इस चिट्ठे पर हिन्दी की अतुकान्त कविता धारा की एक विशेष विधा " अगीत- कविता " व उसके साहित्य के विविध रूप-भाव प्रस्तुत किये जायेंगे.....
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Friday 6 September 2013
अगीत की शिक्षा शाला ----कार्यशाला -८ ...हिन्दी हिन्दवासियों की चेतना का मूल मन्त्र .. ....डा श्याम गुप्त ...
का हवाला | " ------ड़ा श्याम गुप्त
Thursday 5 September 2013
कर्नाटक हिन्दी प्रचार समिति, बेंगलोर द्वारा शिक्षक दिवस समारोह ....डा श्याम गुप्त ....
कर्नाटक हिन्दी प्रचार
समिति, बेंगलोर द्वारा शिक्षक दिवस समारोह
भारत के पूर्व राष्ट्रपति एवं
प्रसिद्द शिक्षाविद व दार्शनिक विद्वान् डा सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस, “शिक्षक
दिवस” गुरूवार दि.०५-०९-२०१३ पर कर्नाटक हिन्दी प्रचार समिति, जयनगर, बेंगलोर
द्वारा समिति के मंत्री एवं समिति द्वारा संचालित ‘हिन्दी शिक्षक-प्रशिक्षण
महाविद्यालय’ के प्रधानाचार्य डा वि रा देवगिरी की अध्यक्षता में एक भव्य समारोह
आयोजित किया गया | समारोह के मुख्य अतिथि डा श्याम गुप्त, लखनऊ एवं विशिष्ट अतिथि संस्कृत
के विद्वान् एवं कन्नड़ के प्राध्यापक प्रोफ.शंकर नारायण भट्ट थे |
अतिथियों
द्वारा मां सरस्वती एवं डा.राधाकृष्णन के चित्रों पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन के
पश्चात वाणी-वन्दना एवं वेदवाणी-घोष किया गया| तत्पश्चात समिति के अध्यक्ष द्वारा अतिथियों
डा श्याम गुप्त एवं प्रोफ शंकर नारायण भट्ट का अंगवस्त्र व पुष्पगुच्छ एवं स्मृति
चिन्ह देकर सम्मान किया गया | शिक्षकों एवं प्रशिक्षु शिक्षकों द्वारा कन्नड़ एवं
हिन्दी में शिक्षक-दिवस पर अपने विचार व आलेख प्रस्तुत किये गए | शिक्षकों को भेंट
प्रदान करके उनका सम्मान भी किया गया | अध्यक्ष एवं अतिथियों द्वारा अपने
व्याख्यानों के पश्चात प्रशिक्षुओं द्वारा विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत
किये गए जिनमें जल संरक्षण, ग्लोबल वार्मिंग जैसे सामयिक विषयों पर नृत्य नाटिकाएं एक मुख्य आकर्षण रहीं |
अपने स्वागत भाषण में डा देवगिरी जी ने
शिक्षक-दिवस की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए अतिथियों का विस्तृत परिचय दिया | हिन्दी
भाषा एवं साहित्य पर वक्तव्य देते हुए अतिथियों के व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश
डालते हुए उन्होंने डा श्यामगुप्त द्वारा रचित हिन्दी कविता की विशेष धारा ‘अगीत-कविता
‘ के छंद विधान “अगीत साहित्य दर्पण” की विवेचनात्मक व्याख्या करते हुए अगीत कविता
क्या है इसकी विविध उदाहरणों को गेय-रूप में सुनाकर उनकी व्याख्या की |
डा शंकर नारायण ने अपने कन्नड़ भाषा में दिए हुए वक्तव्य
में गुरु की महिमा पर हिन्दी, संस्कृत एवं कन्नड़ भाषाओं में दिए गए विविध उदाहरणों
द्वारा विस्तृत प्रकाश डाला |
डा
श्याम गुप्त ने अपना वक्तव्य... स्वरचित
काव्यांश... ‘सारा जग सुन्दर अति
सुन्दर, पर भारत की बात निराली |’ ...से प्रारम्भ करते हुए जगदगुरु भारत
की महत्ता एवं भारतीय संस्कृति व देश एवं भाषा की प्राचीनता पर प्रकाश डालते हुए
गुरु की महत्ता, सर्वगुरु ईश्वर, सतगुरु, त्रिगुरु- माता, पित़ा, गुरु की व्याख्या
करते हुए सुनाया –
एक शब्द भी ज्ञान का हमको देय बताय,
श्याम
ताहि गुरु मानकर,चरणों शीश नवाय|
इसके साथ ही उन्होंने गुरु की महिमा में स्वरचित
एक ‘पद’ एवं एक ‘कारण कार्य व प्रभाव गीत’ भी प्रस्तुत किया|
अगीत के बारे में चर्चा करते हुएडा वि रा देवगिरी |
मंचस्थ अतिथिगण |
वन्दना |
जल संरक्षण पर कन्नड़ नृत्य-नाटिका |
अंत
में डा देवगिरी जी ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया|
Friday 30 August 2013
अगीत की शिक्षा शाला ----कार्यशाला -७ ...लयबद्ध षट्पदी अगीत ....डा श्याम गुप्त ...
अगीत की शिक्षा शाला
{ अगीत विधा कविता में अगीत , लयबद्ध अगीत
,गतिमय सप्तपदी अगीत , लयबद्ध षट्पदी अगीत , नव-अगीत, त्रिपदा अगीत आदि
छः प्रकार के अतुकांत छंद प्रयोग होरहे हैं एवं सातवीं विधा 'त्रिपदा अगीत
ग़ज़ल' है|)
कार्यशाला- ७ --...लयबद्ध षट्पदी अगीत छंद ....
यह छः पंक्तियों का , प्रत्येक पंक्ति में १६ मात्राओं युक्त सममात्रिक एवं लयबद्धता एवं गेयता युक्त अतुकांत छंद है | इसका सृजन डा श्याम गुप्त ने किया एवं उनका प्रथम अगीत महाकाव्य " सृष्टि - ईषत-इच्छा या बिगबेंग ( एक अनुत्तरित उत्तर ...)" इसी छंद में रचा गया था ....तदुपरांत उनकी रामकथा पर आधारित खंड-काव्य शूर्पणखा में भी इसी छंद का प्रयोग किया गया है .....उदाहरण देखें ....
" जग की इस अशांति-क्रंदन का,
लालच लोभ मोह-बंधन का |
भ्रष्ट पतित सत्ता गठबंधन,
यह सब क्यों, इस यक्ष -प्रश्न का |
एक यही उत्तर सीधा सा ;
भूल गया नर आप स्वयं को || " ------सृष्टि महाकाव्य से ( ड़ा श्याम गुप्त )
" निजी स्वार्थ के कारण मानव ,
अति दोहन कर रहा प्रकृति का |
प्रतिदिन एक ही स्वर्ण अंड से ,
उसका लालच नहीं सिमटता |
चीर कलेजा एक साथ ही ,
पाना चाहे स्वर्ण खजाना |
"
---- सृष्टि महाकाव्य से
एवं ....
लोलुप भ्रमरों की बातें क्या
,
ललचाते
अतुलित शूर
वीर |
इस
तन
की
कृपा, प्रणय
भिक्षा ,
हित,
कितने
ही
पद-दलित
हुए |
पर आज मुझे क्यों लगता है,
संगीत फूटता कण कण से
||"
---- ( शूर्पणखा काव्य-उपन्यास से...डा श्याम
गुप्त )
' नव षोडशि सी इठला करके ,
मुस्काती तिरछी चितवन से |
बोली रघुबर से शूर्पणखा ,
सुन्दर पुरुष नहीं तुम जैसा ;
मेरे जैसी सुन्दर नारी,
नहीं जगत में है कोई भी
||"
---- डा श्याम गुप्त ( शूर्पणखा खंड-काव्य से )
" हम क्षत्री है वन में मृगया,
करना तो खेल हमारा है |
तुम जैसे दुष्ट मृग-दलों को,
हम सदा खोजते रहते हैं |
चाहे काल स्वयं सम्मुख हो,
नहीं मृत्यु से डरते हैं हम || " ---शूर्पणखा काव्य उपन्यास से ( डा श्याम गुप्त )
करना तो खेल हमारा है |
तुम जैसे दुष्ट मृग-दलों को,
हम सदा खोजते रहते हैं |
चाहे काल स्वयं सम्मुख हो,
नहीं मृत्यु से डरते हैं हम || " ---शूर्पणखा काव्य उपन्यास से ( डा श्याम गुप्त )
" विविध रंगकी सुमन वल्लरी ,
विविध रंग की सुमनावालियाँ ;
एवं नव पल्लव लड़ियों से,
सीता ने विधि भांति सजाया |
हर्षित होकर लक्ष्मण बोले,
'करें पदार्पण स्वागत है प्रभु ! " ---- शूर्पणखा खंड काव्य से
विविध रंग की सुमनावालियाँ ;
एवं नव पल्लव लड़ियों से,
सीता ने विधि भांति सजाया |
हर्षित होकर लक्ष्मण बोले,
'करें पदार्पण स्वागत है प्रभु ! " ---- शूर्पणखा खंड काव्य से
---- क्रमश ...कार्यशाला ८ ...
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