पुस्तक
समीक्षा - अगीत विधा का अमूल्य दस्तावेज़ : 'अगीत साहित्य दर्पण '
पुस्तक समीक्षा
नाम पुस्तक---- अगीत साहित्य दर्पण ..... रचयिता -- डा श्याम गुप्त ....प्रकाशक-- अखिल भारतीय अगीत परिषद् ,लखनऊ एवं सुषमा प्रकाशन , लखनऊ ...मूल्य --१५०/- रु.
समीक्षक --प्रोफ. उषा सिन्हा, पूर्व अध्यक्ष , भाषा विज्ञान विभाग, लखनऊ विश्व विद्यालय , लखनऊ ...
नाम पुस्तक---- अगीत साहित्य दर्पण ..... रचयिता -- डा श्याम गुप्त ....प्रकाशक-- अखिल भारतीय अगीत परिषद् ,लखनऊ एवं सुषमा प्रकाशन , लखनऊ ...मूल्य --१५०/- रु.
समीक्षक --प्रोफ. उषा सिन्हा, पूर्व अध्यक्ष , भाषा विज्ञान विभाग, लखनऊ विश्व विद्यालय , लखनऊ ...
मुझे डा श्याम गुप्त
द्वारा प्रणीत 'अगीत साहित्य दर्पण'
के अवगाहन का सुयोग प्राप्त हुआ | शल्य चिकित्सक डा गुप्त साहित्य के प्रति समर्पित अगीत विधा के सशक्त रचनाकार हैं|
उन्होंने अत्यंत परिश्रमपूर्वक प्रचुर
सामग्री का संकलन करके वर्णानात्मक एवं विश्लेषणात्मक पद्दतियों के आधारपर
अगीत विधा का सांगोपांग अध्ययन प्रस्तुत करके नि:संदेह श्लाघनीय कार्य
किया है | हिन्दी साहित्य की स्थापित एवं समृद्ध अगीत विधा का समग्र अध्ययन
छः सुगठित अद्यायों में विभाजित है |
अगीत विधा के प्रणेता, दिशावाहक, ध्वजावाहक डा रंगनाथ
मिश्र 'सत्य' द्वारा लिखित प्रस्तावना में अगीत विधा का सम्यग् परिचय
स्तुत्य है | मंगलाचरण से कृति का शुभारम्भ हुआ है जिसमें रचनाकार ने वाग्देवी माँ सरस्वती से अगीत को नवीन भावों के साथ
सुर लय ताल से परिपूर्ण करने और उसके प्रचार-प्रसार हेतु आशीर्वाद प्रदान
करने की याचना की है |
प्रथम अध्याय 'एतिहासिक
पृष्ठभूमि व परिदृश्य ' में डा. गुप्त विवेचन
ने अगीत के आविर्भाव एवं विकास यात्रा का सम्यक विवेचन किया है | डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' द्वारा लखनऊ में
स्थापित 'अखिल भारतीय अगीत परिषद् . के बढ़ते चरणों, अभिनव कलेवर, अगीत त्रैमासिक
मुखपत्र 'अगीतायन', संतुलित कहानी विधा,
संघात्मक समीक्षा पद्धति तथा विश्व-विद्यालयों के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में अगीत विधा को
महत्त्व प्राप्त होने की सार्थक चर्चा की गयी है | अगीत
विधा के प्रचार प्रसार में
योगदान देने वाले वरिष्ठ साहित्यकारों
के साथ ही नवांकुरों के कृतित्व पर
प्रकाश डालते हुए राष्ट्रीय और
अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर इसकी अनुगूंज को
भी रेखांकित किया गया है |
द्वितीय अध्याय के अंतर्गत अगीत की उत्पत्ति की पृष्ठभूमि, अवधारणा व अभिप्राय की सारगर्भित व्याख्या करते हुए डा गुप्त ने उसके
स्वरुप, वैशिष्ट्य एवं उपयोगिता को रेखांकित किया है | लेखक का मानना है.. 'यह एक वैज्ञानिक पद्धति है,
सामाजिक सरोकारों व उनके समाधान के लिए
एक विद्रोह है, एक नवीन खोज है |
भाषा की नयी संवेदना, कथ्य का अनूठा प्रयोग, संक्षिप्तता व परिमाण
की पोषकता, बिम्बधर्मी प्रयोग के साथ सरलता से भाव सम्प्रेषण अगीत का एक
और गुण है ' .... अगीत रचनाकार सिर्फ कल्पनाजीवी नहीं वह स्वजीवी, यथार्थजीवी व
समाजजीवी है | वह निराशावादिता के विपरीत सौन्दर्यबोध व
आशावादिता को स्वीकारता है | अगीत में पश्चिम के अन्धानुकरण की अपेक्षा कविता को
अपनी जमीन, अपने चारों और के वातावरण पर रचने का प्रयास खूब है |
अगीत के वर्त्तमान
परिदृश्य एवं संभावना
की विस्तृत विवेचना तृतीय अध्याय की
विषय वास्तु है | अगीत के विस्तृत फलक
की चर्चा करते हुए डा गुप्त ने लखनऊ व
बाहर के अनेक रचनाकारों, समीक्षकों, कवियों, उनकी रचनाओं, पत्र-पत्रिकाओं,
महाकाव्य,
खंडकाव्यों शोधग्रंथों का सम्यक निरूपण किया |
विदेशों में बसे अगीत रचनाकारों का भी
उल्लेख किया है | इसके अतिरिक्त अगीत के प्रचार-प्रसार में सक्रिय साहित्यकारों
द्वारा आयोजित गोष्ठियों,
बृहद आयोजनों, सम्मानों आदि विविध
गतिविधियों को भी उद्घाटित किया है |
इसी सन्दर्भ में अगीत के उत्कर्ष में
सहायक विभिन्न भारतीय एवं अभारतीय विद्वानों,
कवियों,
साहित्यकारों के विचारों, सम्मतियों तथा टिप्पणियों को भी प्रस्तुत किया गया है|
चतुर्थ अध्याय -'अगीत
छंद एवं उनके रचना विधान' अत्यंत महत्वपूर्ण है
| वर्त्तमान में अगीत विधा में प्रचलित एवं विविध नवीन प्रयोगों यथा अगीत छंद,
लयबद्ध अगीत, शताप्दी अगीत, नव-अगीत, गतिमय सप्तपदी अगीत, त्रिपदा अगीत एवं त्रिपदा अगीत ग़ज़ल के रचना विधान को डा गुप्त ने समुचित उद्धरणों के माध्यम से स्पष्ट करने का सार्थक
प्रयास किया है|
अगीत विधा एक भावपक्ष प्रधान सशक्त
काव्य-विधा है, इसका गहन चिंतन एवं विवेचन पंचम अध्याय 'अगीत की भाव संपदा' के अंतर्गत प्रस्तुत किया गया है |
अगीत की बहुआयामी भाव-भूमि ...सामाजिक सरोकार, सामाजिक बदलाव,युग परिवर्तन, विचारक्रान्ति,
स्त्री विमर्श, प्रकृति चित्रण, हास्य-व्यंग्य, सन्दर्भ, मनोविज्ञान, धर्म एवं दर्शन के साथ ही स्वदेश,
स्वभाषा,
स्वसंस्कृति के प्रति निष्ठा,प्रेम की अभिव्यक्ति का निरूपण विभिन्न रचनाओं के उद्धरणों के माध्यम से डा गुप्त
ने अपने विषय ज्ञान का परिचय दिया है |
'अगीत का कलापक्ष '
षष्ट अध्याय है जिसमें
कलापक्ष पर समुचित प्रकाश डाला गया है |
इस सन्दर्भ में इस तथ्य का भी उल्लेख
किया गया है कि " यद्यपि अगीत रचनाकार शव्द-विन्यास, अलंकार, रस लक्षणाओं आदि
कलापक्ष पर अधिक आधारित नहीं रहता तथापि छंद विधा व गीत का समानधर्मा
होने के कारण अगीत में भी पर्याप्त मात्रा में आवश्यक रस, छंद अलंकर व अन्य
काव्य के गुण सहज व स्वतः रूप से ही आजाते हैं|
डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य', सोहनलाल सुबुद्ध,पार्थोसेन व डा श्याम
गुप्त ने अपने आलेखों एवं कृतियों के माध्यम से अगीत काव्य में प्रयुक्त
शिल्प सौन्दर्य की चर्चा की है|
डा श्याम गुप्त ने इस अध्याय में अनेक
सटीक उद्धरणों द्वारा अगीत में रस,
छंद ,
अलंकारों,
माधर्य,
ओज,प्रसाद के साथ अभिधा,
लक्षणा,
व्यंजना के प्रयोग की सारगर्भित एवं
विषद विवेचना की है |
इस प्रकार अगीत रचनाकार
डा श्याम गुप्त ने अगीत काव्य की सुदीर्घ सृजन यात्रा विभिन्न आयामों एवं
अभिनव कलेवर का सार्थक विवेचन करके इस तथ्य को भी उदघाटित किया है कि
हिन्दी साहित्य को समृद्ध बनाने में इसका सराहनीय योगदान आज
सर्वस्वीकृत है | कृति की भाषा सहज,
बोधगम्य व प्रवाहपूर्ण एवं शैली विषयानुरूप है |
तथ्यानुसंधान एवं प्रस्तुतीकरण के
दृष्टि से यह कृति अगीत काव्य को समझने एवं इस दिशा में रचनाक्रम में प्रवृत्त
होने के लिए डा श्याम गुप्त को हार्दिक बधाई एवं अगीत काव्य एवं समस्त
रचनाकारों के उज्जवल भविष्य हेतु मंगल कामनाएं |
--प्रोफ. उषा सिन्हा
पूर्व अध्यक्ष
भाषा विज्ञान विभाग
लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ
आगे पढ़ें: रचनाकार: पुस्तक समीक्षा - अगीत विधा का अमूल्य दस्तावेज़ : 'अगीत साहित्य दर्पण ' http://www.rachanakar.org/2013/08/blog-post_7273.html#ixzz2bUUPTpXw