अगीत की शिक्षाशाला.... अगीत में रस छंद अलंकार योजना---क्रमश ... अगीत- छंद....
( लय व गति काव्य-विधा के अपरिहार्य तत्व व विशेषताएं हैं जो इसे गद्य-विधा से पृथक करती
है | यति --काव्य को संगीतमयता के आरोह-अवरोह के साथ कथ्य व भाव को अगले स्तर पर परिवर्तन की
स्पष्टता से विषय सम्प्रेषण को आगे बढाती है | तुकांत बद्धता ..काव्य के शिल्प सौंदर्य को बढाती है परन्तु
संक्षिप्तता, शीघ्र भाव-सम्प्रेषणता व अर्थ-प्रतीति का ह्रास करती है | अतः वैदिक छंदों व ऋचाओं की अनुरूपता
व तादाम्य लेते हुए अगीत मूलतः अतुकांत छंद है | हाँ लय व गति इसके अनिवार्य तत्व हैं तथा तुकांत, यति,
मात्रा व गेयता का बंधन नहीं है | अगीत वस्तुतः अतुकांत गीत है |
अगीत कविता का मुख्य अभिप्राय: है राष्ट्र, समाज व जमीन से जुडी वह छोटी अतुकांत कविता जो पांच से दस पंक्तियों से कम या अधिक की न हो | जिसमें लय व गति हो, गेयता का बंधन न हो एवं मात्रा- बंधन भी आवश्यक नहीं | वर्तमान में अगीत काव्य-विधा में प्रचलित व प्रयोग होरहे विविध छंदों का नीचे वर्णन किया जा रहा है | वे छंद ये हैं-----
१- अगीत छंद ......२-लयबद्ध अगीत ३-गतिमय सप्तपदी अगीत ४-लयबद्ध षटपदी अगीत ५-नव-अगीत ६-त्रिपदा अगीत ७-त्रिपदा अगीत गज़ल ... )
कार्यशाला -१७...नव अगीत छंद.... .इस छंद
का रचना
विधान निम्न
है.....
१.अतुकांत
लघु अगीत
छंद
२.तीन
से कम
व पांच से
अधिक पंक्तियाँ
नहीं
३.लय,
गति व
मात्रा बंधन
से मुक्त
४. मुख्यतया:
सामाजिक सरोकारों, कटु सत्य,
नवीन विचारों
से युक्त
परन्तु अनिवार्यता
व बंधन नहीं
|
उदाहरण-----
" बेडियाँ तोडो
ज्ञान दीप जलाओ ;
नारी ! अब-
तुम्हीं राह दिखाओ,
समाज को जोड़ो |"
------सुषमा गुप्ता
"मुस्तैद मित्र पुलिस
हरदम तैयार ;
फिर भी नहीं मिली ,
उत्तम प्रदेश में-
चोरी गयी कार |" -----डा श्याम गुप्त
"सावधान होजायें
ऐसे दुमुहे
मुझे न भाएँ ;
जो खाएं और गुर्रायें
इन दुमुहों के पास
न जाएँ
|" ---- सोहन लाल सुबुद्ध
"शब्द वेधी वाण ने
हरे श्रवण के प्राण ;
कैकयी की वाणी ने .
वन भेजा सुकुमार |"
--- पार्थो सेन |
" बिंदुओं सी रातें
गगन से दिन बनें ,
तीन ऋतु बीत जाएँ ,
बस यूँही | " -----मंजू सक्सेना
तीन ऋतु बीत जाएँ ,
बस यूँही | " -----मंजू सक्सेना
" संकल्प ले चुके हम,
पोलियो मुक्त जीवन का,
धर्म और आतंक के ,
विष से मुक्ति का,
संकल्प भी तो लें हम | " ---जगत नारायण पांडे
पोलियो मुक्त जीवन का,
धर्म और आतंक के ,
विष से मुक्ति का,
संकल्प भी तो लें हम | " ---जगत नारायण पांडे
---- क्रमश ..कार्यशाला १८ .... त्रिपदा अगीत छंद....