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Friday 29 May 2015

गुरुवासरीय काव्य गोष्ठी २८-५-१५.... डा श्याम गुप्त ...


                              
                               साप्ताहिक गुरुवासरीय काव्य गोष्ठी दी.२८-५-१५ को डा श्याम गुप्त के आवास , सुश्यानिदी , के-३४८, आशियाना कोलोनी, लखनऊ पर संपन्न हुई | 
                 घनाक्षरी छंदों में  वाणी वन्दना से गोष्ठी का प्रारम्भ करते हुए डा श्याम गुप्त ने सातवें दशक में काव्य एवं गीत की दिशाहीनता की एतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए अतुकांत कविता में अगीत के  प्रादुर्भाव एवं आगे बढ़ने पर तथा गीत के नए कलेवर नवगीत के प्रादुर्भाव पर चर्चा की एवं अपना अगीत-गीत सुनाया--
मीत तुम गाओ  न गाओ अगीत हम गाकर रहेंगे |
मीत  मानो  या न मानो , छंद भावों में सजेंगे |

               श्री डा रंगनाथ मिश्र सत्य, श्री शीलेन्द्र चौहान, श्रीमती सुषमागुप्ता, रामदेव लाल विभोर, डा सुरेश प्रकाश शुक्ल, डा अखिलेश , श्री श्याम जी श्रीवास्तव, रवीन्द्र अनुरागी, मधुकर अस्थाना, श्री दुबे , श्री कृपाशंकर विश्वास, श्री अग्निहोत्री एवं डा श्याम गुप्त ने काव्य पाठ किया |

सुषमा गुप्ता काव्यपाठ करते हुए
श्री श्याम जी श्रीवास्तव का गीत
                उपस्थित कवियों द्वारा गंगा दशहरा, मानव आचरण एवं सामाजिक सरोकार के  विभिन्न विषयों पर गीत , गज़लें ,घनाक्षरी, सवैया  छंद , अगीत , नवगीत प्रस्तुत किये गए |
             श्रीमती सुषमा गुप्ता ने अपने उद्बोधन गीत द्वारा कवियों को नारियों के मान-सम्मान के प्रति गीत लिखने को प्रेरित करते हुए कहा--
नारियों के मान के हित , जग उठे अभिमान नर में |
आत्म के सम्मान की इच्छा उठे हर एक मन में |

            श्री अग्निहोत्री जी ने अपने गद्य में लिखे जाने वाले काव्य 'महाभारत' के अंश प्रस्तुत किये | डा रंगनाथ मिश्र सत्य ने समापन काव्यपाठ के साथ सभी कवियों के काव्य पाठ की  संक्षिप्त समीक्षा सहित भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए  आभार प्रकट किया |
डा श्याम गुप्त  काव्य पाठ करते हुए साथ में -डा सुरेश शुक्ल, मधुकर अस्थाना, रामदेव लाल विभोर, डा श्याम गुप्त, शीलेन्द्र चौहान, डा रंगनाथ मिश्र सत्य,व डा अखिलेश
रवीन्द्र अनुरागी का काव्य पाठ --श्री


.दुबे, डा श्याम गुप्त, शीलेन्द्र चौहान, डा सत्य, डा अखिलेश, कृपाशंकर विश्वास ,श्याम जी श्रीवास्तव, रवीन्द्र अनुरागी
डा सुरेश शुक्ल का काव्य पाठ
संचालन श्री मधुकर अष्ठाना द्वारा किया गया | धन्यवाद ज्ञापन  श्रीमती सुषमा गुप्ता द्वारा किया गया |

Wednesday 27 May 2015

अगीत साहित्य दर्पण... की समीक्षा ---हिन्दी प्रचारक पत्रिका वाराणसी ----डा श्याम गुप्त


                                  
                        मेरे लक्षण ग्रन्थ -----अगीत साहित्य दर्पण.... अगीत साहित्य का छंद विधान व शास्त्रीय पक्ष की समीक्षा ---हिन्दी प्रचारक पत्रिका , वाराणसी में ......

Saturday 18 April 2015

अगीत की शिक्षाशाला--कार्यशाला २७.. - नव-अगीत - डा सत्य के हाइकू ...डा श्याम गुप्त....

            अगीत की शिक्षाशाला--कार्यशाला २७.. कुछ  नव-अगीत ...

   डा रंगनाथ मिश्र सत्य के ..हाइकू ---

 

मैं जानता हूँ ,

तुम्हारी हर चाल -

पहचानता हूँ |


कहता नहीं 

लेकिन कहना भी 

नहीं चाहता |


वे लगातार 

मेरी सहज़ता की

हंसी उड़ाते हैं |


सहजता ही 

मनुज की होती है

अभिन्न मित्र |


योग करिए 

जीवन सुधारिए 

स्वस्थ रहिये |


प्राणायाम से 

मनुष्य की आयु भी 

बढ़ जाती है |


जीवन जियो 

सच्चाई के साथ ही

सुखी रहोगे |


त्याग-तपस्या

कभी भी बेकार न 

समझें मित्र |


कर्म करते 

रहिये लगातार 

सुख मिलेगा |

Monday 13 April 2015

समाज श्री सम्मान---अगीत परिषद् एवं डा रसाल स्मृति शोध संस्थान द्वारा समाज श्री सम्मान ---- डा श्याम गुप्त

समाज श्री सम्मान---अगीत परिषद् एवं डा रसाल स्मृति शोध संस्थान द्वारा समाज श्री सम्मान -----

अ.भा. अगीत परिषद् के संस्थापक अध्यक्ष डा रंगनाथ मिश्र सत्य संचालन करते हुए

सुप्रसिद्ध हास्य व्यंगकार कवि श्री सुभाषहुड़दंगी को समानित करते हुए योजना आयोग के पूर्व सदस्य डा सुल्तान शाकिर हाशमी एवं  हिन्दी संस्थान के पूर्व अध्यक्ष श्री विनोद चन्द्र पांडे 'विनोद'

कवयित्री नीलम जी को समाजश्री सम्मान प्रदान करते हुए डा श्याम गुप्त एवं  डा रंगनाथ मिश्र सत्य

Wednesday 25 March 2015

अगीत कविता के तीन महारथी –



    अगीत कविता के तीन महारथी – संस्थापक...गतिप्रदायक ...उन्नायक
   
         अगीत-त्रयी
 
 
    
   



   




                अखिल भारतीय अगीत परिषद्, लखनऊ    
 

Tuesday 24 March 2015

अगीत की शिक्षाशाला--कार्यशाला -२६... कुछ नए अगीत, नव-अगीत ...डा श्याम गुप्त

   अगीत की शिक्षाशाला--कार्यशाला -२६.. कुछ नए अगीत, नव-अगीत 

अगीतायन पत्र में प्रकाशित ---- बड़ा देखने के लिए ..राईट क्लिक के बाद view photo पर क्लिक करें ....




Sunday 8 March 2015

अगीत की शिक्षाशाला--कार्यशाला -२५....अगीतोत्सव -१५ पर एक वक्तव्य ....डा श्याम गुप्त

                                     अगीत की शिक्षाशाला--कार्यशाला -२५..

अगीतोत्सव -१५ पर मेरे मुखर अगीत के लेखक मुरली मनोहर  कपूर द्वारा दिया गया वक्तव्य में अगीत के विशिष्ट पक्षों को संक्षिप्त में सहज व सरल रूप में रखा गया है---
                 "काव्य में नयेपन की तलाश वस्तुतः सृजनात्मक प्रक्रिया का आधार बनी जो परिणाम हमारे समक्ष आया वह 'अगीत' के नाम से प्रचलन में आया | आगे चलकर अगीत का कलेवर यहीं नहीं  रुकने वाला, यह स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा है |
                 अगीत के सृजन में अपनी सोच को प्रस्तुत करने में तथा इसको समझाने के लिए अंतर्दृष्टि की आवश्यकता होती  है जो अगीतकारों को विशिष्टता व पहचान देती है |
                यहाँ यह कहना समीचीन होगा की हर काल में रचनाकार अपनी रचनाओं में नए नए तत्वों का समावेश करते रहे हैं| अतः सत्य जी ने १९६६ में गीत के साथ अ प्रत्यय जोड़कर अगीत का सृजन किया क्योंकि वेदों की ऋचाएं भी अगीत में ही सृजित हैं| सहज सम्प्रेषण का माध्यम अगीत ही है |अगीतों के माध्यम से ही हर प्रकार की अनुभूतियों को स्वर दिया जा सकता है|  भावनाएं जब शब्द का रूप लेती हैं तब अगीत का सृजन होता है|अगीत तो यथार्थ के भूमि पर ही टिका है, गीतों की भांतिइसमें कल्पना को अधिक स्थान नहीं दिया गया है |यही कारण है की अज अगीत रचनाकार समाज की आवाज़ बनकर सामने आये हैं| अगीतोत्सव के आयोजन का रचनाकारों पर सुन्दर दूरगामी प्रभाव पडा है व पड रहा है और इसके संस्थापक डा रंगनाथ मिश्र सत्य जी अपने प्रयास में सार्थक सिद्ध हुए हैं|   एक विधा के तौर पर भविष्य में 'अगीतवाद'  और अधिक भव्य रूप अपना लेगा एसा मेरा विश्वास है| "

                       प्रस्तुत हैं कुछ नए अगीत ----
बादल फिर बरस गए
कहीं बाढ़ का प्रकोप
घर घर सब उजड़ गए
कहीं कहीं खेतों में काम
करते है कृषक भगवान
कहीं कहीं ऐसा भी घटित हुआ
जीव जंतु पानी को तरस गए |       ----डा रंगनाथ मिश्र ;सत्य'


आतुर अबोले से नयन
थक थक कर रह जाते हैं ,
पिता ही नहीं
माँ भी घर पर नहीं है ,
बंद दरवाजों के पीछे
नन्हा ह्रदय टूटता रहता है-
एकाकी  अँधेरे का सर्प
उसे रोज़ रोज़ डसता है |           -------स्नेह प्रभा दिल्ली


योगी चाँद रूपी दीपक से प्रकाशित
आकाशी वितान के नीचे
पृथ्वी रूपी शय्या पर
भुजाओं के तकियों के सहारे
पवन का पंखा झलती हुई
विरक्ति रूपी स्त्री के साथ
सोता है सुख से ;
जो नहीं उपलब्ध है कंचन सेज पर
कांचन-कामिनी की काया-छायाके
भुजपाश में |                               -----------सुषमा गुप्ता ,लखनऊ


मानव रचना से पहले
ॐ शब्द रचाया प्रभु ने ,
मुखरित हुआ ज्ञान
ऋचाओं का शब्दों से ;
शब्द बिना
मानव होता पशुओं के सदृश्य
ये अलंकृत भाव न होते ,
ये गीत-अगीत
कैसे लिखते हम
यदि शब्द न होते |           ---- मुरली मनोहर कपूर