों की,जिसमें मात्रा व वर्ण संख्या बंधन नहीं, गति, यति व गेयता होनी
चाहिये। जो निराला जी के लंबे
अतुकांत गीतों से भिन्न है। इसमें लघु नज़्मों, दोहों व शे,र जैसी सटीक भाव
सम्प्रेषणता है, सन्क्षिप्तता में सम्पूर्णता। यथा…
इधर उधर जाने से क्या होगा ,
मोड मोड पर जमी हुई हैं,
परेशानियां,
शब्द शब्द अर्थ रहित
कह रहीं कहानियां;
मन को बहलाने से क्या होगा ।
--डा रन्गनाथ मिश्र सत्य
तनहाइयां,
जीवन में-
रोमांचक अनुभूति लाती हैं;
संयोग की एक रसता से-
ऊबे मन को,
वियोग रूपी अनल से,
सहलाती है;
जीवन में समरसता लाती हैं। ---- सुषमा गुप्ता
आजकल अगीत-विधा में विविध छन्द प्रचलन में हैं;- (the diffrant kinds of
rhymes belonging AGEET poetry are )….जो निम्न वर्णित हैं….
१.अगीत छन्द— ५ से ८
तक पन्क्तियों की अतुकान्त रचना, मात्रा व वर्ण संख्या बंधन नहीं, गति, यति व
गेयता होनी चाहिये। उदाहरणार्थ….
मानव व पशु मॆं यही है अन्तर,
पशु नहीं करता ,
छ्लछन्द और जन्तर- मन्तर।
शॆतान ने पशु को,
माया सन्सार कब दिखाया था;
ग्यान का फ़ल तो ,
सिर्फ़ आदम ने ही खाया था। --डा. श्याम गु्प्त
उन्नति को चाहिये
नया नज़रिया,
अन्ना हज़ारे,
कुछ करना चाह्ते हैं
हमें उनका
साथ देना चाहिये। ----मंगल प्रसाद ’मंगल’
२.लयबद्ध-अगीत
छंद-- -५ से १० पन्क्तियों का अतुकान्त
गीत, सममात्रिक, प्रत्येक पन्क्ति में १६-१६
मात्रायें निश्चित, गतिमयता, लयबद्धता व गेयता होनी चाहिये ----उदाहरणार्थ—-
“ श्रेष्ठ कला का जो मन्दिर था,
तेरे गीत
सजा मेरा मन,
प्रियतम तेरी विरह पीर में;
पतझड सा वीरान होगया ।
जैसे धुन्धलाये शब्दों की
,
धुन्धले अर्ध मिटे चित्रों की,
कला बीथिका एक पुरानी ।“ --- डा श्याम गुप्त ( प्रेम-काव्य से )
३.सप्तपदी गतिबद्ध
अगीत छन्द---सात पक्तियों वाली, सममात्रिक, गतिमयता व गेयता युक्त अतुकान्त रचना प्रत्येक
पन्क्ति में--१६ मात्रायें।
“छुब्ध होरहा है हर मानव ,
पनप रहा है वैर निरन्तर,
राम और शिव के अभाव में,
विकल हो रहीं मर्यादायें;
पीडाएं हर सकूं जगत की,
ग्यान मुझे दो प्रभु प्रणयन का।“ --जगत नारायण पान्डे (मोह और पश्चाताप से)
४.. लयबद्द षटपदी
अगीत छन्द —छह पन्क्तियों युक्त, सममात्रिक ,१६-१६ मात्राओं की लयबद्ध, गतिमय, गेय
अतुकान्त रचना…. उदाहरणार्थ….
“पर ईश्वर है जगत नियन्ता ,
कोई है अपने ऊपर
भी,
रहे तिरोहित अहं-भाव सब ,
सत्व-गुणों से युत हो मानव,
सत्यं, शिवम भाव अपनाता,
सारा जग सुन्दर हो जाता ।“ ---डा
श्याम गुप्त ( श्रिष्टि महाकाव्य से)
५..नव-अगीत छंद--- ३ से अधिक ५ से
कम पन्क्तियों वाला, अतुकान्त अगीत छन्द-- -
यथा--
बेडियां तोडो,
ग्यान दीप जलाओ,
नारी! अब -
तुम्ही राह दिखाओ;
समाज को जोडो. । -सुषमा गुप्ता
देश की
प्रगति ही,
सबका
कल्याण,
यही
हमारा उद्देश्य,
रखती हूं
मैं
इसका
ध्यान । ---विजय कुमारी मौर्य ’विजय’
६.त्रिपदा-अगीत छंद--- तीन पंक्तियों
की, सममात्रिक, १६-१६ मात्राओं की अतुकान्त रचना……यथा…..
“प्रीति –प्यार में नया नहीं कुछ,
वही पुराना
किस्सा यारो ;
लगता शाश्वत नया-नया सा । “ –
डा श्याम गुप्त
“प्यार बना ही रहे हमेशा ,
एसा सदा नहीं क्यों होता ;
सुन्दर नहीं नसीब सभी का।“---- सुषमा गुप्ता
७.त्रिपदा अगीत गज़ल-– त्रिपदा-अगीत
छन्दों की मालिका, तीन से अधिक छन्द, प्रथम छन्द की तीनों पंक्तियों के अन्त मैं
वही शब्द पुनराव्रत्ति, बाकी छन्दों की अन्तिम पन्क्ति मैं वही शब्द आव्रत्ति,
अन्तिम छंद में रचनाकार अपना नाम, उपनाम दे सकता है। उदाहरणार्थ…..
पागल दिल
भग्न अतीत की न बात करें,
व्यर्थ बात की क्या बात करें;
अब नवोन्मेष की बात करें।
यदि महलों मैं जीवन हंसता,
झोंपडियों में जीवन पलता;
क्या ऊंच नीच की बात करें।
शीश झुकायें क्यों पश्चिम को,
क्यों अतीत से हम भरमायें;
कुछ आदर्शों की बात करें ।
शास्त्र ,बडे बूडे ओ बालक,
है सम्मान देना पाना तो;
मत श्याम व्यन्ग्य की बात करें ।
--डा श्याम गुप्त
अगीत
विधा में अबतक लगभग ५० पुस्तकें प्रकाशित होचुकीं हैं….’अगीत
के सोलह महारथी”,.. ’अगीत के इक्कीस स्तम्भ’ आदि। श्री जगतनारायण पांडे एवं डा.
श्याम गुप्त द्वारा अगीत-महाकाव्य व खन्ड-काव्य लिखे गये हैं।-
महाकाव्य--
-सौमित्र गुणाकर-- ( श्री ज.ना. पान्डे--श्री लक्षमण जी के चरित्र-चित्रण पर)
- सृष्टि-(ईषत इच्छा या बिगबैन्ग-एक अनुत्तरित उत्तर)---डा श्याम गुप्त
खन्ड काव्य-
-मोह और पश्चाताप---( ज.ना. पान्डे- राम कथा )
-शूर्पणखा ----(डा श्याम गुप्त)
महाकाव्य--
-सौमित्र गुणाकर-- ( श्री ज.ना. पान्डे--श्री लक्षमण जी के चरित्र-चित्रण पर)
- सृष्टि-(ईषत इच्छा या बिगबैन्ग-एक अनुत्तरित उत्तर)---डा श्याम गुप्त
खन्ड काव्य-
-मोह और पश्चाताप---( ज.ना. पान्डे- राम कथा )
-शूर्पणखा ----(डा श्याम गुप्त)
अगीत विधा के कुछ मुख्य कवियों
के नाम –
१. डा
ऊषा गुप्ता -प्रोफ़ेसर हिन्दी विभाग ,लखनऊ वि वि, अगीत की मुख्य प्रेरणा.
२
डा रंग नाथ मिश्र सत्य, लखनऊ
–अगीत के संस्थापक व प्रवर्तक
३ श्री जगत नारायण पांडे -प्रथम अगीत महाकाव्य व खंडकाव्य के रचयिता
४ डा श्याम गुप्ता --मूर्त संसार व अमूर्त ईश्वर पर प्रथम महाकाव्य एवं खंड काव्य रचयिता एवं अगीत के विभिन्न छंदों के प्रवर्तक…..
५ सोहन लाल सुबुद्ध … कवि व अगीत पर शास्त्रीय आलेखों के लेखक
६ पार्थो सेन, सुषमा गुप्ता, डा योगेश गुप्ता, श्रीमती इन्दुबाला, रामप्रकाश शुक्ल, विजय कुमारी मौर्य, नन्दकुमार मनोचा, व -----अन्य देश, विदेश मैं फैले हुए बहुत से कविगण .......।
३ श्री जगत नारायण पांडे -प्रथम अगीत महाकाव्य व खंडकाव्य के रचयिता
४ डा श्याम गुप्ता --मूर्त संसार व अमूर्त ईश्वर पर प्रथम महाकाव्य एवं खंड काव्य रचयिता एवं अगीत के विभिन्न छंदों के प्रवर्तक…..
५ सोहन लाल सुबुद्ध … कवि व अगीत पर शास्त्रीय आलेखों के लेखक
६ पार्थो सेन, सुषमा गुप्ता, डा योगेश गुप्ता, श्रीमती इन्दुबाला, रामप्रकाश शुक्ल, विजय कुमारी मौर्य, नन्दकुमार मनोचा, व -----अन्य देश, विदेश मैं फैले हुए बहुत से कविगण .......।
c/o निर्विकार पन्कज श्याम ---- डा श्याम गुप्त’
फ़्लेट न.६०६७, ६वां फ़्लोर, टावर-६
प्रेस्टिज शान्तिनिकेतन,
बेन्गलूरू, कर्नाटक.
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