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Saturday 5 April 2014

अगीत की शिक्षाशाला.....कार्यशाला 20 .... अगीत छंद व उनका रचना विधान..... त्रिपदा अगीत ग़ज़ल..... डा श्याम गुप्त

अगीत की शिक्षाशाला.....कार्यशाला 20 .... अगीत छंद व उनका रचना विधान..... त्रिपदा अगीत ग़ज़ल.....


 

            अगीत की शिक्षाशाला.... अगीत में रस छंद अलंकार योजना---क्रमश ... अगीत- छंद....    त्रिपदा अगीत ग़ज़ल.....

 

                                              
               (   लय गति  काव्य-विधा के अपरिहार्य तत्व विशेषताएं हैं जो इसे गद्य-विधा से पृथक करती  
 है  |  यति --काव्य को संगीतमयता के आरोह-अवरोह के साथ कथ्य भाव को अगले स्तर पर परिवर्तन की  
स्पष्टता से विषय सम्प्रेषण को आगे बढाती हैतुकांत बद्धता ..काव्य के शिल्प सौंदर्य को बढाती है परन्तु  

संक्षिप्तता, शीघ्र भाव-सम्प्रेषणता अर्थ-प्रतीति का ह्रास करती है | अतः वैदिक छंदों ऋचाओं की अनुरूपता  
तादाम्य लेते हुए अगीत मूलतः अतुकांत छंद है | हाँ लय गति इसके अनिवार्य तत्व हैं तथा तुकांत, यति,  
मात्रा गेयता का बंधन नहीं है | अगीत वस्तुतः अतुकांत गीत है |

                      अगीत कविता का मुख्य अभिप्राय: है राष्ट्र, समाज जमीन से जुडी वह छोटी अतुकांत कविता जो पांच से दस पंक्तियों से कम या अधिक की होजिसमें लय गति हो, गेयता का बंधन हो एवं मात्रा- बंधन भी आवश्यक नहींवर्तमान में अगीत काव्य-विधा में प्रचलित प्रयोग होरहे विविध छंदों का नीचे वर्णन किया जा रहा है | वे छंद ये हैं-----
- अगीत छंद ......-लयबद्ध अगीत  -गतिमय सप्तपदी अगीत  -लयबद्ध षटपदी अगीत   -नव-अगीत -त्रिपदा अगीत   -त्रिपदा अगीत गज़ल ... )



७.त्रिपदा अगीत गज़ल-– तीन तीन पंक्तियों की ...त्रिपदा-अगीत छन्दों की मालिका.....

     इसका रचना विधान निम्न है .....

.त्रिपदा अगीत छंदों  की मालिका जिसमें तीन या अधिक छंद होने चाहिए |

.प्रथम छंद की तीनों पंक्तियों के अंत में वही शब्द आवृत्ति होनी  चाहिए |

.शेष छंदों में वही शब्द आवृत्ति अंतिम पंक्ति में आना आवश्यक है |

.अंतिम छंद में कवि अपनी इच्छानुसार अपना नाम या उपनाम रख सकता है |

         
            
        ग़ज़ल....बातकरें 

भग्न अतीत की बात करें,
व्यर्थ बात की क्या बात करें;
अब नवोन्मेष की बात करें।

यदि महलों मैं जीवन हंसता,
झोंपडियों में जीवन पलता;
क्या ऊंच नीच की बात करें।

शीश झुकायें क्यों पश्चिम को,
क्यों अतीत से हम भरमायें;
कुछ आदर्शों की बात करें 

शास्त्र ,बडे बूडे बालक,
है सम्मान देना पाना तो;
मत श्याम व्यन्ग्य की बात करें   --डा श्याम गुप्त





       ग़ज़ल.... पागल दिल 

क्यों पागल दिल हर पल उलझे ,

जाने क्यों किस जिद में उलझे ;

सुलझे कभी, कभी फिर उलझे |



 तरह-तरह से समझा देखा ,

पर दिल है उलझा जाता है ;

क्यों  ऐसे पागल से उलझे |



धडकन बढती जाती दिल की,

कहता  बातें किस्म किस्म की ;

ज्यों काँटों में आँचल उलझे  ||                         ---डा श्याम गुप्त

                              ---- क्रमश: ...काव्य के गुण व अगीत.....