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Saturday 18 April 2015

अगीत की शिक्षाशाला--कार्यशाला २७.. - नव-अगीत - डा सत्य के हाइकू ...डा श्याम गुप्त....

            अगीत की शिक्षाशाला--कार्यशाला २७.. कुछ  नव-अगीत ...

   डा रंगनाथ मिश्र सत्य के ..हाइकू ---

 

मैं जानता हूँ ,

तुम्हारी हर चाल -

पहचानता हूँ |


कहता नहीं 

लेकिन कहना भी 

नहीं चाहता |


वे लगातार 

मेरी सहज़ता की

हंसी उड़ाते हैं |


सहजता ही 

मनुज की होती है

अभिन्न मित्र |


योग करिए 

जीवन सुधारिए 

स्वस्थ रहिये |


प्राणायाम से 

मनुष्य की आयु भी 

बढ़ जाती है |


जीवन जियो 

सच्चाई के साथ ही

सुखी रहोगे |


त्याग-तपस्या

कभी भी बेकार न 

समझें मित्र |


कर्म करते 

रहिये लगातार 

सुख मिलेगा |

Monday 13 April 2015

समाज श्री सम्मान---अगीत परिषद् एवं डा रसाल स्मृति शोध संस्थान द्वारा समाज श्री सम्मान ---- डा श्याम गुप्त

समाज श्री सम्मान---अगीत परिषद् एवं डा रसाल स्मृति शोध संस्थान द्वारा समाज श्री सम्मान -----

अ.भा. अगीत परिषद् के संस्थापक अध्यक्ष डा रंगनाथ मिश्र सत्य संचालन करते हुए

सुप्रसिद्ध हास्य व्यंगकार कवि श्री सुभाषहुड़दंगी को समानित करते हुए योजना आयोग के पूर्व सदस्य डा सुल्तान शाकिर हाशमी एवं  हिन्दी संस्थान के पूर्व अध्यक्ष श्री विनोद चन्द्र पांडे 'विनोद'

कवयित्री नीलम जी को समाजश्री सम्मान प्रदान करते हुए डा श्याम गुप्त एवं  डा रंगनाथ मिश्र सत्य

Wednesday 25 March 2015

अगीत कविता के तीन महारथी –



    अगीत कविता के तीन महारथी – संस्थापक...गतिप्रदायक ...उन्नायक
   
         अगीत-त्रयी
 
 
    
   



   




                अखिल भारतीय अगीत परिषद्, लखनऊ    
 

Tuesday 24 March 2015

अगीत की शिक्षाशाला--कार्यशाला -२६... कुछ नए अगीत, नव-अगीत ...डा श्याम गुप्त

   अगीत की शिक्षाशाला--कार्यशाला -२६.. कुछ नए अगीत, नव-अगीत 

अगीतायन पत्र में प्रकाशित ---- बड़ा देखने के लिए ..राईट क्लिक के बाद view photo पर क्लिक करें ....




Sunday 8 March 2015

अगीत की शिक्षाशाला--कार्यशाला -२५....अगीतोत्सव -१५ पर एक वक्तव्य ....डा श्याम गुप्त

                                     अगीत की शिक्षाशाला--कार्यशाला -२५..

अगीतोत्सव -१५ पर मेरे मुखर अगीत के लेखक मुरली मनोहर  कपूर द्वारा दिया गया वक्तव्य में अगीत के विशिष्ट पक्षों को संक्षिप्त में सहज व सरल रूप में रखा गया है---
                 "काव्य में नयेपन की तलाश वस्तुतः सृजनात्मक प्रक्रिया का आधार बनी जो परिणाम हमारे समक्ष आया वह 'अगीत' के नाम से प्रचलन में आया | आगे चलकर अगीत का कलेवर यहीं नहीं  रुकने वाला, यह स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा है |
                 अगीत के सृजन में अपनी सोच को प्रस्तुत करने में तथा इसको समझाने के लिए अंतर्दृष्टि की आवश्यकता होती  है जो अगीतकारों को विशिष्टता व पहचान देती है |
                यहाँ यह कहना समीचीन होगा की हर काल में रचनाकार अपनी रचनाओं में नए नए तत्वों का समावेश करते रहे हैं| अतः सत्य जी ने १९६६ में गीत के साथ अ प्रत्यय जोड़कर अगीत का सृजन किया क्योंकि वेदों की ऋचाएं भी अगीत में ही सृजित हैं| सहज सम्प्रेषण का माध्यम अगीत ही है |अगीतों के माध्यम से ही हर प्रकार की अनुभूतियों को स्वर दिया जा सकता है|  भावनाएं जब शब्द का रूप लेती हैं तब अगीत का सृजन होता है|अगीत तो यथार्थ के भूमि पर ही टिका है, गीतों की भांतिइसमें कल्पना को अधिक स्थान नहीं दिया गया है |यही कारण है की अज अगीत रचनाकार समाज की आवाज़ बनकर सामने आये हैं| अगीतोत्सव के आयोजन का रचनाकारों पर सुन्दर दूरगामी प्रभाव पडा है व पड रहा है और इसके संस्थापक डा रंगनाथ मिश्र सत्य जी अपने प्रयास में सार्थक सिद्ध हुए हैं|   एक विधा के तौर पर भविष्य में 'अगीतवाद'  और अधिक भव्य रूप अपना लेगा एसा मेरा विश्वास है| "

                       प्रस्तुत हैं कुछ नए अगीत ----
बादल फिर बरस गए
कहीं बाढ़ का प्रकोप
घर घर सब उजड़ गए
कहीं कहीं खेतों में काम
करते है कृषक भगवान
कहीं कहीं ऐसा भी घटित हुआ
जीव जंतु पानी को तरस गए |       ----डा रंगनाथ मिश्र ;सत्य'


आतुर अबोले से नयन
थक थक कर रह जाते हैं ,
पिता ही नहीं
माँ भी घर पर नहीं है ,
बंद दरवाजों के पीछे
नन्हा ह्रदय टूटता रहता है-
एकाकी  अँधेरे का सर्प
उसे रोज़ रोज़ डसता है |           -------स्नेह प्रभा दिल्ली


योगी चाँद रूपी दीपक से प्रकाशित
आकाशी वितान के नीचे
पृथ्वी रूपी शय्या पर
भुजाओं के तकियों के सहारे
पवन का पंखा झलती हुई
विरक्ति रूपी स्त्री के साथ
सोता है सुख से ;
जो नहीं उपलब्ध है कंचन सेज पर
कांचन-कामिनी की काया-छायाके
भुजपाश में |                               -----------सुषमा गुप्ता ,लखनऊ


मानव रचना से पहले
ॐ शब्द रचाया प्रभु ने ,
मुखरित हुआ ज्ञान
ऋचाओं का शब्दों से ;
शब्द बिना
मानव होता पशुओं के सदृश्य
ये अलंकृत भाव न होते ,
ये गीत-अगीत
कैसे लिखते हम
यदि शब्द न होते |           ---- मुरली मनोहर कपूर















Friday 30 January 2015

सृजन संस्था व अगीत परिषद् के तत्वावधान में .. अगीतोत्सव-१५ ..एक रिपोर्ट .....डा श्याम गुप्त




                                     
                           सृजन संस्था एवं अगीत परिषद् केतत्वावधान में लखनऊ में राजाजी पुरम के मेथमेटीकल  स्टडी सर्कल में अगीतोत्सव -१५ का आयजन हुआ | इस अवसर पर पूर्व न्यायाधीश , साहित्यकार एवं साहित्यकार कल्याण परिषद् पत्रिका के सम्पादक श्री राम चन्द्र शुक्ल का जन्म दिवस मनाया गयाएवं उनका सम्मान किया गया | वरिष्ठ कविश्री सुभाष हुड़दंगी हास्य-व्यंगकार एवं उदीयमान कवि श्री मुरली मनोहर कपूर को अगीत श्री के सम्मान से विभूषित किया गया |अध्यक्षता अगीत के संस्थापक डा रंगनाथ मिश्र सत्य ने की, मुख्य अतिथि श्री विनोद चन्द्र विनोद पूर्व अध्यक्ष हिन्दी  संस्थान , विशिष्ठ अतिथि डा श्याम गुप्त थे |
इस अवसर पर कवि गोष्ठी का भी आयोजन किया गया |
                 विशिष्ट  अतिथि डा श्याम गुप्त ने- गीत, अगीत, नवगीत आदि पर वक्तव्य देते हुए स्पष्ट किया की सभी काव्य के मूल व सनातन विधा गीत की ही शाखाएं हैं जो देश कालानुसार अपना विशिष्टरूप  लेता रहता है | अगीत को गीत नहीं के रूप में नहीं लिया जाता अपितु ले, गति व यति और भाव उसकी विशेषताएं हैं जो किसी भी रचना की होनी चाहिए , बस तुकांतता अनिवार्य नहीं है | उन्होंने अगीत की विभिन्न छंद-विधाओं का भी वर्णन किया |
          मुख्य अतिथि श्री विनोद चन्द्र पांडे ने काव्य एवं गीत के विहंगम रूप का दिग्दर्शन कराते हुए साहित्य व कविता की  सार्वकालीन महत्ता  एवं विभिन्न विधाओं की एकरूपता पर प्रकाश डाला | अध्यक्ष डा रंगनाथ मिश्र ने काव्य व साहित्य की सामायिक व वर्त्तमान युगीन आवश्कयताओं पर बल डाला एवं अगीत के महत्त्व को
रेखांकित किया |

श्री राम चन्द्र शुक्ल का सम्मान करते हुए श्री विनोद चन्द्र पांडे, डा सत्य एवं डा श्याम गुप्त एवं कविवर श्री  त्रिवेणी प्रसाद दुबे
श्री सुभाष हुड़दंगी का काव्य पाठ,........ मुरली  मनोहर कपूर का  सम्मान
डा श्याम गुप्त का अगीत विधा पर वक्तव्य

मुख्य अतिथि श्री विनोद चन्द्र पांडे का वक्तव्य


डा रंगनाथ मिश्र सत्य का अध्यक्षीय भाषण एवं काव्य पाठ






काव्य गोष्ठी

सृजन संस्था के अध्यक्ष डा योगेश का काव्य पाठ एवं धन्यवाद ज्ञापन


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Thursday 15 January 2015