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Saturday 3 November 2012

सृष्टि महाकाव्य--पंचम सर्ग --डा श्याम गुप्त ..




सृष्टि महाकाव्य..पंचम सर्ग..
सृष्टि महाकाव्य-(ईषत- इच्छा या बिगबेंग--एक अनुत्तरित उत्तर )-- -------वस्तुत सृष्टि हर पल, हर कण कण में होती रहती है, एक सतत क्रिया है , जो ब्रह्म संकल्प-(ज्ञान-ब्रह्मा को ब्रह्म द्वारा ज्ञान) ,ब्रह्म इच्छा-एकोहं...( इच्छा) सृष्टि (क्रिया- ब्रह्मा रचयिता ) की क्रमिक प्रक्रिया है --किसी भी पल प्रत्येक कण कण में चलती रहती है, जिससे स्रिष्टि व प्रत्येक पदार्थ की उत्पत्ति होती है प्रत्येक पदार्थ नाश(लय-प्रलय- शिव) की और प्रतिपल उन्मुख है।
(
यह महाकाव्य अगीत विधामें आधुनिक विज्ञान ,दर्शन व वैदिक-विज्ञान के समन्वयात्मक विषय पर सर्वप्रथम रचित महाकाव्य है , इसमें -सृष्टि की उत्पत्ति, ब्रह्माण्ड व जीवन और मानव की उत्पत्ति के गूढ़तम विषयको सरल भाषा में व्याख्यायित कियागया है | इस .महाकाव्य को हिन्दी साहित्य की अतुकांत कविता की 'अगीत-विधा' के छंद - 'लयबद्ध षटपदी अगीत छंद' -में निवद्ध किया गया है जो एकादश सर्गों में वर्णित है).... ...... रचयिता --डा श्याम गुप्त ...

सृष्टि - अगीत महाकाव्य--पन्चम सर्ग--अशान्ति खन्ड..कुल ३७ छंद --.इस सबसे क्लिष्ट व जटिल सर्ग में साम्य अंतरिक्ष में ॐ की प्रतिध्वनिसे जो हलचल हुई उससे व्यक्त मूल तत्व के कणों में गति से किस तरह से मूल ऊर्जा व अन्य ऊर्जाओं की व अन्य कण-प्रतिकण, फिर विभिन्न पदार्थ, भाव तत्व, शक्तियां , समय , अंतरिक्ष के पिंड आदि की उत्पत्ति हुई, इसका भौतिक, रासायनिक, आणुविक जटिल व जटिलतम प्रक्रियाओं का वर्णन का वैदिक व्याख्या व आधुनिक विज्ञान से तादाम्यीकरण किया गया है ।
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यहाँ हम इसके प्रथम भाग- छंद से १३ तक....का वर्णन  करेंगे कि किस तरह से मूल आदि ऊर्जा, मूल कण, न्यूक्लियर ऊर्जा, सौर ऊर्जा,, परमाणु संरचना,धनात्मक, ऋणात्मक आवेशित कणों का संयोग, प्रतिकण, जैविक-अजैविक पदार्थ,प्रकाश आदि के विभिन्न पूर्व परमाणु कण आदि बने ....
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परम व्योम की इस अशांति१ से ,
द्वंद्व भाव कण कण में उभरा।
हलचल से गति मिली कणों को,
अपः तत्व में साम्य जगत के।
गति से आहतनाद, फिर बने,
शब्द, वायु ,ऊर्जा ,जल और मन॥
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जुः रूपी उस महाकाश में,
यतः रूप गतिशील कणों का;
सूक्ष्म भाव जो मूल अदिति२ का
वायु नाम से प्रवाहमान था।
इन तीनों के मध्य परस्पर,
विद्युत् विभव, अग्नि कहलाया॥
-
वे प्रथम अजायत अग्नि देव,
गतिमान कणों के संघर्षण से;
ऊर्जा रूप में हुए अवतरित,
शक्ति रूप जो रहते हैं, प्रकृति -
देव ,जड़-जंगम के कण-कण में;
नाभि-रूप हैं सृष्टि-यज्ञ३ के॥
-
क्रियाशील वे सूक्ष्म आदि कण ,
नाम अंगिरा, अग्निपुत्र थे।
इंद्र नाम संगठक शक्ति से,
रासायनिक संयोग रूप का ,
चेतन अग्नि की उपस्थिति में
किया यज्ञ, परमाणु कण बने॥
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परमाणु कणों स्थित ऊर्जा४ में,
भाव नहीं था सतत-सृजन का।
नाभानेदिष्ट ऋषि नाम रूप से,
ज्ञान नाभि-ऊर्जा५ का पाया।
सतत सृजन का भाव लिए तब,
मिला अज़स्र स्रोत ऊर्जा का।
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सतत संयोजन और विखंडन,
रूप नाभिकीय ऊर्जा का जो ;
अंतरिक्ष में सौर-शक्ति बन,
नाम अदिति से दिति६ का पाया।
प्रकट रूप है जो पदार्थ की,
पूर्ण कार्य-रूपी ऊर्ज़ा का॥
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उस चेतन की ऊर्जा ही है,
मूल स्रोत नाभिक ऊर्जा का;
एक इकाई नाभिक ऊर्जा,
सौर-शक्ति७ से सहस गुना है।
नाभानेदिष्ट ऋषि८ एक गाय९ दे ,
सहस चाहते तभी सूर्य से॥
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गौशाला रूपी परमाणु कक्ष ,
रिक्त१० कुछ कणों से जब होता।
इन्द्र, संयोजक शक्ति, सदा ही,
नए कणों रूपी गायों को,
लाकर भर देते गौशाला;
बनाते जाते नए सृष्टि-कण॥
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यमी रूप ११ अपभाव भरे कण ,
योग चाहते सजातीय से
यम है नियामक शक्ति सृष्टि की,
अनुशासक हैं जड़-जंगम के।
कह देते हम घटक एक से,
विजातीय से मिलो यमी तुम॥
१०-
सम रूपी घटकों के योग से,
प्राप्त तत्व भी वही रहेगा;
विजातीय दो घटक मिलें जब,
नूतन तत्व प्राप्त तब होगा।
अनुशासक यम के नियमन से,
नूतन विविध पदार्थ बन गए॥
११-
प्रतिकण१२ जो हैं स्वयं संगठित,
अति कठोर रासायनिक बंधन से;
रूप राक्षस , विघ्न डालते,
सृष्टि-यज्ञ , रूपी क्रिया में
इन्द्र, बज्र१३ से नाश सभी का,
करते रहते, यज्ञ -पूर्ति -हित॥
१२-
अग्नि-पुत्र ,अंगिरा रूप जो,
परमाणु-पूर्व के कण-प्रवाह थे।
रच , यज्ञों१४ की नई श्रृंखला,
इन्द्र शक्ति१५ की कृपा दृष्टि से;
किये उपस्थित नए नए नित ,
विविध ऊर्जा और भूत कण१६
१३-
सतरंगे अर्यमा, प्रकाश कण,
सप्त स्वरों के वाणी स्वर-कण।
अक्रिय अष्ट बंधन के जैविक१७ ,
आठ वसु और सक्रिय अजैविक-
सात कणों युत सप्तहोत्र१८ , यों,
सभी रूपकण१९ बने सृष्टि के॥ .........पंचम सर्ग..अशांति खंड.आगे ...क्रमश: ....

(
कुंजिका....१=हलचल, प्रक्रिया , क्रिया-प्रतिक्रया ... मूल व्यक्त प्रकृति की साम्य अवस्था भंग होने पर हुई हलचल, २=अदिति- अविभक्त,अखंड मूल स्थिर ऊर्जा, आदि ऊर्जा ....३=सृष्टि सृजन की गूढ़ तात्विक क्रियाएं , ४=परमाणु कणों में स्थित मूल स्थितिक ऊर्जा , ५=नाभिक ऊर्जा, न्यूक्लियर इनर्जी , परमाणु के नाभिक में स्थित अनंत ऊर्जा स्रोत ६=दिति, खंडित, विभक्त, व्यक्त मूल कार्यकारी ऊर्जा ( विखंडन-संयोजन से प्राप्त क्रियाशील ऊर्जा) , ७= सूर्य की सोलर ऊर्जा , ८= नाभिकीय ऊर्जा का ज्ञाता ऋषि , ९=ऊर्जा कण की इकाई , १०=गौशाला रूपी परमाणुओं के वलय में नाभिक के चारों और घूमते हुए इलेक्ट्रोंस की कमी जिससे परमाणु ( व द्रव्य) असंत्रप्त, अस्थिर रहता है, अति क्रियाशील ), ११ = यम-यमी आख्यान ( ऋग्वेद)--यम के संतानें( नियम से बने कण) -यम की बहन यमी यम से समागम करना चाहती है परन्तु यम साफ़ इनकार करते हैं कि किसी अन्य जाति (असुर आदि) से संयोग करो हम तो भाई बहन हैं । ---तात्विक ,रासायनिक प्रक्रिया का सूत्र रूप --अर्थ में सम रूप कणों से ( ऋण -ऋण , धन धन कणों के संयोग से वही तत्व मिलेगा और नवीन पदार्थ नहीं बनेंगे , अतः विजातीय ( असमान , असुर ) पदार्थ या ऊर्जा कणों का आपस में रासायनिक संयोग होना चाहिए जिससे नए नए पदार्थ बनने लगें। यम नियामक शक्ति है और सृष्टि के एक निश्चित नियम के अनुसार ही पदार्थ बनाते हैं। ,,१२=प्रतिकण, प्रत्येक कण का एक प्रति कण , एंटी पार्टीकल ,-रासायनिक प्रक्रिया में बाधक तत्व १३=इन्द्र का बज्र, कठोर रासायनिक बंधनों को तोड़ने वाला उत्प्रेरक तत्व , १४= नयी नयी रासायनिक, भौतिक, इलेक्ट्रोनिक प्रक्रियाएं , १५= संगठन व विखंडन शक्ति , १६= पदार्थ कण , १७=आठ इलेक्ट्रोन वाले संतृप्त सतही जैविक(ओरगेनिक ) परमाणु व पदार्थ , १८= अपनी परमाणु कक्षा में सात इलेक्ट्रोन वाले असंत्रप्त क्रियाशील अजैविक (इनोर्गेनिक), १९= व्यक्त द्रश्य पदार्थ के कण ....)


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यहाँ हम अशांति खंड के..द्वितीय भाग .छंद १४ से २६ तक का वर्णन करेंगे जिसमें -सृजित विभिन्न कणों से पदार्थ के त्रि-आयामी ( थ्री डायमेंशनल ) कण, पदार्थ, रूप, रस, भाव, इन्द्रियाँ, मन,स्वत्व, अहंकार, ३३ देव ( पदार्थों की मूल शक्तियां ),अंतरिक्ष, नक्षत्र,गृह-उपग्रह व समय की रचना कैसे हुई, को व्याख्यायित किया गया है। )
१४-
शक्ति और इन भूत-कणों के ,
संयोजन से बने जगत के,
सब पदार्थ और उनमें चेतन-
देव १ रूप में निहित होगया ;
भाव तत्व बन, बनी भूमिका,
त्रिआयामी सृष्टि-कणों२ की।।

१५-
वायु से अग्नि, मन और जल बने,
सब ऊर्जाएं बनी अग्नि से;
जल से सब जड़ तत्व बन गए।
मन से स्वत्व व भाव अहं सब,
बुद्धि, वृत्ति और तन्मात्राएँ ३,
सभी इन्द्रियां बनीं स्वत्व से ।।

१६-
विश्वौदन ४ के रूप, सृष्टि कण ,
और अजः५ , वह जीवात्मा भी ;
स्वः मह: जन : उच्चाकाश में ,
थे स्वतंत्र बन पंचौदन-अजः६ ;
पूर्व भूमिका में, बनने की,
पंचभूत रूपी पदार्थ सब ।।

१७-
ग्यारह रूद्र, बारह आदित्य , और-
अष्ट-बसु ये सभी देवगण ,
ऊर्जा-दृव्य भाव गुण युत थे।
शक्ति संगठक -इंद्र, प्रजापति ,
तैंतीस देव७ पड़े थे सिन्धु में ,
उस अशांति मय महाकाश में।।

१८-
सत-तंम-रज मय अहंकार के,
तामस विकृति ८ भाव रूप के,
मूल भाव और गुण भाव से,
शब्द और आकाश बन गए।
उसी शब्द के सूक्ष्म भाव से ,
बने धारणा ध्यान विचार

१९-
मूल रूप-गुण आकाश का ,
बना स्पर्श-गुण रूप महान।
सूक्ष्म-भाव आकाश से बने ,
मोह लोभ भय,सुख-दुःख नाम ।
तेजस उभरा रूप गुणों से ,
जिससे रस, जल तत्व समान॥

२०-
जल -तेजस के पुनः संयोग से,
बने सूक्ष्म-गुण, गंध-सुगंध ।
और रूप गुण से से पृथ्वी के ,
क्षिति रूपी सब रूप प्रबंध।
रूप-भाव रसना, रस, षटरस ,
सूक्ष्म से बने भावरस, नवरस ॥

२१-
पांच ज्ञान और कर्मेन्द्रियाँ ,
आँख कान और लिंग आदि सब,;
सभी इन्द्रियाँ -अहंकार के,
राजस रूप की विकृतियाँ थीं ।
देव अधिष्ठाता इन दस के,
और एक मन, सत्व अहं से॥

२२-
तीन कालकांज ९ नाम रूप जो,
ऋण धन उदासीन विभव थे।
अति कठोर विद्युत् बंधन से,
बांधे थे सब प्रकृति कणों को।
असुर रूप वे अक्रियता, अगति,
के कारण थे सृष्टि कणों के॥

२३-
असुरों१० ने आकर्षित करके,
किया इष्टकाओं को बंधित;
मूल इकाई जो ऊर्जा की
क्रोधित इंद्र११ ने किया आक्रमण,
बिखर गए, गति मिली कणों को;
हुआ तभी से बोध काल का॥

२४-
बिखरे कालकांज- गतिमय कण ,
दो रूपों में, पिंड बन गए।
फूले- ऊर्जा रूप, विरल जो,
ध्यूलोक के शुन:१२ कहलाये।
बने सूर्य, तारे, नक्षत्र ,
गतिमय नीहारिका आदि सब॥

२५-
घनीभूत जो भूत आदि कण,
ठोस पिण्ड१३ के रूप बन गए
अंतरिक्ष में गतिमय होकर,
पृथ्वी, ग्रह, उपग्रह होगये।
घूम रहे थे द्यूलोक में ,
बिखरे सारे महाकाश में॥

२६-
पृथ्वी सूर्य चन्द्र आपस में,
हैं सापेक्ष, समय की गति के।
ये भी कालकांज कहलाये,
बनी समय की मूल इष्टका१४ ,
इनकी गति से, जन्म हुआ यूं,
काल-बोध का, संवत्सर का॥ .......

(
कुंजिका----१=प्रत्येक कण व तत्व का मूल भाव-तत्व , जिसे भारतीय दर्शन में वस्तु की आत्मा या अभिमानी देव या चेतन शक्ति कहा गया है जिससे 'कण कण में भगवान ' का दर्शन आस्तित्व में आया ; २=तीन आयाम वाले पदार्थ का मूल अणु ; ३= इन्द्रियों का मूल दृष्टा भाव ; ४=विश्व निर्माण का मूल तैयार तत्व (कोस्मिक सूप); ५= अजन्मा ( नित्य) जीव , परमात्मा का अंश जीवात्मा ; ६= पंचभूत व जीवात्मा सहित पंचभूत पदार्थ, पदार्थ बनाने की तैयार मिट्टी ; ७= मूल ३३ आदि तत्व-भाव/ भौतिकी -रसायन के ३३ बेसिक परमाणु ; ८= रूप भाव व गुणों में परिवर्तन --प्रत्येक ऊर्जा+ द्रव्य कण प्रकृति के तीन मूल गुण -सत तम रज -के मूल रूप, गुण, भाव व सूक्ष्म भाव के अनुसार रासायनिक व भौतिक प्रक्रियाओं द्वारा विभिन्न रूप रस भाव पदार्थों का गठनकरते हैं ; ९= समय के अणु रूप; १०= कठोर रासायनिक बंधनों को असुर कहा गया है जो समय की इकाइयों को टूटने नहीं देते तथा सृष्टि निर्माण प्रक्रिया को रोके रहते हैं ; ११= विशेष विखंडन रासायनिक प्रक्रिया ; १२ = अधिकतम ऊर्जा सम्पन्न भाग जो विरल गैसीय थे ; १३= घने , ठोस , भारी पदार्थों से युक्त कम ऊर्जा सम्पन्न भाग ; १४ =समय की मूल व्यवहारिक इकाई , यूनिट ।


सृष्टि महाकाव्य ..पंचम सर्ग...तृतीय भाग...डा श्याम गुप्त... ....
             सृष्टि महाकाव्य-(ईषत- इच्छा या बिगबेंग--एक अनुत्तरित उत्तर )--
       

                 
पंचम सर्ग अशांति खंड में अब तक-अणु, परमाणु, पदार्थ के त्रिआयामी कण , मूल-पदार्थ , समय अंतरिक्ष कैसे बने इसका वैदिक विज्ञान सम्मत व्याख्या का वर्णन किया गया था इस तृतीय अंतिम भाग -छंद २७ से ३७ तक--में आधुनिक विज्ञान के अनुसार , बिग बेंग के पश्चात परमाणु, अणु, पदार्थ आदि कैसे बने इसका वर्णन किया गया है----
२७-
कहता है विज्ञान , आदि में ,
कहीं नहीं था कुछ भी स्थित।
एक महाविष्फोट1 हुआ था,
अंतरिक्ष में और बन गए ;
सारे कण-प्रतिकण,प्रकाश कण,
फिर सारा ब्रह्माण्ड बन गया॥
२८-
एक महा विष्फोट हुआ जब,
अंतरिक्ष, उस महाकाश में;
एक हजारवें भाग में पल के,
तापमान अतिप्रबल२ होगया।
और आदि ऊर्जा-कण सारे,
लगे फैलने अंतरिक्ष में॥
२९-
ऊर्जा कण, उस प्रबल ताप से,
विकिरण ऊर्जा भाव हुए थे।
क्रमश: तापमान घटने से,
प्रारम्भिक कण-रूप बन गए।
हलके, भारी,भार रहित कुछ-
विद्युतमय,कुछ उदासीन थे॥
३०-
तापमान गिरते जाने से,
हलके- कण, संयुक्त होगये
ऋणकण,धनकण,उदासीनकण३
और प्रकाशकण-रूप बन गए।
प्रति सहस्र हलके उपकण से ,
बना एक परमाणु-पूर्व कण४
३१-
तापमान अति न्यून हुआ जब,
धनकण, उदासीन कण सारे,
जो परमाणु पूर्व के कण थे;
हो संयुक्त परमाणु बन गए।
हाइड्रोजन, हीलियम गैस थे,
दृव्य-प्रकृति के प्रथम रूप कण५
३२-
हाइड्रोजन, हीलियम गैस कण,
शेष रहे परमाणु प्रतिकण ;
और प्रकाश कण , शेष ऊर्जा,
मिलकर बने, विविध तारागण-
तारामंडल,ग्रह, नीहारिका ;
इस प्रकार ब्रह्माण्ड बन गया॥
३३-
लेकिन यह विष्फोट क्यों हुआ,
कहाँ और किस शक्ति के द्वारा।
आदि -ऊर्जा स्रोत कहाँ था,
अंतरिक्ष भी कहाँ था स्थित।
इन सारे प्रश्नों के उत्तर,
अभी नहीं विज्ञान दे सका॥
३४-
स्थित-प्रज्ञ सिद्दांत६ अन्य है,
जैसा है ब्रह्माण्ड आज यह,
सदा, सर्वदा वैसा रहता
नव-प्रसार से, रिक्त खंड में,
नव-पदार्थ है बनता जाता;
यह ब्रह्मांड वही रहता है॥
३५-
लेकिन वह पदार्थ बनता है,
भला कहाँ से, कैसे बनता;
और प्रथम ब्रह्माण्ड कहाँ था,
कहाँ और कैसे बन पाया।
इन सारे प्रश्नों के उत्तर,
अभी नहीं विज्ञान दे सका॥
३६-
क्या भविष्य है,सृष्टि लय का,
कहता है विज्ञान, अनिश्चित
अति शीतल हो अंतरिक्ष जब ,
लगे सिकुड़ने यह ब्रह्माण्ड।
पुनः बिखरकर बन जाता है,
अणु, परमाणु, आदि-कण, ऊर्जा॥
३७-
इस बिखरे समूह से बनता ,
एक ठोस अति सघन पिंड,उस-
महाशीत और अन्धकार में।
बन जाती है पुनः भूमिका ,
एक नए विष्फोट की फिर से,
रचने पुनः नया ब्रह्माण्ड॥ ----क्रमश : सर्ग ..........

{
कुंजिका---=बिगबेंग -सृष्टि उत्पत्ति का आधुनिक विज्ञान का सिद्धांत ; = अत्यंत उच्च- ताप , १०० बिलियन से-; =इलेक्ट्रोन , न्यूट्रोन, प्रोटोन स्वतंत्र ऊर्जा ; = परमाणु पूर्व के कण, = एक प्रोटोन वाले हीलियम हाइड्रोजन गैस के आदि कण जो द्रव्य जगत के प्रथम कण हुए, जिनसे बाद में समस्त पदार्थ बने। ; = सृष्टि का सम-स्थिति सिद्धांत ( बिग बेंग के अलावा आधुनिक विज्ञान का एक अन्य सिद्धांत )}

                               ---सृष्टि महाकाव्य---पंचम सर्ग---समाप्त- षष्ठ सर्ग---अगले अंक में ..
 


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