इस चिट्ठे पर हिन्दी की अतुकान्त कविता धारा की एक विशेष विधा " अगीत- कविता " व उसके साहित्य के विविध रूप-भाव प्रस्तुत किये जायेंगे.....
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Wednesday, 14 August 2013
Friday, 9 August 2013
लयबद्ध अगीत छंद - तेर मन की, नर्म छुअन को,....अगीत की शिक्षा शाला -..कार्यशाला-४ ..डा श्याम गुप्त .... कार्यशाला-३
अगीत की शिक्षा शाला -....डा श्याम गुप्त ....
कार्यशाला-४ -लयबद्ध अगीत छंद .......
इस ब्लॉग पर अगीत की कार्यशाला कार्यक्रम प्रसारित किया जायगा , अगीत कविता क्या है व कैसे लिखा जाता है इसका विविध छंद व उनका छंद विधान क्या है सोदाहरण प्रस्तुत किया जाएगा.....[ कविता की अगीत विधा का प्रचलन भले ही कुछ दशक पुराना हो परन्तु अगीत की अवधारणा मानव द्वारा आनंदातिरेक में लयबद्ध स्वर में बोलना प्रारम्भ करने के साथ ही स्थापित होगई थी| विश्व भर के काव्य ग्रंथों व समृद्धतम संस्कृत भाषा साहित्य में अतुकांत गीत, मुक्त छंद या अगीत-- मन्त्रों , ऋचाओं व श्लोकों के रूप में सदैव ही विद्यमान रहे हैं| लोकवाणी एवं लोक साहित्य में भी अगीत कविता -भाव सदैव उपस्थित रहा है | यथा --
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम शास्वती समां
यद् क्रोंच मिथुनादेकं बधी काम मोहितं || तथा.....
भूर्वुवः स्वः तत्सवितुर्वरेणयम
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो न प्रचोदयात ||
संक्षिप्तता, समस्या समाधान,
अतुकांत मुक्त-छंद प्रस्तुति के साथ-साथ गेयता को समेटती हुई गीत सुरसरि की सह-सरिता, नयी अतुकांत कविता
"अगीत" एक अल्हड निर्झरिणी की भांति,
उत्साही व राष्ट्र-प्रेम से ओत -प्रोत ,
गीत, गज़ल, छंद,
नव-गीत आदि सभी काव्य-विधाओं में सिद्धहस्त देश व विदेश स्थित कवियों की लेखनी से अविरल रूप से प्रवाहित हो रही है | ]कार्यशाला-४ --लयबद्ध अगीत छंद ....
{ अगीत विधा कविता में अगीत , लयबद्ध अगीत ,गतिमय सप्तपदी अगीत , लयबद्ध षट्पदी अगीत , नव-अगीत, त्रिपदा अगीत आदि छः प्रकार के अतुकांत छंद प्रयोग होरहे हैं एवं सातवीं विधा 'त्रिपदा अगीत ग़ज़ल' है|)
लयबद्ध अगीत छंद अगीत काव्य का लयबद्ध अतुकांत गीत है जो सात से १० पंक्तियों में होता है, गति, लय व गेयता आवश्यक हैं एवं प्रत्येक पंक्ति में १६ निश्चित मात्राएँ होती हैं| डा श्याम गुप्त द्वारा २००७ में प्रणीत यह छंद सर्वप्रथम उनकी पुस्तक गीति विधा में महाकाव्य "प्रेमकाव्य " में प्रेम भाव खंड के अध्याय आठ -प्रेम-अगीत में प्रयोग किया गया था |
उदहारण-----
तुम जो सदा कहा करती थीं
मीत सदा मेरे बन रहना |
तुमने ही मुख फेर लिया क्यों
मैंने तो कुछ नहीं कहा था |
शायद तुमको नहीं पता था ,
मीत भला कहते हैं किसको |
मीत शब्द को नहीं पढ़ा था ,
तुमने मन के शब्दकोश में ||"
श्रेष्ठ कला का जो मंदिर था
तेरे गीत सजा मेरा मन |
प्रियतम तेरी विरह पीर में ,
पतझड़ सा वीरान हो गया |
जैसे धुन्धलाये शब्दों की,
धुंधले अर्ध-मिटे चित्रों की ,
कला-वीथिका एक पुरानी |
तेर मन की, नर्म छुअन को,
बैरी मन पहचान न पाया,
तेरे तन की तप्त चुभन को,
मैं था रहा समझता माया |
तुमने क्यों न मुझे समझाया |
अब बैठा यह सोच रहा हूँ
ज्ञान ध्यान ताप योग धारणा ,
में, मैंने इस मन को रमाया |
यह भी तो मया संभ्रम है,
यूं ही हुआ पराया तुमसे |
क्रमश -कार्यशाला -५ ...गतिमय सप्त-पदी अगीत.....
अगीत विधा का अमूल्य दस्तावेज़ : 'अगीत साहित्य दर्पण ' --प्रोफ. उषा सिन्हा
अगीत विधा का अमूल्य दस्तावेज़ : 'अगीत साहित्य दर्पण '
--समीक्षक -प्रोफ. उषा सिन्हा
मुझे डा श्याम गुप्त द्वारा प्रणीत 'अगीत साहित्य दर्पण' के अवगाहन का सुयोग प्राप्त हुआ | शल्य चिकित्सक डा गुप्त साहित्य के प्रति समर्पित अगीत विधा के सशक्त रचनाकार हैं| उन्होंने अत्यंत परिश्रमपूर्वक प्रचुर सामग्री का संकलन करके वर्णानात्मक एवं विश्लेषणात्मक पद्दतियों के आधारपर अगीत विधा का सांगोपांग अध्ययन प्रस्तुत करके नि:संदेह श्लाघनीय कार्य किया है | हिन्दी साहित्य की स्थापित एवं समृद्ध अगीत विधा का समग्र अध्ययन छः सुगठित अद्यायों में विभाजित है |
अगीत विधा के प्रणेता , दिशावाहक,ध्वजावाहक डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' द्वारा लिखित प्रस्तावना में अगीत विधा का सम्यग् परिचय स्तुत्य है | मंगलाचरण से कृति का शुभारम्भ हुआ है जिसमें रचनाकार ने वाग्देवी माँ सरस्वती से अगीत को नवीन भावों के साथ सुर लय ताल से परिपूर्ण करने और उसके प्रचार-प्रसार हेतु आशीर्वाद प्रदान करने की याचना की है |
प्रथम अध्याय 'एतिहासिक पृष्ठभूमि व परिदृश्य ' में डा. गुप्त विवेचन ने अगीत के आविर्भाव एवं विकास यात्रा का सम्यक विवेचन किया है | डा र'सत्य' द्वारा लखनऊ में स्थापित 'अखिल भारतीय अगीत परिषद् . के बढ़ाते चरणों , अभिनव कलेवर, अगीत त्रैमासिक मुखपत्र 'अगीतायन', संतुलित कहानी विधा, संघात्मक समीक्षा पद्धति तथा विश्व-विद्यालयों के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में अगीत विधा को महत्त्व प्राप्त होने की सार्थक चर्चा की गयी है |अगेत विधा के प्रचार प्रसार में योगदान देने वाले वरिष्ठ साहित्यकारों के साथ ही नवांकुरों के कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर इसकी अनुगूंज को भी रेखांकित किया गया है |
द्वितीय अध्याय के अंतर्गत अगीत की उत्पत्ति की पृष्ठभूमि , अवधारणा व अभिप्राय की सारगर्भित व्याख्या करते हुए डा गुप्त ने उसके स्वरुप, वैशिष्ट्य एवं उपयोगिता को रेखांकित किया है | लेखक का मानना है.. 'यह एक वैज्ञानिक पद्धति है, सामाजिक सरोकारों व उनके समाधान के लिए एक विद्रोह है , एक नवीन खोज है | भाषा की नयी संवेदना, कथ्य का अनूठा प्रयोग, संक्षिप्तता व परिमाण की पोषकता , बिम्बधर्मी प्रयोग के साथ सरलता से भाव सम्प्रेषण अगीत का एक और गुण है ' .... अगीत रचनाकार सिर्फ कल्पनाजीवी नहीं वह स्वजीवी , यथार्थजीवी व समाजजीवी है | वह निरास्दिता के विपरीत सौन्दर्यबोध व आशावादिता को स्वीकारता है | अगीत में पश्चिम के अन्धानुकरण की अपेक्षा कविता को अपनी जमीन, अपने चारों और के वातावरण पर रचने का प्रयास खूब है |
अगीत के वर्त्तमान परिदृश्य एवं संभावना की विस्तृत विवेचना तृतीय अध्याय की विषय वास्तु है | अगीत के विस्तृत फलक की चर्चा करते हुए डा गुप्त ने लखनऊ व बाहर के अनेक रचनाकारों, समीक्षकों , कवियों , उनकी रचनाओं, पत्र-पत्रिकाओं , महाकाव्य, खंडकाव्यों शोधग्रंथों का सम्यक निरूपण किया | विदेशों में बसे अगीत रचनाकारों का भी उल्लेख किया है | इसके अतिरिक्त अगीत के प्रचार-प्रसार में सक्रीय साहित्यकारों द्वारा आयोजित गोष्ठियों, बृहद आयोजनों , सम्मानों आदि विविध गतिविधियों को भी उद्घाटित किया है | इसी सन्दर्भ में अगीत के उत्कर्ष में सहायक विभिन्न भारतीय एवं अभारतीय विद्वानों, कवियों, साहित्यकारों के विचारों , सम्मतियों तथा टिप्पणियों को भी प्रस्तुत किया गया है|
चतुर्थ अध्याय -'अगीत छंद एवं उनके रचना विधान' अत्यंत महत्वपूर्ण है | वर्त्तमान में अगीत विधा में प्रचलित एवं विविध नवीन प्रयोगों यथा अगीत छंद, लयबद्ध अगीत, शताप्दी अगीत, नव-अगीत, गतिमय सप्तपदी अगीत, त्रिपदा अगीत एवं त्रिपदा अगीत ग़ज़ल के रचनाविधान को डा गुप्त ने समुचित उद्धरणों के माध्यम से स्पष्ट करने का सार्थक प्रयास किया है|
अगीत विधा एक भावपक्ष प्रधान सशक्त काव्य-विधा है , इसका गहन चिंतन एवं विवेचन पंचम अध्याय 'अगीत की भाव संपदा' के अंतर्गत प्रस्तुत किया गया है | अगीत की बहुआयामी भाव-भूमि ...सामाजिक सरोकार, सामाजिक बदलाव,युग परिवर्तन, विचारक्रान्ति, स्त्री विमर्श , प्रकृति चित्रण , हास्य-व्यंग्य ,सन्दर्भ, मनोविज्ञान, धर्म एवं दर्शन के साथ ही स्वदेश, स्वभाषा, स्वसंस्कृति के प्रति निष्ठा ,प्रेम की अभिव्यक्ति का निरूपण विभिन्न रचनाओं के उद्धरणों के माध्यम से पा गुप्त ने अपने विषय ज्ञान का परिचय दिया है |
'अगीत का कलापक्ष ' षष्ट अध्याय है जिसमें कलापक्ष पर समुचित प्रकाश डाला गया है | इस सन्दर्भ में इस तथ्य का भी उल्लेख किया गया है कि " यद्यपि अगीत रचनाकार शव्द-विन्यास, अलंकार, रस लक्षणाओं आदि कलापक्ष पर अधिक आधारित नहीं रहता तथापि छंद विधा व गीत का समानधर्मा होने के कारण अगीत में भी पर्याप्त मात्रा में आवश्यक रस, छंद अलंकर व अन्य काव्य के गुण सहज व स्वतः रूप से ही आजाते हैं| डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' , सोहनलाल सुबुद्ध,पार्थोसें व डा श्याम गुप्त ने अपने आलेखों एवं कृतियों के माध्यम से अगीत काव्य में प्रयुक्त शिल्प सौन्दर्य की चर्चा की है|डा श्याम गुप्त ने इस अध्याय में अनेक सटीक उद्धरणों द्वारा अगीत में रस, छंद , अलंकारों, माधर्य, ओज,प्रसाद के साथ अभिधा, लक्षणा , व्यंजना के प्रयोग की सारगर्भित एवं विषद विवेचना की है |
इस प्रकार अगीत रचनाकार डा श्याम गुप्त ने अगीत काव्य की सुदीर्घ सृजन यात्रा विभिन्न आयामों एवं अभिनव कलेवर का सार्थक विवेचन करके इस तथ्य को भी उदघाटित किया है कि हिन्दी साहित्य को समृद्ध बनाने में इसका सराहनीय योगदान आज सर्वस्वीकृत है | कृति की भाषा सहज, बोधगम्य व प्रवाहपूर्ण एवं शैली
विषयानुरूप है | तथ्यानुसंधान एवं प्रस्तुतीकरण के दृष्टि से यह कृति अगीत काव्य को समझने एवं इस दिशा में रचनाक्रम में प्रवृत्त होने के लिए डा श्याम गुप्त को हार्दिक बधाई एवं अगीत काव्य एवं समस्त रचनाकारों के उज्जवल भविष्य हेतु मंगल कामनाएं |
--प्रोफ. उषा सिन्हा
पूर्व अध्यक्ष
भाषा विज्ञान विभाग
लखनऊ विश्व विद्यालय
Monday, 5 August 2013
अगीत की शिक्षा शाला -..अगीत क्या .....स्पष्ट विस्तृत वाच्य ...... कार्यशाला-३ ....डा श्याम गुप्त ....
अगीत की शिक्षा शाला -....डा श्याम गुप्त ....
कार्यशाला-३
इस ब्लॉग पर अगीत की कार्यशाला कार्यक्रम प्रसारित किया जायगा , अगीत कविता क्या है व कैसे लिखा जाता है इसका विविध छंद व उनका छंद विधान क्या है सोदाहरण प्रस्तुत किया जाएगा.....[ कविता की अगीत विधा का प्रचलन भले ही कुछ दशक पुराना हो परन्तु अगीत की अवधारणा मानव द्वारा आनंदातिरेक में लयबद्ध स्वर में बोलना प्रारम्भ करने के साथ ही स्थापित होगई थी| विश्व भर के काव्य ग्रंथों व समृद्धतम संस्कृत भाषा साहित्य में अतुकांत गीत, मुक्त छंद या अगीत-- मन्त्रों , ऋचाओं व श्लोकों के रूप में सदैव ही विद्यमान रहे हैं| लोकवाणी एवं लोक साहित्य में भी अगीत कविता -भाव सदैव उपस्थित रहा है | यथा --
यद् क्रोंच मिथुनादेकं बधी काम मोहितं || तथा.....
भूर्वुवः स्वः तत्सवितुर्वरेणयम
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो न प्रचोदयात ||
कार्यशाला- ३ ....अगीत क्या है व क्यों ...
" गीत में अ प्रत्यय लगाकर अगीत को संज्ञा के रूप में स्वीकार किया गया है | अगीत गीत नहीं के रूप में न लिया जाय | यह एक वैज्ञानिक पद्धाहाई जिसमें संक्षिप्तता को ग्रहण किया है , सतसैया के दोहरे की भांति ..." ---- डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य'
हे अगीत ! तुम निहित गीत में
गीत तुम्हारे अंतर स्थित
नए छंद नव भाव नवल स्वर
ले अवतरित हुए हे चेतन !
वंदन हित वाणी -विनायकौ
नमन श्याम का हो स्वीकार | ---- अगीत साहित्य दर्पण से
गीत तुम परिमिति से निकलकर
हे अगीत ! तुम निहित गीत में
गीत तुम्हारे अंतर स्थित
नए छंद नव भाव नवल स्वर
ले अवतरित हुए हे चेतन !
वंदन हित वाणी -विनायकौ
नमन श्याम का हो स्वीकार | ---- अगीत साहित्य दर्पण से
अपरिमित होजाते हो,
आकार से हटकर
निराकार होजाते हो,
गुणों को त्यागकर
निर्गुण गीत बन जाते हो,
अगीत कहलाते हो | ---- डा श्याम गुप्त
एक लघु वाक्य
करता है हमारे भाव का
स्पष्ट सम्प्रेषण |
अगीत की लघुकाया में
लेता है आकार
हमारे विचार का
स्पष्ट विस्तृत वाच्य | ----प. जगत नारायण पांडे
अन्तर्निहित गीत है गति है
लय यति गति व्यति वह अगीत है,
अ असीम है परिधि अपरिमित
अ का अर्थ वह नहीं नहीं है;
त्रिपदा अप्त्पदी या षट्पद
है अगीत वह नव-अगीत भी | ------ लयबद्ध षट्पदी अगीत
प्रेम विह्वलता विरह भावातिरेक की धारा,
जब बहती है मन में,
अजस्र अपरिमित प्रवहमान- तब-
गीत निसृत होते हैं
सरिता की अविरल धारा की तरह ;
वही धारा ,प्रश्नों को उत्तरित करती हुई
व्याख्या विश्लेषण सत्य को उद्घाटित करती हुई ,
निस्रत निर्झरिणी बनकर
अगीत बन जाती है | ----डा श्याम गुप्त
नयी भोर की उषा सरीखी,
स्वर्णिम रंगों को बिखराती
नवल विधा की भांति लजाती
नवीन विधा 'अगीत'
काव्य के नव सत्य की भांति
निशान्धकार को भेदती हुई
वक्त के सांचे को बदलने
उतरी , नीलाम्बर से-
धीरे धीरे धीरे | ---- सुषमा गुप्ता
सामाजिक सरोकारों को
अपने में समाये,
नव प्रभात लाने
नव-अगीत आये | ----- डा श्याम गुप्त
" अगीत को 'गीत सा नहीं ' के अर्थों में न लिया जाय , अगीत के रचनाकार अगीत को गाकर पढ़ सकते हैं |"
----समीक्षक प. राम मूर्ति द्विवेदी
गीतों का पहला मीत
शुरू हुई जहां से
रचनाओं की रीत ;
आओ रचें
आज फिर एक अगीत ----- पार्थो सेन
कुछ पंक्तियाँ कभी जुडी थीं
किसी के मन में ,
जगी थीं कुछ भावनाएं,
लिखा होगा फिर उसने
अपनी भाषा में उस संवेदना को,
पिरोया होगा उसने फिर
उसे एक अगीत में|
यहीं पर जन्म हुआ ,
कविता का,
और शुरू हुआ यहीं से
कविता का एक सफ़र ,
बंट गया जो अनगिनत विधाओं में ,
बेचारा वह पहला अगीत | ----- पार्थो सेन
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