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Friday 6 September 2013

नव-अगीत ...अगीत की शिक्षा शाला ----कार्यशाला -९ ... ....डा श्याम गुप्त ...

          

                                           अगीत की शिक्षा शाला                                             

                      { अगीत विधा कविता में  अगीत , लयबद्ध अगीत ,गतिमय सप्तपदी अगीत , लयबद्ध षट्पदी अगीत , नव-अगीत,  त्रिपदा अगीत  आदि छः प्रकार के अतुकांत छंद प्रयोग होरहे हैं एवं  सातवीं विधा 'त्रिपदा अगीत ग़ज़ल' है|)

                                        कार्यशाला -९ ..नव-अगीत छंद

२००८ में  कवयित्री श्रीमती सुषमागुप्ता के एक छोटे से अगीत पर मेरी प्रतिक्रया 'इतना छोटा अगीत" पर उनके कथन कि यह नव-अगीत है ... से प्रेरित होकर मैंने अगीत के एक अन्य छंद
 का सूत्रपात किया जो पारंपरिक अगीत से भी  लघु है....जिसे  " नव-अगीत" नाम दिया गया |
नव-अगीत छंद--- ३ से अधिक ५ से कम पन्क्तियों वाला, अतुकान्त अगीत छन्द है... ..इस छंद का रचना विधान निम्न है.....
१.अतुकांत लघु अगीत छंद
२.तीन से कम व पांच से अधिक पंक्तियाँ नहीं
३.लय, गति व मात्रा बंधन से मुक्त
४. मुख्यतया: सामाजिक सरोकारों ,कटु सत्य, नवीन विचारों से युक्त परन्तु अनिवार्यता व बंधन नहीं |
--  यथा--         


            बेडियां तोडो, 
          ज्ञान-दीप जलाओ,
          नारी ! अब -
          तुम्ही राह दिखाओ;
          समाज को जोडो.        -सुषमा गुप्ता         
  
     देश की प्रगति ही,
     सबका कल्याण,
     यही हमारा उद्देश्य,
     रखती हूं मैं
     इसका ध्यान ।  ---विजय कुमारी मौर्य ’विजय’

      आदमी ,
      इतना विषैला होगया है;
      सांप ,
      अब आस्तीन में नहीं रहते।     ---डा श्याम गप्त

          " हम मरते हैं,
           
कटते हैं,
           
समस्यायें  मौन खड़ी हैं,
            
बे परिणाम |"                                          ----सुरेश चन्द्र शुक्ल, नार्वे


"मुस्तैद मित्र पुलिस 

हरदम तैयार ;

फिर भी नहीं मिली ,

उत्तम प्रदेश में-

चोरी गयी कार |"                                  -----डा श्याम गुप्त

"सावधान होजायें 

ऐसे दुमुहे 

मुझे भाएँ ;

जो खाएं और गुर्रायें

इन दुमुहों के पास जाएँ |"                     ---- सोहन लाल सुबुद्ध


"शब्द वेधी वाण ने 

हरे श्रवण के प्राण ;

कैकयी की वाणी ने .

वन  भेजा सुकुमार |"                                  --- पार्थो सेन  |


" दिवस के अवसान में
उद्भासित अरुणाभा ,
देती है सन्देश 
क्षितिज पर मिलन का,
उषा की बेला में |"                        --- अगीतिका से ( पं. जगत नारायण पाण्डेय )



"कवि चिथड़े पहने 
चखता संकेतों का रस,
रचता -रस, छंद, अलंकार
ऐसे कवि के क्या कहने |"            ------डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' .           



" आज के समाज का 
सबसे बड़ा व्यंग्य ;
सच को भी -
व्यंग्य कहकर,
कहना पड  रहा है |"                      ----- गिरीश पाण्डेय ( धरती जानती है )


खोल दो घूंघट के पट ,
हटादो  ह्रदय पट से,
आवरण,
मिटे  तमिस्रा,
हो नव-विहान |"                                     ----श्रीमती  सुषमा गुप्ता 


ओ दिव्य कवि !
तेरी मधुर रागमयी बांसुरी की धुन
सागर की उत्ताल तरंगों से संगत करती,
आकाश के अंतहीन उसार में ,
कोमलता से गुंजन करती |"                    -----श्री धुरेन्द्र स्वरुप बिसरिया ( दिव्य-अगीत से )

                ---क्रमश -- त्रिपदा अगीत ...अगली कार्यशाला में ......
 

 

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