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Monday 10 September 2012

अगीत साहित्य दर्पण..क्रमश:...दो शब्द ...राम देव लाल 'विभोर'....


                         दो शब्द


             काव्य-विद्या की उत्पत्ति लौकिक ही नही पारलौकिक भी बताई गयी है प्रथम काव्य-ग्रन्थनाट्य-शास्त्रको ब्रह्म-निर्मित माना गया है उसे पन्चम वेद भी कहागया है काव्य-मीमान्सामें कहा गया है कि काव्य-विद्या का सर्वप्रथम उपदेश भगवान श्रीकंठ ने अपने शिष्यों को दिया। सरस्वती-पुत्रकाव्य पुरुषने दिव्य-स्नातकों द्वारा तीनों लोकों में काव्य-विद्या के प्रचार की  आज्ञा दी। काव्य-विद्या की लौकिक उत्पत्ति का बीज हमारेवेदोंमें मिलता है। पिन्गलाचार्य के बहुत पहले स्वर-वृत्त चुका था, जिनकी संगीत सृष्टि --उदात्त, अनुदात्त और स्वरित ध्वनि-प्रकारों पर आधारित है। ऋग्वेद के सात छंद इसी प्रकार के हैं, जिनमें गायत्री उष्णिक के तीन-तीन पाद, अनुष्टुप, त्रिष्टुप आदि के चार पाद और पंक्ति के पांच पाद निर्धारित किये गये। धीरे-धीरे वर्णों के लघु-गुरु उच्चारण की विशिष्ट योजना द्वारा लौकिक वर्ण-वृत्त आया और फ़िर मात्रा-वृत्त ताल-वृत्त भी क्रमश: मात्रिक-गणॊं ताल-गणों के आधार पर आये। छंदों के सम, विषम अर्ध-सम मात्रिक स्वरूप आये। उनके चरण संख्या के आधार पर द्विपदी से लेकर षोडष-पदी तक संरचना की गयी उनमें तुकान्त भिन्न-तुकान्त का भी प्रयोग हुआ। छंद-चरणों में यति, गति, सुर, लय आदि का भी यथायोग्य निर्धारण किया गया। इस प्रकार से काव्य-धारा का विविध छंदों में अजस्र प्रवाह हो रहा है। काव्य- मुक्तक प्रबन्ध रूप में भी प्रवाहित है। गज़ल, गीत, नवगीत जनगीत भी अपनी छटा बिखेर रहे हैं। सबके अपने अपने नियम ढांचे हैं किन्तु लय-बद्धता सब में समाहित है जो काव्यानंद का श्रोत है। सब का अपना-अपना तर्ज़, लहज़ा, रौब रुतवा है। इन्हीं आधार पर इनकी अपनी-अपनी विशिष्ट पहचान है। इन्हीं सब बातों को दृष्टि  में रखकर इनके विधान भी नियोजित किये गये हैं। वास्तव में शब्द-ब्रह्मांड में व्यवस्थित रूप में यति, गति, सुर, लय से रक्षित जो भी काव्य-विधा होगी वह आनंददायी होगी। इसी कडी से जुडी बात को डा श्याम गुप्त ने व्यवस्थित रूप में अपनी इस प्रस्तुत पुस्तकअगीत साहित्य दर्पणमें रखने का प्रयास किया है, जिसमें अगीत साहित्य के सूत्रपात से लेकर उसकी अद्यतन अवधि तक उसकी उपलब्धि, उसका स्वरूप, रचना-विधान उसकी उपयोगिता वर्णित है।

              “ अगीत साहित्य दर्पणमें डा श्याम गुप्त ने लिखा है कि सन १९६६ई. में राष्ट्र-भक्ति से ओत-प्रोत उत्साही कवि डा. रंगनाथ मिश्रसत्यने लखनऊ विश्व-विद्यालय के हिन्दी विभाग में रीडर सुधी साहित्यकार डा ऊषा गुप्ता की सुप्रेरणा से इस नवीन धाराअगीतका सूत्रपात किया। रचना-विधान में बताया गया है किअगीतएक पांच से आठ पन्क्तियों की अतुकान्त कविता है। जिसमें मात्रा बंधन नहीं, गतिमयता हो एवं गेयता का बन्धन नहीं होता। इसमें अगीत के विविध छंद   अगीत-छंद, लयबद्ध-अगीत, गतिमय सप्तपदी, लयबद्ध षटपदी, नव-अगीत, त्रिपदा-अगीत त्रिपदा-अगीत हज़ल आदि का भी उल्लेख किया गया है। स्व. पन्डित जगत नारायण पांडे कृत सौमित्र-गुणाकर डा श्याम गुप्त  कृतसृष्टि प्रबन्ध काव्यों के रसास्वादन से विदित हुआ कि अगीत-विधा में रचे गये ये ग्रन्थ आनंदवर्धक हैं। डा श्याम गुप्त को इस रचना हेतु बधाई।

                                राम देव लाल 'विभोर'                                   
                            महामंत्री काव्य-कला संगम, लखनऊ 


५६५क/१४१

गिरिज़ा सदनअमरूदहीबाग,                                                  
आलमबाग, लखनऊ-२२६००५