इस चिट्ठे पर हिन्दी की अतुकान्त कविता धारा की एक विशेष विधा " अगीत- कविता " व उसके साहित्य के विविध रूप-भाव प्रस्तुत किये जायेंगे.....
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Wednesday, 25 March 2015
Tuesday, 24 March 2015
अगीत की शिक्षाशाला--कार्यशाला -२६... कुछ नए अगीत, नव-अगीत ...डा श्याम गुप्त
अगीत की शिक्षाशाला--कार्यशाला -२६.. कुछ नए अगीत, नव-अगीत
अगीतायन पत्र में प्रकाशित ---- बड़ा देखने के लिए ..राईट क्लिक के बाद view photo पर क्लिक करें ....
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Sunday, 8 March 2015
अगीत की शिक्षाशाला--कार्यशाला -२५....अगीतोत्सव -१५ पर एक वक्तव्य ....डा श्याम गुप्त
अगीत की शिक्षाशाला--कार्यशाला -२५..
अगीतोत्सव -१५ पर मेरे मुखर अगीत के लेखक मुरली मनोहर कपूर द्वारा दिया गया वक्तव्य में अगीत के विशिष्ट पक्षों को संक्षिप्त में सहज व सरल रूप में रखा गया है---
"काव्य में नयेपन की तलाश वस्तुतः सृजनात्मक प्रक्रिया का आधार बनी जो परिणाम हमारे समक्ष आया वह 'अगीत' के नाम से प्रचलन में आया | आगे चलकर अगीत का कलेवर यहीं नहीं रुकने वाला, यह स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा है |
अगीत के सृजन में अपनी सोच को प्रस्तुत करने में तथा इसको समझाने के लिए अंतर्दृष्टि की आवश्यकता होती है जो अगीतकारों को विशिष्टता व पहचान देती है |
यहाँ यह कहना समीचीन होगा की हर काल में रचनाकार अपनी रचनाओं में नए नए तत्वों का समावेश करते रहे हैं| अतः सत्य जी ने १९६६ में गीत के साथ अ प्रत्यय जोड़कर अगीत का सृजन किया क्योंकि वेदों की ऋचाएं भी अगीत में ही सृजित हैं| सहज सम्प्रेषण का माध्यम अगीत ही है |अगीतों के माध्यम से ही हर प्रकार की अनुभूतियों को स्वर दिया जा सकता है| भावनाएं जब शब्द का रूप लेती हैं तब अगीत का सृजन होता है|अगीत तो यथार्थ के भूमि पर ही टिका है, गीतों की भांतिइसमें कल्पना को अधिक स्थान नहीं दिया गया है |यही कारण है की अज अगीत रचनाकार समाज की आवाज़ बनकर सामने आये हैं| अगीतोत्सव के आयोजन का रचनाकारों पर सुन्दर दूरगामी प्रभाव पडा है व पड रहा है और इसके संस्थापक डा रंगनाथ मिश्र सत्य जी अपने प्रयास में सार्थक सिद्ध हुए हैं| एक विधा के तौर पर भविष्य में 'अगीतवाद' और अधिक भव्य रूप अपना लेगा एसा मेरा विश्वास है| "
प्रस्तुत हैं कुछ नए अगीत ----
बादल फिर बरस गए
कहीं बाढ़ का प्रकोप
घर घर सब उजड़ गए
कहीं कहीं खेतों में काम
करते है कृषक भगवान
कहीं कहीं ऐसा भी घटित हुआ
जीव जंतु पानी को तरस गए | ----डा रंगनाथ मिश्र ;सत्य'
आतुर अबोले से नयन
थक थक कर रह जाते हैं ,
पिता ही नहीं
माँ भी घर पर नहीं है ,
बंद दरवाजों के पीछे
नन्हा ह्रदय टूटता रहता है-
एकाकी अँधेरे का सर्प
उसे रोज़ रोज़ डसता है | -------स्नेह प्रभा दिल्ली
योगी चाँद रूपी दीपक से प्रकाशित
आकाशी वितान के नीचे
पृथ्वी रूपी शय्या पर
भुजाओं के तकियों के सहारे
पवन का पंखा झलती हुई
विरक्ति रूपी स्त्री के साथ
सोता है सुख से ;
जो नहीं उपलब्ध है कंचन सेज पर
कांचन-कामिनी की काया-छायाके
भुजपाश में | -----------सुषमा गुप्ता ,लखनऊ
मानव रचना से पहले
ॐ शब्द रचाया प्रभु ने ,
मुखरित हुआ ज्ञान
ऋचाओं का शब्दों से ;
शब्द बिना
मानव होता पशुओं के सदृश्य
ये अलंकृत भाव न होते ,
ये गीत-अगीत
कैसे लिखते हम
यदि शब्द न होते | ---- मुरली मनोहर कपूर
अगीतोत्सव -१५ पर मेरे मुखर अगीत के लेखक मुरली मनोहर कपूर द्वारा दिया गया वक्तव्य में अगीत के विशिष्ट पक्षों को संक्षिप्त में सहज व सरल रूप में रखा गया है---
"काव्य में नयेपन की तलाश वस्तुतः सृजनात्मक प्रक्रिया का आधार बनी जो परिणाम हमारे समक्ष आया वह 'अगीत' के नाम से प्रचलन में आया | आगे चलकर अगीत का कलेवर यहीं नहीं रुकने वाला, यह स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा है |
अगीत के सृजन में अपनी सोच को प्रस्तुत करने में तथा इसको समझाने के लिए अंतर्दृष्टि की आवश्यकता होती है जो अगीतकारों को विशिष्टता व पहचान देती है |
यहाँ यह कहना समीचीन होगा की हर काल में रचनाकार अपनी रचनाओं में नए नए तत्वों का समावेश करते रहे हैं| अतः सत्य जी ने १९६६ में गीत के साथ अ प्रत्यय जोड़कर अगीत का सृजन किया क्योंकि वेदों की ऋचाएं भी अगीत में ही सृजित हैं| सहज सम्प्रेषण का माध्यम अगीत ही है |अगीतों के माध्यम से ही हर प्रकार की अनुभूतियों को स्वर दिया जा सकता है| भावनाएं जब शब्द का रूप लेती हैं तब अगीत का सृजन होता है|अगीत तो यथार्थ के भूमि पर ही टिका है, गीतों की भांतिइसमें कल्पना को अधिक स्थान नहीं दिया गया है |यही कारण है की अज अगीत रचनाकार समाज की आवाज़ बनकर सामने आये हैं| अगीतोत्सव के आयोजन का रचनाकारों पर सुन्दर दूरगामी प्रभाव पडा है व पड रहा है और इसके संस्थापक डा रंगनाथ मिश्र सत्य जी अपने प्रयास में सार्थक सिद्ध हुए हैं| एक विधा के तौर पर भविष्य में 'अगीतवाद' और अधिक भव्य रूप अपना लेगा एसा मेरा विश्वास है| "
प्रस्तुत हैं कुछ नए अगीत ----
बादल फिर बरस गए
कहीं बाढ़ का प्रकोप
घर घर सब उजड़ गए
कहीं कहीं खेतों में काम
करते है कृषक भगवान
कहीं कहीं ऐसा भी घटित हुआ
जीव जंतु पानी को तरस गए | ----डा रंगनाथ मिश्र ;सत्य'
आतुर अबोले से नयन
थक थक कर रह जाते हैं ,
पिता ही नहीं
माँ भी घर पर नहीं है ,
बंद दरवाजों के पीछे
नन्हा ह्रदय टूटता रहता है-
एकाकी अँधेरे का सर्प
उसे रोज़ रोज़ डसता है | -------स्नेह प्रभा दिल्ली
योगी चाँद रूपी दीपक से प्रकाशित
आकाशी वितान के नीचे
पृथ्वी रूपी शय्या पर
भुजाओं के तकियों के सहारे
पवन का पंखा झलती हुई
विरक्ति रूपी स्त्री के साथ
सोता है सुख से ;
जो नहीं उपलब्ध है कंचन सेज पर
कांचन-कामिनी की काया-छायाके
भुजपाश में | -----------सुषमा गुप्ता ,लखनऊ
मानव रचना से पहले
ॐ शब्द रचाया प्रभु ने ,
मुखरित हुआ ज्ञान
ऋचाओं का शब्दों से ;
शब्द बिना
मानव होता पशुओं के सदृश्य
ये अलंकृत भाव न होते ,
ये गीत-अगीत
कैसे लिखते हम
यदि शब्द न होते | ---- मुरली मनोहर कपूर
Friday, 30 January 2015
सृजन संस्था व अगीत परिषद् के तत्वावधान में .. अगीतोत्सव-१५ ..एक रिपोर्ट .....डा श्याम गुप्त
सृजन संस्था एवं अगीत परिषद् केतत्वावधान में लखनऊ में राजाजी पुरम के मेथमेटीकल स्टडी सर्कल में अगीतोत्सव -१५ का आयजन हुआ | इस अवसर पर पूर्व न्यायाधीश , साहित्यकार एवं साहित्यकार कल्याण परिषद् पत्रिका के सम्पादक श्री राम चन्द्र शुक्ल का जन्म दिवस मनाया गयाएवं उनका सम्मान किया गया | वरिष्ठ कविश्री सुभाष हुड़दंगी हास्य-व्यंगकार एवं उदीयमान कवि श्री मुरली मनोहर कपूर को अगीत श्री के सम्मान से विभूषित किया गया |अध्यक्षता अगीत के संस्थापक डा रंगनाथ मिश्र सत्य ने की, मुख्य अतिथि श्री विनोद चन्द्र विनोद पूर्व अध्यक्ष हिन्दी संस्थान , विशिष्ठ अतिथि डा श्याम गुप्त थे |
इस अवसर पर कवि गोष्ठी का भी आयोजन किया गया |
विशिष्ट अतिथि डा श्याम गुप्त ने- गीत, अगीत, नवगीत आदि पर वक्तव्य देते हुए स्पष्ट किया की सभी काव्य के मूल व सनातन विधा गीत की ही शाखाएं हैं जो देश कालानुसार अपना विशिष्टरूप लेता रहता है | अगीत को गीत नहीं के रूप में नहीं लिया जाता अपितु ले, गति व यति और भाव उसकी विशेषताएं हैं जो किसी भी रचना की होनी चाहिए , बस तुकांतता अनिवार्य नहीं है | उन्होंने अगीत की विभिन्न छंद-विधाओं का भी वर्णन किया |
मुख्य अतिथि श्री विनोद चन्द्र पांडे ने काव्य एवं गीत के विहंगम रूप का दिग्दर्शन कराते हुए साहित्य व कविता की सार्वकालीन महत्ता एवं विभिन्न विधाओं की एकरूपता पर प्रकाश डाला | अध्यक्ष डा रंगनाथ मिश्र ने काव्य व साहित्य की सामायिक व वर्त्तमान युगीन आवश्कयताओं पर बल डाला एवं अगीत के महत्त्व को
रेखांकित किया |
![]() |
श्री राम चन्द्र शुक्ल का सम्मान करते हुए श्री विनोद चन्द्र पांडे, डा सत्य एवं डा श्याम गुप्त एवं कविवर श्री त्रिवेणी प्रसाद दुबे |
![]() |
श्री सुभाष हुड़दंगी का काव्य पाठ,........ मुरली मनोहर कपूर का सम्मान |
डा श्याम गुप्त का अगीत विधा पर वक्तव्य |
मुख्य अतिथि श्री विनोद चन्द्र पांडे का वक्तव्य ![]() |
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डा रंगनाथ मिश्र सत्य का अध्यक्षीय भाषण एवं काव्य पाठ |
काव्य गोष्ठी |
सृजन संस्था के अध्यक्ष डा योगेश का काव्य पाठ एवं धन्यवाद ज्ञापन |
.
Thursday, 15 January 2015
Thursday, 8 January 2015
मेरे महकते मुक्तक ..कृति का लोकार्पण एवं काव्य गोष्ठी --पुस्तक मेला लखनऊ में -- डा श्याम गुप्त
अखिल भारतीय अगीत अगीत संस्था, लखनऊ एवं सृजन संस्था, लखनऊ द्वारा पुस्तक मेला लखनऊ में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया , जिसमें श्री मुरली मनोहर कपूर 'निर्दोष; की काव्यकृति 'मेरे महकते मुक्तक ' का लोकार्पण .. संस्था के अध्यक्ष एवं अगीत के संस्थापक डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' मुख्य अथिति डा श्याम गुप्त, कविवर श्री उमेश राही द्वारा किया गया
विभिन्न कवियों व कवयित्रियों द्वारा काव्य पाठ किया गया |
कृति मेरेमहकते मुक्तक का लोकार्पण ...पार्थोसें, मुरली मनोहर कपूर कृतिकार, डा श्याम गुप्त मुख्य अतिथि , डा रंगनाथ मिश्र सत्य अध्यक्ष एवं उमेश राही विशिष्ट अतिथि |
डा रंगनाथ मिश्र सत्य का अध्यक्षीय वक्तव्य एवं काव्य पाठ |
सृजन संस्था के महामंत्री कविवर देवेश द्विवेदी देवेश मंच संचालित करते हुए |
कविवर ओमप्रकाश अग्रवाल का काव्य पाठ साथ में श्री पार्थो सेन...मंचस्थ अध्यक्ष डारंगनाथ मिश्र सत्य, मुख्य अतिथि डा श्याम गुप्त, विशिष्ट अतिथि श्री उमेश राही |
सुषमा गुप्ता का काव्य पाठ |
डा योगेश गुप्त काव्यपाठ करते हुए |
मुरली मनोहर कपूर अपनी लोकार्पित पुस्तक से काव्यपाठ |
Monday, 24 November 2014
अगीत की कार्यशाला-२४...पुस्तक समीक्षा - अगीत विधा का अमूल्य दस्तावेज़ : 'अगीत साहित्य दर्पण ' ......
पुस्तक
समीक्षा - अगीत विधा का अमूल्य दस्तावेज़ : 'अगीत साहित्य दर्पण '
पुस्तक समीक्षा
नाम पुस्तक---- अगीत साहित्य दर्पण ..... रचयिता -- डा श्याम गुप्त ....प्रकाशक-- अखिल भारतीय अगीत परिषद् ,लखनऊ एवं सुषमा प्रकाशन , लखनऊ ...मूल्य --१५०/- रु.
समीक्षक --प्रोफ. उषा सिन्हा, पूर्व अध्यक्ष , भाषा विज्ञान विभाग, लखनऊ विश्व विद्यालय , लखनऊ ...
नाम पुस्तक---- अगीत साहित्य दर्पण ..... रचयिता -- डा श्याम गुप्त ....प्रकाशक-- अखिल भारतीय अगीत परिषद् ,लखनऊ एवं सुषमा प्रकाशन , लखनऊ ...मूल्य --१५०/- रु.
समीक्षक --प्रोफ. उषा सिन्हा, पूर्व अध्यक्ष , भाषा विज्ञान विभाग, लखनऊ विश्व विद्यालय , लखनऊ ...
मुझे डा श्याम गुप्त
द्वारा प्रणीत 'अगीत साहित्य दर्पण'
के अवगाहन का सुयोग प्राप्त हुआ | शल्य चिकित्सक डा गुप्त साहित्य के प्रति समर्पित अगीत विधा के सशक्त रचनाकार हैं|
उन्होंने अत्यंत परिश्रमपूर्वक प्रचुर
सामग्री का संकलन करके वर्णानात्मक एवं विश्लेषणात्मक पद्दतियों के आधारपर
अगीत विधा का सांगोपांग अध्ययन प्रस्तुत करके नि:संदेह श्लाघनीय कार्य
किया है | हिन्दी साहित्य की स्थापित एवं समृद्ध अगीत विधा का समग्र अध्ययन
छः सुगठित अद्यायों में विभाजित है |
अगीत विधा के प्रणेता, दिशावाहक, ध्वजावाहक डा रंगनाथ
मिश्र 'सत्य' द्वारा लिखित प्रस्तावना में अगीत विधा का सम्यग् परिचय
स्तुत्य है | मंगलाचरण से कृति का शुभारम्भ हुआ है जिसमें रचनाकार ने वाग्देवी माँ सरस्वती से अगीत को नवीन भावों के साथ
सुर लय ताल से परिपूर्ण करने और उसके प्रचार-प्रसार हेतु आशीर्वाद प्रदान
करने की याचना की है |
प्रथम अध्याय 'एतिहासिक
पृष्ठभूमि व परिदृश्य ' में डा. गुप्त विवेचन
ने अगीत के आविर्भाव एवं विकास यात्रा का सम्यक विवेचन किया है | डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' द्वारा लखनऊ में
स्थापित 'अखिल भारतीय अगीत परिषद् . के बढ़ते चरणों, अभिनव कलेवर, अगीत त्रैमासिक
मुखपत्र 'अगीतायन', संतुलित कहानी विधा,
संघात्मक समीक्षा पद्धति तथा विश्व-विद्यालयों के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में अगीत विधा को
महत्त्व प्राप्त होने की सार्थक चर्चा की गयी है | अगीत
विधा के प्रचार प्रसार में
योगदान देने वाले वरिष्ठ साहित्यकारों
के साथ ही नवांकुरों के कृतित्व पर
प्रकाश डालते हुए राष्ट्रीय और
अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर इसकी अनुगूंज को
भी रेखांकित किया गया है |
द्वितीय अध्याय के अंतर्गत अगीत की उत्पत्ति की पृष्ठभूमि, अवधारणा व अभिप्राय की सारगर्भित व्याख्या करते हुए डा गुप्त ने उसके
स्वरुप, वैशिष्ट्य एवं उपयोगिता को रेखांकित किया है | लेखक का मानना है.. 'यह एक वैज्ञानिक पद्धति है,
सामाजिक सरोकारों व उनके समाधान के लिए
एक विद्रोह है, एक नवीन खोज है |
भाषा की नयी संवेदना, कथ्य का अनूठा प्रयोग, संक्षिप्तता व परिमाण
की पोषकता, बिम्बधर्मी प्रयोग के साथ सरलता से भाव सम्प्रेषण अगीत का एक
और गुण है ' .... अगीत रचनाकार सिर्फ कल्पनाजीवी नहीं वह स्वजीवी, यथार्थजीवी व
समाजजीवी है | वह निराशावादिता के विपरीत सौन्दर्यबोध व
आशावादिता को स्वीकारता है | अगीत में पश्चिम के अन्धानुकरण की अपेक्षा कविता को
अपनी जमीन, अपने चारों और के वातावरण पर रचने का प्रयास खूब है |
अगीत के वर्त्तमान
परिदृश्य एवं संभावना
की विस्तृत विवेचना तृतीय अध्याय की
विषय वास्तु है | अगीत के विस्तृत फलक
की चर्चा करते हुए डा गुप्त ने लखनऊ व
बाहर के अनेक रचनाकारों, समीक्षकों, कवियों, उनकी रचनाओं, पत्र-पत्रिकाओं,
महाकाव्य,
खंडकाव्यों शोधग्रंथों का सम्यक निरूपण किया |
विदेशों में बसे अगीत रचनाकारों का भी
उल्लेख किया है | इसके अतिरिक्त अगीत के प्रचार-प्रसार में सक्रिय साहित्यकारों
द्वारा आयोजित गोष्ठियों,
बृहद आयोजनों, सम्मानों आदि विविध
गतिविधियों को भी उद्घाटित किया है |
इसी सन्दर्भ में अगीत के उत्कर्ष में
सहायक विभिन्न भारतीय एवं अभारतीय विद्वानों,
कवियों,
साहित्यकारों के विचारों, सम्मतियों तथा टिप्पणियों को भी प्रस्तुत किया गया है|
चतुर्थ अध्याय -'अगीत
छंद एवं उनके रचना विधान' अत्यंत महत्वपूर्ण है
| वर्त्तमान में अगीत विधा में प्रचलित एवं विविध नवीन प्रयोगों यथा अगीत छंद,
लयबद्ध अगीत, शताप्दी अगीत, नव-अगीत, गतिमय सप्तपदी अगीत, त्रिपदा अगीत एवं त्रिपदा अगीत ग़ज़ल के रचना विधान को डा गुप्त ने समुचित उद्धरणों के माध्यम से स्पष्ट करने का सार्थक
प्रयास किया है|
अगीत विधा एक भावपक्ष प्रधान सशक्त
काव्य-विधा है, इसका गहन चिंतन एवं विवेचन पंचम अध्याय 'अगीत की भाव संपदा' के अंतर्गत प्रस्तुत किया गया है |
अगीत की बहुआयामी भाव-भूमि ...सामाजिक सरोकार, सामाजिक बदलाव,युग परिवर्तन, विचारक्रान्ति,
स्त्री विमर्श, प्रकृति चित्रण, हास्य-व्यंग्य, सन्दर्भ, मनोविज्ञान, धर्म एवं दर्शन के साथ ही स्वदेश,
स्वभाषा,
स्वसंस्कृति के प्रति निष्ठा,प्रेम की अभिव्यक्ति का निरूपण विभिन्न रचनाओं के उद्धरणों के माध्यम से डा गुप्त
ने अपने विषय ज्ञान का परिचय दिया है |
'अगीत का कलापक्ष '
षष्ट अध्याय है जिसमें
कलापक्ष पर समुचित प्रकाश डाला गया है |
इस सन्दर्भ में इस तथ्य का भी उल्लेख
किया गया है कि " यद्यपि अगीत रचनाकार शव्द-विन्यास, अलंकार, रस लक्षणाओं आदि
कलापक्ष पर अधिक आधारित नहीं रहता तथापि छंद विधा व गीत का समानधर्मा
होने के कारण अगीत में भी पर्याप्त मात्रा में आवश्यक रस, छंद अलंकर व अन्य
काव्य के गुण सहज व स्वतः रूप से ही आजाते हैं|
डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य', सोहनलाल सुबुद्ध,पार्थोसेन व डा श्याम
गुप्त ने अपने आलेखों एवं कृतियों के माध्यम से अगीत काव्य में प्रयुक्त
शिल्प सौन्दर्य की चर्चा की है|
डा श्याम गुप्त ने इस अध्याय में अनेक
सटीक उद्धरणों द्वारा अगीत में रस,
छंद ,
अलंकारों,
माधर्य,
ओज,प्रसाद के साथ अभिधा,
लक्षणा,
व्यंजना के प्रयोग की सारगर्भित एवं
विषद विवेचना की है |
इस प्रकार अगीत रचनाकार
डा श्याम गुप्त ने अगीत काव्य की सुदीर्घ सृजन यात्रा विभिन्न आयामों एवं
अभिनव कलेवर का सार्थक विवेचन करके इस तथ्य को भी उदघाटित किया है कि
हिन्दी साहित्य को समृद्ध बनाने में इसका सराहनीय योगदान आज
सर्वस्वीकृत है | कृति की भाषा सहज,
बोधगम्य व प्रवाहपूर्ण एवं शैली विषयानुरूप है |
तथ्यानुसंधान एवं प्रस्तुतीकरण के
दृष्टि से यह कृति अगीत काव्य को समझने एवं इस दिशा में रचनाक्रम में प्रवृत्त
होने के लिए डा श्याम गुप्त को हार्दिक बधाई एवं अगीत काव्य एवं समस्त
रचनाकारों के उज्जवल भविष्य हेतु मंगल कामनाएं |
--प्रोफ. उषा सिन्हा
पूर्व अध्यक्ष
भाषा विज्ञान विभाग
लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ
आगे पढ़ें: रचनाकार: पुस्तक समीक्षा - अगीत विधा का अमूल्य दस्तावेज़ : 'अगीत साहित्य दर्पण ' http://www.rachanakar.org/2013/08/blog-post_7273.html#ixzz2bUUPTpXw
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