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Sunday 6 April 2014

अगीत शिक्षाशाला -कार्यशाला २१---अगीत का कलापक्ष ..काव्य के गुण और अगीत --...डा श्याम गुप्त ....


          अगीत शिक्षाशाला -कार्यशाला २१---अगीत का कलापक्ष ..काव्य  के गुण और अगीत......डा श्याम गुप्त ....


                                                                                  

                        यद्यपि अगीत रचनाकार शब्द-विन्यास, अलंकार, रस, लक्षणाओं आदि काव्य के कलापक्ष पर अधिक आधारित नहीं रहता क्योंकि अगीत विधा--क्रान्ति रूढिवादिता के विरुद्ध से उपजा है  तथा संक्षिप्तता, विषय वैविध्य, सहज भाव-सम्प्रेषणता अभिधेयता से जन-जन संप्रेषणीयता उसका मुख्य लक्ष्य है | तथापि छंद-विधा  गीत का समानधर्मा होने के कारण अगीत में भी पर्याप्त मात्रा में आवश्यक रस, छंद, अलंकार अन्य काव्य-गुण सहज रूप में स्वतः ही आजाते हैं |

                          वस्तुतः रचना की ऊंचाई पर पहुँच कर कवि सचेष्ट लक्षणा अलन्कारादि  विधानों का परित्याग कर देता है | रचना के उच्च भाव स्तर पर पहुँच कर कवि अलन्कारादि  लक्षण विधानों की निरर्थकता से परिचित हो जाता है तथा अर्थ रचना के सर्वोच्च धरातल पर पहुँच कर भाषा भी  सादृश्य-विधान के सम्पूर्ण छल-छद्मों का परित्याग कर देती है | तभी अर्थ भाव रचना की सर्वोच्च परिधि दृश्यमान होती है | अगीत रचनाकार भी मुख्यतः भाव-संपदा प्रधान रचनाधर्मी होता है अतः सोद्देश्य लक्षणादि  में नहीं उलझता | परन्तु जहां काव्य है वहाँ कथ्य में कलापक्ष स्वतः ही सहज वृत्ति से  आजाता है, क्योंकि कविता काव्य-रचना स्वयं ही अप्रतिम कला है |  इस प्रकार  " अमित अरथ  आखर अति थोरे " की अभिधेयता के साथ-साथ अगीत काव्य में ..रस, छंद, अलंकार , लक्षणादि सभी काव्य-गुण प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं | प्रमुख अगीत रचनाकार अगीत पर विभिन्न साहित्यिक-शास्त्रीय  आलेखों के लेखक श्री सोहन लाल सुबुद्ध , श्री पार्थो सेन, डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' एवं डा श्याम गुप्त आदि द्वारा अगीत विधा के विभिन्न भाव कला पक्षों पर विविध आलेखों द्वारा समय समय पर प्रकाश डाला जाता रहा है | उदाहरणार्थ ----सोहन लाल सुबुद्ध द्वारा---'अगीत काव्य में  अलंकार योजना '   "काव्य के गुण अगीत '...'हिन्दी काव्य में नारी चित्रण'...डा सत्य के अगीत; एक काव्यशास्त्रीय दृष्टि '.....पार्थोसेन  द्वारा..'अगीत कविता वैचारिक क्रान्ति'.....तथा मेरे द्वारा ( डा श्याम गुप्त)...'विचार क्रान्ति अगीत कविता'...'समष्टि जन सामान्य हित काव्य गुण '..एवं 'हिन्दी साहित्य की विकास यात्रा में निरालायुग से आगे विकास की धारा है अगीत '...आदि |
 
                                काव्य का कला पक्ष काव्य की शोभा बढाने के साथ साथ सौन्दर्यमयता, रसात्मकता आनंदानुभूति से जन-जन रंजन के साथ विषय-भाव की रुचिकरता सरलता से सम्प्रेषणता  बढ़ाकर  अंतर की गहराई को स्पर्श करके दीर्घजीवी प्रभाव छोडने वाला बनाता है | परन्तु  अत्यधिक सचेष्ट लक्षणात्मकता  भाषा विषय को बोझिल बनाती है एवं विषय काव्य जन सामान्य के लिए दुरूह होजाता है |एवं उसका जन-रंजन वास्तविक उद्देश्य पीछे छूट जाता है , पाण्डित्याम्बर बुद्धि-विलास प्रमुख होजाता है | अतः सहज समुचित कलात्मकता अगीत का उद्देश्य है |
 
                                शिल्पसौन्दर्य, शब्दसौन्दर्य भाव सौंदर्य ( रस, छंद, अलंकार योजना ) द्वारा अर्थ-सौंदर्य की उत्पत्ति (अभिधा, लक्षणा, व्यंजना ) का उपयोग करके अर्थ-प्रतीति द्वारा विषय के भाव विषय बोध को पाठक के मन में रंजित किया जाता है | इस प्रकार काव्य का कलापक्ष प्रमुखतः तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है |
 
( ) रस, छंद, अलंकार योजना --शब्द-शिल्प अनुभूति सौंदर्य |
 
(काव्य के गुण --माधुर्य , ओज , प्रसाद ---अर्थ भाव सौंदर्य |
 
(स्) कथ्य-शक्तियाँ ---अभिधा , लक्षणा , व्यंजना ----शब्द अर्थ-प्रतीति |
 
                    अगीत के कलापक्ष पर समुचित प्रकाश डालने के लिए उपरोक्त तीनों वर्गों पर संक्षिप्त सोदाहरण विवरण समीचीन होगा |

    क्रमश :....

( ) काव्य  के गुण और अगीत ----
                   आचार्य मम्मट के अनुसार काव्य के गुण उसके अपरिहार्य तत्व हैं  | अलन्कारादि  युक्त होने पर भी गुणों से हीं काव्य आनंददायी  नहीं होता | ये काव्य की आतंरिक शोभाकारक हैं | काव्य के उत्कर्ष में मुख्य तत्व होते हैं | यद्यपि काव्याचार्यों के विभिन्न मत हैं परन्तु मूल रूप में काव्य के समस्त गुणों का मुख्यतः तीन गुणों में समावेश करके वर्णन किया जाता है | ये हैं---माधुर्य, ओज प्रसाद ---ये गुण चित्त की वृत्तियों को को विषय-भावानुसार प्रकट प्रदीप्त करते हैं माधुर्य --- का सम्बन्ध आह्लाद से है जिसमें अंतःकरण आनंद से द्रवित हो जाता है | ओज -- से चित्त दीप्त, प्रदीप्त सम्पूर्ण होकर जोश , आवेग ज्ञान के प्रकाश से भर उठाता है | प्रसाद गुण --का सम्बन्ध व्याकपत्व, विकासमानता प्रफुल्लता से है | अर्थात जो श्रवण मात्र से ही अपना अर्थ प्रकट कर दे | आचार्य विश्वनाथ के अनुसार --" प्रसाद: समस्तेषु रसेषु रचनाषु "..अर्थात प्रसाद गुण समस्त रसों रचनाओं का सहज सामान्य आवश्यक गुण है |
                      
अगीत काव्य मुख्यतया: प्रसाद गुण द्वारा सहज भव-संप्रेषणीयता युक्त विधा है , परन्तु सामाजिक सरोकारों से युक्त होने के कारण तीनों ही गुण प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं | कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं-----माधुर्य गुण  युक्त कुछ अगीत देखिये ------

"
सपने में मिलने तुम आये,
धीरे  से तन छुआ,
आँखें भर आईं , दी  दुआ;
मौन  स्तब्ध साक्षात हुआ
सहसा विश्वास जमा -
मन को तुम आज बहुत भाये | "                        ------ डा सत्य

"
विविध रंगकी सुमन वल्लरी ,
विविध रंग की सुमनावालियाँ ;
एवं नव पल्लव लड़ियों से,
सीता ने विधि भांति सजाया |
हर्षित होकर लक्ष्मण बोले,
'
करें पदार्पण स्वागत है प्रभु ! "                       ---- शूर्पणखा खंड काव्य से

              
ओज --अर्थात नवीन उद्बोधन, नवोन्मेष, उत्साह , ओज से पाठक का मन ज्ञानवान, स्फूर्त दीप्त होजाय | वाणी, मन , शरीर , अंतस, बुद्धि ज्ञान से व्यक्ति प्रदीप्त हो उठे -----
"
रक्त बीज भस्मासुर ,
रावण अनेक यहाँ ;
शकुनी दुर्योधन-
कंस द्वार द्वार पर ;
चाहिए एक और -
नीलकंठ आज फिर | "                      -----श्रीकृष्ण द्विवेदी 'द्विजेश'

"
नव युग का मिलकर
 
निर्माण करें ,
मानव का मानव से प्रेम हो ,
जीवन में नव बहार आये
सारा संसार एक हो,
शान्ति औए सुख में-
 
यह राष्ट्र लहलहाए "                                ----डा सत्य

                
प्रसाद गुण के कुछ उदाहरण देखें | सीधी-सीधी बात मन के अंदर तक विस्तार करती हुई, अर्थ- प्रतीति देती है----

"
तुमे मिलने आऊँगा,
 
बार बार आऊँगा |
 
चाहो तो ठुकरादो
चाहो  तो प्यार करो |
भाव बहुत गहरे हैं,
इनको दुलरालो | "                                 --- डा सत्य

"
संकल्प ले चुके हम,
पोलियो मुक्त जीवन का,
धर्म और आतंक के ,
विष से मुक्ति का,
संकल्प भी तो लें हम | "                       ---जगत नारायण पांडे









                      क्रमश ---- कार्यशाला ...२२ ... काव्य शक्तियां और अगीत......