Followers

Saturday 27 July 2013

अगीत की शिक्षा शाला - कार्यशाला-१ ....डा श्याम गुप्त ....

                                             अगीत की शिक्षा-शाला

                   आज से इस ब्लॉग पर अगीत की कार्यशाला कार्यक्रम प्रसारित किया जायगा , अगीत कविता क्या है व कैसे  लिखा जाता है इसका विविध छंद व उनका छंद विधान क्या है  सोदाहरण प्रस्तुत किया जाएगा.....

                                                  अगीत कार्यशाला -१ ---



                         कविता  की अगीत विधा का प्रचलन भले ही कुछ दशक पुराना हो परन्तु अगीत की अवधारणा मानव द्वारा आनंदातिरेक में लयबद्ध स्वर में बोलना प्रारम्भ करने के साथ ही स्थापित  होगई थी|  विश्व भर के काव्य ग्रंथों समृद्धतम संस्कृत भाषा साहित्य में अतुकांत गीत, मुक्त छंद  या अगीत-- मन्त्रों , ऋचाओं श्लोकों के रूप में सदैव ही विद्यमान रहे हैं|  लोकवाणी एवं लोक साहित्य में भी अगीत कविता -भाव सदैव उपस्थित रहा है | यथा --

     मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम शास्वती समां 
     यद् क्रोंच मिथुनादेकं बधी काम मोहितं ||               तथा.....

भूर्वुवः स्वः तत्सवितुर्वरेणयम
भर्गो देवस्य  धीमहि 
धियो यो न प्रचोदयात ||

 

              संक्षिप्तता, समस्या समाधान, अतुकांत मुक्त-छंद प्रस्तुति के साथ-साथ गेयता को समेटती हुई गीत सुरसरि  की सह-सरिता, नयी अतुकांत कविता "अगीत" एक अल्हड निर्झरिणी की भांति, उत्साही राष्ट्र-प्रेम से ओत -प्रोत , गीत, गज़ल, छंद, नव-गीत आदि सभी काव्य-विधाओं में सिद्धहस्त कवि डा.रंगनाथ मिश्र 'सत्य' के अगीतायन से, लखनऊ विश्व-विद्यालय में हिदी की रीडर सुधी साहित्यकार डा उषा गुप्ता की सुप्रेरणा आशीर्वाद से निस्रत हुई | सन १९६५-६६ .में डा. सत्य ने "अखिल भारतीय अगीत परिषद "की लखनऊ में स्थापना की तथा अगीत विधा को विधिवत जन्म दिया तो वह अगीत-धारा कुछ इस प्रकार मुखरित हुई --

" आओ हम राष्ट्र को जगाएं
आजादी का जश्न मनाना,
हमारी मजबूरी नहीं-
अपितु कर्तव्य है |
आओ हम सब मिलकर 
 विश्व-बंधुत्व अपनाएं,
स्वराष्ट्र को प्रगति पथ पर -
आगे बढाएं |"                                ............डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य'


              'अगीत पांच से दस तक पंक्तियों वाली अतुकांत कविता है जिसमें मात्रा व तुकांत बंधन नहीं है | यह एक वैज्ञानिक पद्धति है वर्तमान में सामाजिक सरोकारों व उनके समाधान केलिए विद्रोह है, एक नवीन खोज है |

         कुछ अगीतों की छटा देखिये..... 

आदमी की झूठ फरेबी, मक्कारी ने-
इतना असर डाला ,कि 
मगरमच्छों ने -
अपना सम्विधान बदल डाला;
अब वे अपना पेटेंट बदलबायेंगे,
आंसूं नहीं बहायेंगे,
मक्कारी भरे आंसू,
अब आदमी के आंसू कहायेंगे ||   ----  डा श्याम गुप्त ..





"एक लघु वाक्य 
करता है हमारे भाव का
स्पष्ट सम्प्रेषण |
अगीत की लघु काया में 
लेता है आकार
हमारे विचार का
स्पष्ट विस्तृत वाच्य |"              ----श्री जगत नारायण पाण्डेय( अगीतिका से )





" बूँद -बूँद बीज ये कपास के,
खिल खिल कर पड रही दरार ;
सडी-गली मछली के संग ,
उंच-नीच अंतर में
ढूँढ  रहा विस्मय, विस्तार ;
डूब गए कपटी विश्वास के |"             -------डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य






" स्तम्भन एक और ....
संबंधी  भीड़-भाड 
ध्वंस  की कतारों में ;
मक्षिका नहा रही-
दूध के पिटारों में |
ढला ढला लगता सब ओर...
अपने में स्नेह-सिक्त,
तिरछा  भूगोल |"                                    ----डा सत्य 


" मन का कठोर होना ,
कितना मुश्किल होता है |
मन ही तो जीवन में 
कोमलतम होता है |
हम कितने भी पाषाण ह्रदय बन जाएँ,
अंतस में कहीं न कहीं ,
नेह प्रान्कुर बसता है |"                          -----स्नेह प्रभा |



"देव नागरी को अपनाएं
हिन्दी है जन जन की भाषा ,
भारत माता की अभिलाषा |
बने राष्ट्रभाषा अब हिन्दी,
सब बहनों की बड़ी बहन है 
हिन्दी सबका मान  बढाती ,
हिन्दी का अभियान चलायें|"                  --- डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य'

           
" वाह रे प्रदूषण !
धरा हो या गगन, सलिल या पवन ,
यहाँ तक कि मानव मन -
भी प्रदूषित है |
असुराचारी मानव बना खरदूषण ,
कैसे सुधरे पर्यावरण |"                  ------सुरेन्द्र कुमार शर्मा ( मेरे अगीत छंद )

सृजन जीवन है,
स्वयं सृष्टा का,
अन्यथा उसके सृष्टा होने का क्या अर्थ है;
सृजन अहसास है,
गति का, प्रगति का ;
सृजन अहसास है 
जीवित होने का ||                --- डा श्याम गुप्त
                     

Thursday 18 July 2013

पुस्तक समीक्षा..... अगीत साहित्य दर्पण – एक उत्कृष्ट शोध कृति – रवीन्द्र कुमार ‘राजेश’

पुस्तक समीक्षा..... अगीत साहित्य दर्पण – एक उत्कृष्ट शोध कृति – रवीन्द्र कुमार ‘राजेश’

                                      

.            पुस्तक समीक्षा ......कृति -'अगीत साहित्य दर्पण' ( अगीत काव्य एवं अगीत छंद विधान )......          रचनाकार-- डा श्याम गुप्त...... प्रकाशक--अखिल भारतीय परिषद, लखनऊ एवं सुषमा प्रकाशन, लखनऊ...
  समीक्षक -रवीन्द्र कुमार राजेश  ,

                   अगीत साहित्य दर्पण – एक उत्कृष्ट शोध कृति  – रवीन्द्र कुमार ‘राजेश’

               मृदुल मधर मुस्कान, मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण व्यवहार, अनवरत स्वाध्याय एवं लेखन को समर्पित हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं के सिद्ध-समर्थ रचनाकार डा श्याम गुप्त की अगीत-काव्य व अगीत संरचना के छंद- विधान को समर्पित कृति का अवगाहन कर अत्यधिक आत्मसंतोष की अनुभूति हुई |किसी विधा विशेष पर ऐसी अधिकृत एवं अनुकरणीय कृतियाँ बहुत कम लिखी जा रही हैं |कृति में अगीत के सृजन के विषय में ही नहीं अपितु देश में अगीत्कारों के संक्षिप्त परिचय एवं उनके अगीतों के उद्धरण देकर इस कृति की उपादेयता में और भी अभिवृद्धि कर दी है | अगीत के नवोदित रचनाकारों के लिए ‘अगीत साहित्य दर्पण’ कृति एक मार्गदर्शिका सिद्ध होगी एसा मेरा विशवास है | समीक्ष्य कृति ‘अगीत साहित्य दर्पण’ में छः अध्याय हैं जो इस प्रकार हैं :
             प्रथम अध्याय ‘अगीत विधा की एतिहासिक पृष्ठभूमि एवं परिदृश्य, द्वितीय उसकी उपादेयता एवं उपयोगिता, तृतीय-अगीत के वर्त्तमान सदर्भों तथा भविष्य की संभावनाएं, चतुर्थ- अगीत का छंद-विधान, पंचम अगीत का भाव- पक्ष एवं षष्ठ अगीत का कला-पक्ष |   
             डा श्याम गुप्त ने अपने एवं अपनी पत्नी श्रीमती सुषमा गुप्ता के कुछ गीत बानगी स्वरूप प्रस्तुत किये हैं जो सचमुच बड़े भावपूर्ण बन पड़े हैं | डा श्याम गुप्त का यह अगीत कैसा मनमोहक है-----
“यह कंचन सा रूप तुम्हारा-
निखर उठा सुरसरि धारा में,
 जैसे सोनपरी सी कोई-
हुई अवतरित सहसा जल में;
अथवा पदवन्दन को उतरा,
स्वयं इंदु ही गंगाजल में | “    --पृष्ठ ६२ ..
           डा श्याम गुप्त की यह प्रस्तुति वर्त्तमान की विवशता को दर्शाने में सचमुच ही देखते बनती है-----
“आँख मूँद कर हुक्म बजाना,
सच की बात न मुंह पर लाना;
पड जायेगा कष्ट उठाना | “     पृष्ठ ६५ ...
          वैराग्य को दर्शाती यह प्रस्तुति कैसी भावपूर्ण है---------
“मरणोपरांत जीव
यद्यपि मुक्त होजाता है
संसार से, पर-
कैद रहता है वह मन में
आत्मीयों के याद रूपी बंधन में,
और, होजाता है अमर |”         --पृष्ठ ५८...
               उपर्युक्त के अतिरिक्त और भी अगीत प्रस्तुतियां इस विधा पर डा श्याम गुप्त की मज़बूत पकड़ को सिद्ध करती हैं| नारी-जागरण को लक्ष्य करती श्रीमती सुषमा गुप्ता की यह प्रस्तुति निश्चय ही बड़ी उत्प्रेरक है---
“अज्ञान तमिस्रा को मिटाकर
आर्थिक रूप से
समृद्ध होगी, सुबुद्ध होगी,
नारी तू तभी स्वतंत्र होगी ,
प्रबुद्ध होगी |”               ---पृष्ठ-४९   
             नारी चेतना की संवाहक स्वरुप यह प्रस्तुति भी बड़ी ओजस्वी है –----
“ बेड़ियाँ तोड़ो
ज्ञान-दीप जलाओ,
नारी ! अब-
तुम ही राह दिखाओ,
समाज को जोड़ो |”          ---पृष्ठ -३८.
               ‘अगीत साहित्य दर्पण ‘ में डा श्याम गुप्त ने अगीत-विधा के जनक डा रंगनाथ मिश्र ‘सत्य’ की भी अनेक प्रस्तुतियां उद्धृत की हैं| इसके अतिरिक्त देश के अनेक अगीत्कारों एवं उनकी कृतियों तथा उद्धरण स्वरुप उनके अगीत देकर सचमुच बड़ा प्रशंसनीय कार्य किया है|
               अगीत की एतिहासिक पृष्ठभूमि में निराला, हरिऔध, मैथिली शरण गुप्त, सुमित्रानंदन पन्त आदि  के उद्धरण भी बड़े प्रेरणास्पद हैं |
               कृति में सर्वश्री कवि पाण्डेय रामेन्द्र, पं. जगतनारायण पांडे, स्नेहप्रभा, धनसिंह मेहता अनजान, सुरेन्द्रकुमार वर्मा, रामगुलाम रावत, धुरेन्द्र स्वरुप बिसारिया’प्रभंजन’, बक्शीस कौर संधू, कैलाशनाथ तिवारी, सुरेश चंद्र शुक्ल, सोहनलाल सुबुद्ध, पार्थोसेन, अनिल किशोर शुक्ल ‘निडर’, डा मंजू सक्सेना, सुभाष हुड़दंगी, तेज नारायण राही, इन्दुबाला गहलौत, वीरेन्द्र निझावन, डा योगेश गुप्त, मंजूलता तिवारी, श्रृद्धा विजयलक्ष्मी, क्षमापूर्णा पाठक, विजयकुमारी मौर्या, रवीन्द्र कुमार ‘राजेश’, देवेश द्विवेदी ’देवेश’, चंद्रपाल सिंह, वाहिद अली वाहिद, बुद्धिराम विमल, नंदकुमार मनोचा, श्रीमती गीता आकांक्षा, अमरनाथ, विनय सक्सेना आदि कितने ही अगीतकारों को उदधृत किया गया है |  
              अगीत विधा पर शोध करने वाले शोधार्थियों के लिए एवं पुस्तकालयों व वाचनालयों में सन्दर्भ के रूप में डा श्याम गुप्त की यह कृति विशिष्ट स्थान प्राप्त करेगी | इस उत्कृष्ट कृति के लिए डा श्याम गुप्त को कोटिश: साधुवाद |
  दि. जुलाई,५, २०१३.ई.                                                            
    पद्मा कुटीर,                                             ---------- रवीन्द्र कुमार ‘राजेश’
    सी -२७, बसंत विहार                                            कवि, लेखक एवं समीक्षक
    अलीगंज हाउसिंग स्कीम, लखनऊ -२२६०२४
    फोन -०५२२-२३२२१५४  
                                                                                                                   

Monday 15 April 2013

सृजन साहित्यिक संस्था की नव-सम्वत्सर गोष्ठी ...डा श्याम गुप्त ...



                          


डा सत्य- अध्यक्षीय वक्तव्य साथ में डा श्याम गुप्त  व डा.सुरेश शुक्ला


                     लखनऊ के युवा साहित्यकारों की साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्था ‘सृजन’ की माह के प्रत्येक दूसरे रविवार को आयोजित मासिक गोष्ठी दि.१४-४-१३ रविवार को राजाजीपुरम के स्टडी-सर्कल के सभागार में सुप्रिसिद्ध कवि, साहित्यकार, गीतकार एवं  एवं अगीताचार्य डा रंगनाथ मिश्र ‘सत्य’ की अध्यक्षता में संपन्न हुई | गोष्ठी के मुख्य अतिथि डा श्याम गुप्त एवं विशिष्ट अतिथि डा सुरेश प्रकाश शुक्ल थे | संचालन युवा कवि एवं संस्था के सचिव देवेश द्विवेदी ‘देवेश’ ने किया |

डा योगेश गुप्त गोष्ठी का प्रारम्भ करते हुए
     गोष्ठी ने एक विद्वत-गोष्ठी का भी रूप का लेलिया जब गोष्ठी का प्रारम्भ करते हुए संस्था के अध्यक्ष डा योगेश ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि भारतीय नव-संवत्सर प्रारम्भ होचुका है परन्तु अधिकाँश लोग एवं युवा पीढी को यह ज्ञात ही नहीं है, वे तो सिर्फ जनवरी में आने वाले आंग्ल नववर्ष को ही नया साल मानते हैं | नव-संवत्सर, देवता क्या हैं  एवं आज साहित्य की दशा पर कवियों-विद्वानों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किये |

संचालक देवेष द्विवेदी ..कवि अशोक पांडे ,के के वैश्य व शांतानंद
    कविवर श्री रामप्रकाश एवं शांतानंद जी ने वाणी वन्दना की | कविवर डा योगेश, देवेश द्विवेदी, शांतानंद, विशाल श्रीवास्तव, कवियत्री सीमाक्षी श्रीवास्तव, छंदकार अशोक पाण्डेय ’अशोक’, कवि सूर्यप्रसाद मिश्र ‘हरिजन’, श्री कृष्ण वैश्य, अलंकार रस्तोगी, डा सुरेश प्रसाद शुक्ला आदि ने अपनी रचनाओं से गोष्ठी को ऊंचाई प्रदान की |  दिल्ली के वैदिक संस्कृत विद्वान् डा कृष्णानंद राय ने हिन्दी के अलावा संस्कृत में रचनाओं से भाव विभोर किया|

कवियत्री सीमाक्षी का काव्य पाठ एवं श्री सूर्यप्रसाद हरिजन, कृष्णानंद पांडे,विशाल श्रीवास्तव , अलंकर रस्तोगी
        मुख्य अतिथि के रूप में डा श्याम गुप्त ने अपने वक्तव्य में नव-संवत्सर की उत्पत्ति उसकी महत्ता बताते हुए उसे सनातन एवं वैज्ञानिक नववर्ष बताया और उसे व्याख्यायित करते हुए
पर नव-संवत्सर आधारित अपने दोहे पढ़े और आह्वान किया.....

        पाश्चात्य  नववर्ष  को, सब त्यागें श्रीमान |
        भारतीय  नववर्ष  हित, अब छेड़ें अभियान || 


      डा श्याम गुप्त ने आगे कहा कि डा योगेश गुप्त की चिंता स्वाभाविक है परन्तु हम सोचें कि आखिर क्यों हमारे युवा व अन्य सामान्य जन को अपनी सांस्कृतिक-बातों का ज्ञान नहीं है | शासन के अलावा विज्ञजनों में अगली पंक्ति में खड़े कवि व साहित्यकारों का भी यह कर्तव्य होता है कि जनसामान्य को अपनी रचनाओं द्वारा अपनी अपनी संस्कृति के बारे में ज्ञान दें एवं युवा कविओं के सम्मुख एक उदाहरण प्रस्तुत करें परन्तु आजकल ...समाचार वाली कवितायें, चुटुकुले वाले निरर्थक हास्य-व्यंग्य एवं  लम्बी-लम्बी वर्णानात्मक, कथ्यात्मक आदि निरर्थक कविताओं व कवियों का बोलवाला है जो सांस्कृतिक-सामाजिक परिप्रेक्ष्य का ज्ञान नहीं के बराबर सम्प्रेषण करती हैं | साहित्य के मूल गुणों की परिभाषा एक ग़ज़ल द्वारा प्रस्तुत की..

  
            साहित्य सत्यं शिवं सुन्दर भाव होना चहिये
            साहित्य शुचि शुभ ज्ञान  पारावार होना चाहिये
        

             श्याम, मतलब सिर्फ़ होना शुद्धता वादी नहीं,
             बहती दरिया रहे, पर तटबंध होना चाहिये



         अध्यक्षीय वक्तव्य में डा रंगनाथ मिश्र सत्य ने विविध कविताओं की समीक्षा की और अपने  सुन्दर सार्वकालिक गीत ‘जीवन की इस नयी डगर पर चलते चलते ठहर गया हूँ ‘ सुनाते हुए कहा कि निश्चय ही लम्बी-लम्बी कविताओं की अपेक्षा संक्षिप्त कविता का युग है इसीलिये ‘अगीत’ की महत्ता है |

          अंत में संस्था के अध्यक्ष डा योगेश ने धन्यवाद ज्ञापन किया |




 

Sunday 24 February 2013

साहित्यकार दिवस...आमंत्रण ...डा श्याम गुप्त ...



 
 

                            


             १ मार्च, २०१३ शुक्रवार को  गांधी भवन, संग्रहालय, लखनऊ में    साहित्यकार दिवस पर  साहित्यकार -सम्मेलन में आप सब आमंत्रित हैं....
                                                                   ------------अखिल भारतीय अगीत परिषद् , लखनऊ.