Followers

Tuesday 27 March 2012

छंद का विस्तृत आकाश ....आकाश को छोटा न कर ....डा श्याम गुप्त ...


                 वे जो सिर्फ छंदोबद्ध कविता ही की बात करते हैं, वस्तुतः छंद, कविता, काव्य-कला व साहित्य का अर्थ ठीक प्रकार से नहीं जानते-समझते एवं संकुचित अर्थ व विचार धारा के पोषक हैं। वे केवल तुकांत-कविता को ही छंदोबद्ध कविता कहते हैं। कुछ तो केवल वार्णिक छंदों -कवित्त, सवैया, कुण्डली आदि -को ही छंद समझते हैं। छंद क्या है ? कविता क्या है ?
                        
वस्तुतः कविता, काव्य-कला, गीत आदि नाम तो बाद मैं आए। आविर्भाव तो छंद -नाम ही हुआ है। छंद ही कविता का वास्तविक सर्व प्रथम नाम है। सृष्टि-महाकाव्य- में सृष्टि निर्माण की प्रक्रिया में कवि कहता है--
                                        "
चतुर्मुख के चार मुखों से ,
                                         
ऋक,यजु ,साम ,अथर्व वेद सब ;
                                          
छंद शास्त्र का हुआ अवतरण ,
                                          
विविध ज्ञान जगती मैं आया। "----श्रृष्टि खंड से।
            
वास्तव में प्रत्येक कविता ही छंद है। प्राचीन रीतियों के अनुसार आज भी विवाहोपरांत प्रथम दिवस पर दुल्हा-दुल्हिन को छंद -पकैया खेल खिलाया जाता है (कविता नहीं)। इसमें दौनों कविता मैं ही बातें करते हैं। इसके दो अर्थ हैं --
    १.कविता का असली नाम छंद है.,छंद ही कविता है।
     २ काव्य -कला जीवन के कितने करीब है । जो छंद बनाने मैं प्रवीणता, ज्ञान की कसौटी है वह संसार-चक्र में जाने के लिए उपयुक्त है । आगे आने वाला जीवन छंद की भांति अनुशासित परन्तु निर्बंध, लालित्यपूर्ण, विवेकपूर्ण, सहज, सरल, गतिमय व तुकांत-अतुकांत की तरह प्रत्येक आरोह-अवरोह को झेलने में समर्थ रहे।
           छंद का अर्थ है अनुशासन । स्वानुशासन में बंधी, लयबद्ध रचना, चाहे तुकांत हो या अतुकांत। वैदिक छंद व मन्त्र सभी अतुकांत हैं परन्तु लयानुशासन बद्ध--हिन्दी में अगीत ने यही स्वीकारा है । जब कहा जाता है कि "स्वच्छंदचारी न शिवो न विष्णु यो जानाति स पंडितः"----अर्थात शिव व विष्णु स्व छंद, अर्थात स्वानुशासन के व्यवहारी हैं, किसी जोड़-तोड़ के अनुशासन के नहीं ..स्वलय. स्वभाव,आत्मानुवत,आत्मभूत, सहज भाव वाला। अगीत कविता भाव यही है ।
                
अतः छंद ही कविता है, हर कविता छंद है -तुकांत, अतुकांत; गीत-अगीत सभी । छंद का अपना विस्तृत आकाश है। आकाश को छोटा न कर।


No comments:

Post a Comment