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Friday 14 March 2014

अगीत की शिक्षाशाला.... कार्यशाला १८ ...प्रेम अगीत .....डा श्याम गुप्त

  

                                                       अगीत की शिक्षाशाला.... 

                                              
               (   लय गति  काव्य-विधा के अपरिहार्य तत्व विशेषताएं हैं जो इसे गद्य-विधा से पृथक करती  
 है  |  यति --काव्य को संगीतमयता के आरोह-अवरोह के साथ कथ्य भाव को अगले स्तर पर परिवर्तन की  
स्पष्टता से विषय सम्प्रेषण को आगे बढाती हैतुकांत बद्धता ..काव्य के शिल्प सौंदर्य को बढाती है परन्तु  

संक्षिप्तता, शीघ्र भाव-सम्प्रेषणता अर्थ-प्रतीति का ह्रास करती है | अतः वैदिक छंदों ऋचाओं की अनुरूपता  
तादाम्य लेते हुए अगीत मूलतः अतुकांत छंद है | हाँ लय गति इसके अनिवार्य तत्व हैं तथा तुकांत, यति,  
मात्रा गेयता का बंधन नहीं है | अगीत वस्तुतः अतुकांत गीत है |

                                                 कार्यशाला १८..... प्रेम अगीत .....

 

   प्रेम अगीत.....

    १.

गीत तुम्हारे मैंने गाये

अश्रु नयन में भर भर आये |

याद तुम्हारी घिर घिर आयी,

गीत नहीं बन पाए मेरे |

अब तो तेरी ही सरगम पर,

मेरे गीत ढला करते हैं|

मेरे ही रस छंद भाव सब,

मुझसे ही होगये पराये ||

२.

श्रेष्ठ कला का जो मंदिर था

तेरे गीत सजा मेरा मन |

प्रियतम तेरी विरह पीर में,

पतझड़ सा वीरान होगया |

जैसे धुन्धलाये शब्दों की ,

धुंधले अर्ध मिटे चित्रों की ,

कलावीथिका एक पुरानी  ||

३.

तुम जो सदा कहा करती थीं ,

मीत सदा मेरे बन रहना |

तुमने ही मुख फेर लिया क्यों,

मैंने तो कुछ नहीं कहा था |

शायद तुमको नहीं पता था ,

मीत भला कहते हैं किसको |

मीत शब्द को नहीं पढ़ा था,

तुमने मन के शब्द कोष में ||

४.

बालू से सागर के तट पर,

खूब घरोंदे गए उकेरे |

वक्त की ऊंची लहर उठी जब,

सब कुछ आकर बहा लेगयी

छोड़ गयी कुछ घोंघे-सीपी ,

सजा लिए हमने दामन में |||

Tuesday 25 February 2014

अगीत की शिक्षाशाला.....कार्यशाला १७.. अगीत छंद व उनका रचना विधान....नव अगीत छंद ...

            अगीत की शिक्षाशाला.... अगीत में रस छंद अलंकार योजना---क्रमश ... अगीत- छंद....      

                                              
               (   लय गति  काव्य-विधा के अपरिहार्य तत्व विशेषताएं हैं जो इसे गद्य-विधा से पृथक करती  
 है  |  यति --काव्य को संगीतमयता के आरोह-अवरोह के साथ कथ्य भाव को अगले स्तर पर परिवर्तन की  
स्पष्टता से विषय सम्प्रेषण को आगे बढाती हैतुकांत बद्धता ..काव्य के शिल्प सौंदर्य को बढाती है परन्तु  

संक्षिप्तता, शीघ्र भाव-सम्प्रेषणता अर्थ-प्रतीति का ह्रास करती है | अतः वैदिक छंदों ऋचाओं की अनुरूपता  
तादाम्य लेते हुए अगीत मूलतः अतुकांत छंद है | हाँ लय गति इसके अनिवार्य तत्व हैं तथा तुकांत, यति,  
मात्रा गेयता का बंधन नहीं है | अगीत वस्तुतः अतुकांत गीत है |

                      अगीत कविता का मुख्य अभिप्राय: है राष्ट्र, समाज जमीन से जुडी वह छोटी अतुकांत कविता जो पांच से दस पंक्तियों से कम या अधिक की होजिसमें लय गति हो, गेयता का बंधन हो एवं मात्रा- बंधन भी आवश्यक नहींवर्तमान में अगीत काव्य-विधा में प्रचलित प्रयोग होरहे विविध छंदों का नीचे वर्णन किया जा रहा है | वे छंद ये हैं-----
- अगीत छंद ......-लयबद्ध अगीत  -गतिमय सप्तपदी अगीत  -लयबद्ध षटपदी अगीत   -नव-अगीत -त्रिपदा अगीत   -त्रिपदा अगीत गज़ल ... )
 
                   कार्यशाला -१७...नव अगीत छंद....  .इस छंद का रचना विधान निम्न है..... 
.अतुकांत लघु अगीत छंद
.तीन से कम पांच से अधिक पंक्तियाँ नहीं
.लय, गति मात्रा बंधन से मुक्त
. मुख्यतया: सामाजिक सरोकारों, कटु सत्य, नवीन विचारों से युक्त परन्तु अनिवार्यता बंधन नहीं |
 उदाहरण-----

" बेडियाँ तोडो 
ज्ञान दीप जलाओ ;
नारी ! अब-
तुम्हीं राह दिखाओ,
समाज को जोड़ो |"                               ------सुषमा गुप्ता

"मुस्तैद मित्र पुलिस 
हरदम तैयार ;
फिर भी नहीं मिली ,
उत्तम प्रदेश में-
चोरी गयी कार |"                                  -----डा श्याम गुप्त

"सावधान होजायें 
ऐसे दुमुहे 
मुझे भाएँ ;
जो खाएं और गुर्रायें
इन दुमुहों के पास जाएँ |"                     ---- सोहन लाल सुबुद्ध

"शब्द वेधी वाण ने 
हरे श्रवण के प्राण ;
कैकयी की वाणी ने .
वन  भेजा सुकुमार |"                                  --- पार्थो सेन  |


" बिंदुओं सी रातें 
गगन से दिन बनें ,
तीन ऋतु बीत जाएँ ,
बस
यूँही | "                                              
  -----मंजू सक्सेना      

" संकल्प ले चुके हम,
पोलियो मुक्त जीवन का,
धर्म और आतंक के ,
विष से मुक्ति का,
संकल्प
भी तो लें हम | " 
                      ---जगत नारायण पांडे 

                        ---- क्रमश ..कार्यशाला १८ .... त्रिपदा अगीत छंद....